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इस तरह बर्बाद किया जा रहा है हमारा टैक्स का पैसा...

    • आईचौक
    • Updated: 31 जनवरी, 2018 09:25 PM
  • 31 जनवरी, 2018 09:24 PM
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भारत में किसी शहर का नाम बदलना और शूरवीरों की मूर्ति लगाना एक ट्रेंड है. तो जरा एक बार गौर करिए कि हमारा टैक्स का पैसा किस तरह फिजूल खर्च हो रहा है...

यूनियन बजट 2018 टैक्स के मामले में भी काफी अहम साबित हो सकता है. जेटली जी की घोषणा कई नौकरी पेशा लोगों को खुश कर सकती है. वैसे तो भारत उन देशों में से एक है जिसे टैक्स हेवेन (स्वर्ग) तो बिलकुल नहीं कह सकते, लेकिन फिर भी इस साल टैक्स देने वालों की संख्या में 50% इजाफा हुआ है. भारत के अच्छे नागरिक टैक्स तो देते हैं, लेकिन इसका इस्तेमाल किस तरह से होता है ये सोचने वाली बात है. भारत में किसी शहर का नाम बदलना और शूरवीरों की मूर्ति लगाना एक ट्रेंड है. तो जरा एक बार गौर करिए कि हमारा टैक्स का पैसा किस तरह फिजूल खर्च हो रहा है...

1. 3600 करोड़ की शिवाजी की मूर्ति...

दुनिया का सबसे बड़ा मेमोरियल स्टैचू बनाने की होड़ में शायद सरकार ये भूल गई कि इतना पैसा कई जरूरी मसलों में खर्च करना चाहिए. इससे डिफेंस बजट, रेल बजट, शिक्षा बजट आदि में इस्तेमाल किया जा सकता था.

2. 3.8 लाख रुपए में 10 भगवत गीता ...

मनोहर लाल खट्टर सरकार ने टैक्स देने वालों का 3.8 लाख रुपए भगवत गीता की 10 किताबों में खर्च किया. वही गीता जो 200 रुपए से कम में मिल जाती है. ये किसी इवेंट में गिफ्ट के तौर पर दी जानी थी. जहां 15 करोड़ इवेंट के लिए सैंक्शन किए गए थे वहीं सिर्फ 4.32 करोड़ का ही रिकॉर्ड मिलता है.

3. गंगा की सफाई या पैसे की?

गंगा की सफाई के लिए दो साल में 7 हजार करोड़ खर्च किए गए और NGT (नैश्नल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने ये आंकड़े बताए हैं और ये भी कहा है कि ये पैसा पूरी तरह से बर्बाद गया. ये पब्लिक के पैसे की बर्बादी ही है.

4. कॉमनवेल्थ करप्शन...

भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन किया गया था और ये फैसला करप्शन के मामले में फंसकर रह गया. सरकारी आंकड़ों को मुताबिक करीब 70 हजार करोड़ रुपए के...

यूनियन बजट 2018 टैक्स के मामले में भी काफी अहम साबित हो सकता है. जेटली जी की घोषणा कई नौकरी पेशा लोगों को खुश कर सकती है. वैसे तो भारत उन देशों में से एक है जिसे टैक्स हेवेन (स्वर्ग) तो बिलकुल नहीं कह सकते, लेकिन फिर भी इस साल टैक्स देने वालों की संख्या में 50% इजाफा हुआ है. भारत के अच्छे नागरिक टैक्स तो देते हैं, लेकिन इसका इस्तेमाल किस तरह से होता है ये सोचने वाली बात है. भारत में किसी शहर का नाम बदलना और शूरवीरों की मूर्ति लगाना एक ट्रेंड है. तो जरा एक बार गौर करिए कि हमारा टैक्स का पैसा किस तरह फिजूल खर्च हो रहा है...

1. 3600 करोड़ की शिवाजी की मूर्ति...

दुनिया का सबसे बड़ा मेमोरियल स्टैचू बनाने की होड़ में शायद सरकार ये भूल गई कि इतना पैसा कई जरूरी मसलों में खर्च करना चाहिए. इससे डिफेंस बजट, रेल बजट, शिक्षा बजट आदि में इस्तेमाल किया जा सकता था.

2. 3.8 लाख रुपए में 10 भगवत गीता ...

मनोहर लाल खट्टर सरकार ने टैक्स देने वालों का 3.8 लाख रुपए भगवत गीता की 10 किताबों में खर्च किया. वही गीता जो 200 रुपए से कम में मिल जाती है. ये किसी इवेंट में गिफ्ट के तौर पर दी जानी थी. जहां 15 करोड़ इवेंट के लिए सैंक्शन किए गए थे वहीं सिर्फ 4.32 करोड़ का ही रिकॉर्ड मिलता है.

3. गंगा की सफाई या पैसे की?

गंगा की सफाई के लिए दो साल में 7 हजार करोड़ खर्च किए गए और NGT (नैश्नल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने ये आंकड़े बताए हैं और ये भी कहा है कि ये पैसा पूरी तरह से बर्बाद गया. ये पब्लिक के पैसे की बर्बादी ही है.

4. कॉमनवेल्थ करप्शन...

भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन किया गया था और ये फैसला करप्शन के मामले में फंसकर रह गया. सरकारी आंकड़ों को मुताबिक करीब 70 हजार करोड़ रुपए के पब्लिक फंड का गलत इस्तेमाल किया गया है.

5. पराए पैसे पर पब्लिसिटी...

मोदी सरकार ने 3755 करोड़ रुपए तीन साल में पब्लिसिटी और विज्ञापन में खर्च कर दिए.

6. संघ का हेडक्वार्टर...

पब्लिक फंड की बात करें तो लगभग 1.37 करोड़ रुपए नागपुर मुनसिपल कॉर्पोरेशन ने आरएसएस का हेडक्वार्टर सही करवाने में खर्च किए.

7. 200 करोड़ का वास्तु...

कर्नाटक के सीएम के सी राव ने कई सरकारी कॉम्प्लेक्स सिर्फ इसलिए रिपेयर करवाए क्योंकि वो वास्तु के हिसाब से नहीं बनाए गए थे. इसके लिए 200 करोड़ रुपए खर्च किए गए.

8. घोटाले..

सिर्फ घोटालों की बात करें तो 900 करोड़ चारा घोटाला, लगभग 30 हज़ार करोड़ 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, 1.86 लाख करोड़ कोलगेट (कोयला) स्कैम में इस्तेमाल किए गए हैं.

9. नाम बदलवाना...

गुड़गांव से गुरुग्राम, बॉम्बे और मुंबई, एल्फिंस्टन रोड स्टेशन (जहां ब्रिज पर स्टैंपीड हुआ था और 23 लोग मारे गए थे.) को प्रभादेवी और भी न जाने क्या-क्या... नाम बदलना सिर्फ एक इंसान की कारस्तानी नहीं होती. इसमें लाखों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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