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संस्कृति

खुले में KISS लेने से कतराती है आधी दुनिया!

    • चंदन कुमार
    • Updated: 16 जुलाई, 2015 02:03 PM
  • 16 जुलाई, 2015 02:03 PM
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'KISS या KISS नहीं' पर भारत को कोसने वालों की कमी नहीं है. ऐसे लोग यूरोप-अमेरिका को अपना आदर्श मानते हैं. लेकिन आश्चर्य! खुद वहां के 30-40 फीसदी लोग स्मूच को अश्लील मानते हैं.

भारत बहुत पिछड़ा देश है. यहां जन्म लेकर गलती कर दी. यहां लोगों के विचार बहुत ही दकियानूसी हैं. सेक्स तो छोड़िए, यहां लोग KISS से भी परहेज करते हैं. टीवी या सिनेमा में स्मूच और फ्रेंच KISS के सीन पर लोग बगलें झांकने लगते हैं - ठहरिए जरा! अगर आपके भी विचार भारत को लेकर कुछ ऐसे ही हैं तो अगली लाइन पढ़ें, विचार बदल जाएगा - दुनिया की 168 संस्कृतियों में से केवल 46 फीसदी में ही स्मूच को सही माना जाता है और खुले में KISS करने से आधी दुनिया कतराती है.

जी हां, चौंकिए मत. जो पढ़ा, वो सच है. अमेरिका के लास वेगाज स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ नेवाडा के शोधकर्ताओं ने दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों और उनके यहां चुंबन पर शोध किया. जो रिजल्ट आए, वो चौंकाने वाले थे. लगभग आधी दुनिया ने इस शोध के दौरान खुले में चुंबन को वाहियात और अश्लील बताया. स्मूच पर भी सिर्फ 46 फीसदी संस्कृतियों में सहमति बताई गई.

स्मूच को नकारने वाली शेष 54 फीसदी संस्कृतियां जरूर भारत जैसे देशों और मुस्लिम देशों की होंगी - अगर यह आपके मन में चल रहा है तो आप बिल्कुल गलत हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तरी अमेरिका की 33 में से 15 संस्कृतियों में स्मूच का प्रचलन ही नहीं है. यूरोप की 10 संस्कृतियों में से तीन में लिप-टू-लिप KISS स्वीकार्य नहीं है. जबकि दूसरी ओर मिडिल-ईस्ट के लगभग सभी देशों में यह प्रचलन में है. मतलब टर्की, सीरिया, इराक, इरान, जॉर्डन जैसे मुस्लिम बहुल देशों में स्मूच का फैशन है. एशिया में भी सिर्फ 27 फीसदी संस्कृतियों में स्मूच अस्वीकार्य है.

यूनिवर्सिटी ऑफ नेवाडा की यह रिपोर्ट जरनल अमेरिकन एंथ्रोपोलॉजिस्ट में प्रकाशित हुई है. रिपोर्ट के अनुसार शायद हमारे पूर्वज चुंबन से वाकिफ नहीं थे. ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया की अलग-अलग जगहों पर पुरातन जीवन-शैली से जी रहे ट्राइब्स के यहां अभी भी स्मूच या KISS को अश्लील माना जाता है.

रिपोर्ट से एक बात तो स्पष्ट हुई है : अमेरिका-यूरोप में बड़ी आजादी है, गोरे लोगों के विचार बड़े खुले होते हैं - इस तरह का भ्रम टूटा...

भारत बहुत पिछड़ा देश है. यहां जन्म लेकर गलती कर दी. यहां लोगों के विचार बहुत ही दकियानूसी हैं. सेक्स तो छोड़िए, यहां लोग KISS से भी परहेज करते हैं. टीवी या सिनेमा में स्मूच और फ्रेंच KISS के सीन पर लोग बगलें झांकने लगते हैं - ठहरिए जरा! अगर आपके भी विचार भारत को लेकर कुछ ऐसे ही हैं तो अगली लाइन पढ़ें, विचार बदल जाएगा - दुनिया की 168 संस्कृतियों में से केवल 46 फीसदी में ही स्मूच को सही माना जाता है और खुले में KISS करने से आधी दुनिया कतराती है.

जी हां, चौंकिए मत. जो पढ़ा, वो सच है. अमेरिका के लास वेगाज स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ नेवाडा के शोधकर्ताओं ने दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों और उनके यहां चुंबन पर शोध किया. जो रिजल्ट आए, वो चौंकाने वाले थे. लगभग आधी दुनिया ने इस शोध के दौरान खुले में चुंबन को वाहियात और अश्लील बताया. स्मूच पर भी सिर्फ 46 फीसदी संस्कृतियों में सहमति बताई गई.

स्मूच को नकारने वाली शेष 54 फीसदी संस्कृतियां जरूर भारत जैसे देशों और मुस्लिम देशों की होंगी - अगर यह आपके मन में चल रहा है तो आप बिल्कुल गलत हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तरी अमेरिका की 33 में से 15 संस्कृतियों में स्मूच का प्रचलन ही नहीं है. यूरोप की 10 संस्कृतियों में से तीन में लिप-टू-लिप KISS स्वीकार्य नहीं है. जबकि दूसरी ओर मिडिल-ईस्ट के लगभग सभी देशों में यह प्रचलन में है. मतलब टर्की, सीरिया, इराक, इरान, जॉर्डन जैसे मुस्लिम बहुल देशों में स्मूच का फैशन है. एशिया में भी सिर्फ 27 फीसदी संस्कृतियों में स्मूच अस्वीकार्य है.

यूनिवर्सिटी ऑफ नेवाडा की यह रिपोर्ट जरनल अमेरिकन एंथ्रोपोलॉजिस्ट में प्रकाशित हुई है. रिपोर्ट के अनुसार शायद हमारे पूर्वज चुंबन से वाकिफ नहीं थे. ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया की अलग-अलग जगहों पर पुरातन जीवन-शैली से जी रहे ट्राइब्स के यहां अभी भी स्मूच या KISS को अश्लील माना जाता है.

रिपोर्ट से एक बात तो स्पष्ट हुई है : अमेरिका-यूरोप में बड़ी आजादी है, गोरे लोगों के विचार बड़े खुले होते हैं - इस तरह का भ्रम टूटा है. गोरे हों या काले, हम सभी एक समाज का, एक संस्कृति का हिस्सा होते हैं. हमारी परवरिश में इसका बड़ा अहम रोल होता है. इसलिए खुद को किसी भ्रम में रख कर छोटा समझने की भूल करनी है तो कीजिए, इसे देश या समाज के साथ जोड़कर न देखें, तो बेहतर है. बेहतर और भी होगा, यदि सोच-विचार के दायरे को बढ़ाएंगे, इसे KISS या स्मूच तक सीमित न करें.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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