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संस्कृति

काशी अलग अर्थो में विस्तृत होती जा रही है

    • Rudra Pratap Dubey
    • Updated: 21 फरवरी, 2023 05:35 PM
  • 21 फरवरी, 2023 05:35 PM
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बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष बढ़ती पर्यटकों की संख्या को नियंत्रित करने के उद्देश्य से एक सामूहिक प्रयास की विवेचना है. पिछले कुछ वर्षों के विकास ने काशी के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है.

प्रधानमंत्री जी का निर्वाचन क्षेत्र विस्तृत होता जा रहा है और ये विस्तार भौगोलिक रूप से नहीं बल्कि धार्मिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक रूप से है. काशी में बाबा विश्वनाथ जी के दरबार में प्रति वर्ष जिस तरह पर्यटकों की संख्या बढ़ती जा रही है वो प्रशासन, आवगमन साधनों के लिए अभी से चुनौती बनता जा रहा है. एयरपोर्ट, बस अड्डों और रेलवे स्टेशन से लोगों की निकलने वाली एक बड़ी संख्या बाबा विश्वनाथ के दरबार की तरफ चली जाती है और लगातार ये क्रम चलने से काशी लगातार व्यस्त रहने लगी है.

इसी चिंता को केंद्र में रख कर पिछले कुछ वर्षों के सामाजिक गहन चिंतन के बाद काशी-वासियों ने स्वविवेक से ये निर्णय लिया कि अगर हम काशी की महत्ता को पुर्नस्थापित करें तो कुछ प्राचीन और कुछ नवीन स्थानों के साथ हम पर्यटकों की बढ़ती हुई भीड़ को नियंत्रित कर सकते हैं. इस विचार के साथ ही जन्म हुआ वाराणसी के दक्षिण पश्चिम छोर पर कछवां के गढौली धाम का, ऐसी जगह जो ना केवल पूरे परिक्षेत्र के लिए समृद्धि लेकर आये बल्कि ही काशी आ रहे पर्यटकों को भी एक नवीन स्थान देकर काशी शहर की व्यस्तता को थोड़ा कम करे.

जब ये विचार मुझ तक पहुँचा तो इस विचार ने मुझे भी प्रेरित किया कि देखना चाहिए कि काशी वासियों कि ये संगठित सोच कितनी सफल या सार्थक है. गढौली धाम, अर्थात काशी व प्रयाग के मध्य विंध्य-धरा पर माँ गंगा की गोद में वो जगह जहाँ 108 फीट ऊंची गौरी-शंकर की दिव्य प्रतिमा स्थापित हो रही है. अब बाबा विश्वनाथ, संकटमोचन और प्रचलित घाटों के अतिरिक्त भी काशी के पास एक ऐसा स्थान है जहाँ गौ-गंगा और गौरी-शंकर का दर्शन सुलभ होगा. इस समय इस जगह पर बालेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना हो चुकी है एवं वेद विद्यालय, आयुर्विज्ञान केंद्र, ऑडिटोरियम, गौ मंदिर आदि की स्थापना कार्य प्रगति पर है. जब मैंने सम्पूर्ण परियोजना को समझने की कोशिश की तो उसके पीछे का विजन आश्चर्यचकित करने वाला था.

प्रधानमंत्री जी का निर्वाचन क्षेत्र विस्तृत होता जा रहा है और ये विस्तार भौगोलिक रूप से नहीं बल्कि धार्मिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक रूप से है. काशी में बाबा विश्वनाथ जी के दरबार में प्रति वर्ष जिस तरह पर्यटकों की संख्या बढ़ती जा रही है वो प्रशासन, आवगमन साधनों के लिए अभी से चुनौती बनता जा रहा है. एयरपोर्ट, बस अड्डों और रेलवे स्टेशन से लोगों की निकलने वाली एक बड़ी संख्या बाबा विश्वनाथ के दरबार की तरफ चली जाती है और लगातार ये क्रम चलने से काशी लगातार व्यस्त रहने लगी है.

इसी चिंता को केंद्र में रख कर पिछले कुछ वर्षों के सामाजिक गहन चिंतन के बाद काशी-वासियों ने स्वविवेक से ये निर्णय लिया कि अगर हम काशी की महत्ता को पुर्नस्थापित करें तो कुछ प्राचीन और कुछ नवीन स्थानों के साथ हम पर्यटकों की बढ़ती हुई भीड़ को नियंत्रित कर सकते हैं. इस विचार के साथ ही जन्म हुआ वाराणसी के दक्षिण पश्चिम छोर पर कछवां के गढौली धाम का, ऐसी जगह जो ना केवल पूरे परिक्षेत्र के लिए समृद्धि लेकर आये बल्कि ही काशी आ रहे पर्यटकों को भी एक नवीन स्थान देकर काशी शहर की व्यस्तता को थोड़ा कम करे.

