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Freedom 251: मोबाइल और प्याज में कोई अंतर है क्या

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 19 फरवरी, 2016 06:48 PM
  • 19 फरवरी, 2016 06:48 PM
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आम आदमी के लिए मोबाइल फोन कम्यूनिकेशन का साधन है. कंपनियों के लिए मोबाइल फोन लाखों-करोड़ों की कमाई का साधन है. ई-कॉमर्स की दुनिया में मोबाइल फोन एक दुकान की तरह है जहां ग्राहक 24/7 बने रहते हैं.

प्याज के आंसू 2013 में देशभर में धाराप्रवाह थे. 100 रुपये प्रति किलो की दर ने देश में हाहाकार मचा दिया था. गुड़गांव की एक कंपनी ग्रुपऑन ने ई-कॉमर्स और कुरियर कंपनियों का सहारा लिया और 1 हफ्ते तक 9 रुपये किलो प्याज बेचने का ऑफर दे दिया. अगले कुछ दिनों में कंपनी ने देश के 78 शहरों में 22,500 लोगों को इस दर पर प्याज की सप्लाई कर दी. हालांकि कंपनी ने ये खुलासा कभी नहीं किया कि उसने बाजार से प्याज किस दर पर खरीदी थी. लेकिन इतना जरूर बताया कि देशभर में अपने कारोबार का विस्तार करने के लिए उसके पास यह सबसे सस्ता मार्केटिंग मॉडल था.

रिंगिंग बेल्स का क्या मॉडल है जो वह महज 251 रुपये में फ्रीडम 251 स्मार्टफोन लेकर आ रही है? देशभर के मोबाइल मैन्यूफैक्चरर ने कंपनी पर जब आरोप लगाया कि किसी भी हालत में मोबाइल फोन 2700 से कम दर पर नहीं बेचा जा सकता है तो कंपनी के मुखिया अशोक चड्ढा ने खुलासा कर दिया कि उन्हें यह मोबाइल 2500 रुपये का पड़ रहा है. इसके बाद चड्ढा ने यह भी साफ-साफ बता दिया है कि मोबाइल का प्रमुख अंग ‘चिपसेट’ ताइवान से इंपोर्ट करके लाया जाएगा और बाद में इसे मेक इन इंडिया करने की योजना है. लेकिन इतना साफ है कि कंपनी को फ्रीडम 251 को मैन्यूफैक्चर करने की लागत 251 रुपये से कहीं ज्यादा पड़ेगी. लिहाजा, रिंगिंग बेल्स के मॉडल पर कुछ अहम सवाल जरूर खड़े होते हैं और इनका जवाब हमें जब तक मिल नहीं जाते हमें कयास का ही सहारा लेना पड़ेगा.

कहीं किसी की नजर यूजर के आंकड़ों पर तो नहीं
एक आम आदमी के लिए मोबाइल फोन कम्यूनिकेशन का साधन है. एयरटेल, रिलायंस और एप्पल, सैमसंग जैसी कंपनियों के लिए मोबाइल फोन हर साल लाखों-करोड़ों की कमाई का साधन है. वहीं किसी ई-कॉमर्स कंपनी के लिए मोबाइल फोन एक दुकान की तरह है जहां ग्राहक 24/7 बने रहते हैं.

बीते पंद्रह साल में देश का मोबाइल मार्केट ट्रिकेल डाउन एक्सपैन्शन कर रहा है. सबसे पहले मोबाइल ने सरकारी लैंडलाइन कंपनियों की मोटी-मोटी डायरेक्टरी को खत्म कर दिया. इन...

प्याज के आंसू 2013 में देशभर में धाराप्रवाह थे. 100 रुपये प्रति किलो की दर ने देश में हाहाकार मचा दिया था. गुड़गांव की एक कंपनी ग्रुपऑन ने ई-कॉमर्स और कुरियर कंपनियों का सहारा लिया और 1 हफ्ते तक 9 रुपये किलो प्याज बेचने का ऑफर दे दिया. अगले कुछ दिनों में कंपनी ने देश के 78 शहरों में 22,500 लोगों को इस दर पर प्याज की सप्लाई कर दी. हालांकि कंपनी ने ये खुलासा कभी नहीं किया कि उसने बाजार से प्याज किस दर पर खरीदी थी. लेकिन इतना जरूर बताया कि देशभर में अपने कारोबार का विस्तार करने के लिए उसके पास यह सबसे सस्ता मार्केटिंग मॉडल था.

