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क्या इंग्लैंड से दौड़ेगी मेक इन इंडिया की ट्रेन?

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 07 नवम्बर, 2016 07:38 PM
  • 07 नवम्बर, 2016 07:38 PM
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इंग्लैंड को एक बार फिर भारतीय बाजार की दरकार है. इस बार कालोनी बनाने के लिए नहीं बल्कि अपनी अपनी अर्थव्यवस्था बचाने के लिए....

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस के हरे-भरे आलीशान पार्क में इंग्लैंड की प्रधानमंत्री थेरेसा मे से मुलाकात की. पीएम थेरेसा एक बड़े बिजनेस डेलिगेशन के साथ तीन दिन की भारत यात्रा पर हैं.

यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने (ब्रेक्जिट) के बाद इंग्लैंड का यह सबसे महत्वपूर्ण बिजनेस डेलीगेशन है. इंग्लैंड की चुनौती ब्रेक्जिट के बाद एशिया में बड़ा बाजार तलाशने की है.

मोदी और थेरेसा की इस मुलाकात में कोशिश की जाएगी कि सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत दोनों देशों में बड़ा समझौता किया जाए.

 

थेरेसा मे की भारत यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि हाल ही में उसे यूरोप के अन्य देशों के साथ दशकों पुराना कारोबारी रिश्ता छोड़ना पड़ा है. फिलहाल यूरोप का बाजार उसके साथ भी वही व्यवहार करेगा जो वह किसी अन्य एशियाई देश के साथ करता है.

लिहाजा, इंग्लैंड को जरूरत एक ऐसे बाजार की है जहां वह अपने प्रोडक्ट को बेचकर यूरोप से होने वाले घाटे से बच जाए. उसके पास एशियाई बाजार में भारत और चीन के साथ सहयोग करने का विकल्प मौजूद है.

इसे भी पढ़ें: क्या यहां चीन की नकल कर पाएंगे हम

भारत का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर इसे एक सुनहरा मौका मान रहा है. क्योंकि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ही मेक इन इंडिया कार्यक्रम के रीढ़ की हड्डी है. इसको सफल करने के लिए जरूरी है कि अर्थव्यवस्था में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान बढ़े.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस के हरे-भरे आलीशान पार्क में इंग्लैंड की प्रधानमंत्री थेरेसा मे से मुलाकात की. पीएम थेरेसा एक बड़े बिजनेस डेलिगेशन के साथ तीन दिन की भारत यात्रा पर हैं.

यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने (ब्रेक्जिट) के बाद इंग्लैंड का यह सबसे महत्वपूर्ण बिजनेस डेलीगेशन है. इंग्लैंड की चुनौती ब्रेक्जिट के बाद एशिया में बड़ा बाजार तलाशने की है.

मोदी और थेरेसा की इस मुलाकात में कोशिश की जाएगी कि सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत दोनों देशों में बड़ा समझौता किया जाए.

 

थेरेसा मे की भारत यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि हाल ही में उसे यूरोप के अन्य देशों के साथ दशकों पुराना कारोबारी रिश्ता छोड़ना पड़ा है. फिलहाल यूरोप का बाजार उसके साथ भी वही व्यवहार करेगा जो वह किसी अन्य एशियाई देश के साथ करता है.

लिहाजा, इंग्लैंड को जरूरत एक ऐसे बाजार की है जहां वह अपने प्रोडक्ट को बेचकर यूरोप से होने वाले घाटे से बच जाए. उसके पास एशियाई बाजार में भारत और चीन के साथ सहयोग करने का विकल्प मौजूद है.

इसे भी पढ़ें: क्या यहां चीन की नकल कर पाएंगे हम

भारत का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर इसे एक सुनहरा मौका मान रहा है. क्योंकि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ही मेक इन इंडिया कार्यक्रम के रीढ़ की हड्डी है. इसको सफल करने के लिए जरूरी है कि अर्थव्यवस्था में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान बढ़े.

 

इस क्षेत्र में भारत में 2.6 करोड़ से ज्यादा माइक्रो, स्मॉल और मीडियम इंडस्ट्री हैं जो 6 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया करा रही है. यह क्षेत्र पूरी तरह से इंजीनियरिंग और मैन्यूफैक्चरिंग पर आधारित है और नवीनतम टेक्नोलॉजी इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है.

इसके बावजूद यह क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान करता है. तकरीबन 8 फीसदी के जीडीपी योगदान के साथ यह क्षेत्र कुल एक्सपोर्ट का 40 फीसदी है. साथ ही देश में हो रही कुल मैन्यूफैक्चरिंग का 40 फीसदी हिस्सा इसी सेक्टर से है.

अब मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत सरकार की कोशिश इस क्षेत्र को मजबूत करने की है जिससे देश की अर्थव्यवस्था को एक उंची छलांग के लिए तैयार किया जा सके.

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भारत और इंग्लैंड का कारोबारी रिश्ता बेहद पुराना है हालांकि यह रिश्ता आजादी के पहले एकतरफा फायदे का रहा. तब इंग्लैंड के लिए भारत एक कॉलोनी थी. यहां से कच्चा माल बिना किसी भुगतान के इंग्लैंड की फैक्ट्रियों के लिए ले जाया जाता था.

 

आज इंग्लैंड में 50 लाख से ज्यादा स्मॉल और मीडियम इंडस्ट्री है. ये इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं. इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन और फिर टेक्नोलॉजी रेवोल्यूशन से लाभांवित यह क्षेत्र रिसर्च, इनोवेशन और क्वॉलिटी मैन्यूफैक्चरिंग में दक्ष है. लेकिन इसकी चुनौती इतनी विकट है कि यूरोपियन यूनियन से बाहर आने के बाद इस क्षेत्र के पूरी तरह से ठप पड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं.

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अब प्रधानमंत्री मोदी के सामने चुनौती है कि कैसे अपने विशाल बाजार के एवज वह थेरेसा को मेक इन इंडिया के तहत आपसी कारोबार को मजबूत करने के लिए राजी करें. इंग्लैंड और भारत एक-दूसरे के महत्वपूर्ण ट्रेडिंग पार्टनर हैं. भारतीय कंपनियां इंग्लैंड में सबसे ज्यादा नौकरियां देती हैं. अब यदि इंग्लैंड को अपना सामान बेचने के लिए एक बड़े बाजार की जरूरत है तो वहीं भारतीय कंपनियों को इंग्लैड से इनोवेशन, टेक्नोलॉजी के साथ-साथ क्वॉलिटी मैन्यूफैक्चरिंग का हुनर सीखने की है.

 

अब हैदराबाद हाउस का यह पार्क केन्द्र सरकार के लिए माएने रखता है. हैदराबाद हाउस को अंग्रेज आर्किटेक्ट लुटियन ने हैदराबाद के आखिरी निजाम के लिए बनवाया था. अंग्रेजी हुकूमत के लिए हैदराबाद कितना प्रमुख था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह रेलवे हेडक्वार्टर के बगल में स्थित है. आजादी के बाद केन्द्र सरकार ने इसे अपने अधीन कर लिया और अब इसका इस्तेमाल विदेशी डेलीगेट्स से मुलाकात के लिए किया जाता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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