• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
संस्कृति

दास्तान दुनिया के सबसे बड़े मार्च 'अरबईन मार्च' की...

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 29 सितम्बर, 2021 11:42 PM
  • 29 सितम्बर, 2021 11:42 PM
offline
अगर आपने कुंभ मेला देखा हो और करोंड़ों के बीच के इंतेजाम को परखा हो तो शायद आप हैरत करेंगे कि अरबईन मार्च का आयोजन ईराक के लिए कितना रस्साकसी का काम है. 4-6 करोड़ की आबादी एक वक्त में एक जगह हो तो क्या कल्पना की जा सकती है कि इस भीड़ में सबकी भाषा, रंग, नस्ल, और क्षेत्र अलग अलग हैं. बिल्कुल नहीं होता यकीन मगर ये सच है.

एक ही वक्त में एक ही स्थान पर जुटने वाली सबसे बड़ी भीड़ के विश्व-रिकार्ड पर नज़र डालिए. पहले पांच पायदानों पर कब्ज़ा है सिर्फ दो धार्मिक आयोजनों का. ये दोनों आयोजन हैं ईराक में होने वाले अरबईऩ मार्च और भारत में होने वाले कुंभ मेला का आयोजन. दोनों ही आयोजन के बारे में यह मिथक है कि यह साल दर साल अपना ही पिछला रिकार्ड तोड़ दिया करते हैं. आंकड़ों पर नज़र डालिये तो ये सही साबित भी होता है. कुंभ मेले में जहां भारत के प्रयागराज शहर में 2-3 करोड़ की भीड़ जुटती है तो वहीं अरबईन मार्च के दौरान ईराक के कर्बला शहर में 4-6 करोड़ की भीड़ दिखाई पड़ती है. अरबईन मार्च के ये आंकड़े हर साल बढ़ते जाते हैं जबकि कुंभ मेले में प्रति 12 वर्षों या फिर 6 वर्षों पर यह आंकड़ा बढ़ता है. कुंभ मेले में जुटने वाली भीड़ के बारे में और इसकी आस्था को लेकर हम सभी को जानकारियां हैं. भारत ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालू संगमनगरी में एक डुबकी लगाने को लेकर तमाम तरह की जद्दोजहद करते हैं. ऐसे में इसका आयोजन एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी का कार्य होता है. सरकार से लेकर प्रशासन तक सतर्क रहते हैं और साल भर पहले से ही आयोजन की तैयारियों का खांका खैंचा जाने लगता है. लेकिन आज हम बात करते हैं उस आयोजन की जो हर साल आयोजित होती है और हर साल इस आयोजन में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है.

अरबईन मार्च दरअसल चेहलुम के मौके पर होता है. चेहलुम इमाम हुसैन की याद में मनाया जाता है

यह अरबईन मार्च एक ऐसे देश में आयोजित होता है जिसकी हालत खस्ताहाल है. कई वर्षों तक वह युद्ध की आग में जलता रहा है. उसने गृहयुद्ध भी सहे हैं और अमेरिका जैसे ताकत वाले देशों से भी युद्ध का सामना किया है. अर्थव्यव्यस्था की कमर टूटने के बाद हर साल इतने बड़े आयोजन को आयोजित करना वहां की सरकार के लिए सबसे बड़ी...

एक ही वक्त में एक ही स्थान पर जुटने वाली सबसे बड़ी भीड़ के विश्व-रिकार्ड पर नज़र डालिए. पहले पांच पायदानों पर कब्ज़ा है सिर्फ दो धार्मिक आयोजनों का. ये दोनों आयोजन हैं ईराक में होने वाले अरबईऩ मार्च और भारत में होने वाले कुंभ मेला का आयोजन. दोनों ही आयोजन के बारे में यह मिथक है कि यह साल दर साल अपना ही पिछला रिकार्ड तोड़ दिया करते हैं. आंकड़ों पर नज़र डालिये तो ये सही साबित भी होता है. कुंभ मेले में जहां भारत के प्रयागराज शहर में 2-3 करोड़ की भीड़ जुटती है तो वहीं अरबईन मार्च के दौरान ईराक के कर्बला शहर में 4-6 करोड़ की भीड़ दिखाई पड़ती है. अरबईन मार्च के ये आंकड़े हर साल बढ़ते जाते हैं जबकि कुंभ मेले में प्रति 12 वर्षों या फिर 6 वर्षों पर यह आंकड़ा बढ़ता है. कुंभ मेले में जुटने वाली भीड़ के बारे में और इसकी आस्था को लेकर हम सभी को जानकारियां हैं. भारत ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालू संगमनगरी में एक डुबकी लगाने को लेकर तमाम तरह की जद्दोजहद करते हैं. ऐसे में इसका आयोजन एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी का कार्य होता है. सरकार से लेकर प्रशासन तक सतर्क रहते हैं और साल भर पहले से ही आयोजन की तैयारियों का खांका खैंचा जाने लगता है. लेकिन आज हम बात करते हैं उस आयोजन की जो हर साल आयोजित होती है और हर साल इस आयोजन में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है.

