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मोदी जी, अपने वादों के लिए न्यूजीलैंड से ये हुनर सीख लें

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 27 अक्टूबर, 2016 08:44 PM
  • 27 अक्टूबर, 2016 08:44 PM
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न्यूजीलैंड दुनिया के कई आर्थिक और सामाजिक मानदंडो पर अग्रणी देश है. ये मानदंड वही हैं जिसे हासिल करने के लिए 2014 में मोदी ने वादा किया.

न्‍यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जॉन की ने भारत को भरोसा दिलाया कि उनका देश NSG (न्‍यूक्लियर सप्‍लायर ग्रुप) का सदस्‍य बनने के लिए भारत का समर्थन करेगा. लेकिन क्या मोदी के लिए इतना काफी है. इस समर्थन से ज्‍यादा अहम सबक ले सकते थे मोदी अपने मेहमान से.

कूटनीतिक स्तर पर दोनों नेताओं की यह मुलाकात महज कुछ वादों के साथ पूरी हो गई. दोनों नेताओं ने किसी अहम करार पर हाथ नहीं मिलाया. बस वादे किए कि दोनों देश आपसी व्यापार बढ़ाएंगे. रक्षा क्षेत्र में सहयोग करने के मौके तलाशेंगे और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक दूसरे का साथ देंगे.

हकीकत ये है कि न्यूजीलैंड अपने कुल व्यापार का महज 1 फीसदी व्यापार भारत के साथ करता है. चीन और ऑस्ट्रेलिया उसके सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर है. और शायद इसीलिए दोनों नेताओं की मुलाकात महज औपचारिकता बन कर रह गई. एक हकीकत ये भी है कि न्यूजीलैंड दुनिया के कई आर्थिक और सामाजिक मानदंडो पर अग्रणी देश है. ये सभी मानदंड वही हैं जिसे हासिल करने के लिए 2014 में प्रधान मंत्री मोदी ने वादा किया और देश की सत्ता पर काबिज हुए. लिहाजा हमारी कोशिश होनी चाहिए कि किस तरह न्यूजीलैंड से इन मानदंडो का हुनर सीखा जाए क्योंकि अब महज ढ़ाई साल बाद प्रधानमंत्री मोदी को अपने वादों का हिसाब देना होगा.

इसे भी पढ़ें: 'मोदी को अपने सबसे भरोसेमंद साथी से चाहिए ये 4 मदद'

कारोबार करने की सरलता (ईज ऑफ डूईग बिजनेस)

विश्व बैंक द्वारा दुनिया के सभी देशों में कारोबार करने की सरलता को देखते हुए ईज ऑफ डूईंग बिजनेस इंडेक्स जारी किया जाता है. न्यूजीलैंड इस सूची में दूसरे नंबर पर है, जबकि भारत इस सूची में 131वें नंबर पर है. प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया है कि अपने कार्यकाल में वह भारत को कम से कम 50 अंक ऊपर ले जाने की कोशिश...

न्‍यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जॉन की ने भारत को भरोसा दिलाया कि उनका देश NSG (न्‍यूक्लियर सप्‍लायर ग्रुप) का सदस्‍य बनने के लिए भारत का समर्थन करेगा. लेकिन क्या मोदी के लिए इतना काफी है. इस समर्थन से ज्‍यादा अहम सबक ले सकते थे मोदी अपने मेहमान से.

कूटनीतिक स्तर पर दोनों नेताओं की यह मुलाकात महज कुछ वादों के साथ पूरी हो गई. दोनों नेताओं ने किसी अहम करार पर हाथ नहीं मिलाया. बस वादे किए कि दोनों देश आपसी व्यापार बढ़ाएंगे. रक्षा क्षेत्र में सहयोग करने के मौके तलाशेंगे और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक दूसरे का साथ देंगे.

हकीकत ये है कि न्यूजीलैंड अपने कुल व्यापार का महज 1 फीसदी व्यापार भारत के साथ करता है. चीन और ऑस्ट्रेलिया उसके सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर है. और शायद इसीलिए दोनों नेताओं की मुलाकात महज औपचारिकता बन कर रह गई. एक हकीकत ये भी है कि न्यूजीलैंड दुनिया के कई आर्थिक और सामाजिक मानदंडो पर अग्रणी देश है. ये सभी मानदंड वही हैं जिसे हासिल करने के लिए 2014 में प्रधान मंत्री मोदी ने वादा किया और देश की सत्ता पर काबिज हुए. लिहाजा हमारी कोशिश होनी चाहिए कि किस तरह न्यूजीलैंड से इन मानदंडो का हुनर सीखा जाए क्योंकि अब महज ढ़ाई साल बाद प्रधानमंत्री मोदी को अपने वादों का हिसाब देना होगा.

इसे भी पढ़ें: 'मोदी को अपने सबसे भरोसेमंद साथी से चाहिए ये 4 मदद'

कारोबार करने की सरलता (ईज ऑफ डूईग बिजनेस)

विश्व बैंक द्वारा दुनिया के सभी देशों में कारोबार करने की सरलता को देखते हुए ईज ऑफ डूईंग बिजनेस इंडेक्स जारी किया जाता है. न्यूजीलैंड इस सूची में दूसरे नंबर पर है, जबकि भारत इस सूची में 131वें नंबर पर है. प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया है कि अपने कार्यकाल में वह भारत को कम से कम 50 अंक ऊपर ले जाने की कोशिश करेंगे.

