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यदि आप डीजल-पेट्रोल के दाम गिरने का इंतजार कर रहे हैं, तो ये है सच्‍चाई...

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 24 मई, 2018 04:44 PM
  • 24 मई, 2018 04:33 PM
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मूडीज की रिपोर्ट बताती है कि डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों से लड़ने के लिए मोदी सरकार ने जो तैयारी कर रखी थी, वो नाकाफी है. ऐसे में कीमतों में कटौती के आसार कम ही हैं. और अगर कटौती हो भी गई तो चंद दिनों में कीमतें फिर चढ़ जाएंगी.

डीजल-पेट्रोल की कीमतों में आग लगी हुई है. हर गुजरते दिन के साथ खबरें आती हैं कि सरकार इन पर लगाम लगाने के लिए ठोस कदम उठाने की तैयारी कर रही है. खुद पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी कह चुके हैं कि जल्द ही सरकार इसका समाधान निकालेगी, लेकिन कीमतें लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. इसी बीच मूडीज ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह भी डराने वाले हैं. इन आंकड़ों को देखकर लगता है कि शायद डीजल-पेट्रोल कीमतें कम ना हों. और अगर इनमें चंद रुपयों की कटौती की भी गई तो अगले कुछ दिनों में दाम वापस उसी ऊंचाई तक पहुंच जाएंगे. चलिए पहले जानते हैं क्या कहते हैं मूडीज के आंकड़े.

और धधकेगी डीजल-पेट्रोल में लगी आग

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने सब्सिडी को लेकर भारत सरकार को सावधान किया है. मूडीज के अनुसार अगर 2018-19 वित्त वर्ष में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 60-80 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहती है तो इस स्थिति में सरकार पर 35000 करोड़ रुपए से लेकर 53000 करोड़ रुपए तक का वित्तीय बोझ पड़ सकता है. यहां आपको बता दें कि सरकार ने इसके लिए करीब 25000 करोड़ रुपए का बजट रखा है, जो इस वित्तीय बोझ के सामने काफी कम है. ऐसे में इस बात की आशंका जताई जा रही है कि अभी डीजल-पेट्रोल में लगी आग और धधकेगी.

ओएनजीसी और ऑयल इंडिया पर भी पड़ेगा बोझ

24 मई को दिल्ली में डीजल की कीमत 68.53 रुपए पर पहुंच गई है और पेट्रोल की कीमत 77.47 रुपए हो गई है. ये कीमतें अभी तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं. इसी बीच मूडीज के उपाध्यक्ष विकास हलान ने कहा है कि अगर मार्च 2019 तक कच्चे तेल के दाम 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक ही रहे तो राजकोषीय घाटे की वजह से ओएनजीसी और ऑयल इंडिया को भी वित्तीय बोझ को सरकार के साथ साझा करना होगा. आपको बता दें कि पहले भी ये दोनों कंपनियां...

डीजल-पेट्रोल की कीमतों में आग लगी हुई है. हर गुजरते दिन के साथ खबरें आती हैं कि सरकार इन पर लगाम लगाने के लिए ठोस कदम उठाने की तैयारी कर रही है. खुद पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी कह चुके हैं कि जल्द ही सरकार इसका समाधान निकालेगी, लेकिन कीमतें लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. इसी बीच मूडीज ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह भी डराने वाले हैं. इन आंकड़ों को देखकर लगता है कि शायद डीजल-पेट्रोल कीमतें कम ना हों. और अगर इनमें चंद रुपयों की कटौती की भी गई तो अगले कुछ दिनों में दाम वापस उसी ऊंचाई तक पहुंच जाएंगे. चलिए पहले जानते हैं क्या कहते हैं मूडीज के आंकड़े.

और धधकेगी डीजल-पेट्रोल में लगी आग

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने सब्सिडी को लेकर भारत सरकार को सावधान किया है. मूडीज के अनुसार अगर 2018-19 वित्त वर्ष में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 60-80 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहती है तो इस स्थिति में सरकार पर 35000 करोड़ रुपए से लेकर 53000 करोड़ रुपए तक का वित्तीय बोझ पड़ सकता है. यहां आपको बता दें कि सरकार ने इसके लिए करीब 25000 करोड़ रुपए का बजट रखा है, जो इस वित्तीय बोझ के सामने काफी कम है. ऐसे में इस बात की आशंका जताई जा रही है कि अभी डीजल-पेट्रोल में लगी आग और धधकेगी.

ओएनजीसी और ऑयल इंडिया पर भी पड़ेगा बोझ

24 मई को दिल्ली में डीजल की कीमत 68.53 रुपए पर पहुंच गई है और पेट्रोल की कीमत 77.47 रुपए हो गई है. ये कीमतें अभी तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं. इसी बीच मूडीज के उपाध्यक्ष विकास हलान ने कहा है कि अगर मार्च 2019 तक कच्चे तेल के दाम 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक ही रहे तो राजकोषीय घाटे की वजह से ओएनजीसी और ऑयल इंडिया को भी वित्तीय बोझ को सरकार के साथ साझा करना होगा. आपको बता दें कि पहले भी ये दोनों कंपनियां सब्सिडी साझा किया करती थीं, लेकिन 2015 में जब वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम नीचे आने लगे तो ओएनजीसी और ऑयल इंडिया को सब्सिडी साझा करने से मुक्त कर दिया गया था. खैर, अब दोबारा इन्हें सब्सिडी साझा करनी पड़ सकती है.

तो डीजल-पेट्रोल की कीमत घटेगी या नहीं?

कच्चे तेल की कीमतों में रिकॉर्ड गिरावट आने के बाद 2016 में सरकार ने डीजल-पेट्रोल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में बढ़ोत्तरी की थी. नवंबर 2014 से लेकर जनवरी 2016 के बीच में मोदी सरकार ने पेट्रोल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी 9 बार बढ़ाई है, जबकि सिर्फ एक बार अक्टूबर 2017 में 2 रुपए की कटौती की है. ऐसे में तेल में लगी आग को शांत करने के लिए सरकार उत्पाद शुल्क में कुछ रुपयों की कटौती तो कर सकती है, लेकिन बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाना बेहद मुश्किल है, क्योंकि कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने की वजह से बढ़ रही हैं.

कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने का क्या है कारण?

कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने का सबसे बड़ा कारण ओपेक देश (Organization of the Petroleum Exporting Countries) हैं, जिन्होंने जनवरी 2017 से ही कच्चे तेल के उत्पादन को कम कर दिया है. इसकी वजह से पिछले 12 महीनों में ही कच्चे तेल की कीमतें करीब 50 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं. वहीं दूसरा बड़ा कारण अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते से अमेरिका का अलग होना है. इसके बाद से अमेरिका ने ईरान पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं. यहां आपको ये जानना जरूरी है कि ईरान पूरी दुनिया के तेल का 4 फीसदी तेल उत्पादन करता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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