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कहीं ये अविश्वास तो नहीं जिसने सायरस मिस्त्री को किया बाय - बाय टाटा !

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 26 अक्टूबर, 2016 12:12 PM
  • 26 अक्टूबर, 2016 12:12 PM
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पूरे विवाद पर गहराई से गौर करें तो इसमें ज़मीन, जायदाद और वर्चस्व की लड़ाई नहीं बल्कि अविश्वास के बीज नज़र आते हैं.

हमारे देश के सबसे बड़े, पुराने, नामचीन, और विश्वस्त माने जाने वाले टाटा औद्योगिक घराने से आनी वाली ख़बरें जिस रूप में अभी सुर्खियों में हैं वैसी पहले कभी नहीं रहीं. चेयरमैन के पद से सायरस मिस्त्री की अचानक विदाई ने टाटा 'परंपरा' और उसके समूचे भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है.

इसमें कई सवाल खड़े हो रहे हैं और कई कारण सामने आ रहे हैं. इस पूरे विवाद पर गहराई से गौर करें तो इसमें ज़मीन, जायदाद और वर्चस्व की लड़ाई नहीं बल्कि अविश्वास के बीज नज़र आते हैं. वो ही शक और अविश्वास जिसने अतीत में भी इतिहास की धारा बदल दी और कई सारी सत्ताएँ उलट दीं.

जब 2012 में सायरस मिस्त्री चेयरमैन बने

लगभग पिछले एक दशक से ही पूरे टाटा समूह को यह प्रश्न परेशान किए हुए था कि रतन टाटा के बाद कौन यह पदभार सम्भालेगा? एक साल तक चली लंबी कवायद के बाद चार साले पहले यानी दिसंबर  2012 में जब सायरस मिस्त्री की चेयरमैन पद पर ताजपोशी हुई तो लगा कि एक लंबी ख़ोज का अंत हो गया और ऐसा लगा जैसे अब नए नेतृत्व के जोश और पुराने के मार्गदर्शन में टाटा समूह नई ऊँचाइयाँ छुएगा.  और यह भी कयास लगाने जाने लगा कि अब रतन  टाटा आसानी से  सेवानिवृत्त हो जाएँगे. लेकिन ये क्या,  ये सिलसिला पूरे चार साल भी नहीं चल पाया. चार साल पूरे होने के करीब दो महीने पहले, 24 अक्टूबर 2016 को सायरस मिस्त्री की टाटा सन्स के चेयरमैन पद से विदाई की घोषणा कर दी गई.

इसे भी पढ़ें: 'टाटा का बेटा' न होना ही साइरस मिस्त्री की सबसे बड़ी कमजोरी?

सायरस  मिस्त्री  पर...

हमारे देश के सबसे बड़े, पुराने, नामचीन, और विश्वस्त माने जाने वाले टाटा औद्योगिक घराने से आनी वाली ख़बरें जिस रूप में अभी सुर्खियों में हैं वैसी पहले कभी नहीं रहीं. चेयरमैन के पद से सायरस मिस्त्री की अचानक विदाई ने टाटा 'परंपरा' और उसके समूचे भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है.

इसमें कई सवाल खड़े हो रहे हैं और कई कारण सामने आ रहे हैं. इस पूरे विवाद पर गहराई से गौर करें तो इसमें ज़मीन, जायदाद और वर्चस्व की लड़ाई नहीं बल्कि अविश्वास के बीज नज़र आते हैं. वो ही शक और अविश्वास जिसने अतीत में भी इतिहास की धारा बदल दी और कई सारी सत्ताएँ उलट दीं.

जब 2012 में सायरस मिस्त्री चेयरमैन बने

लगभग पिछले एक दशक से ही पूरे टाटा समूह को यह प्रश्न परेशान किए हुए था कि रतन टाटा के बाद कौन यह पदभार सम्भालेगा? एक साल तक चली लंबी कवायद के बाद चार साले पहले यानी दिसंबर  2012 में जब सायरस मिस्त्री की चेयरमैन पद पर ताजपोशी हुई तो लगा कि एक लंबी ख़ोज का अंत हो गया और ऐसा लगा जैसे अब नए नेतृत्व के जोश और पुराने के मार्गदर्शन में टाटा समूह नई ऊँचाइयाँ छुएगा.  और यह भी कयास लगाने जाने लगा कि अब रतन  टाटा आसानी से  सेवानिवृत्त हो जाएँगे. लेकिन ये क्या,  ये सिलसिला पूरे चार साल भी नहीं चल पाया. चार साल पूरे होने के करीब दो महीने पहले, 24 अक्टूबर 2016 को सायरस मिस्त्री की टाटा सन्स के चेयरमैन पद से विदाई की घोषणा कर दी गई.

