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इस वक्त ब्याज दरें बढ़ाने का RBI का फैसला कितना सही है?

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 07 जून, 2018 05:04 PM
  • 07 जून, 2018 05:04 PM
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क्या सरकार का ये फैसला सही है? खासकर इस समय, जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, डीजल-पेट्रोल की कीमतें सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं, क्या इस समय लोन का महंगा होना या ईएमआई का बढ़ जाना सरकार के लिए नुकसानदायक नहीं है?

भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोत्तरी कर दी है. अब नई दर 6.25 फीसदी हो गई है, जो पहले 6 फीसदी थी. मई 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ये पहली बार है, जब भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में बढ़ोत्तरी की है. लेकिन सवाल ये है कि क्या सरकार का ये फैसला सही है? खासकर इस समय, जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, डीजल-पेट्रोल की कीमतें सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं, क्या इस समय लोन का महंगा होना या ईएमआई का बढ़ जाना सरकार के लिए नुकसानदायक नहीं है?

क्या कहना है विशेषज्ञों का?

इंडिया टुडे मैगजीन के एडिटर अंशुमान तिवारी के अनुसार ब्याज दरें बढ़ाने के अलावा न तो आरबीआई के सामने कोई विकल्प था ना ही सरकार के सामने. केंद्रीय बैंक का मुख्य काम होता है महंगाई पर लगाम लगाना और तेजी से बढ़ती महंगाई के इस दौर में दूसरा विकल्प भी क्या था? इससे पिछली बैठक में भी आरबीआई ने जल्द ही दरों में बढ़ोत्तरी के संकेत दे दिए थे और यह दरें अभी और अधिक बढ़ सकती हैं.

एचडीएफसी के वाइस चेयरमैन और सीईओ केकी मिस्त्री ने कहा है कि अगर अमेरिका ब्याज दरों में तेजी से बढ़ोत्तरी करता है और तेल की कीमतें इसी तरह से बढ़ती रहती हैं तो जल्द ही एक बार फिर से ब्याज दरें बढ़ सकती हैं.

हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि यह फैसला गलत था. एक ट्विटर यूजर का तो ये कहना है कि इस फैसले की वजह से 8 फीसदी जीडीपी ग्रोथ तक पहुंचने का सपना एक सपना बनकर ही रह जाएगा, क्योंकि इस फैसले से ग्रोथ पर काफी असर पड़ेगा. उनका ये भी कहना है कि अगर 2019 में मोदी सरकार सत्ता से बाहर हो जाती है तो उसका सबसे बड़ा कारण ये फैसला ही होगा.

भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोत्तरी कर दी है. अब नई दर 6.25 फीसदी हो गई है, जो पहले 6 फीसदी थी. मई 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ये पहली बार है, जब भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में बढ़ोत्तरी की है. लेकिन सवाल ये है कि क्या सरकार का ये फैसला सही है? खासकर इस समय, जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, डीजल-पेट्रोल की कीमतें सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं, क्या इस समय लोन का महंगा होना या ईएमआई का बढ़ जाना सरकार के लिए नुकसानदायक नहीं है?

क्या कहना है विशेषज्ञों का?

इंडिया टुडे मैगजीन के एडिटर अंशुमान तिवारी के अनुसार ब्याज दरें बढ़ाने के अलावा न तो आरबीआई के सामने कोई विकल्प था ना ही सरकार के सामने. केंद्रीय बैंक का मुख्य काम होता है महंगाई पर लगाम लगाना और तेजी से बढ़ती महंगाई के इस दौर में दूसरा विकल्प भी क्या था? इससे पिछली बैठक में भी आरबीआई ने जल्द ही दरों में बढ़ोत्तरी के संकेत दे दिए थे और यह दरें अभी और अधिक बढ़ सकती हैं.

एचडीएफसी के वाइस चेयरमैन और सीईओ केकी मिस्त्री ने कहा है कि अगर अमेरिका ब्याज दरों में तेजी से बढ़ोत्तरी करता है और तेल की कीमतें इसी तरह से बढ़ती रहती हैं तो जल्द ही एक बार फिर से ब्याज दरें बढ़ सकती हैं.

हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि यह फैसला गलत था. एक ट्विटर यूजर का तो ये कहना है कि इस फैसले की वजह से 8 फीसदी जीडीपी ग्रोथ तक पहुंचने का सपना एक सपना बनकर ही रह जाएगा, क्योंकि इस फैसले से ग्रोथ पर काफी असर पड़ेगा. उनका ये भी कहना है कि अगर 2019 में मोदी सरकार सत्ता से बाहर हो जाती है तो उसका सबसे बड़ा कारण ये फैसला ही होगा.

क्यों बढ़ाईं दरें?

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफे का हवाला देते हुए डीजल-पेट्रोल की कीमतों में जो बढ़ोत्तरी की गई, उससे महंगाई बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा था. इसी के मद्देनजर केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट को 0.25 फीसदी बढ़ा दिया है. आपको बता दें कि जब भी महंगाई को कम करना होता है तो इसके लिए बाजार में पैसों की सप्लाई को कम करना होता है और इस सप्लाई को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में बढ़ोत्तरी करता है.

जानिए आपकी जेब पर असर

RBI द्वारा नीतिगत दरों में बढ़ोत्तरी की वजह से बैंक से कर्ज लेना पहले की तुलना में महंगा हो जाएगा और साथ ही ईएमआई भी बढ़ सकती है. दरअसल, केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोत्तरी की है. यह वह दर होती है, जिस पर केंद्रीय बैंक अन्य बैंकों को कर्ज देता है. जब बैंकों को महंगा कर्ज मिलेगा, तो वह इस बढ़ी हुई कीमत को सीधे ग्राहकों से वसूल करेंगे, जिसकी वजह से कर्ज महंगे हो जाएंगे.

चुनाव सिर पर हैं और अगर इस समय ब्याज दरें बढ़ने से कर्ज महंगा होगा और साथ ही ईएमआई भी बढ़ सकती है. अगर सिर्फ राजनीतिक फायदे को ध्यान में रखते हुए भी इस फैसले को देखा जाए तो भी यह फैसला बिल्कुल सही है. अगर इस समय ब्याज दरें नहीं बढ़ाई जातीं तो महंगाई और अधिक बढ़ती, जिस पर लगाम लगाने के लिए दरों को बढ़ाना जरूरी था. तो ये कहना गलत नहीं होगा कि ये फैसला सियासी नजरिए से भी सही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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