अरबईन मार्च दरअसल चेहलुम के मौके पर होता है. चेहलुम इमाम हुसैन की याद में मनाया जाता है

यह अरबईन मार्च एक ऐसे देश में आयोजित होता है जिसकी हालत खस्ताहाल है. कई वर्षों तक वह युद्ध की आग में जलता रहा है. उसने गृहयुद्ध भी सहे हैं और अमेरिका जैसे ताकत वाले देशों से भी युद्ध का सामना किया है. अर्थव्यव्यस्था की कमर टूटने के बाद हर साल इतने बड़े आयोजन को आयोजित करना वहां की सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है.

अरबईन मार्च ईराक देश के दो बड़े धार्मिक शहर नजफ और कर्बला के बीच आयोजित की जाती है.ये मार्च तकरीबन 85 से 110 किलोमीटर पैदल गश्त के रूप में होती है. इस अरबईऩ मार्च के दौरान जो प्रेम, सौहार्द, मोहब्बत, और मेजबानी दिखाई पड़ती है वो एक मिसाल है. इस मार्च में पैदल गश्त के दौरान किसी भी श्रद्धालू को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत या कमी का एहसास नहीं होता है.

ईराक के स्थानीय लोग दूर दूर से खाने-पीने से लेकर मरहम-पट्टी और ज़रूरत का हर सामान लेकर इसी मार्च के रास्ते में कैंप लगाकर बैठ जाते हैं और तब तक कैंप को खोले रहते हैं जबतक की उनकी पूरे साल की कमाई का सामान वह बांट नहीं देते. इस 85-110 किलोमीटर के रास्ते में पड़ने वाला हर मकान श्रद्धालुओं के लिए दिन-रात खुला रहता है.

कोई भी श्रद्धालू किसी भी मकान में किसी भी वक्त जाकर आराम कर सकता है. ईराक के स्थानीय लोग इस आयोजन के दौरान धार्मिक स्थल कर्बला या नजफ शहर को खाली कर देते हैं ताकि विदेश से आने वाले श्रद्धालू सुकून के साथ इमाम हुसैन व हज़रत अली की कब्रे मुबारक का दर्शन कर सकें. ईराक के स्थानीय नागरिकों के सहयोग के बिना इतने बड़े आयोजन की कल्पना तक नहीं की जा सकती है.

क्योंकि सरकार तो सुरक्षा तक की ज़िम्मेदारी को उठाने में नाकाम रह जाती है. उसे हर साल इस आयोजन के लिए ईरान के खूफिया विभाग व उसके जवानों की मदद लेनी पड़ जाती है. ईराक में होने वाले अरबईन मार्च के दौरान पूरे ईराक के डाक्टर, टीचर, अधिकारी, सियासी नेता, मज़हबी नेता, और यहां तक की सरकार के अहम मंत्री तक इसी कर्बला शहर को जाती हुई सड़कों पर डेरा जमाए बैठ जाते हैं.

और श्रद्धालुओं की हर तरह की मदद मुहैया कराते हैं और इसे ही वह अपनी नसीब अपनी किस्मत समझते हैं. कोरोना वायरस के कारण पिछले दो सालों से इस आयोजन में महज 1 करोड़ लोगों को ही इंट्री दी जा रही है मगर कोरोना वायरस के प्रकोप से पहले साल 2019 में रिकार्ड 5.50 करोड़ की भीड़ को दर्ज किया गया था.

और सबसे हैरत की बात तो यह है कि इस दौरान चोरी और गुमशुदगी का एक भी मामला सामने नहीं आया. जबकि कर्बला और नजफ दोनों ही शहर रिहायशी और भीड़भाड़ वाले इलाकों में शुमार होता है और श्रद्धालू भी अलग अलग महाद्धीप से आए हुए होते हैं. अरबईन मार्च से जु़ड़ी कई वीडियो फोटो आपको गूगल पर मिल जाएगी जिसे देख आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि वाकई कितना सलीके से इस आयोजन को अमलीजामा पहनाया जाता है.

