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GST ग्राहकों के लिए फायदे का नहीं, घाटे का सौदा है

    • अंशुमान तिवारी
    • Updated: 30 जून, 2017 04:13 PM
  • 30 जून, 2017 04:13 PM
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इस प्रक्रिया का लाभ लोगों के जीएसटी में सेट होने तक अनुमान के दायरे में ही रहेगा. जीएसटी के समर्थक उपभोक्ता बता रहे हैं कि जीएसटी रिफंड के जरिए कारोबार की लागत को कम कर देगी और अंतत: गुड्स और सर्विसेज सस्ता होगा. लेकिन सच्चाई क्या है ये जानिए...

जीएसटी की चिंता में कई लोगों के रातों की नींद खो गई है लेकिन कम से कम उपभोक्ताओं के लिए 'परिवर्तनकारी' जीएसटी अगले दो से तीन सालों तक किसी तरह की परेशानी पैदा नहीं करने वाला. 1 जुलाई की सुबह जीएसटी लागू होने के बाद हद से हद सिर्फ इसलिए याद रखा जाएगा कि बजट के इस दिन कुछ सेवाओं की कीमतें बढ़ी और कुछ उत्पाद सस्ते हो गए.

असलियत ये है कि जीएसटी के नफा-नुकसान सब अभी अनुमान पर ही आधारित हैं. जीएसटी एक कट्टर व्यापार सुधार प्रक्रिया है, जिसका लाखों भारतीय व्यवसायों पर एक निर्णायक असर पड़ेगा. जीएसटी के लाभ का सफर अभी बहुत लंबा है जिसके आम आदमी के पॉकेट तक पहुंचने में समय लगेगा.

चलिए पता करते हैं कि जीएसटी की भूलभुलैया में आम उपभोक्ता कहां ठहरता है:

जीएसटी के पहले और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सेदार देश के लाखों व्यवसाय हैं और ये आर्थिक सुधार उन पर ही केंद्रित है. इनके लिए सबसे पहला पड़ाव है सुविधाजनक रूप से जीएसटी को अपना लेना और फिर इसकी जटिलताओं को समझना. इसके बाद जीएसटी के जो सबसे बड़े हितधारक हैं वो हैं सरकारें (केंद्र और राज्य दोनों).

किसकी चांदी किसको भूसा- जीएसटी

दिलचस्प बात ये है कि जीएसटी को लेकर ग्राहकों के लिए सारी चिंता की वजह इनपुट टैक्स क्रेडिट पर निर्भर करता है. इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ ही जीएसटी मौजूदा टैक्स संरचना की गलतियों से निपटना है. जीएसटी लागू करने के बाद निर्माता फाइनल प्रोडक्ट के लिए इनपुट पर टैक्स रिफंड का दावा कर सकते हैं. उन्हें सिर्फ उतना ही टैक्स भरना होगा जितना की प्रोडक्ट के आउटपुट पर कीमत लगी है. निर्माताओं को इनपुट पर पहले से ही भुगतान किए गए टैक्स की जमा राशि को वापस कर दिया जाएगा.

साफ ज़ाहिर है कि ये एक अभूतपूर्व सुधार है. हालांकि इस प्रक्रिया का लाभ लोगों के जीएसटी...

जीएसटी की चिंता में कई लोगों के रातों की नींद खो गई है लेकिन कम से कम उपभोक्ताओं के लिए 'परिवर्तनकारी' जीएसटी अगले दो से तीन सालों तक किसी तरह की परेशानी पैदा नहीं करने वाला. 1 जुलाई की सुबह जीएसटी लागू होने के बाद हद से हद सिर्फ इसलिए याद रखा जाएगा कि बजट के इस दिन कुछ सेवाओं की कीमतें बढ़ी और कुछ उत्पाद सस्ते हो गए.

असलियत ये है कि जीएसटी के नफा-नुकसान सब अभी अनुमान पर ही आधारित हैं. जीएसटी एक कट्टर व्यापार सुधार प्रक्रिया है, जिसका लाखों भारतीय व्यवसायों पर एक निर्णायक असर पड़ेगा. जीएसटी के लाभ का सफर अभी बहुत लंबा है जिसके आम आदमी के पॉकेट तक पहुंचने में समय लगेगा.

