• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
इकोनॉमी

आखिर क्यों पेट्रोल और डीजल के दाम कम नहीं कर रही मोदी सरकार?

    • आईचौक
    • Updated: 11 सितम्बर, 2018 06:04 PM
  • 11 सितम्बर, 2018 06:04 PM
offline
इस बात में कोई दोराय नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए पेट्रोल और डीजल असल में कमाई का सबसे बड़ा साधन है. दोनों राज्य और केंद्र सरकारों में से कोई भी अगर पेट्रोल पर ड्यूटी कम करता है तो ये सालाना रेवेन्यू पर असर डालेगा.

पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं और आलम ये है कि मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस और 21 विपक्षी पार्टियों ने भारत बंद का आयोजन कर लिया है. मोदी सरकार के दौर में रुपया सस्ता होता जा रहा है और पेट्रोल महंगा होता जा रहा है. सोशल मीडिया पर भी लोग बहस करने में जुटे हुए हैं, लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे न तो आरबीआई और न ही मोदी सरकार पर कोई असर हो रहा है. लोगों को लग रहा है जैसे 2019 के इलेक्शन के पहले मोदी सरकार महंगाई बढ़ाकर कुछ नई ही चाल चल रही है पर असल में अगर देखा जाए तो आम इंसान ये नहीं समझ पा रहा है कि आखिर सरकार पेट्रोल और डीजल के दाम कम क्यों नहीं कर रही है?

सोमवार 10 सितंबर को पेट्रोल और डीजल अपने सबसे महंगे दाम में बिक रहा था और रुपया सबसे सस्ता हो गया था, लेकिन मोदी सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए कुछ नहीं किया. हां, आंद्र प्रदेश ने दो रुपए वैट कम कर दिया और राजस्थान ने 4% की कटौती की, लेकिन बाकी राज्यों ने कुछ नहीं किया और केंद्र के बारे में तो पता ही है.

आखिर क्यों मुश्किल है सरकार के लिए पेट्रोल और डीजल के दाम कम करना?

इस बात में कोई दोराय नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए पेट्रोल और डीजल असल में कमाई का सबसे बड़ा साधन है. दोनों राज्य और केंद्र सरकारों में से कोई भी अगर पेट्रोल पर ड्यूटी कम करता है तो ये सालाना रेवेन्यू पर असर डालेगा.

अगर केंद्र सरकार की बात करें तो 2.29 लाख करोड़ की एक्साइज ड्यूटी पेट्रोलियम उत्पादों से 2017-18 में केंद्र ने वसूल की थी. यही रकम 2016-17 में 2.42 लाख करोड़ थी. मौजूदा हालात में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 19.48 रुपए प्रति लीटर है और डीजल पर ये 15.33 रुपए प्रति लीटर है. 2014 नवंबर से 2016 जनवरी तक केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी 9 बार बढ़ाई है. ऐसा इसलिए किया गया ताकि वैश्विक तौर पर तेल के गिरते दामों का फायदा उठाया जा सके और अपना रेवेन्यू बढ़ाया जा सके. हां, पिछले साल अक्टूबर में एक्साइज ड्यूटी को 2 रुपए प्रति लीटर कम जरूर किया गया था. क्रूड पेट्रोलियम में...

पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं और आलम ये है कि मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस और 21 विपक्षी पार्टियों ने भारत बंद का आयोजन कर लिया है. मोदी सरकार के दौर में रुपया सस्ता होता जा रहा है और पेट्रोल महंगा होता जा रहा है. सोशल मीडिया पर भी लोग बहस करने में जुटे हुए हैं, लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे न तो आरबीआई और न ही मोदी सरकार पर कोई असर हो रहा है. लोगों को लग रहा है जैसे 2019 के इलेक्शन के पहले मोदी सरकार महंगाई बढ़ाकर कुछ नई ही चाल चल रही है पर असल में अगर देखा जाए तो आम इंसान ये नहीं समझ पा रहा है कि आखिर सरकार पेट्रोल और डीजल के दाम कम क्यों नहीं कर रही है?

सोमवार 10 सितंबर को पेट्रोल और डीजल अपने सबसे महंगे दाम में बिक रहा था और रुपया सबसे सस्ता हो गया था, लेकिन मोदी सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए कुछ नहीं किया. हां, आंद्र प्रदेश ने दो रुपए वैट कम कर दिया और राजस्थान ने 4% की कटौती की, लेकिन बाकी राज्यों ने कुछ नहीं किया और केंद्र के बारे में तो पता ही है.

आखिर क्यों मुश्किल है सरकार के लिए पेट्रोल और डीजल के दाम कम करना?

इस बात में कोई दोराय नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए पेट्रोल और डीजल असल में कमाई का सबसे बड़ा साधन है. दोनों राज्य और केंद्र सरकारों में से कोई भी अगर पेट्रोल पर ड्यूटी कम करता है तो ये सालाना रेवेन्यू पर असर डालेगा.

