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क्या होता कल रात अगर मैं भी निर्भया बन जाती ?

    • कुदरत सहगल
    • Updated: 09 जनवरी, 2017 07:14 PM
  • 09 जनवरी, 2017 07:14 PM
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अगर मेरे साथ कोई हादसा हुआ तो मैं भी यौन हमले के खिलाफ कोई पोस्‍टर गर्ल बन जाऊंगी. जबकि सच्‍चाई यह है कि मैं निडर बिलकुल नहीं हूं. जहां तक मेरा अंदाज है, निर्भया भी नहीं थी.

बीती रात मैं बलात्‍कार का शिकार हो सकती थी. या शायद मेरे शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए जाते. और शहर के किसी अंधेरे कोने पर फेंक दिए जाते. जिसका कोई पता भी नहीं लगा पाता. फरीदाबाद से गुड़गांव के सफर में यदि कोई ट्रैफिक और प्रदूषण से बचना चाहता है तो वह 'पहाड़ी' वाला अंधेरा शॉर्टकट ले लेता है. हालांकि, इसमें रिस्‍क बहुत है.

मुझे जहां जाना था वहां पहुंचने के लिए मेरे पास 35 मिनट थे. मेरा अंदाजा था कि मैं अपनी कार में सुरक्षित हूं. मैंने सर्दी से बचने के लिए एक के ऊपर एक खूब कपड़े पहने हुए थे. किसी अनहोनी की आशंका की रत्‍तीभर भी गुंजाइश नहीं. तभी एक पिल्‍ले की चीख ने मेरा ध्‍यान खींचा. मैंने कार का शीशा नीचे किया ताकि मैं उस घायल को करीब से देख सकूं. जो शायद मुझे मदद के लिए पुकार रहा था कि तभी एक कार कुछ आगे आकर रुक गई. उस पिल्‍ले की मदद करने के बजाए मैंने पांचवे गियर में गाड़ी कर शूमाकर की तरह दौड़ा दी. अब मेरा नजर उस कार पर ही थी, जो मेरी ही स्‍पीड पर मुझसे पीछे चल रही थी.

अगर मैं उस रास्ते से गाड़ी निकाल रही थी तो मुझे इस बात का डर था कि कहीं मेरे साथ वो कांड ना हो जाए

मेरे दिल की धड़कनें उससे कहीं तेज थीं. मानो हार्टअटैक तय हो. मैं सुन्‍न पड़ रही थी. हर नैनो सेकंड में बस यही प्रार्थना कि सुरक्षित घर पहुंच जाऊं. कार में लगा शीशा अब भी उस कार को दिखा रहा था. मुझे तरह-तरह के ख्‍याल आ रहे थे और शायद आंसू भी. तभी वह कार ओझल हो गई. लेकिन तब तक मेरी हालत खराब हो गई थी.

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बीती रात मैं बलात्‍कार का शिकार हो सकती थी. या शायद मेरे शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए जाते. और शहर के किसी अंधेरे कोने पर फेंक दिए जाते. जिसका कोई पता भी नहीं लगा पाता. फरीदाबाद से गुड़गांव के सफर में यदि कोई ट्रैफिक और प्रदूषण से बचना चाहता है तो वह 'पहाड़ी' वाला अंधेरा शॉर्टकट ले लेता है. हालांकि, इसमें रिस्‍क बहुत है.

मुझे जहां जाना था वहां पहुंचने के लिए मेरे पास 35 मिनट थे. मेरा अंदाजा था कि मैं अपनी कार में सुरक्षित हूं. मैंने सर्दी से बचने के लिए एक के ऊपर एक खूब कपड़े पहने हुए थे. किसी अनहोनी की आशंका की रत्‍तीभर भी गुंजाइश नहीं. तभी एक पिल्‍ले की चीख ने मेरा ध्‍यान खींचा. मैंने कार का शीशा नीचे किया ताकि मैं उस घायल को करीब से देख सकूं. जो शायद मुझे मदद के लिए पुकार रहा था कि तभी एक कार कुछ आगे आकर रुक गई. उस पिल्‍ले की मदद करने के बजाए मैंने पांचवे गियर में गाड़ी कर शूमाकर की तरह दौड़ा दी. अब मेरा नजर उस कार पर ही थी, जो मेरी ही स्‍पीड पर मुझसे पीछे चल रही थी.

