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बाबा रामदेव ने फर्जी स्वदेशी मैसेजिंग ऐप लॉन्च करके एक बड़ा मौका गंवा दिया है !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 03 जून, 2018 12:43 PM
  • 03 जून, 2018 12:43 PM
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बाबा रामदेव ने बेहद जल्दबाजी में किम्भो ऐप लॉन्च किया, उसकी वजह से नुकसान भी उन्हें ही हुआ है. रामदेव अगर थोड़ा सोच-समझकर और रिसर्च कर के इस ऐप को लॉन्च करते तो उनके पास एक अच्छा मौका और शानदार बाजार था.

बाबा रामदेव का स्वदेशी मैसेजिंग ऐप किम्भो (Kimbho) आया और शायद चला भी गया. शायद इसलिए, क्योंकि पूरी उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में इस ऐप को दोबारा से कुछ बदलावों के साथ लॉन्च कर दिया जाए. लेकिन सवाल ये है कि अभी इस ऐप को लेकर जितनी आलोचना बाबा रामदेव की हो रही तो क्या अब लोग इस ऐप को उसी उत्साह से अपनाएंगे, जैसे बिना किसी आलोचना के अपनाते? बेशक इसका जवाब ना ही होगा, लेकिन बावजूद इसके किम्भो जब दोबारा लॉन्च होगा तो उसे बहुत सारे लोग इसे इंस्टॉल जरूर करेंगे. खैर, यहां ये कहना गलत नहीं होगा कि बाबा रामदेव ने एक बड़ा मौका गंवा दिया है.

कैसे गंवाया बड़ा मौका?

बाबा रामदेव ने बेहद जल्दबाजी में किम्भो ऐप लॉन्च किया, उसकी वजह से नुकसान भी उन्हें ही हुआ है. रामदेव अगर थोड़ा सोच-समझकर और रिसर्च कर के इस ऐप को लॉन्च करते तो उनके पास एक अच्छा मौका और शानदार बाजार था. अभी पूरा देश वाट्सऐप पर निर्भर है, जो एक विदेशी ऐप है. इन दिनों फेसबुक डेटा ब्रीच को लेकर पहले से ही विरोध झेल रहा है. लोग डरे हुए हैं कि उनका डेटा विदेशों में जा रहा है और चोरी भी हो रहा है. ऐसे में बाबा रामदेव के पास वाकई में एक बड़ा मौका था भारत के बाजार पर छाने का, लेकिन जल्दबाजी ने सब गड़बड़ कर दी. जल्दबाजी में रामदेव ने विदेशी ऐप BOLO मैसेंजर को कॉपी कर के अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली. इस वक्त में उन्हें वक्त देते हुए अच्छे से एक असली स्वदेशी ऐप डिजाइन करना चाहिए था, ना कि लोगों को ठगने का काम करना चाहिए था.

मौकों को भुनाने में आगे रहते हैं बाबा रामदेव

बाबा रामदेव एक योग गुरु हैं, लेकिन उनका कारोबार भी खूब फल-फूल रहा है. उनका कारोबार फलने-फूलने का सबसे बड़ा कारण यही है कि वह हर मौके का फायदा उठाना जानते हैं. आइए एक नजर डालते हैं इन मौकों...

बाबा रामदेव का स्वदेशी मैसेजिंग ऐप किम्भो (Kimbho) आया और शायद चला भी गया. शायद इसलिए, क्योंकि पूरी उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में इस ऐप को दोबारा से कुछ बदलावों के साथ लॉन्च कर दिया जाए. लेकिन सवाल ये है कि अभी इस ऐप को लेकर जितनी आलोचना बाबा रामदेव की हो रही तो क्या अब लोग इस ऐप को उसी उत्साह से अपनाएंगे, जैसे बिना किसी आलोचना के अपनाते? बेशक इसका जवाब ना ही होगा, लेकिन बावजूद इसके किम्भो जब दोबारा लॉन्च होगा तो उसे बहुत सारे लोग इसे इंस्टॉल जरूर करेंगे. खैर, यहां ये कहना गलत नहीं होगा कि बाबा रामदेव ने एक बड़ा मौका गंवा दिया है.