राजनीतिक स्वतंत्रता (पोलिटिकल फ्रीडम इंडेक्स)

यह रिपोर्ट दुनिया में राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रा को आधार मान कर तैयार की जाती है. सूची में शामिल किए जाने वाले देशों को वहां मौजूद आजादी के आधार पर 0 से 100 अंक दिया जाता है. सर्वाधिक अंक पाने वाला देश राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता में अग्रणी रहता है. इस सूची में न्यूजीलैंड 98 अंकों के साथ प्रथम स्थान पर है. भारत को स्वतंत्रता के लिए 77 अंक मिले हैं. मल्टीनैशनल कंपनियों को किसी देश में बड़ा निवेश करने से पहले यह समझना होता है कि उस देश स्वतंत्रता का क्या स्तर है क्योंकि जहां जितनी ज्यादा स्वतंत्रता होगा वहां निवेश उतना ही सुरक्षित होगा. अब बड़ा विदेशी निवेश लाना प्रधानमंत्री का एक वादा है. इससे जुड़ा दूसरा वादा सबका साथ-सबका विकास है. लिहाजा, न्यूजीलैंड से यह हुनर एक साथ मोदी के दो वादों में मदद करेगी.

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भ्रष्टाचार (करप्शन पसेप्शन इंडेक्स)

वैश्विक स्तर पर देशों में व्याप्त भ्रष्टाचार का जायजा लेने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन ट्रांस्पेरेंसी इंटरनैशनल इस इंडेक्स को जारी करता है. प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 के आम चुनावों में भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया था. इस इंडेक्स के तहत 100 अंकों में भारत को महज 38 अंक मिले हैं. वहीं न्यूजीलैंड को इस इंडेक्स में 88 अंक मिले हैं. लिहाजा, भ्रष्टाचार खत्म करने के लिर हुनर सीखाने का काम न्यूजीलैंड कर सकता है जिससे प्रधानमंत्री मोदी के एक और अहम वादे को पूरा किया जा सके.

 इन चीजों के लिए न्यूजीलैंड से हाथ मिलाने की जरूरत

इन्कम इक्वॉलिटी रिपोर्ट (जीनी इंडेक्स)

सबका साथ सबका विकास, प्रधानमंत्री मोदी का एक अहम वादा है. इस वादे के लिए जरूरी है कि देश में अमीर और गरीब के बीच लगातार बढ़ते फासले को विपरीत दिशा में ले जाया जाए जिससे अमीर और गरीब के अंतर को कम से कम किया जा सके. इकोनोमी में इसे जानने के लिए जीनी इंडेक्स का सहारा लिया जाता है. और इसी आंकलन को सुधारने के लिए अमारत्य सेन को नोबेल मिला था. इसके बावजूद बीते कई दशकों से हम लगातार इस कोशिश में विफल रहे हैं. अब मोदी के वादे के बाद हमें ऐसा करने का हुनर न्यूजीलैंड सिखा सकता है क्योंकि वह दुनिया के उन 54 देशों में शामिल है जहां यह अंतर कम से कम है. वहीं दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत अमीर-गरीब के सर्वाधिक फासले में सिर्फ रूस से बेहतर है.

मैं राज करने के लिए पैदा नहीं हुआ, एक मजदूर की तरह जनता-जनार्दन की सेवा करना चाहता हूँ। सेवा मेरा परम धर्म है। pic.twitter.com/fyFoq12eDj

— Narendra Modi (@narendramodi) October 24, 2016

ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स(स्थानीय जनसंख्या)

यूनाइटेड नेशन के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स के मुताबिक न्यूजीलैंड में 1990 के पहले स्थानीय जनसंख्या की सामाजिक और आर्थिक स्थिति दुनिया के मानदंड पर बेहद खराब थी. लेकिन उसके बाद न्यूजीलैंड की सरकारों ने इस जनसंख्या का विशेष ध्यान देना शुरू किया और दो-तीन दशकों की मेहनत के बाद आज वह स्थानीय जनसंख्या को आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराने के साथ-साथ उसके सामाजिक पहलू को बरकरार रखने में कामयाब हुआ है. मौजूदा समय में वह 9वां प्रमुख देश है जिसने अपनी स्थानीय जनसंख्या को विकास के साथ जोड़ते हुए उन्हें अपने सामाजिक पहलू को जारी रखने के लिए सशक्त किया है.

इसे भी पढ़ें: भारत से अमीरों का भी पलायन!

भारत में जनसंख्या का एक बड़ा तबका जनजातीय श्रेणी में है. इस तबके के पास आज भी आजादी के बाद हुआ विकास नहीं पहुंच पाया है. अस्पताल, स्कूल, स्टेडियम और मनोरंजन के साधन पहुंचाना प्रधानमंत्री मोदी के सबके साथ सबका विकास के वादे को पूरे करने के लिए अहम है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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