अगर केंद्र सरकार की बात करें तो 2.29 लाख करोड़ की एक्साइज ड्यूटी पेट्रोलियम उत्पादों से 2017-18 में केंद्र ने वसूल की थी. यही रकम 2016-17 में 2.42 लाख करोड़ थी. मौजूदा हालात में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 19.48 रुपए प्रति लीटर है और डीजल पर ये 15.33 रुपए प्रति लीटर है. 2014 नवंबर से 2016 जनवरी तक केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी 9 बार बढ़ाई है. ऐसा इसलिए किया गया ताकि वैश्विक तौर पर तेल के गिरते दामों का फायदा उठाया जा सके और अपना रेवेन्यू बढ़ाया जा सके. हां, पिछले साल अक्टूबर में एक्साइज ड्यूटी को 2 रुपए प्रति लीटर कम जरूर किया गया था. क्रूड पेट्रोलियम में 20% ऑयल इंडस्ट्री डेवलपमेंट सेस मिलता है और 50 रुपए प्रति मेट्रिक टन के हिसाब से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति (नेशनल कैलेमिटी कंटिजेंट ड्यूटी (NCCD)) इकट्ठा होती है. क्रूड ऑयल पर कोई कस्टम ड्यूटी नहीं, लेकिन पेट्रोल और डीजल पर 2.5% कस्टम ड्यूटी लगती है.

पेट्रोल न सिर्फ केंद्र सरकार बल्की राज्य सरकार के लिए भी सबसे बड़ा रेवेन्यू का साधन है

अलग-अलग राज्यों के हिसाब से इसपर वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) और सेल्स टैक्स की कीमत भी अलग होती है. वैट Ad valorem है (यानी टैक्स का अमाउंट ट्रांजैक्शन पर निर्भर करता है, और इसे ट्रांजैक्शन होते समय ही देना होता है) और यही कारण है कि जैसे ही पेट्रोल या डीजल खरीदा जाता है वैसे ही सरकार के पास रेवेन्यू पहुंच जाता है.

सिर्फ सेल्स टैक्स और वैट से कमाया गया रेवेन्यू सरकार के लिए 2017-18 में 1.84 लाख करोड़ था और 2016-17 में ये संख्या 1.66 लाख करोड़ थी. महाराष्ट्र जहां पेट्रोल की कीमतें सबसे ज्यादा है वहां सेल्स टैक्स और वैट से 2017-18 में 25,611 करोड़ रुपए कमाए गए. उसके बाद देश के सबसे बड़े राज्य यानी उत्तर प्रदेश का नंबर आया जहां यही रकम 17,420 करोड़ थी. तीसरे नंबर पर तमिल नाडु था जहां 15,507 करोड़ और चौथे नंबर पर गुजरात जहां 17,420 करोड़ रुपए कमाए गए थे. पांचवा स्थान कर्नाटक का था जहां इसी टैक्स से 13,307 करोड़ रुपए कमाए गए थे.

ज्यादातर राज्य जहां पेट्रोल और डीजल पर ज्यादा टैक्स लगाया जाता है वो अपनी फिस्कल डेफिसिट को सही करने के लिए जूझ रहे हैं जैसे असम जहां फिस्कल डेफिसिट 12.7% है और यहां 32.66% या फिर 14 रुपए जो भी आंकड़ा ज्यादा होता है वो ड्यूटी लगाई जाती है. ऐसे ही डीजल पर 23.66% या 8.75 रुपए प्रति लीटर की ड्यूटी (जो आंकड़ा ज्यादा हो) वो लगाई जाती है.

जो राज्य पेट्रोल और डीजल में सबसे ज्यादा वैट लगाते हैं जैसे महाराष्ट्र और जिसकी फिस्कल डेफिसिट जीडीपी की 1.8% है, ऐसे राज्यों के पास टैक्स कम करने का थोड़ा स्कोप होता है. 0.3% फिस्कल के साथ दिल्ली के पास भी थोड़ा बहुत पेट्रोल की ड्यूटी कम करने का साधन है. हालांकि, दिल्ली का वैट रेट बाकी राज्यों की तुलना में कम है और ये 27% ही है. सबसे कम वैट गोवा का है जहां 17% वैट ही पेट्रोल पर लगाया जाता है और साथ ही ग्रीन सेस 0.5% है. इसलिए गोवा में सबसे सस्ता पेट्रोल मिलता है.

राजस्थान की फिस्कल डेफिसिट 3.5% रही 2017-18 में और राज्य इसे 3.0% करना चाहता है 2018-19 में. रविवार को जो राजस्थान ने टैक्स में कटौती की है उससे पेट्रोल और डीजल 2.50 रुपए प्रति लीटर सस्ता हो जाएगा. इसका मतलब राज्य को रेवेन्यू में करीब 2000 का नुकसान होगा.

