• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
इकोनॉमी

2019 लोकसभा चुनाव में मोदी के दुश्‍मन होंगे मोदी खुद !

    • अंशुमान तिवारी
    • Updated: 30 अक्टूबर, 2017 05:03 PM
  • 30 अक्टूबर, 2017 05:03 PM
offline
भारत के आर्थिक सुधार के इतिहास में जीएसटी सबसे बुरे टाइम पर किया गया रिफॉर्म है. इस समय एक तरफ तो देश में निवेश का अकाल पड़ा था तो दूसरी तरफ नोटबंदी के सदमें से लोग उभरने की कोशिश कर रहे थे.

पीएम नरेंद्र मोदी को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है. लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उनका दांव उल्टा पड़ गया है. पिछले तीन सालों में लोगों के समर्थन और राजनीतिक सुदृढ़ता के बावजूद मोदी के आर्थिक फैसले उनकी चिंता बढ़ा गए. हाल ही में किए गए बैंक रिकैपिटेलाइजेशन सहित कई फैसले उल्टे पड़ गए.

इसमें कोई संदेह नहीं कि बैंक रिकैपिटेलाइजेशन से बैंकिंग सिस्टम को फायदा होगा और कालांतर में बैंकों की हालत सुधरेगी. लेकिन भाजपा को सुस्त विकास, रोजगार का अकाल और निवेश की कमी के साथ ही कई राज्यों के चुनावी मैदान में उतरना पड़ेगा. क्योंकि देश के विकास की रफ्तार को वापस पाने में कम से कम छह से आठ तिमाही का समय तो लगेगा ही.

हालांकि सरकार ने आर्थिक मोर्चे को संभालने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना शुरु कर दिया है लेकिन फिर दो बदलाव जो इस चुनावी समर में पीएम मोदी की परीक्षा लेंगे.

बैंक रिकैपिटेलाइजेशन का देर से लिया गया फैसला नतीजों में देरी लाएगा-

इकोनॉमी पर जवाब देना मोदी जी को भारी पड़ जाएगा

बैंकिंग के बेलआउट पैकेज हमेशा ही विवादों में रहते हैं. खासकर तब जब ये स्थिति क्रोनी बैंकिंग सिस्टम द्वारा लाई जाती है. हाल ही में पब्लिक सेक्टर बैंकों को 2.1 लाख करोड़ रुपये का रिकैपिटेलाइजेशन पैकेज मिला था. जिसमें से बजट से 18,000 करोड़ रुपये दिए गए. बाजार से 58,000 करोड़ रुपये. बाजार से पैसे, सरकार द्वारा अपनी हिस्सेदारी कम करने के बाद आए थे. और सरकार द्वारा जारी किए गए रिकैपिटेलाइजेशन बांडों के जरिए 1.35 लाख रुपये मिले थे. ये पैकेज कोई अपवाद नहीं हैं.

अर्थव्यवस्था में दिक्कतें देर होने की वजह से शुरु होती हैं. 2014-15 में मोदी सरकार ने जन-धन खाते, मुद्रा अकाउंट के जरिए बैंकों पर बोझ डाल रखा था. तो अगर मोदी...

पीएम नरेंद्र मोदी को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है. लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उनका दांव उल्टा पड़ गया है. पिछले तीन सालों में लोगों के समर्थन और राजनीतिक सुदृढ़ता के बावजूद मोदी के आर्थिक फैसले उनकी चिंता बढ़ा गए. हाल ही में किए गए बैंक रिकैपिटेलाइजेशन सहित कई फैसले उल्टे पड़ गए.

इसमें कोई संदेह नहीं कि बैंक रिकैपिटेलाइजेशन से बैंकिंग सिस्टम को फायदा होगा और कालांतर में बैंकों की हालत सुधरेगी. लेकिन भाजपा को सुस्त विकास, रोजगार का अकाल और निवेश की कमी के साथ ही कई राज्यों के चुनावी मैदान में उतरना पड़ेगा. क्योंकि देश के विकास की रफ्तार को वापस पाने में कम से कम छह से आठ तिमाही का समय तो लगेगा ही.

हालांकि सरकार ने आर्थिक मोर्चे को संभालने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना शुरु कर दिया है लेकिन फिर दो बदलाव जो इस चुनावी समर में पीएम मोदी की परीक्षा लेंगे.

बैंक रिकैपिटेलाइजेशन का देर से लिया गया फैसला नतीजों में देरी लाएगा-

इकोनॉमी पर जवाब देना मोदी जी को भारी पड़ जाएगा

बैंकिंग के बेलआउट पैकेज हमेशा ही विवादों में रहते हैं. खासकर तब जब ये स्थिति क्रोनी बैंकिंग सिस्टम द्वारा लाई जाती है. हाल ही में पब्लिक सेक्टर बैंकों को 2.1 लाख करोड़ रुपये का रिकैपिटेलाइजेशन पैकेज मिला था. जिसमें से बजट से 18,000 करोड़ रुपये दिए गए. बाजार से 58,000 करोड़ रुपये. बाजार से पैसे, सरकार द्वारा अपनी हिस्सेदारी कम करने के बाद आए थे. और सरकार द्वारा जारी किए गए रिकैपिटेलाइजेशन बांडों के जरिए 1.35 लाख रुपये मिले थे. ये पैकेज कोई अपवाद नहीं हैं.

