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शायद इसलिए इस फ्रेंडशिप डे, चाचा चौधरी, साबू संग प्राण को याद कर इमोशनल हुआ मैं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 06 अगस्त, 2017 06:38 PM
  • 06 अगस्त, 2017 06:38 PM
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दोस्ती एक खूबसूरत एहसास है. हम अपने जीवन में कई ऐसे दोस्त बनाते हैं जो हमें हमेशा याद रहते हैं. तो इसी क्रम में मिलिए उस प्राण कुमार शर्मा से जिसने मुझे दोस्ती के एक अलग अध्याय से मिलवाया और बताया कि बचपन की दोस्ती क्यों कई मायनों में खास है.

आज फ्रेंडशिप डे है. एक ऐसा दिन जो दोस्तों को, उनकी बातों को, उनकी शैतानियों को समर्पित है. बात जब दोस्तों की आई तो मैं भी किसी आम इंसान की तरह अपने बचपन की हसीन यादों में खो गया.

ऐसा इसलिए क्योंकि आप जीवन में भले ही कितने भी दोस्त बनाए हों मगर उन दोस्तों में वो दोस्त सबसे खास होते हैं जिनसे आपकी दोस्ती बचपन में हुई हो. कहते हैं कि बचपन की दोस्ती इंसान को ताउम्र याद रहती है. चूंकि आज फ्रेंड शिप डे था. फेसबुक से लेकर ट्विटर तक पर मुझे लगातार बधाई सन्देश मिल रहे थे तो अचानक ही मेरी आंखों के सामने अपने बचपन के उन दोस्तों की तस्वीर आ गयी जो कई मायनों में मेरे लिए बेहद खास है.

आज हमारे बीच शायद ही कोई ऐसा हो जो चाचा चौधरी को भुला हो

आज मुझे कई लोग याद आए. कुछ ऐसे जिन्हें मैं जानता था, जो मेरे साथ थे तो वहीं कुछ ऐसे, जिनको मैंने साथ रहते हुए धीरे-धीरे जाना था. आज का दिन मेरे लिए एक दूसरी वजह से भी खास है. आज के ही दिन कुछ चुनिन्दा दोस्तों से परिचय कराने वाले मेरे एक अन्य दोस्त मुझे छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चले गए थे. मेरे इस दोस्त का नाम प्राण कुमार शर्मा था.

आप शायद प्राण कुमार शर्मा से परिचित न हों मगर आप चाचा चौधरी, चाची, साबू, पिंकी, बिल्लू, रमन और राका जैसे किरदारों से अवश्य ही परिचित होंगे. वर्तमान परिपेक्ष में कहा जा सकता है कि चाचा चौधरी, साबू और राका जैसे पात्र जितने मुसलामानों के हैं उतने ही किसी हिंदू, सिख या ईसाई के भी हैं. अपने बचपन में हमने चाचा चौधरी को अवश्य ही पढ़ा है. जिन्होंने 'चाचा चौधरी' को नहीं पढ़ा है उन्होंने जरूर अपने घरों में अपनी-अपनी टीवी स्क्रीन पर रघुबीर यादव को 'चाचा चौधरी' के किरदार में देखा होगा.

आज फ्रेंडशिप डे है. एक ऐसा दिन जो दोस्तों को, उनकी बातों को, उनकी शैतानियों को समर्पित है. बात जब दोस्तों की आई तो मैं भी किसी आम इंसान की तरह अपने बचपन की हसीन यादों में खो गया.

ऐसा इसलिए क्योंकि आप जीवन में भले ही कितने भी दोस्त बनाए हों मगर उन दोस्तों में वो दोस्त सबसे खास होते हैं जिनसे आपकी दोस्ती बचपन में हुई हो. कहते हैं कि बचपन की दोस्ती इंसान को ताउम्र याद रहती है. चूंकि आज फ्रेंड शिप डे था. फेसबुक से लेकर ट्विटर तक पर मुझे लगातार बधाई सन्देश मिल रहे थे तो अचानक ही मेरी आंखों के सामने अपने बचपन के उन दोस्तों की तस्वीर आ गयी जो कई मायनों में मेरे लिए बेहद खास है.

आज हमारे बीच शायद ही कोई ऐसा हो जो चाचा चौधरी को भुला हो

आज मुझे कई लोग याद आए. कुछ ऐसे जिन्हें मैं जानता था, जो मेरे साथ थे तो वहीं कुछ ऐसे, जिनको मैंने साथ रहते हुए धीरे-धीरे जाना था. आज का दिन मेरे लिए एक दूसरी वजह से भी खास है. आज के ही दिन कुछ चुनिन्दा दोस्तों से परिचय कराने वाले मेरे एक अन्य दोस्त मुझे छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चले गए थे. मेरे इस दोस्त का नाम प्राण कुमार शर्मा था.

आप शायद प्राण कुमार शर्मा से परिचित न हों मगर आप चाचा चौधरी, चाची, साबू, पिंकी, बिल्लू, रमन और राका जैसे किरदारों से अवश्य ही परिचित होंगे. वर्तमान परिपेक्ष में कहा जा सकता है कि चाचा चौधरी, साबू और राका जैसे पात्र जितने मुसलामानों के हैं उतने ही किसी हिंदू, सिख या ईसाई के भी हैं. अपने बचपन में हमने चाचा चौधरी को अवश्य ही पढ़ा है. जिन्होंने 'चाचा चौधरी' को नहीं पढ़ा है उन्होंने जरूर अपने घरों में अपनी-अपनी टीवी स्क्रीन पर रघुबीर यादव को 'चाचा चौधरी' के किरदार में देखा होगा.

कहा जा सकता है कि चाचा चौधरी और साबू जैसे पात्र हमारे जीवन से जुड़े और हमारे आस पास के थे

हां, सही समझे आप. वही 'चाचा चौधरी' जिनका दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज था' चाचा की कॉमिक्सों की सबसे बड़ी खासियत उनका लोगों के प्रति मददगार रवैया था. कॉमिक्स में चाचा अपने इलाके में जितना हिन्दुओं के बीच पॉपुलर थे उतना ही मोहल्ले के मुस्लिम भी उन्हें मानते थे. आज भी उन कॉमिक्स को पढ़ते हुए कोई भी ये कहने पर मजबूर हो जाएगा कि निष्काम भावना से सबकी मदद करते थे हम सबके 'कम्प्यूटर से भी तेज दिमाग वाले चाचा चौधरी'.

खैर मैं बात प्राण कुमार शर्मा की कर रहा था, वही प्रेम कुमार शर्मा जिन्होंने कॉमिक्स के इन बेमिसाल पत्रों की रचना की थी. आपको बता दूं कि आज ही के दिन 3 साल पहले प्राण कुमार शर्मा स्वर्गवासी हुए थे. प्राण कुमार शर्मा के स्वर्गवासी होते ही चाचा चौधरी, चाची, साबू और बिल्लू सब के सब अनाथ और हम जैसे पाठक मायूस, बहुत मायूस हुए थे.

अंत में इतना ही कि चाहे फ्रेंडशिप डे जैसा खास दिन हो या फिर संडे, मंडे जैसा कोई आम दिन अपने बच्चों को प्राण कुमार शर्मा जैसे लोगों से मिलाते रहिये. ऐसा इसलिए भी क्योंकि यही वो लोग हैं जिन्होंने भारत को और हम भारतियों को सही मायनों में सेकुलरिज्म सिखाया और एक दूसरे की मदद के लिए प्रेरित किया. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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