कैसे गंवाया बड़ा मौका?

बाबा रामदेव ने बेहद जल्दबाजी में किम्भो ऐप लॉन्च किया, उसकी वजह से नुकसान भी उन्हें ही हुआ है. रामदेव अगर थोड़ा सोच-समझकर और रिसर्च कर के इस ऐप को लॉन्च करते तो उनके पास एक अच्छा मौका और शानदार बाजार था. अभी पूरा देश वाट्सऐप पर निर्भर है, जो एक विदेशी ऐप है. इन दिनों फेसबुक डेटा ब्रीच को लेकर पहले से ही विरोध झेल रहा है. लोग डरे हुए हैं कि उनका डेटा विदेशों में जा रहा है और चोरी भी हो रहा है. ऐसे में बाबा रामदेव के पास वाकई में एक बड़ा मौका था भारत के बाजार पर छाने का, लेकिन जल्दबाजी ने सब गड़बड़ कर दी. जल्दबाजी में रामदेव ने विदेशी ऐप BOLO मैसेंजर को कॉपी कर के अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली. इस वक्त में उन्हें वक्त देते हुए अच्छे से एक असली स्वदेशी ऐप डिजाइन करना चाहिए था, ना कि लोगों को ठगने का काम करना चाहिए था.

मौकों को भुनाने में आगे रहते हैं बाबा रामदेव

बाबा रामदेव एक योग गुरु हैं, लेकिन उनका कारोबार भी खूब फल-फूल रहा है. उनका कारोबार फलने-फूलने का सबसे बड़ा कारण यही है कि वह हर मौके का फायदा उठाना जानते हैं. आइए एक नजर डालते हैं इन मौकों पर:

- आपको मैगी का वो दौर तो याद ही होगा, जब उसमें अधिक मात्रा में लेड पाए जाने का मामला उछला था. इस मौके को भी बाबा रामदेव ने अच्छे से भुनाया और देसी नूडल्स लॉन्च कर दिए. हालांकि, वहां भी रामदेव ने नकल की और मैगी की तरह ही पीले रंग की पैकेजिंग में अपना देसी नूडल्स लॉन्च किया.

- कुछ समय पहले गाय का मामला भी खूब उछला था. अचानक से पूरे देश में गाय के लिए एक अलग प्रेम की भावना दिखाई थी. इस मौके का फायदा उठाकर बाबा रामदेव ने फिनायल को कॉपी करते हुए गोनायल निकाल दिया. विज्ञापन में बाबा रामदेव का कहना था कि इस तरह गौमाता से हमारी रक्षा होगी, ना कि हमसे गौमाता की.

भारत खुद में है एक बड़ा बाजार

आज के समय में चीन के पास अपना खुद का सोशल मीडिया है. उसका खुद का वाट्सऐप है, ट्विटर है, यू ट्यूब है और यहां तक कि गूगल भी है. हालांकि, उसके नाम जरूर अलग हैं, लेकिन काम इन्हीं सबकी तरह करते हैं. करीब 150 करोड़ की आबादी वाला चीन विदेशी ऐप, सर्च इंजन और सोशल मीडिया पर निर्भर नहीं रहता, बल्कि अपना ही सब कुछ इस्तेमाल करता है. भारत की आबादी भी करीब 130 करोड़ तो है ही, तो ऐसे में हम भी कम से कम वाट्सऐप जैसे मैसेजिंग ऐप के मामले में तो आत्मनिर्भर बन ही सकते थे. जिस तरह फेसबुक पर आए दिन उंगली उठती रह रही है, एक दिन ऐसा भी आ सकता था जब लोग वाकई में विदेशी ऐप वाट्सऐप को छोड़कर स्वदेशी ऐप की ओर चले आते, लेकिन बाबा रामदेव ने खुद गड़बड़ कर दी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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