अर्थव्यवस्था में दिक्कतें देर होने की वजह से शुरु होती हैं. 2014-15 में मोदी सरकार ने जन-धन खाते, मुद्रा अकाउंट के जरिए बैंकों पर बोझ डाल रखा था. तो अगर मोदी सरकार रिकैपिटेलाइजेशन पैकेज 2015 में लेकर आती तो बैंक अबतक संभल चुके होते. हालांकि खपत और निवेश पर अभी भी बोझ बना हुआ है. बैंक को दिए जाने वाले रिकैपिटेलाइजेशन पैकेज मध्यम और लघु उद्यमों के लिए फायदेमंद साबित होते हैं. जिससे औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में विकास की संभावनाएं खुल जाती हैं.

जहां तक उपभोक्ता ऋण का संबंध है, रियल एस्टेट क्षेत्र होम लोन की स्थिति सुधरनी वाली नहीं है. खासकर जब तक बाजार नए रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) एक्ट और दिवालियापन कानून के मुताबिक खुद को ढाल नहीं लेता है. हालांकि बैंक ऑटो और पर्सनल ऋण पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं.

अगर सबकुछ सही रहता है तो रिकैपिटेलाइजेशन पैकेज का 8 महीने लंबा प्रोसेस बैंको को दो साल के लिए ट्रांजिशन फेज में रखेगा.

जीएसटी-

जल्दी का काम शैतान का होता है, मोदी जी ये समझ ही नहीं पाए

भारत जैसे देश में उच्च टैक्स दर के साथ इनडायरेक्ट टैक्स रिफॉर्म घातक सिद्ध होगें. जीएसटी फेल हुई क्योंकि इसे तब लागु किया गया जब हमारी अर्थव्यवस्था खुद डांवाडोल स्थिति में थी. वैट को 2005 में तब लागू किया गया था जब हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत थी. यही कारण है कि वैट लागू होने से अर्थव्यवस्था को लाभ ही हुआ.

भारत के आर्थिक सुधार के इतिहास में जीएसटी सबसे बुरा रिफॉर्म है. एक तरफ देश में निवेश का अकाल पड़ा था तो दूसरी तरफ नोटबंदी के सदमें से लोग उभरने की कोशिश कर रहे थे. सरकार ने भी जीएसटी लागू करने में गलती को माना और अब जीएसटी टैक्स रेट में फेरबदल करने के मूड में दिख रही है.

बैंकिंग और जीएसटी ट्रांजेशन को स्थिर होने और ढर्रे पर आने में 6 से 8 तिमाही का समय लग सकता है. जीडीपी ग्रोथ 2019 तक रिकवरी मोड में आ सकती है.  दिलचस्प बात ये है कि 25 अक्टूबर को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसी तरह के अनुमान जाहिर किए. नीति आयोग के अध्यक्ष राजीव कुमारा द्वारा अर्थव्यवस्था के जल्द ही पटरी लौटने की हवाबाजी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा टेक्नीकल कारणों से अर्थव्यवस्था का न सुधर पाना जैसे बहानों के बदले वित्त मंत्री ने व्यवहारिक आंकड़े रखे. वित्त मंत्रालय के अनुसार अर्थव्यवस्था में सुधार 2018-19 के बाद ही देखने को मिलेंगे और 8 प्रतिशत का विकास दर 2021-22 के बाद ही पाया जा सकेगा.

देश की आर्थिक स्थिति ने चुनावी माहौल को रोमांचक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है. अब क्योंकि आर्थिक मंदी और बेरोजगारी के मुद्दे खत्म होने में समय लगने वाला है तो ऐसे में पीएम मोदी को चुनावों में अपने विकास के दावों वाले हथियारों के बगैर ही खड़ा होना पड़ेगा. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल अब ये उठता है कि आखिर पीएम मोदी 2019 के लोकसभा चुनावों में बदहाल आर्थिक स्थिति के लिए क्या जवाब देंगे.

ये भी पढ़ें-

मोदी सरकार ने दो बड़ी चूक करके लोहा गरम कर दिया है, कांग्रेस को सिर्फ वार करना है

रंग बदलते GST को समझने का सबसे आसान उपाय...

GST दरों में कटौती का गुजरात चुनाव कनेक्शन

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    Union Budget 2024: बजट में रक्षा क्षेत्र के साथ हुआ न्याय
  • offline
    Online Gaming Industry: सब धान बाईस पसेरी समझकर 28% GST लगा दिया!
  • offline
    कॉफी से अच्छी तो चाय निकली, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग दोनों से एडजस्ट कर लिया!
  • offline
    राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे से पहले ही अडानी ने लगाई छलांग; 1 दिन में मस्क से दोगुना कमाया
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