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मोदी ने ऐसे बदल दीं शादियां! नोटबंदी के 1 साल बाद ये है हाल..

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 25 नवम्बर, 2017 05:32 PM
  • 25 नवम्बर, 2017 05:32 PM
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नोटबंदी के बाद पिछले साल की तरह इस साल भी शादियों पर फर्क पड़ रहा है. पहले की तरह शादियां अब रंगीन नहीं रहीं.. देखिए क्या आया है बदलाव...

शादियों का सीजन है और इसी बीच ये बातें भी ज़ोर पकड़ रही हैं कि मोदी जी अब चेक बंद करने वाले हैं. इसी दहशत के बीच शादियों के सीजन में अब जो लोग चेक से पेमेंट कर रहे थे रुक रहे हैं. एक शादी मेरे अपने घर में होनी है जिसमें मेरे रिश्तेदारों ने वेन्यु का पेमेंट बैंक अकाउंट ट्रांसफर से किया है. सिर्फ इतना ही नहीं पेमेंट छोटे से छोटे पेमेंट के लिए कार्ड या अन्य डिजिटल पेमेंट ऑप्शन का इस्तेमाल हो रहा है. लखनऊ जैसे शहर में शादी होने के कारण डिजिटल पेमेंट करने में कोई बहुत स्मस्या नहीं आ रही है.

सिर्फ ये बात ही नहीं बात कुछ और भी है. शादियों का सीजन इस बार फीका है. घर में ये बात चल रही है कि ज्यादा कैश न निकालो याद नहीं फलाने की शादी में क्या हुआ था? पिछले साल के किस्से सभी की जुबान पर हैं. छुट-पुट खर्च के लिए तो पेटीएम का इस्तेमाल भी हो रहा है.

बारात में कैश उछालने की प्रथा तो अभी भी वैसी ही है हां बस अब नोट बदल गए हैं. चाचा-ताऊ के लिफाफे अब गिफ्ट में बदल गए हैं और अब नोटों की माला भी उस तरह की नहीं रही है.

क्या कहते हैं आंकड़े...

इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब बड़ी रंगीन शादियां अब थोड़ी फीकी हो गई हैं. पहले जहां 5-6 फंक्शन होते थे नोटबंदी के बाद से अब दो या तीन में ही सिमट गए हैं. देश के कुछ बड़े वेडिंग प्लानर, केटरर, डेकोरेशन वालों के अनुसार शादी का खर्च अब 30-40% कम हो गया है. बिजनेस पर असर पड़ा है.

इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक डेकोर स्टाइलिस्ट स्वाती पंड्या ने कहा है कि अब लोग सोच-समझकर खर्च कर रहे हैं, इसमें वेन्यू के चुनाव से लेकर फंक्शन और खाने तक सब शामिल है. लोग अब अलग विक्रेताओं को चुन रहे हैं. अब उनकी पसंद थोड़ी बदल गई है.

सूद का कहना है कि जो कटौती की जा रही है वो गेस्ट लिस्ट और कम...

शादियों का सीजन है और इसी बीच ये बातें भी ज़ोर पकड़ रही हैं कि मोदी जी अब चेक बंद करने वाले हैं. इसी दहशत के बीच शादियों के सीजन में अब जो लोग चेक से पेमेंट कर रहे थे रुक रहे हैं. एक शादी मेरे अपने घर में होनी है जिसमें मेरे रिश्तेदारों ने वेन्यु का पेमेंट बैंक अकाउंट ट्रांसफर से किया है. सिर्फ इतना ही नहीं पेमेंट छोटे से छोटे पेमेंट के लिए कार्ड या अन्य डिजिटल पेमेंट ऑप्शन का इस्तेमाल हो रहा है. लखनऊ जैसे शहर में शादी होने के कारण डिजिटल पेमेंट करने में कोई बहुत स्मस्या नहीं आ रही है.

सिर्फ ये बात ही नहीं बात कुछ और भी है. शादियों का सीजन इस बार फीका है. घर में ये बात चल रही है कि ज्यादा कैश न निकालो याद नहीं फलाने की शादी में क्या हुआ था? पिछले साल के किस्से सभी की जुबान पर हैं. छुट-पुट खर्च के लिए तो पेटीएम का इस्तेमाल भी हो रहा है.

बारात में कैश उछालने की प्रथा तो अभी भी वैसी ही है हां बस अब नोट बदल गए हैं. चाचा-ताऊ के लिफाफे अब गिफ्ट में बदल गए हैं और अब नोटों की माला भी उस तरह की नहीं रही है.

क्या कहते हैं आंकड़े...

इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब बड़ी रंगीन शादियां अब थोड़ी फीकी हो गई हैं. पहले जहां 5-6 फंक्शन होते थे नोटबंदी के बाद से अब दो या तीन में ही सिमट गए हैं. देश के कुछ बड़े वेडिंग प्लानर, केटरर, डेकोरेशन वालों के अनुसार शादी का खर्च अब 30-40% कम हो गया है. बिजनेस पर असर पड़ा है.

इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक डेकोर स्टाइलिस्ट स्वाती पंड्या ने कहा है कि अब लोग सोच-समझकर खर्च कर रहे हैं, इसमें वेन्यू के चुनाव से लेकर फंक्शन और खाने तक सब शामिल है. लोग अब अलग विक्रेताओं को चुन रहे हैं. अब उनकी पसंद थोड़ी बदल गई है.

सूद का कहना है कि जो कटौती की जा रही है वो गेस्ट लिस्ट और कम फंक्शन में दिख रही है. पहले जहां लोग 1000 लोगों को बुलाते थे अब वो 600 रह गए हैं. अब बात पहले जैसी नहीं रह गई. लोग कम खर्च कर रहे हैं और डिजिटल पेमेंट पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं.

तो क्या आया बदलाव...

1. कैश की जगह डिजिटल पेमेंट...

कैश की जगह अब ज्यादातर डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल किया जा रहा है. आंकड़ों के अनुसार 2017-18 में डिजिटल ट्रांजैक्शन पिछले साल इस समय के मुकाबले 80% बढ़े हैं. इनका अनुमानित बिजनेस करीब 1800 करोड़ है.

इसी साल अक्टूबर तक होने वाले डिजिटल ट्रांजैक्शन की लिमिट 1000 करोड़ तरक पहुंच गई है. ये 2016-17 में पूरे साल के ट्रांजैक्शन के बराबर है. सूचना और तकनीकी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जून, जुलाई, अगस्त में लगातार 136-138 करोड़ के ट्रांजैक्शन लगातार हुए हैं.

ये आंकड़े मार्च और अप्रैल में ज्यादा थे जब नोटबंदी के बाद से कैश क्रंच खत्म हो गया था और उसके बाद से लगातार 136-138 करोड़ का एवरेज बताता है कि लोग डिजिटल ट्रांजैक्शन की तरफ आगे बढ़े हैं. यकीनन इसमें शादियों का हिस्सा भी होगा ही.

2. कम हो रहे हैं फंक्शन...

शादियों में लोग सोच समझकर खर्च कर रहे हैं और इसलिए शादियों का सीजन थोड़ा फीका समझ आ रहा है. लोगों की शादी में कम अतिथी होते हैं.

जहां शादियों का स्वरूप थोड़ा बदल गया है वहीं ये भी देखा जा रहा है कि अब लोग सोच समझकर खर्च कर रहे हैं. ये एक तरह से तो आम लोगों के लिए सही है, लेकिन अगर देखा जाए तो ये उन लोगों के लिए गलत है जो शादी के बिजनेस से जुड़े हुए हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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