रिंगिंग बेल्स का क्या मॉडल है जो वह महज 251 रुपये में फ्रीडम 251 स्मार्टफोन लेकर आ रही है? देशभर के मोबाइल मैन्यूफैक्चरर ने कंपनी पर जब आरोप लगाया कि किसी भी हालत में मोबाइल फोन 2700 से कम दर पर नहीं बेचा जा सकता है तो कंपनी के मुखिया अशोक चड्ढा ने खुलासा कर दिया कि उन्हें यह मोबाइल 2500 रुपये का पड़ रहा है. इसके बाद चड्ढा ने यह भी साफ-साफ बता दिया है कि मोबाइल का प्रमुख अंग ‘चिपसेट’ ताइवान से इंपोर्ट करके लाया जाएगा और बाद में इसे मेक इन इंडिया करने की योजना है. लेकिन इतना साफ है कि कंपनी को फ्रीडम 251 को मैन्यूफैक्चर करने की लागत 251 रुपये से कहीं ज्यादा पड़ेगी. लिहाजा, रिंगिंग बेल्स के मॉडल पर कुछ अहम सवाल जरूर खड़े होते हैं और इनका जवाब हमें जब तक मिल नहीं जाते हमें कयास का ही सहारा लेना पड़ेगा.

कहीं किसी की नजर यूजर के आंकड़ों पर तो नहीं
एक आम आदमी के लिए मोबाइल फोन कम्यूनिकेशन का साधन है. एयरटेल, रिलायंस और एप्पल, सैमसंग जैसी कंपनियों के लिए मोबाइल फोन हर साल लाखों-करोड़ों की कमाई का साधन है. वहीं किसी ई-कॉमर्स कंपनी के लिए मोबाइल फोन एक दुकान की तरह है जहां ग्राहक 24/7 बने रहते हैं.

बीते पंद्रह साल में देश का मोबाइल मार्केट ट्रिकेल डाउन एक्सपैन्शन कर रहा है. सबसे पहले मोबाइल ने सरकारी लैंडलाइन कंपनियों की मोटी-मोटी डायरेक्टरी को खत्म कर दिया. इन डायरेक्टरी से किसी व्यापारी को क्या फायदा पहुंचता था उसके लिए एक बार कहीं से एक डायरेक्टरी का पन्ना पलट कर देख लें. उसके बाद बाजार में यह सुविधा पैसा देने पर कंपनियों को मिलने लगी. किसी भी सेक्टर की कंपनी क्यों न हो, उसके यूजर बेस डेटा को आम जनता के मोबाइल नंबर सहित बाकी आंकड़े ही पूरा करते है.

यदि फ्रीडम 251 का उद्देश्य 251 रुपये मात्र में देश के हर नागरिक तक पहुंचना है तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले कुछ महीनों में बड़ी संख्या में नागरिकों के आंकड़े किसी के पास एकत्रित होना शुरू हो जाएंगे. यदि फ्रीडम 251 मोबाइल पेनीट्रेशन की रफ्तार को बढ़ाने में सफल होता है तो उसके पास न सिर्फ बड़ी संख्या में नागरिकों के आंकड़े होंगे बल्कि देश के ऑनलाइन मार्केट का एक बड़ा सेग्मेंट भी पहुंच जाएगा. लिहाजा एक सवाल यह भी उठता है कि क्या कंपनी 2,500 रुपये लागत का फोन 251 रुपये में इसी उम्मीद पर बेचने जा रही है कि आने वाले दिनों में वह शॉपिंग प्लैटफार्म होगा.

खतरा महज ऑनलाइन खरीदारों के लिए नहीं है. केन्द्र सरकार की कोशिश देश के सभी नागरिकों को मोबाइल फोन से जोड़ने की है. इस कोशिश से केन्द्र सरकार देश के गरीबों को सूचना क्रांति से जोड़ना चाहती है. केन्द्र सरकार के कार्यक्रमों का सीधा लाभ अंतिम नागरिक तक पहुंचाने में एक मोबाइल फोन अहम भूमिका निभा सकता है.