चलिए पता करते हैं कि जीएसटी की भूलभुलैया में आम उपभोक्ता कहां ठहरता है:

जीएसटी के पहले और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सेदार देश के लाखों व्यवसाय हैं और ये आर्थिक सुधार उन पर ही केंद्रित है. इनके लिए सबसे पहला पड़ाव है सुविधाजनक रूप से जीएसटी को अपना लेना और फिर इसकी जटिलताओं को समझना. इसके बाद जीएसटी के जो सबसे बड़े हितधारक हैं वो हैं सरकारें (केंद्र और राज्य दोनों).

किसकी चांदी किसको भूसा- जीएसटी

दिलचस्प बात ये है कि जीएसटी को लेकर ग्राहकों के लिए सारी चिंता की वजह इनपुट टैक्स क्रेडिट पर निर्भर करता है. इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ ही जीएसटी मौजूदा टैक्स संरचना की गलतियों से निपटना है. जीएसटी लागू करने के बाद निर्माता फाइनल प्रोडक्ट के लिए इनपुट पर टैक्स रिफंड का दावा कर सकते हैं. उन्हें सिर्फ उतना ही टैक्स भरना होगा जितना की प्रोडक्ट के आउटपुट पर कीमत लगी है. निर्माताओं को इनपुट पर पहले से ही भुगतान किए गए टैक्स की जमा राशि को वापस कर दिया जाएगा.

साफ ज़ाहिर है कि ये एक अभूतपूर्व सुधार है. हालांकि इस प्रक्रिया का लाभ लोगों के जीएसटी में सेट होने तक अनुमान के दायरे में ही रहेगा. जीएसटी के समर्थक उपभोक्ता बता रहे हैं कि जीएसटी कर रिफंड के जरिए कारोबार की लागत को कम कर देगी और अंतत: गुड्स और सर्विसेज सस्ता होगा.

हालांकि, जीएसटी की ये अवधारणा तीन बड़े सवालों के साथ आती है-

1. न तो सरकार और न ही उद्योग जगत में लोगों को इस बात की कोई जानकारी है कि विभिन्न उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट से कितना बचत होगा.

2. सरकार अभी भी माइग्रेशन और पंजीकरण के मूल्यांकन की प्राथमिक चुनौतियों से ही जूझ रही है. ऐसे में रिफंड की बात दूर के ढोल हैं.

3. शुरूआत में जीएसटी व्यापारियों को लाभ दे सकती है जिसका फायदा व्यापारी इनपुट टैक्स क्रेडिट के जरिए उठा सकते हैं.

4. भले ही ये माना जा रहा है कि जीएसटी से कारोबारियों को बचत होगा लेकिन उपभोक्ता को लाभ तब ही मिलेगा जब सरकार करों की दर कम करेगी. जिसके आसार बहुत ही कम नजर आ रहे हैं क्योंकि सरकार पहले से ही हाई जीएसटी दरों में कटौती करने की जल्दी में नहीं दिखाई दे रही है. हालांकि सरकार इस बात को सुनिश्चित जरुर करना चाहती है कि निर्माताओं और डीलरों द्वारा जमाखोरी ना की जाए और टैक्स के फायदे उपभोक्ताओं तक भी पहुंचें. हालांकि इसके लिए ग्राहकों को पक्की रसीद लेनी होगी.

दूसरे शब्दों में अगर कहें तो गरीब उपभोक्ताओं को मुनाफाखोरी के मामले को साबित करने के लिए नाकों चने चबाने को तैयार रहना होगा. दूसरी बात ये कि प्राधिकरण द्वारा सुनवाई, जांच, और उपभोक्ता को दुकानदार द्वारा लिए अनुचित लाभ की वापसी का रास्ता बड़ा ही लंबा और लालफीता शाही से भरपूर है. इन बातों को नजरअंदाज करते हुए अगर कोई उत्साही उपभोक्ता वास्तव में जीएसटी के इतिहास का हिस्सा बनना पसंद करता है, तो वह अपनी किस्मत सरकार के साथ निम्नलिखित बिंदुओं के साथ जरूर आजमा सकते हैं.

1. सरकार को इनकम टैक्स की वापसी के माध्यम से मिलने वाले लाभ और बचत पर एक विस्तृत और हर क्षेत्र के डिटेल रिसर्च के साथ बाहर आना चाहिए.

2. कंपनियों द्वारा लिए जा रहे जीएसटी लाभों को पारदर्शी सुनिश्चित करने के लिए सरकार के क्या उपाय हैं?

3. सरकार को विभिन्न व्यवसायों के लागत का डेटा भी शेयर करना चाहिए.

लेकिन फिर भी सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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