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संस्कृति

एक गांव जहां महाशिवरात्रि के दिन होती है स्वामी सहजानंद सरस्वती की पूजा

    • अशोक प्रियदर्शी
    • Updated: 07 मार्च, 2016 12:09 PM
  • 07 मार्च, 2016 12:09 PM
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बिहार के एक गांव में महाशिवरात्रि को किसान आंदोलन के अग्रणी नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है. जानिए कहां और क्यों?

सोमवार को महाशिवरात्रि है. महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और पार्वती के विवाह रस्म की जाती है. पूरे देश में महाशिवरात्रि मनाई जाती है. लेकिन इससे इतर बिहार के नवादा जिले के रेवरा गांव में महाशिवरात्रि को किसान आंदोलन के अग्रणी नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है. महाशिवरात्रि के दिन स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म हुआ था. रेवरावासी मानते हैं कि स्वामीजी का जन्म नही हुआ होता तो न जानें कितने दिनों तक जमींदारों के अत्याचार से गांव की पीढ़ियां सजा भुगत रही होतीं. लिहाजा, रेवरावासियों के लिए मुक्ति दिवस माना जाता है.

दरअसल, स्थानीय जमींदार ने गांव के करीब डेढ़ हजार बीघा जमीन को नीलाम करवा लिया था. गांव के 500-600 व्यक्ति चिथरा पहने भूखों मरते थे. लड़कियां बेचीं जा रही थीं. हद तो ये कि जमींदार उससे भी आधे मूल्य जमींदारी और बकाए के रूप में वसूल रहे थे. जमींदारों के शोषण के कारण किसानों की जमीन नहीं बच पाई थी.

स्वामी सहजानन्द के ‘अपनी जीवन संघर्ष’ पुस्तक में उल्लेख है कि किसानों के छप्पर पर दो कद्दू फलते थे, तो उनमें से एक कद्दू जमींदार ले लेता था. दो बकरे में एक जमींदार का होता था. अत्याचार और जुल्म सितम का आलम यह था कि-एक बार गांव वालों से दूध की मांग की गई थी. जब जमींदार के कारिंदे ने कहा था कि गांव में दूध नही है तब औरतों को दूह लाओ का निर्देश दिया था.

तब स्थानीय जमींदार के अत्याचार से मुक्ति के लिए स्वामी सहजानंद ने रेवरा के ग्रामीणों का साथ दिया था. ताज्जुब कि जमींदारों से लड़ाई में जब पुरूषों का साहस कमजोर पड़ने लगा था तब महिलाओं ने लाठियां उठा ली थीं. महिलाएं तब तक आंदोलनरत रही थीं जब तक गांव जमींदारों के अत्याचार से मुक्त नही हुआ था. जैसा कि स्वामी सहजानंद ने जीवन संघर्ष पुस्तक में जिक्र किया है.

दरअसल, जमींदारों के जुल्मों सितम से परेशान ग्रामीण जमींदार, मजिस्ट्रेट, मंत्रियों और नेताओँ के पास दौड़ लगाते थक गए थे. लेकिन किसी ने मदद नही की थी. तब किसानों ने पंडित यदुनन्दन शर्मा का हाथ...

सोमवार को महाशिवरात्रि है. महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और पार्वती के विवाह रस्म की जाती है. पूरे देश में महाशिवरात्रि मनाई जाती है. लेकिन इससे इतर बिहार के नवादा जिले के रेवरा गांव में महाशिवरात्रि को किसान आंदोलन के अग्रणी नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है. महाशिवरात्रि के दिन स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म हुआ था. रेवरावासी मानते हैं कि स्वामीजी का जन्म नही हुआ होता तो न जानें कितने दिनों तक जमींदारों के अत्याचार से गांव की पीढ़ियां सजा भुगत रही होतीं. लिहाजा, रेवरावासियों के लिए मुक्ति दिवस माना जाता है.

दरअसल, स्थानीय जमींदार ने गांव के करीब डेढ़ हजार बीघा जमीन को नीलाम करवा लिया था. गांव के 500-600 व्यक्ति चिथरा पहने भूखों मरते थे. लड़कियां बेचीं जा रही थीं. हद तो ये कि जमींदार उससे भी आधे मूल्य जमींदारी और बकाए के रूप में वसूल रहे थे. जमींदारों के शोषण के कारण किसानों की जमीन नहीं बच पाई थी.

स्वामी सहजानन्द के ‘अपनी जीवन संघर्ष’ पुस्तक में उल्लेख है कि किसानों के छप्पर पर दो कद्दू फलते थे, तो उनमें से एक कद्दू जमींदार ले लेता था. दो बकरे में एक जमींदार का होता था. अत्याचार और जुल्म सितम का आलम यह था कि-एक बार गांव वालों से दूध की मांग की गई थी. जब जमींदार के कारिंदे ने कहा था कि गांव में दूध नही है तब औरतों को दूह लाओ का निर्देश दिया था.

तब स्थानीय जमींदार के अत्याचार से मुक्ति के लिए स्वामी सहजानंद ने रेवरा के ग्रामीणों का साथ दिया था. ताज्जुब कि जमींदारों से लड़ाई में जब पुरूषों का साहस कमजोर पड़ने लगा था तब महिलाओं ने लाठियां उठा ली थीं. महिलाएं तब तक आंदोलनरत रही थीं जब तक गांव जमींदारों के अत्याचार से मुक्त नही हुआ था. जैसा कि स्वामी सहजानंद ने जीवन संघर्ष पुस्तक में जिक्र किया है.

दरअसल, जमींदारों के जुल्मों सितम से परेशान ग्रामीण जमींदार, मजिस्ट्रेट, मंत्रियों और नेताओँ के पास दौड़ लगाते थक गए थे. लेकिन किसी ने मदद नही की थी. तब किसानों ने पंडित यदुनन्दन शर्मा का हाथ पकड़ा. स्वामीजी की सहमति से किसानों के मददगार बने थे. खास बात ये कि स्वामीजी के अलावा राहुल सांकृत्यायन, ब्रह्मचारी बेनीपुरी ने भी किसानों का पूरा साथ दिया था. स्वामीजी कहा करते थे कि किसान जब शक्तिवर्धक अन्न, मीठा गन्ना, ऊर्जा पैदा करने वाला फल-फूल पैदा कर सकता है तो वह किसान अपनों के बीच से नेता भी पैदा कर सकता है. इसका काफी असर रहा.

जमींदार के कारिंदों और पुलिस ने किसानों को हल जोतने पर प्रतिबन्ध लगा रखा था. लेकिन स्वामीजी के नेतृत्व में आन्दोलन इतना उग्र हो चुका था कि हल खुलवाने के लिए आने वाले पुलिसकर्मियों से कई लोग एक साथ लिपट जाते थे. पुलिस जब महिलाओं के साथ ज्यादती पर उतर गई तो महिलाओं ने लाठियां उठा ली थीं. लिहाजा, जमींदार को समझौते के लिए राजी होना पड़ा. तत्कालीन कलेक्टर हिटेकर ने पंडित यदुनंदन शर्मा से समझौते का प्रस्ताव भेजा. इसके तहत 150 बीघा जमीन को छोड़कर बाकी जमीन किसानों के बीच वितरित कर दी गई.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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