सरकार की इसी कोशिश के चलते अभी कुछ दिनों पहले तक दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक अपना फ्री बेसिक लांच कर देश के सभी नागरिकों तक इंटरनेट पहुंचाना चाहती थी. फेसबुक की फ्री बेसिक पर केन्द्र सरकार से बातचीत लगभग एक साल तक चली लेकिन इस बीच फेसबुक के फ्री बेसिक की महंगाई का राज खुल गया. गौरतलब है कि समय-समय पर फेसबुक ने सरकार को अपने द्वारा निर्धारित सोशल मीडिया की ताकत दिखाने के लिए कुछ नमूने भी पेश किए थे (प्रोफाइल पर तिरंगा लगाकर, दुनिया में सबसे ज्यादा फॉलोविंग वाले राजनेता मोदी). इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि फेसबुक ने सरकार को यह भी दलील दी हो कि फेसबुक की मदद से वह नागरिकों पर नजर भी रख सकती है और चुनावों के दौरान फेसबुक एक अहम किरदार अदा कर सकता है, इत्यादि, इत्यादि.

गौरतलब है कि अभी कुछ दिनों पहले एप्पल कंपनी ने अमेरिका की सरकार को एक आतंकवादी द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे अपने आईफोन की जानकारी मुहैया कराने से मना कर दिया. कंपनी ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि इससे उसके ग्राहकों के बीच गलत संदेश जाता. कुछ दिनों पहले तक ब्लैकबेरी के फोन कारोबारी दुनिया में अच्छे मुकाम पर थे. लेकिन ब्लैकबेरी का अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों के साथ यही मतभेद था कि कंपनी वहां की सरकारों को जासूसी के लिए आंकड़े उपलब्ध नहीं कराती थी.

दरअसल एप्पल और ब्लैकबेरी समेत तमाम गैजेट में कोड़िंग करके आंकड़ों को सुरक्षित कर दिया जाता है. इससे वह आंकडे गैजेट इस्तेमाल करने वाला और गैजेट बनाने वाली कंपनी ही पढ़ सकती है. अभी हाल में चीन से इंपोर्ट कर भारत लाए जा रहे मोबाइल फोन पर भी जासूसी का आरोप लगा था. आरोप के मुताबिक चीनी फोन के आईएमआईई नंबर से ग्राहक की तमाम जानकारियों को चीन हासिल कर लेता था. इस खुलासे के बाद इस आशय कुछ बदलाव किया गया. लिहाजा फ्रीडम 251 के इस ऑफर पर एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि कहीं यह यूजर पोचिंग या डेटा के जरिए सब्सिडी लेकर तो बाजार में नहीं उतारा जा रहा है. इन सवालों के जवाब जब तक कंपनी या सरकार से हमें मिले, तब तक कम से कम यह फोन बुक कराने का फैसला तो हमें अपने विवेक पर छोड़ देना होगा. वैसे भी मौजूदा मोबाइल यूजर के लिए 251 रुपये का टॉकटाइम ज्यादा दिन नहीं चलता.

पहले सुर्खियों में सरकार से सब्सिडी, फिर इन्कार
फ्रीडम 251 की कोशिश देशभर में हर मुठ्ठी में मोबाइल पहुंचाने की है. केन्द्र सरकार के डिजिटल इंडिया की सफलता भी ऐसी ही कोशिश पर निर्भर है. देश में फिलहाल 28 करोड़ स्मार्टफोन यूजर है और 2020 तक इंडस्ट्री की उम्मीद इसे 40 करोड़ पहुंचाने की है. इसके बाद भी देश में लगभग 30 करोड़ ऐसे यूजर हैं जिन तक मौजूदा मोबाइल इंडस्ट्री नहीं पहुंच पाई है. क्या रिंगिंग बेल्स को 251 रुपये में फोन बेचने के लिए सरकार के सहारे की जरूरत है?

प्रोडक्ट लॉच के लिए कंपनी ने दावा किया था कि केन्द्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर और वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी इस फोन को लांच करेंगे. इसके साथ ही कंपनी ने मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया जैसे सरकारी कार्यक्रमों को प्रमुखता के साथ बतौर एप्प देने का वादा किया है. वहीं देश में इस मोबाइल की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए कंपनी मेक इन इंडिया कार्यक्रम के जरिए छूट लेने की उम्मीद भी जाहिर कर चुकी है. हालांकि लांच में रक्षा मत्री नहीं पहुंच सके और उसके बाद से ही कंपनी ने सरकार से किसी मदद की बात को नकारना भी शुरू कर दिया. सबसे पहले कंपनी ने सफाई दी है कि उसे केन्द्र सरकार से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है.

 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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