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क्या वाकई भारत में पब्लिक ट्रांसपोर्ट बहुत महंगा है?

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 08 सितम्बर, 2018 03:06 PM
  • 08 सितम्बर, 2018 03:06 PM
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भारत को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मामले में सबसे किफायती कहा जाता है, लेकिन दिल्ली मेट्रो से जुड़ी एक रिपोर्ट इस तथ्य को झुठलाती है. क्या मेट्रो, लोकल, बस, ऑटो, ओला/ऊबर जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट भारतीय नागरिकों के लिए वाकई महंगे हैं?

हमारे देश में सबसे ज्यादा लोग किस तरह से ट्रैवल यानी सफर करते हैं? तो इसका जवाब मिलेगा ट्रेन, चाहें लोकल हो या फिर आम तौर पर दो शहरों को जोड़ने वाली ट्रेन पर सबसे ज्यादा लोग लदकर ट्रेनों में ही जाते हैं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मामले में भारतीय ट्रेनें सबसे किफायती कही जाएंगी. हमेशा इस लिस्ट में भारत को सबसे सस्ते किराए वाले देश के रूप में देखा जाता था पर अब ऐसा नहीं है. शायद ये पहली बार हुआ है कि भारत के किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सबसे महंगे की लिस्ट में शामिल किया गया है.

दरअसल, बात ये है कि Centre for Science and Environment (CSE) की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली मेट्रो दुनिया की दूसरी सबसे महंगी मेट्रो लाइन है. इसमें 10 किलोमीटर की यात्रा आधे डॉलर यानी 35 रुपए से भी ज्यादा की है. इससे पहले कि कोई ये कहे कि ज्यूरिक, न्यूयॉर्क, बर्लिन, लंदन आदि की मेट्रो ज्यादा महंगी है तो इससे जुड़े तथ्य को जान लीजिए. दरअसल, ये रिपोर्ट इस आधार पर बनाई गई है कि दुनिया की 9 सबसे अफोर्डेबल यानी किफायती मेट्रो की सूची में दिल्ली मेट्रो कितनी महंगी है. यानी दुनिया की 10 सबसे सस्ती मेट्रो लाइन में दिल्ली मेट्रो दूसरे सबसे महंगे यानी 8वें स्थान पर है. 

दिल्ली मेट्रो दुनिया की दूसरी सबसे महंगी मेट्रो सर्विस बताई गई है

कैसे की गई इसकी गणना..

इसे सिर्फ महंगे रेल किराए के तौर पर देखना गलत है. दरअसल, इस रिपोर्ट की गणना उन लोगों को आधार मानकर की गई है जिनकी आमदनी बेहद कम है या जो गरीबी रेखा से थोड़े ऊपर हैं. इसमें लोअर मिडिल क्लास और लोअर क्लास को जोड़िए. रिपोर्ट में लिखा गया है कि एक आम आदमी जो दिल्ली में 534 रुपए प्रति दिन या यूं कहें कि 16-17 हज़ार रुपए प्रति माह कमाता है उसे कम से कम 22 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली मेट्रो की...

हमारे देश में सबसे ज्यादा लोग किस तरह से ट्रैवल यानी सफर करते हैं? तो इसका जवाब मिलेगा ट्रेन, चाहें लोकल हो या फिर आम तौर पर दो शहरों को जोड़ने वाली ट्रेन पर सबसे ज्यादा लोग लदकर ट्रेनों में ही जाते हैं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मामले में भारतीय ट्रेनें सबसे किफायती कही जाएंगी. हमेशा इस लिस्ट में भारत को सबसे सस्ते किराए वाले देश के रूप में देखा जाता था पर अब ऐसा नहीं है. शायद ये पहली बार हुआ है कि भारत के किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सबसे महंगे की लिस्ट में शामिल किया गया है.

दरअसल, बात ये है कि Centre for Science and Environment (CSE) की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली मेट्रो दुनिया की दूसरी सबसे महंगी मेट्रो लाइन है. इसमें 10 किलोमीटर की यात्रा आधे डॉलर यानी 35 रुपए से भी ज्यादा की है. इससे पहले कि कोई ये कहे कि ज्यूरिक, न्यूयॉर्क, बर्लिन, लंदन आदि की मेट्रो ज्यादा महंगी है तो इससे जुड़े तथ्य को जान लीजिए. दरअसल, ये रिपोर्ट इस आधार पर बनाई गई है कि दुनिया की 9 सबसे अफोर्डेबल यानी किफायती मेट्रो की सूची में दिल्ली मेट्रो कितनी महंगी है. यानी दुनिया की 10 सबसे सस्ती मेट्रो लाइन में दिल्ली मेट्रो दूसरे सबसे महंगे यानी 8वें स्थान पर है. 

