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संस्कृति

शास्त्रीय गायकी की वो ताकत, जो थिरकने पर मजबूर कर देती थी

    • संजय शर्मा
    • Updated: 25 अक्टूबर, 2017 03:32 PM
  • 25 अक्टूबर, 2017 03:32 PM
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कोई दस बरस पहले कमानी सभागार में पंडित बिरजू महाराज अपने जन्मदिन पर अप्पाजी के गाने पर नाचे थे. गिरिजा देवी जी ने अपनी जवारीदार सुरमई ठुमरियों से महाराजजी को थिरकने पर विवश कर दिया था.. घुंघरू भी गा उठे थे..

ठुमरी-दादरा की साम्राज्ञी, कजरी, चैती, झूला की सहेली, बनारस की बेटी और संगीत जगत की दुलारी गिरिजा देवी की सांस सम पर पहुंच कर एक पल को थमी. फिर से स्थायी की, धुन पकड़ आगे बढ़ गईं.. शुरू हो गई स्थाई के छंद की अनन्त यात्रा... उसी परमात्मा की बंदिश के साथ एकाकार होते हुए चल दीं अप्पा जी. गायक जब खुद गायन बन जाये तो साधना सिद्धि हो जाती है. भक्त भगवान के साथ मिल जाता है. अप्पा जी ने तो अपने गुरुकुल की चार पीढ़ियों तक को सिद्ध बना दिया था. आगे वाली पीढियां उन्हें सुन और देखकर सिद्धि पथ पर आगे बढ़ेंगी.

शास्त्रीय संगीत की पाठशाला थी गिरिजा देवी

अब से कोई दस बरस पहले कमानी सभागार में पंडित बिरजू महाराज अपने जन्मदिन पर अप्पाजी के गाने पर नाचे थे. गिरिजा देवी जी ने अपनी जवारीदार सुरमई ठुमरियों से महाराजजी को थिरकने पर विवश कर दिया था.. घुंघरू भी गा उठे थे.. पियरवा मोरा रे! चुनरिया मैका लाल रंगा दे! सुरों के सवाल और घुंघरुओं की ताल के जवाब के साथ ही दोनों ठेठ बनारसी कलावन्तों के बीच ठिठोली का देसी पुट भी संगीत प्रेमियों को भाव विभोर कर गया. 

एक कार्यक्रम, जहां अप्पा जी के गायन पर बैठे ही बैठे कुछ यूं झूम उठे बिरजू महाराज:

इधर अप्पा जी के कंठ से निकले सुरीले भावों का झरना बहता और उधर महाराजजी उन्हें ताल और भाव के दामन में समेटते जाते! इस तरह एक यादगार शाम सुरमई रात में बदल गई.

अप्पा जी की शिष्यमंडली सदमे में है. स्नेह का सुरीला झरना थम गया और गुरु का साक्षात सान्निध्य छूट गया. लेकिन जब तक कानों में वो सुरीली आवाज़ गूंजती रहेगी अप्पाजी पास ही महसूस हो जाएंगी. कुछ इसी अंदाज में 'चैत मास बोलेली कोयलिया हो रामा.. या फिर... बाबुल सावन की पड़े रे फुहार बीरन सुध आई री... अप्पाजी की शिष्या मालिनी अवस्थी...

ठुमरी-दादरा की साम्राज्ञी, कजरी, चैती, झूला की सहेली, बनारस की बेटी और संगीत जगत की दुलारी गिरिजा देवी की सांस सम पर पहुंच कर एक पल को थमी. फिर से स्थायी की, धुन पकड़ आगे बढ़ गईं.. शुरू हो गई स्थाई के छंद की अनन्त यात्रा... उसी परमात्मा की बंदिश के साथ एकाकार होते हुए चल दीं अप्पा जी. गायक जब खुद गायन बन जाये तो साधना सिद्धि हो जाती है. भक्त भगवान के साथ मिल जाता है. अप्पा जी ने तो अपने गुरुकुल की चार पीढ़ियों तक को सिद्ध बना दिया था. आगे वाली पीढियां उन्हें सुन और देखकर सिद्धि पथ पर आगे बढ़ेंगी.

शास्त्रीय संगीत की पाठशाला थी गिरिजा देवी

अब से कोई दस बरस पहले कमानी सभागार में पंडित बिरजू महाराज अपने जन्मदिन पर अप्पाजी के गाने पर नाचे थे. गिरिजा देवी जी ने अपनी जवारीदार सुरमई ठुमरियों से महाराजजी को थिरकने पर विवश कर दिया था.. घुंघरू भी गा उठे थे.. पियरवा मोरा रे! चुनरिया मैका लाल रंगा दे! सुरों के सवाल और घुंघरुओं की ताल के जवाब के साथ ही दोनों ठेठ बनारसी कलावन्तों के बीच ठिठोली का देसी पुट भी संगीत प्रेमियों को भाव विभोर कर गया. 

एक कार्यक्रम, जहां अप्पा जी के गायन पर बैठे ही बैठे कुछ यूं झूम उठे बिरजू महाराज:

इधर अप्पा जी के कंठ से निकले सुरीले भावों का झरना बहता और उधर महाराजजी उन्हें ताल और भाव के दामन में समेटते जाते! इस तरह एक यादगार शाम सुरमई रात में बदल गई.

अप्पा जी की शिष्यमंडली सदमे में है. स्नेह का सुरीला झरना थम गया और गुरु का साक्षात सान्निध्य छूट गया. लेकिन जब तक कानों में वो सुरीली आवाज़ गूंजती रहेगी अप्पाजी पास ही महसूस हो जाएंगी. कुछ इसी अंदाज में 'चैत मास बोलेली कोयलिया हो रामा.. या फिर... बाबुल सावन की पड़े रे फुहार बीरन सुध आई री... अप्पाजी की शिष्या मालिनी अवस्थी के शब्दों में कहें तो संगीत की तालीम और जीवन की शिक्षाएं दोनों चीज़ें अप्पाजी पहले अपने जीवन मे उतारकर हमें सिखातीं रहीं. जीवन भर हम उनके जैसा बनने की कोशिश में ही रहे.

अप्पाजी के व्यक्तित्व का विराट महामानव होना उनके स्नेह में रमा रचा और बसा था. स्नेह जब सुरीला हो, रसीला हो और छबीला भी तो अप्पाजी की तस्वीर बनती है. उनका गान बनता है. उनकी ऐसी ही याद हमेशा बनी रहेगी! सुर, साधना और स्नेह की अजस्र धारा.. अमर पुकार को सादर नमन!

अप्पाजी की एक कजरी जिसे यूट्यूब पर सबसे ज्यादा देखा गया:

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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