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संस्कृति

हिंदू नववर्ष के बारे में क्या ये सब जानते हैं आप?

    • सुयश मिश्र
    • Updated: 17 मार्च, 2018 09:27 PM
  • 17 मार्च, 2018 09:10 PM
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यह विडम्वना ही है कि हमारे समाज में जितनी धूम-धाम से विदेशी नववर्ष एक जनवरी का उत्सव नगरों-महानगरों में मनाया जाता है उसका शतांश हर्ष भी इस पावन-पर्व पर दिखाई नहीं देता.

यूरोपीय सभ्यता के वर्चस्व के कारण विश्व भर में 1 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है. भारत में भी अधिकांश लोग अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार नववर्ष 1 जनवरी को ही मनाते हैं लेकिन हमारे देश में एक बड़ा वर्ग चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष का उत्सव मनाता है. यह दिवस हिन्दु समाज के लिए अत्यंत विशिष्ट है क्योंकि इस तिथि से ही नया पंचांग प्रारंभ होता है और वर्ष भर के पर्व, उत्सव एवं अनुष्ठानों के शुभ मुहूर्त निश्चित होते हैं.

भारत में सांस्कृतिक विविधता के कारण अनेक काल गणनायें प्रचलित हैं जैसे- विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी सन, ईसवीं सन, वीरनिर्वाण संवत, बंग संवत आदि. इस वर्ष 1 जनवरी को राष्ट्रीय शक संवत 1939, विक्रम संवत 2074, वीरनिर्वाण संवत 2544, बंग संवत 1424, हिजरी सन 1439 थी किन्तु 18 मार्च 2018 को चैत्र मास प्रारंभ होते ही शक संवत 1940 और विक्रम संवत 2075 हो रहे हैं. इस प्रकार हिन्दु समाज के लिए नववर्ष प्रारंभ हो रहा है.

भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत पंचांग को दिया जाता है. सनातन धर्मावलम्वियों के समस्त कार्यक्रम जैसे विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश इत्यादि शुभकार्य विक्रम संवत के अनुसार ही होते हैं. विक्रम संवत् का आरंभ 57 ई.पू. में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ. भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और लोकप्रिय राजा के रुप में जाना जाता है. विक्रमादित्य के शासन से पहले उज्जैन पर शकों का शासन हुआ करता था. वे लोग अत्यंत क्रूर थे और प्रजा को सदा कष्ट दिया करते थे. विक्रमादित्य ने उज्जैन को शकों के कठोर शासन से मुक्ति दिलाई और अपनी जनता का भय मुक्त कर दिया. स्पष्ट है कि विक्रमादित्य के विजयी होने की स्मृति में आज से 2075 वर्ष पूर्व विक्रम संवत पंचांग का निर्माण किया गया.

भारतवर्ष में ऋतु परिवर्तन के साथ ही हिंदू...

यूरोपीय सभ्यता के वर्चस्व के कारण विश्व भर में 1 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है. भारत में भी अधिकांश लोग अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार नववर्ष 1 जनवरी को ही मनाते हैं लेकिन हमारे देश में एक बड़ा वर्ग चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष का उत्सव मनाता है. यह दिवस हिन्दु समाज के लिए अत्यंत विशिष्ट है क्योंकि इस तिथि से ही नया पंचांग प्रारंभ होता है और वर्ष भर के पर्व, उत्सव एवं अनुष्ठानों के शुभ मुहूर्त निश्चित होते हैं.

भारत में सांस्कृतिक विविधता के कारण अनेक काल गणनायें प्रचलित हैं जैसे- विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी सन, ईसवीं सन, वीरनिर्वाण संवत, बंग संवत आदि. इस वर्ष 1 जनवरी को राष्ट्रीय शक संवत 1939, विक्रम संवत 2074, वीरनिर्वाण संवत 2544, बंग संवत 1424, हिजरी सन 1439 थी किन्तु 18 मार्च 2018 को चैत्र मास प्रारंभ होते ही शक संवत 1940 और विक्रम संवत 2075 हो रहे हैं. इस प्रकार हिन्दु समाज के लिए नववर्ष प्रारंभ हो रहा है.

भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत पंचांग को दिया जाता है. सनातन धर्मावलम्वियों के समस्त कार्यक्रम जैसे विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश इत्यादि शुभकार्य विक्रम संवत के अनुसार ही होते हैं. विक्रम संवत् का आरंभ 57 ई.पू. में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ. भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और लोकप्रिय राजा के रुप में जाना जाता है. विक्रमादित्य के शासन से पहले उज्जैन पर शकों का शासन हुआ करता था. वे लोग अत्यंत क्रूर थे और प्रजा को सदा कष्ट दिया करते थे. विक्रमादित्य ने उज्जैन को शकों के कठोर शासन से मुक्ति दिलाई और अपनी जनता का भय मुक्त कर दिया. स्पष्ट है कि विक्रमादित्य के विजयी होने की स्मृति में आज से 2075 वर्ष पूर्व विक्रम संवत पंचांग का निर्माण किया गया.

भारतवर्ष में ऋतु परिवर्तन के साथ ही हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है. चैत्र माह में शीतऋतु को विदा करते हुए और वसंत ऋतु के सुहावने परिवेश के साथ नववर्ष आता है. यह दिवस भारतीय इतिहास में अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है. पुराण-ग्रन्थों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही त्रिदेवों में से एक ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की थी. इसीलिए हिन्दू-समाज भारतीय नववर्ष का पहला दिन अत्यंत हर्षोल्लास से मनाते हैं. इस तिथि को कुछ ऐसे अन्य कार्य भी सम्पन्न हुए हैं जिनसे यह दिवस और भी विशेष हो गया. जैसे- श्री राम एवं युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, मां दुर्गा की साधना हेतु चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस, आर्यसमाज का स्थापना दिवस, संत झूलेलाल की जंयती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी का जन्मदिन आदि. इन सभी विशेष कारणों से भी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन विशेष बन जाता है.

यह विडम्वना ही है कि हमारे समाज में जितनी धूम-धाम से विदेशी नववर्ष एक जनवरी का उत्सव नगरों-महानगरों में मनाया जाता है उसका शतांश हर्ष भी इस पावन-पर्व पर दिखाई नहीं देता. बहुत से लोग तो इस पर्व के महत्व से भी अनभिज्ञ हैं. आश्चर्य का विषय है कि हम परायी परंपराओं के अन्धानुकरण में तो रुचि लेते हैं किन्तु अपनी विरासत से अनजान हैं. हमें अपने पंचांग की तिथियां, नक्षत्र, पक्ष, संवत् आदि प्रायः विस्मृत हो रहे हैं. यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण हैं. इसे बदलना होगा. आइये, अपने नववर्ष को पहचानें, उसका स्वागत करें और परस्पर बधाई देकर इस उत्सव को सार्थक बनायें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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