इसे भी पढ़ें: 'टाटा का बेटा' न होना ही साइरस मिस्त्री की सबसे बड़ी कमजोरी?

सायरस  मिस्त्री  पर बढ़ता अविश्वास

समूचा देश और दुनिया इस कदम से  भौंचक रह गई. घटनाओं को सिरे से अगर जोड़ कर देखा जाय तो ऐसा प्रतीत होता है कि सायरस  मिस्त्री पर से रतन टाटा का विश्वास लगभग ख़त्म हो चूका था.

शायद ये सोचना ग़लत  ही होगा कि रतन टाटा अपनी इस ऐतिहासिक और पारिवारिक विरासत को किसी और को सौंपकर आराम से बैठ जाएँगे. ख़ास तौर पर वो विरासत जिसे ख़ुद रतन टाटा ने अपने पसीने से सींचा है. उनके नेतृत्व में ही टाटा समूह ने सफलता का शिखर छुआ है. रतन टाटा के 21 साल के कार्यकाल में समूह का बाज़ार पूँजीकरण 57 गुना बढ़ा.

 जब सबसे विश्वसनीय ही खो दे विश्वास!

रतन टाटा इस समूह के सुप्रीम कस्टोडियन भी हैं. कुछ लोगों का मानना है कि परफॉरमेंस से जुड़े मुद्दों के कारण ही साइरस कि विदाई की गयी.  जानकारों कि मानें तो उनका सोच और कारोबार करने का तरीका  साइरस मिस्त्री के सिद्धान्तों से मेल नहीं खा रहा था.

रतन टाटा इस ग्रुप की सोच और संस्कृति को गहराई से समझते हैं और वो एक ऐसा चेयरमैन लाना चाहेंगें जिसकी सोच उनके नज़रिये के मुताबिक हो.  जाहिर है रतन टाटा चाहेंगे कि अब कमान जिसके हाथ में हो वो इसी रफ़्तार को बनाए रखे. शायद साइरस चुने भी इसलिए गए थे कि वो रतन टाटा के काफी करीबी थे पर उनका करीबी होना और टाटा समूह के चेयरमैन के रूप में उनका पूरा भरोसा जीतना दूसरी बात है.

कौन होगा अगला चेयरमैन?

टाटा ग्रुप का चेयरमैन ढूढने का काम अभी से ही जारी है. हालांकि यह सवाल उठता है कि वो कौन कौन से महान लोग हो सकते हैं?  इंडस्ट्री इनसाइडर्स इसके लिए पेप्सी कि इंद्रा नूयी, बेन कैपिटल के अमित चंद्रा, वोडाफोन के पूर्व सीईओ अरुण सरीन TCS  के सीईओ एन. चंद्रशेखरन इत्यादि लोगों का नाम ज़िक्र कर रहें हैं.

इसे भी पढ़ें: साइरस मिस्त्री के हटाए जाने का टाटा ग्रुप पर असर

लेकिन इन घटनाओं से ऐसा लगता है जैसे एक बार फिर टाटा समूह उसी दोराहे पर खड़ा है जहाँ वो आज से चार साल पहले था. नए नेता का चयन टाटा समूह के लिए बहुत ही अहम है. ये अब तक की साख और पूँजी को बना या बिगाड़ सकता है.

हमारे सामने कई घरानों की दास्तान भी है जो नेतृत्व और दूर दृष्टि के अभाव में बर्बाद  हो गए.  सत्यम के रामलिंगम राजू का स्वार्थ और ग़लत फैसले उसे ले डूबे. टाटा इन सबसे कहीं बड़ी और अहम है और उसके लिए उसकी बरसों की मेहनत से कमाई साख सबसे बड़ी पूँजी भी है इसीलिए अब समूह ऐसे 'मिस्त्री' की तलाश में जुट गया है जो रतन टाटा का भरोसा भी जीत सके और टाटा समूह को इसकी बुलंदियों पर बरकरार रख सके.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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