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क्रिकेट के भगवान का मैदान पर वो आखिरी दिन...

    • श्रीधर राव
    • Updated: 20 अप्रिल, 2017 05:39 PM
  • 20 अप्रिल, 2017 05:39 PM
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सचिन का सिर्फ एक हाथ उठता था और स्टेडियम में ऐसी शांति हो जाती कि मानो खाली पड़ा हो स्टेडियम. मैं कल्‍पना ही कर सकता हूं कि गांधी या भगवान राम को देखकर लोगों का क्‍या हाल होता होगा.

आज भी मैं अपनी किस्मत का शुक्रिया अदा करते नहीं थकता, वाकई ना जाने इस किस्मत पे कितनों ने रश्क किया होगा. जी हां मैं उन लोगों में शामिल हूं जिन्‍होंने सचिन तेंदुलकर के टेस्ट करियर के आखिरी मैच को अपनी आंखों से देखा.

मै स्टार स्पोर्टस के साथ टीवी प्रोडक्शन क्रू का हिस्सा था. वानखेड़े स्टेडियम में भीतर बैठ कर बिना पलक झपकाए सारे लोग अपना काम कर रहे थे. चौदह नवंबर को पहले दिन मुझे लगता है करीब तीन बजे के आसपास शिलिंगफोर्ड पारी का चौदहवां ओवर फेंक रहे थे. पहली गेंद में उन्होंने शिखर धवन को आउट किया और चौथी गेंद में विजय को. भारत के दोनों ओपनर आउट हो गये.

तभी अचानक वानखेड़े का जर्रा-जर्रा शोर से गूंज उठा उस शोर में कुछ ऐसा था जिसने रोम-रोम को रोमांचित कर दिया. दिल की धड़कनों में अचानक मानों एक नई उर्जा आ गई हो. दिमाग उत्साह से भर गया. हर आंखों में अजीब से चमक थी.

मुझसे रहा नहीं गया उत्सुकता वश प्रोडक्शन रूम से मेरे कदम खुद ब खुद खुले स्टेडियम की तरफ दौड़ पड़े. वानखेड़े का कोना कोना भरा हुआ था. एक एक दर्शक खड़ा था. पूरी दुनिया की मीडिया हैरान थी कि हो क्या रहा है. करीब चालीस हजार से ज्यादा लोग एक आवाज में पूरी लय के साथ चिल्ला रहे थे सचिन !! सचिन !!

हमेशा की तरह अनंत अंतरिक्ष को देखते सचिन बाहर निकले और गार्ड ऑफ ऑनर के लिए पूरी वेस्टइंडीज की टीम उनके सामने खड़ी थी. अभी तो चमत्कार को देखने का सिलसिला शुरु हुआ था और परिदृश्य में सचिन !! सचिन !! की गूंज थमने का नाम नहीं ले रही थी.

सचिन ने सोलहवें ओवर की पहली गेंद पर भाग कर एक रन लिया. भाई साहब! इस रन पर दर्शकों का शोर एक साथ ऐसे गूंजा मानो सचिन के इस शॉट से एक हजार रन निकले हों. दर्शक थे कि अपनी सीट पर बैठने को तैयार नहीं थे. अनगितन तिरंगे झंडों से लहलहा रहा था स्टेडियम.

आज भी मैं अपनी किस्मत का शुक्रिया अदा करते नहीं थकता, वाकई ना जाने इस किस्मत पे कितनों ने रश्क किया होगा. जी हां मैं उन लोगों में शामिल हूं जिन्‍होंने सचिन तेंदुलकर के टेस्ट करियर के आखिरी मैच को अपनी आंखों से देखा.

मै स्टार स्पोर्टस के साथ टीवी प्रोडक्शन क्रू का हिस्सा था. वानखेड़े स्टेडियम में भीतर बैठ कर बिना पलक झपकाए सारे लोग अपना काम कर रहे थे. चौदह नवंबर को पहले दिन मुझे लगता है करीब तीन बजे के आसपास शिलिंगफोर्ड पारी का चौदहवां ओवर फेंक रहे थे. पहली गेंद में उन्होंने शिखर धवन को आउट किया और चौथी गेंद में विजय को. भारत के दोनों ओपनर आउट हो गये.

