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ऑस्ट्रेलिया में नुकसान की भरपाई क्या ईरान से करेंगे अदानी ?

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 06 जून, 2016 08:48 PM
  • 06 जून, 2016 08:48 PM
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ऑस्ट्रेलिया की खदान से कोयला लाने का प्रोजेक्ट अदानी के लिए महंगा साबित हो रहा है. अब उन्‍होंने ईरान के साथ भारत ने चाहबार पोर्ट पर करार कर लिया है. क्या यह अदानी के नुकसान की भरपाई कर पाएगा?

अदानी समूह की ऑस्ट्रेलिया में 10 बिलियन डॉलर की माइनिंग और पोर्ट परियोजना पर छाया संकट दूर होने का नाम नहीं ले रहा. प्रधानमंत्री मोदी के हाथ केन्द्र की बागडोर लगने के बाद अदानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी को ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में कोल माइनिंग का कॉन्ट्रैक्ट मिला. सबसे पहले इस कॉन्ट्रैक्ट में फंडिग की समस्या खड़ी हो गई और दुनियाभर से कोई फाइनेंसर इस कॉन्ट्रैक्ट में अदानी का साथ देने नहीं आया. लेकिन फिर देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई से तथाकथित गारंटी मिलने की खबर ने थोड़ी राहत दी तो पूरा मामला एनवायरमेंट क्लियरेंस के चलते क्वींसलैंड की अदालत पहुंच गया. अदानी के प्रोजेक्ट को अदालती कारवाई में फंसे लगभग दो साल होने को है. अब गौतम अदानी एक ऑस्ट्रेलियाई अखबार को बता रहे हैं कि उनके सब्र की इंतहा हो चुकी है. लिहाजा, कयास लगाया जा रहा है कि जल्द ऑस्ट्रेलिया सरकार ने बीचबचाव कर अदानी प्रोजेक्ट से अड़चनों को हटाने का काम नहीं किया तो वह इस प्रोजेक्ट को हमेशा के लिए गुडबाय बोल देंगे.

बहरहाल, अदानी समूह को ऑस्ट्रेलिया में मिले कॉन्ट्रैक्ट से एक अहम बात जो देश के सामने आई वह थी गौतम अदानी और नरेंद्र मोदी के बीच गहरी दोस्ती. माना जाता है कि गौतम अदानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेहद करीबी कारोबारी हैं. अदानी का खुद दावा है कि इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बड़ा कारोबार करने के लिए सरकार का करीबी होना बेहद जरूरी है. आंकड़े भी कुछ ऐसा ही कहते हैं. नरेन्द्र मोदी जब 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो गौतम अदानी का लगभग 3,750 करोड़ रुपये का कारोबार था. मोदी ने जब 2014 में केन्द्र की सत्ता संभाली तो अदानी का कारोबार 20 गुना बढ़कर लगभग 75,660 करोड़ रुपये पर पहुंच चुका था. अब इसे अदानी समूह की 12 साल की कड़ी मेहनत कह लें या फिर राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में सरकार का बेहद करीबी होने का फायदा, जैसा अदानी खुद दावा करते हैं.

अदानी समूह की ऑस्ट्रेलिया में 10 बिलियन डॉलर की माइनिंग और पोर्ट परियोजना पर छाया संकट दूर होने का नाम नहीं ले रहा. प्रधानमंत्री मोदी के हाथ केन्द्र की बागडोर लगने के बाद अदानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी को ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में कोल माइनिंग का कॉन्ट्रैक्ट मिला. सबसे पहले इस कॉन्ट्रैक्ट में फंडिग की समस्या खड़ी हो गई और दुनियाभर से कोई फाइनेंसर इस कॉन्ट्रैक्ट में अदानी का साथ देने नहीं आया. लेकिन फिर देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई से तथाकथित गारंटी मिलने की खबर ने थोड़ी राहत दी तो पूरा मामला एनवायरमेंट क्लियरेंस के चलते क्वींसलैंड की अदालत पहुंच गया. अदानी के प्रोजेक्ट को अदालती कारवाई में फंसे लगभग दो साल होने को है. अब गौतम अदानी एक ऑस्ट्रेलियाई अखबार को बता रहे हैं कि उनके सब्र की इंतहा हो चुकी है. लिहाजा, कयास लगाया जा रहा है कि जल्द ऑस्ट्रेलिया सरकार ने बीचबचाव कर अदानी प्रोजेक्ट से अड़चनों को हटाने का काम नहीं किया तो वह इस प्रोजेक्ट को हमेशा के लिए गुडबाय बोल देंगे.