क्यों होता है अरबईन मार्च

अरबईन मार्च दरअसल चेहलुम के मौके पर होता है. चेहलुम इमाम हुसैन की याद में मनाया जाता है. पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे हज़रत हुसैन को उर्दू कैलेंडर के मोहर्रम महीने की 10 तारीख को कर्बला नामक शहर में ही यज़ीद की क्रूर सेना ने शहीद कर डाला था. हज़रत इमाम हुसैन के साथ उनके बेटों, भाईयों, भतीजों, दोस्तों और भांजो को भी दर्दनाक तरीके से शहीद कर दिया गया था.

यह 10 मोहर्रम को हुआ थी इसी के ठीक 40 दिन बाद की तारीख को चेहलुम या अरबईन कहा जाता है जोकि इस्लामिक कैलेंडर के दूसरे महीने सफर की 20 तारीख को पड़ती है. इमाम हुसैन को दर्दनाक तरीके से शहीद कर देने के बाद यज़ीद की सेना ने इमाम हुसैन के परिवार की औरतों वह उनके एक बीमार बेटे को कैद कर लिया था.

करीब 1 साल तक यह सब यज़ीद की कैद में रहे इस दौरान इमाम हुसैन की बहन बीबी ज़ैनब इस्लाम का प्रचार प्रसार करती रहीं और अपने भाई हज़रत इमाम हुसैन की सच्चाई के मार्ग से लोगों को आगाह करती रही. आखिर में यज़ीद को भी एहसास हुआ कि उसने हज़रत हुसैन के परिवार वालों को एक लंबे समय तक गिरफ्तार कर रखा है अब इन्हें आज़ाद कर देना चाहिए.

हज़रत इमाम हुसैन के परिवार के लोग कैद से छुटकर सीधा सीरीया से ईराक (शाम से कर्बला शहर) पहुंचे और वहीं पर तीन दिन ठहर कर इमाम हुसैन को खूब रोए. फिर ये लोग मदीना शहर के लिए रवाना हुए तो वहां के स्थानीय निवासियों से इमाम हुसैन के बटे हज़रत ज़ैनुल आबेदीन ने कहा कि अगर यहां कोई आए तो उसे तीन दिन मेहमान रखना और उसकी खूब खातिरदारी करना.

ईराक में आज भी उसी नस्ल के लोग मौजूद हैं और अबतक इमाम हुसैन के बेटे के इस आदेश का पालन करते आ रहे हैं. अरबईन मार्च के दौरान खाने का लंगर लगभग 80 किलोमीटर लंबा लगता है. साथ ही तमाम तरह के ईलाज मुफ्त होते हैं. दूध, फल, दवाई, मालिश वगैरह कदम कदम पर मौजूद रहते हैं.

अब सवाल उठता है कि आखिर यह होता क्यों हैं? इसके पीछे मकसद क्या है?

इस सफर पर जब मैं गया तो मैंने यह एहसास किया कि यह मोहब्बत बांटने की जिंदादिली कोशिश है. इमाम हुसैन की शहादत को लोग भुला न बैठें इसलिए इश्वर ने इस आयोजन की नींव इमाम हुसैन की बहन बीबी ज़ैनब के साथ डाल दी. इस्लाम में शोक को तीन दिन तक मनाने की सलाह दी गई है लेकिन अकेले इमाम हुसैन की शहादत है जिसे चालिस दिन से पहले हरगिज़ कोई भी नहीं बढ़ाता है.

इस आयोजन को रोकने के लिए साल 2016 से 2019 तक में आई.एस.आई.एस ने कई कोशिश की लेकिन इस आयोजन पर किसी भी प्रकार का कोई फर्क नहीं पड़ा. कहते हैं कि इस्लाम के लिए अगर इमाम हुसैन ने अपनी शहादत न दी होती तो आज इस्लाम हर कबीले का अलग अलग होता. सब अपने ऐतबार से ही अल्लाह को मानते. अरबईन हर साल यह याद ताज़ा कर देता है कि हज़रत इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद रखना हर इंसान की जिम्मेदारी है.

ये भी पढ़ें -

शिया-सुन्नी स्टोरी: आखिर कैसे आज ही के दिन दो टुकड़ों में बंट गया मुसलमान

गणेश जी से सीखिए जिंदगी जीने के ये तीन तरीके, बदल जाएगी सोच

अरब शासक हज़रत अली, 4 साल के कार्यकाल में एक भी शख्स भूखा नहीं सोया!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    गीता मय हुआ अमेरिका... कृष्‍ण को अपने भीतर उतारने का महाभियान
  • offline
    वो पहाड़ी, जहां महाकश्यप को आज भी है भगवान बुद्ध के आने का इंतजार
  • offline
    अंबुबाची मेला : आस्था और भक्ति का मनोरम संगम!
  • offline
    नवाब मीर जाफर की मौत ने तोड़ा लखनऊ का आईना...
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