तभी अचानक वानखेड़े का जर्रा-जर्रा शोर से गूंज उठा उस शोर में कुछ ऐसा था जिसने रोम-रोम को रोमांचित कर दिया. दिल की धड़कनों में अचानक मानों एक नई उर्जा आ गई हो. दिमाग उत्साह से भर गया. हर आंखों में अजीब से चमक थी.

मुझसे रहा नहीं गया उत्सुकता वश प्रोडक्शन रूम से मेरे कदम खुद ब खुद खुले स्टेडियम की तरफ दौड़ पड़े. वानखेड़े का कोना कोना भरा हुआ था. एक एक दर्शक खड़ा था. पूरी दुनिया की मीडिया हैरान थी कि हो क्या रहा है. करीब चालीस हजार से ज्यादा लोग एक आवाज में पूरी लय के साथ चिल्ला रहे थे सचिन !! सचिन !!

हमेशा की तरह अनंत अंतरिक्ष को देखते सचिन बाहर निकले और गार्ड ऑफ ऑनर के लिए पूरी वेस्टइंडीज की टीम उनके सामने खड़ी थी. अभी तो चमत्कार को देखने का सिलसिला शुरु हुआ था और परिदृश्य में सचिन !! सचिन !! की गूंज थमने का नाम नहीं ले रही थी.

सचिन ने सोलहवें ओवर की पहली गेंद पर भाग कर एक रन लिया. भाई साहब! इस रन पर दर्शकों का शोर एक साथ ऐसे गूंजा मानो सचिन के इस शॉट से एक हजार रन निकले हों. दर्शक थे कि अपनी सीट पर बैठने को तैयार नहीं थे. अनगितन तिरंगे झंडों से लहलहा रहा था स्टेडियम.

अठारहवें ओवर की दूसरी गेंद में सचिन के बल्ले से पहला चौका निकला. आप सिर्फ कल्पना कीजिए कि चालीस हजार से ज्यादा लोगों ने क्या किया होगा. ऐसा शोर जो आज भी कानों में शक्ति बन कर गूंजता है. वो दिन जिंदगी का पहला दिन था कि मेरे रोम रोम बिना थके लगातार नर्तन कर रहे थे.

मैंने गांधी की लोकप्रियता के किस्से पढ़े थे. मैंने भगवान राम के लिए जनता को उनके पीछे दौड़ने की कहानियां सुनी थीं. लेकिन पहली बार किसी व्यक्ति के प्रभाव का ऐसा जीवंत दर्शन कर रहा था. सचिन का सिर्फ एक हाथ उठता था और स्टेडियम में ऐसी शांति हो जाती कि मानो खाली पड़ा हो स्टेडियम. शायद वो मेरे जीवन का पहला दिन था जब मैंने भगवान को देखा, क्रिकेट का भगवान.  

अगले दिन मैच के खत्म होने के बाद सचिन अपना विदाई भाषण पढ़ रहे और स्टेडियम में खड़े दर्शकों की आंखों से आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे. सचिन बोल रहे थे पूरा समां शांत था, स्तब्ध था, वहां भावनाओं का ऐसा ज्वार था कि उस वक्त शायद अरब सागर में लहरें भी ना उठी हों.

26 मई को रीलीज हो रही उनकी डाक्यूमेंट्री फिल्म सचिन ए बिलियन्स ड्रीम के ट्रेलर में सचिन कहते हैं कि क्रिकेट खेलना मेरे लिए मंदिर जाने जैसा था. उनकी पत्नी कहती हैं उनके लिए हम सब बाद में थे पहले क्रिकेट था और इसको स्वीकार करने के सिवा हमारे पास कोई चारा नहीं था.

निश्चित तौर पर ये कहानी एक साधारण लड़के के जीते जी भगवान बनने की कहानी है, जिसका इंतजार पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रेमी बेसब्री से कर रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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