बहरहाल, अदानी समूह को ऑस्ट्रेलिया में मिले कॉन्ट्रैक्ट से एक अहम बात जो देश के सामने आई वह थी गौतम अदानी और नरेंद्र मोदी के बीच गहरी दोस्ती. माना जाता है कि गौतम अदानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेहद करीबी कारोबारी हैं. अदानी का खुद दावा है कि इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बड़ा कारोबार करने के लिए सरकार का करीबी होना बेहद जरूरी है. आंकड़े भी कुछ ऐसा ही कहते हैं. नरेन्द्र मोदी जब 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो गौतम अदानी का लगभग 3,750 करोड़ रुपये का कारोबार था. मोदी ने जब 2014 में केन्द्र की सत्ता संभाली तो अदानी का कारोबार 20 गुना बढ़कर लगभग 75,660 करोड़ रुपये पर पहुंच चुका था. अब इसे अदानी समूह की 12 साल की कड़ी मेहनत कह लें या फिर राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में सरकार का बेहद करीबी होने का फायदा, जैसा अदानी खुद दावा करते हैं.

ऑस्ट्रेलिया का कारमाइकेल कोयला खदान

अब 2014 में जब अदानी का कद एकाएक टाटा और अंबानी जैसा दिखने लगा, तो जाहिर है भविष्य की तैयारी भी उनके जैसी ही होगी. देश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद अदानी ने दुनिया की सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी बनने का सपना देखा. इसकी नींव वह गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से डाल चुके थे. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में माइनिंग कर देश के बिजली घरों के लिए कोयला लाने का उनका बड़ा प्लान था जो मौजूदा अड़चनों से खटाई में पड़ता दिख रहा है. जाहिर है बीते दो साल के निवेश और महत्वाकांक्षा प्लान में उन्हें धक्का लगने के साथ-साथ घाटा भी उठाना पड़ा होगा. गौरतलब है कि इस प्रोजेक्ट को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अदानी ने ऑस्ट्रेलिया की दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों को समय-समय पर लाखों डॉलर बतौर चंदा दे चुके हैं और अदालती चक्करों से बाहर निकलने के लिए भी वह बड़ी रकम खर्च कर चुके हैं.

लेकिन जब दोस्ती देश के प्रधानमंत्री से जारी है तो इस नुकसान की क्या परवाह करना. अब अदानी समूह को हाल में भारत और ईरान से हुए समझौते से बड़ी उम्मीद है. प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान से चाबहार पोर्ट का बड़ा समझौता किया है. इस समझौते के तहत भारत और ईरान मिलकर ईरान तट पर नया पोर्ट विकसित करेंगे जिससे भारत को अफगानिस्तान और सेंट्रेल एशिया से कारोबार करने के लिए ट्रेड रूट मिल जाएगा. इसी करार के तहत भारत ईरान बॉर्डर से लेकर अफ्गानिस्तान के चार प्रमुख शहरों को जोड़ने के लिए भी रोड नेटवर्क तैयार करेगा.

अदानी समूह का मुंद्रा पोर्ट

वैसे तो भारत और ईरान के बीच चाहबार पर हुआ समझौता पूरी तरह के सरकारी कंपनियों के बीचे है. लेकिन अदानी समूह के पास पहले से मौजूद मुंद्रा पोर्ट इस प्रोजेक्ट में अहम भूमिका अदा करेगा. गौरतलब है कि ईरान के चाहबार पोर्ट को देश में मुंबई स्थित जवाहरलाल नेहरू पोर्ट और गुजरात स्थिति कांडला पोर्ट से जोडने की दिशा में काम किया जाएगा. लेकिन अदानी समूह के मुंद्रा पोर्ट की स्थिति कुछ विशेष है. ईरान के चाहबार से मुंद्रा पोर्ट सबसे नजदीक है और एक बार चाहबार का निर्माण पूरा हो जाने के बाद देश से कॉमर्शियल कंटेनर को सबसे कम दाम में मुद्रा पोर्ट से ही ईरान पहुंचाया जा सकेगा.

अब इसे भी चाहे इत्तेफाक कह लें या मान लें कि अदानी सही कहते हैं कि देश के इंफ्रास्क्चर क्षेत्र में काम करने के लिए सरकार से नजदीकी जरूरी है. गौरतलब है कि देश में सरकारी पोर्ट की बीते कई साल से कमाई गिर रही है और यह देश के प्राइवेट कंपनियों के पोर्ट के खाते में जा रही है. इसकी के चलते पिछले ही कमाई के मामले में मुंद्रा पोर्ट ने अपने सरकारी प्रतिदंव्दी कांडला पोर्ट को पीछे छोड़ दिया है. अब देखना यह है कि क्या चाहबार परियोजना पूरा होने पर अदानी को इस रूट के जरिए ऑस्ट्रेलिया में अटके प्रोजेक्ट से हुए नुकसान की भरपाई करने का मौका मिलेगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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