दिल्ली मेट्रो दुनिया की दूसरी सबसे महंगी मेट्रो सर्विस बताई गई है

कैसे की गई इसकी गणना..

इसे सिर्फ महंगे रेल किराए के तौर पर देखना गलत है. दरअसल, इस रिपोर्ट की गणना उन लोगों को आधार मानकर की गई है जिनकी आमदनी बेहद कम है या जो गरीबी रेखा से थोड़े ऊपर हैं. इसमें लोअर मिडिल क्लास और लोअर क्लास को जोड़िए. रिपोर्ट में लिखा गया है कि एक आम आदमी जो दिल्ली में 534 रुपए प्रति दिन या यूं कहें कि 16-17 हज़ार रुपए प्रति माह कमाता है उसे कम से कम 22 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली मेट्रो की यात्रा में खर्च करना पड़ता है. और अगर ट्रेन बदल कर यात्रा करनी हो तो ये आंकड़ा और ज्यादा हो जाता है. अब शायद इस फैक्ट के बाद आपको लगेगा कि यकीनन आम लोगों के लिए तो दिल्ली मेट्रो महंगी है. सिंगापुर मेट्रो में इसकी तुलना में कमाई का सिर्फ 3 से 4 प्रतिशत खर्च करना होता है. इस तरह से देखा जाए तो दिल्ली मेट्रो से ज्यादा महंगी सिर्फ हानोई वियत्नाम की मेट्रो सर्विस है.

अब अगर हम पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बात करें तो भारत को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मामले में सस्ता देश माना जाता है. पर क्या वाकई यहां के लोगों के लिए ये महंगा है? तो पहला तथ्य तो साबित हो गया कि ये सिर्फ एक खास तब्के के लिए नहीं है. मसलन अगर कोई 30 हज़ार सैलरी वाला इस सर्विस में सफर करता है तो ये उसके लिए इतनी महंगी नहीं होगी. पर फिर भी अगर गरीबों के लिए देखा जाए तो क्या वाकई पब्लिक ट्रांसपोर्ट महंगे नजर आएंगे? चलिए एक बार सभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट को देख लेते हैं.

 

भारतीय रेलवे का किराया..

भारतीय रेलवे जिसे सबसे सस्ते पब्लिक ट्रांसपोर्ट में से एक कहा जाता है उसका किराया चाहें 5 किलोमीटर जाना हो या 300 किलोमीटर आम गाड़ियों में स्लीपर और जनरल कोच को छोड़कर किराया एक ही रहता है. हां, कुछ खास ट्रेनों के लिए ये बदल जाता है पर किराया देखें तो भारतीय रेलवे अन्य देशों की तुलना में बेहद सस्ती नजर आएगी.

भारतीय रेलवे के किराए की रेट लिस्ट

पूरा चार्ट यहां देखें

यहां तक कि भारतीय रेलवे दुनिया की तीसरी सबसे सस्ती रेल है. यानी करोड़ो यात्रियों को ले जाने वाली रेलवे ट्रेन बेहद किफायती गिनी जाएगी.

ऑटो का किराया..

दिल्ली में ऑटो का तय किराया 25 रुपए पहले 2 किलोमीटर में (अगर मीटर से चले तो) और उसके बाद 8 रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से चलता है. हालांकि, दिल्ली में कोई मीटर से नहीं चलता और ऑटो वालों को अपने हिसाब से किराया मांगने की इजाजत होती है.

मुंबई में यहीं ऑटो का आम किराया 18 रुपए है और यहां मीटर से ही ऑटो ड्रायवर चलते हैं. इसके बाद प्रति किलोमीटर के हिसाब से किराया बढ़ जाता है.

मुंबई ऑटो के किराए की रेट लिस्ट

बस का किराया..

वैसे तो अलग-अलग राज्यों में बसों का किराया अलग है और इनके किराए की कीमत पेट्रोल रेट और स्टेट टैक्स के हिसाब से बदल जाती है, लेकिन हम इस वक्त दिल्ली की ही बात कर लेते हैं. दिल्ली में 4 किलोमीटर तक सिटी बस का किराया 5 रुपए है. 4-8 किलोमीटर का 10 रुपए, 8-12 किलोमीटर का 20 रुपए और 12 किलोमीटर से ज्यादा का किराया 25 रुपए. अगर डीटीसी का ग्रीनकार्ड ले लिया है तो एसी बसों का किराया 50 रुपए प्रति दिन है और नॉन एसी का किराया 40 रुपए.

कुल मिलाकर दिल्ली की सिटी बसें किराए के मामले में मेट्रो से ज्यादा सस्ती हैं.