जब ये विचार मुझ तक पहुँचा तो इस विचार ने मुझे भी प्रेरित किया कि देखना चाहिए कि काशी वासियों कि ये संगठित सोच कितनी सफल या सार्थक है. गढौली धाम, अर्थात काशी व प्रयाग के मध्य विंध्य-धरा पर माँ गंगा की गोद में वो जगह जहाँ 108 फीट ऊंची गौरी-शंकर की दिव्य प्रतिमा स्थापित हो रही है. अब बाबा विश्वनाथ, संकटमोचन और प्रचलित घाटों के अतिरिक्त भी काशी के पास एक ऐसा स्थान है जहाँ गौ-गंगा और गौरी-शंकर का दर्शन सुलभ होगा. इस समय इस जगह पर बालेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना हो चुकी है एवं वेद विद्यालय, आयुर्विज्ञान केंद्र, ऑडिटोरियम, गौ मंदिर आदि की स्थापना कार्य प्रगति पर है. जब मैंने सम्पूर्ण परियोजना को समझने की कोशिश की तो उसके पीछे का विजन आश्चर्यचकित करने वाला था.

वाराणसी: नए रूप में परंपराओं का नया रूप धरता तीर्थराज.

प्रधानमंत्री जी अपने 'मन की बात' में जिस प्राकृतिक कृषि के विषय में बात करते हैं, जिस मोटे अनाज का वो उल्लेख करते हैं, जिस तरह खेलों को व्यक्तित्व विकास का हिस्सा बताते हैं और जिस तरह आध्यात्मिक स्थलों के विकास की वो रूपरेखा खींचते हैं वो सब इस एक स्थान पर उपस्थित है. धाम की गौशाला अद्भुत सकारात्मकता से परिपूर्ण है. गौशाला में उपस्थित एक व्यवस्थापक बोले, 'गाय का पालन पोषण हम नहीं अपितु गाय हमारा पालन पोषण कर रही है और यही धाम के गऊ-गंगा का मूल मंत्र है.'

काशी निवासी कुछ स्वयंसेवकों का समूह मिला, उसने बताया धाम लगातार सामाजिक कार्यों को भी अपने स्तर पर आगे बढ़ा रहा है. मुझे ज्ञात हुआ कि अक्टूबर 2021 को जब यहाँ टेंट में दुर्गासप्तशती का पाठ व भंडारा आरंभ किया गया था तब ये बिल्कुल निर्जन स्थान था. उसी वक्त गढौली धाम की व्यवस्थापक संस्था ने ये प्रण कर लिया था कि इस क्षेत्र के अगल-बगल के हर गाँव को सभी तरह समृद्ध करने की जिम्मेदारी उनकी होगी. स्थानीय अक्षम ग्रामीणों को टिफिन के माध्यम से दैनिक भोजन वितरण की योजना पर गड़ौली धाम परिवार के सदस्य उसी दिन से कार्य करने लग गए थे. धाम में इसी माघ मास में विद्यारम्भ संस्कार की शुरुवात करके ये घोषणा की गई कि हर वर्ष माघ मास में बसन्त पंचमी के अवसर पर धाम विद्यारम्भ संस्कार करवायेगा. कुछ दिन पूर्व ही यहाँ पञ्च दिवसीय उत्सवीय आयोजन किया गया जहाँ खेल प्रतिभाओं को निखारने के उद्देश्य से बॉलीबॉल, कबड्डी, खो खो, कुश्ती एवं दंगल का आयोजन किया गया. मैं आश्चर्यचकित था जब मुझे बताया गया कि अभी लगभग 10 दिन पूर्व ही यहाँ कन्यादान महायज्ञ करके कुल नामांकित 1041 जोड़ों को आशीष प्रदान किया गया है.

धाम में प्रवेश करते समय मैंने महसूस किया था कि ये धाम केवल धार्मिक या अध्यात्मिक गतिविधियों को सहयोग प्रदान कर रहा होगा लेकिन प्रवेश करते ही मिलने वाली गौशाला ने मुझे विस्तृत दृष्टिकोण प्रदान किया.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जिस जीरो बजट खेती और उसके आधार पर किसानों की आय दोगुना करने का संकल्प लेते हैं उसका मूल आधार गौ आधारित कृषि ही है और धाम इसी संकल्प से काशी के हर किसान को जोड़ने की योजना को लेकर कार्य कर रहा है. धाम के कार्यों से प्रभावित होकर ही क्षेत्र के कई किसान अब गौ आधारित कृषि को अभियान बना चुके हैं. धाम के सामाजिक कार्य केवल भौगोलिक सीमा तक सिमटे हुए नहीं है. प्रयाग में कल्पवासियों की सेवा हेतु भी गड़ौली धाम ने निःशुल्क चाय प्रसाद शिविर का संचालन किया था.

गढौली धाम में तुलसी विवाह, रामलीला मंचन, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, रुद्राभिषेक और योग दिवस के आयोजनों ने एक तरफ पर्यटकों को आकर्षित करना प्रारम्भ कर दिया है तो दूसरी तरफ ध्यान साधना केंद्र, व्याख्या केंद्र और गौ केंद्रित प्राकृतिक कृषि की विचारधारा ने क्षेत्र को आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करना प्रारम्भ कर दिया है. ये धाम प्रधानमंत्री जी की 'वोकल फॉर लोकल' की सोच की जमीन पर उतार रहा है. ऐसे स्वयंसेवी प्रयासों के उदाहरण को सामने रखकर ही हम शहरों को उन्नत और राष्ट्र को एकीकृत करने की सोच को आगे बढ़ा सकते हैं. काशी में आने वाले पर्यटकों के पास अब एक अन्य जगह भी तैयार है.

काशी को इस अभिनव प्रयोग को स्वीकारने की बधाई.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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