अगर टैक्स को छोड़ दिया जाए तो राज्य और केंद्र सरकारें पेट्रोलियम सेक्टर से दूसरी तरह से रेवेन्यू भी ले लेती हैं जैसे डिविडेंड (सूद या लाभांश) इनकम, डिविडेंड टैक्स, कॉर्पोरेट या इनकम टैक्स और तेल और गैस की खोज पर प्रॉफिट पर टैक्स. केंद्र की कुल आय क्रूड ऑयल और पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स से 2017-18 में 3.43 लाख करोड़ हुई थी. यही आंकड़ा 2016-17 में 3.34 लाख करोड़ था. डिविडेंड इनकम के साथ राज्य सरकारों की कमाई क्रूड और पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स से 2.09 लाख करोड़ (2017-18 में) और 1.89 लाख करोड़ 2016-17 में रही है.

क्या पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंदर लाने से हालात बदलेंगे?

LPG, केरोसीन, नेफ्था, भट्ठी का तेल, हल्का डीजल ऑयल आदि जीएसटी के अंदर हैं, लेकिन अन्य पेट्रोलियम प्रोडक्ट जैसे क्रूड ऑयल, हाई स्पीड डीजल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस और एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एरोप्लेन का ईंधन) जीएसटी के अंदर नहीं है. संविधान का वन हंड्रेड एंड फर्स्ट अमेंडमेंट एक्ट, 2016 कहता है कि जीएसटी काउंसिल को वो तारीख बतानी चाहिए जिसमें पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंदर लाया जाएगा. पेट्रोलियम और नैचुरल गैस और सिविल एविएशन मंत्रालय ने फाइनेंस मिनिस्ट्री को अपनी मंजूरी दे दी है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंदर लाया जाए. हालांकि, अभी तक न ही केंद्र और न ही राज्य सरकारों ने ये तय किया है कि बचे हुए 5 पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को कब जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा.

अगर पेट्रोल और डीजल जीएसटी के अंदर आ भी गया तो भी जरूरी नहीं कि पेट्रोल और डीजल के दाम कम हों. ऐसा इसलिए है क्योंकि जीएसटी का एक नियम है कि टैक्स रेट को पुराने टैक्स रेट के हिसाब से उसके आस-पास ही रखा जाएगा. बिहार के डिप्टी चीफ मिनिस्टर सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि अगर पेट्रोल और डीजल जीएसटी के अंदर आ भी गया तो भी राज्य उसपर अलग से टैक्स लगाएंगे ताकि रेवेन्यू मिल सके. 'ज्यादातर लोगों को लगता है कि अगर पेट्रोल को जीएसटी में ले आएं तो 28% तक दाम कम हो जाएंगे, लेकिन ऐसा होगा नहीं. राज्य पेट्रोल पर टैक्स लगाते हैं ताकि रेवेन्यू आ सके, अगर ये कम हो जाएगा तो राज्य कमाएंगे कैसे?'

तो क्या सरकार दाम कम नहीं करेगी?

जीएसटी में लाने के बाद भी अगर दाम कम नहीं होने हैं तो क्या महंगाई ऐसे ही बढ़ती रहेगी और सरकार दाम कम नहीं करेगी? ऐसा पूरी तरह से मुमकिन नहीं है. केंद्र सरकार को कुछ नुकसान झेलना पड़ेगा क्योंकि सभी ईंधन की कीमतें मार्केट से लिंक्ड नहीं होती. केरोसीन और LPG की कीमतें स्थिर हैं, क्योंकि सरकार इनपर लगातार सब्सिडी दे रही है ताकि समाज के कमजोर वर्ग को थोड़ी राहत मिल सके. 2018-19 के बजट में LPG और केरोसीन की सब्सिडी के लिए 20,377.80 करोड़ और 4,555 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ था यानी कुल ईंधन सब्सिडी 24,932.80 करोड़ हो गई थी. जैसा कि सभी को पता है कि रुपया लगातार गिर रहा है. रुपया 73 पहुंचने वाला है और वैश्विक तौर पर क्रूड ऑयल के दाम बढ़ रहे हैं ऐसे में सरकार का सब्सिडी देने का बोझ बढ़ेगा ही.

साथ ही तेल की बढ़ती कीमतें और कैपिटल आउटफ्लो महंगाई को बढ़ाएंगे और साथ ही बढ़ेगी सरकार की कर्ज की लिमिट. आरबीआई ने अपना रेपो रेट भी बढ़ा दिया है और ये लगातार दो बार से 50 बेसिस प्वाइंट 0.50% बढ़ गया है और आने वाले समय में ये और बढ़ने की गुंजाइश है. तो इसका मतलब आम आदमी को राहत मिलने की गुंजाइश थोड़ी कम है.

ये भी पढ़ें-

जैक मा ने अलीबाबा का उत्‍तराधिकारी 'बाहुबली' के रूप में चुन लिया है

रोजगार विहीन विकास दर


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    Union Budget 2024: बजट में रक्षा क्षेत्र के साथ हुआ न्याय
  • offline
    Online Gaming Industry: सब धान बाईस पसेरी समझकर 28% GST लगा दिया!
  • offline
    कॉफी से अच्छी तो चाय निकली, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग दोनों से एडजस्ट कर लिया!
  • offline
    राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे से पहले ही अडानी ने लगाई छलांग; 1 दिन में मस्क से दोगुना कमाया
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