ओला/ऊबर का किराया..

ऊबर का बेस प्राइज 60 रुपए, प्रति मिनट 1 रुपए और प्रति किलोमीटर 6-12 रुपए. ये जो 6-12 रुपए वाला एस्टिमेट है वो 15 किलोमीटर के बाद लगता है 6 रुपए और उससे ऊपर 12 रुपए प्रति किलोमीटर लगेगा. यहीं ओला मिनी का बेस प्राइज 100 रुपए, प्रति मिनट 1 रुपए और प्रति किलोमीटर 8 रुपए.

मतलब ओला और ऊबर यकीनन पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मामले में सबसे महंगा साबित होगा.

मुंबई लोकल का किराया..

मुंबई लोकल यानी देश की सबसे ज्यादा लोकप्रिय पब्लिक ट्रांसपोर्ट सेवा. इसकी बात करें तो दादर से सीएसटी जाने का किराया फर्स्ट क्लास का 41 रुपए लगभग है (ये फर्स्ट क्लास का किराया है.) दोनों साइड मिलाकर ये 82 रुपए तक पहुंच जाएगा. ये 9 किलोमीटर की यात्रा है यानी 4.5 रुपए प्रति किलोमीटर. अब आपको लग रहा होगा ये इतना महंगा है. पर यहीं सेकंड क्लास की बोगी में सफर करने पर यही किराया 5 रुपए हो जाएगा. यानी 1 रुपए प्रति किलोमीटर से भी कम. अब अगर आप फर्स्ट क्लास का पास बनवा लेते हैं तो 1200 रुपए में मुंबई लोकल में कितनी भी बार एक महीने में किसी भी स्टेशन के बीच सफर किया जा सकता है. वो भी फर्स्ट क्लास के डब्बे में. ये किराया भी कम से कम दो लाइन (मुंबई में तीन लोकल लाइन हैं) के लिए होगा.

मुंबई लोकल सबसे सस्ते पब्लिक ट्रांसपोर्ट में से एक है

यानी अगर देखा जाए तो मुंबई लोकल बी सबसे सस्ते पब्लिक ट्रांसपोर्ट में से एक रहेगी.

फ्लाइट का किराया?

जयंत सिन्हा ने कहा कि फ्लाइट का खर्च ऑटो से भी कम होता है. लोग उनका मज़ाक भले ही उड़ाने लगें, लेकिन एक तरह से देखा जाए तो उनका गणित कम नहीं है. जैसे-जैसे डोमेस्टिक फ्लाइट की दूरी बढ़ती जाती है वैसे ही खर्च भी कम होता जाता है. उदाहरण के तौर पर दिल्ली से कोच्ची के बीच की दूरी है 2081 किलोमीटर (फ्लाइट से) और 2725 किलोमीटर (सड़क से) और दिल्ली से कोच्ची की एक हफ्ते बाद की फ्लाइट टिकट देख लीजिए जरा.

                          दिल्ली से कोच्ची तक फ्लाइट चार्ज

ये गूगल का स्क्रीन शॉट है. सबसे कम कीमत की फ्लाइट 3372 की है जो लगभग 1.50 रुपए प्रति किलोमीटर के बराबर है. ऐसे ही अन्य शहरों की गणना भी की जा सकती है. अब यहीं सोचिए कि बस, टैक्सी, या अपनी गाड़ी से कितना खर्च आएगा इतना लंबा सफर करने में? हां ट्रेन का सफर सस्ता पड़ सकता है.

खैर, अगर फ्लाइट के बारे में बात की जाए तो इसे इतना आम पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं कहा जाएगा. ये बस इसलिए कि आपको सभी ट्रांसपोर्ट की जानकारी मिल जाए.

इन सभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट को देखा जाए तो भारत का पब्लिक ट्रांसपोर्ट दुनिया के कुछ सबसे सस्ते पब्लिक ट्रांसपोर्ट में गिना जाएगा. विकसित देशों के मुकाबले काफी सस्ता गिना जाएगा. हां, ये दुनिया के लिए भले ही सस्ता हो मगर अपने नागरिकों के लिए मेट्रो, ऑटो और ओला/ऊबर महंगी साबित होंगी. देखा जाए तो दिल्ली मेट्रो का सफर गरीबों के लिए भारी पड़ रहा है. मुंबई लोकल और बस उतनी सहूलियतभरी नहीं है और उन्हें आरामदेह पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं गिना जाएगा. ऐसे में गरीबों और रोजाना ट्रैवल करने वाले मिडिल क्लास इंसान के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को और ज्यादा किफायती बनाने में ही सभी की भलाई है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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