अगर मैं उस रास्ते से गाड़ी निकाल रही थी तो मुझे इस बात का डर था कि कहीं मेरे साथ वो कांड ना हो जाए

मेरे दिल की धड़कनें उससे कहीं तेज थीं. मानो हार्टअटैक तय हो. मैं सुन्‍न पड़ रही थी. हर नैनो सेकंड में बस यही प्रार्थना कि सुरक्षित घर पहुंच जाऊं. कार में लगा शीशा अब भी उस कार को दिखा रहा था. मुझे तरह-तरह के ख्‍याल आ रहे थे और शायद आंसू भी. तभी वह कार ओझल हो गई. लेकिन तब तक मेरी हालत खराब हो गई थी.

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आज जब मैं यह सब लिख रही हूं तो मुझे पता नहीं कि मेरे पीछे आ रही कार में कौन था. एक संभावित बलात्‍कारी. एक हत्‍यारा. कोई घिनौना शिकारी. या कोई ऐसा शख्‍स जो उस सूनसान सड़क पर मेरी सुरक्षा के लिए पीछे आ रहा था. शायद मैं यह कभी नहीं जान पाऊंगी.

मेरे भीतर मौजूद लड़की हर बात से डरती है. छेड़छाड़, रेप, हत्‍या से. अधिकारों से डरती है. आजादी से डरती है. कुछ चुनने में डरती है, कोई विचार रखने में डरती है, हर उस चीज से डरती है जिसमें डर की गुंजाइश है, लेकिन वह हर काम करती है. वह सारे काम जो दिनभर में उसके सामने आते हैं. तो उसके डर का इंतजार करना पड़ता है, जब तक कि कोई हादसा न हो जाए. #YesAllwomen ने उसी डर को जिया है जिसे मैंने जिया था. किसी ने कुछ सेकंड, किसी ने मिनट तो किसी ने पूरी जिंदगी. लेकिन #NotAllmen उनके समर्थन में आगे आए. #NotAllmen ने उनकी जिंदगी सुरक्षित बनाने के लिए पहल ही की. #NotAllmen ने अपने बेटों को परवरिश के समय सही दिशा दी. #NotAllmen ने अपनी बेटियों को उनके डर से लड़ने की शिक्षा दी.

मेरे साथ जो भी उसे नजरअंदाज करने के लिए कुछ सवाल ही काफी थे. जैसे-

1. मुझे उस सूनसान रास्‍ते पर जाने की जरूरत ही क्‍या थी?

2. मेरा परिवार मेरे साथ क्‍यों नहीं था?

शायद मेरे साथ दिल्‍ली में कोई न रहता हो, या मेरा छोटा बेटा जल्‍दी सोता हो या उस शाम मेरा साथ देने के लिए कोई साथी न हो, लेकिन यह जवाब कोई मायने नहीं रखते. सिर्फ सवाल ही सबसे बड़े हैं. रोज ऑफिस पहुंचने के लिए दो राज्‍यों की सीमा लांघते हुए खुद को असुरक्षित महसूस करती हूं. हर बार जब कोई गाड़ी, जिसकी नंबर प्‍लेट पर HR (हरियाणा) या P (उत्‍तर प्रदेश) लिखा हो, मुझे ओवरटेक करती है तो मैं लगभग जम ही जाती हूं. हालांकि, मैंने रास्‍ते में हद पार करने वालों को खरीखोटी सुनाना सीख लिया. और साथ ही रोज होने वाली छेड़छाड़ से निपटना भी. अपनी कैब में बैठकर मुझको घूरता वह आदमी जिसकी गाड़ी पर 'गुज्‍जर' लिखा है, या जो मेरी कार को ओवरटेक करते हुए उसे सड़क के कोने तक धकेल देता है. मानो यदि कोई महिला की कार उससे आगे निकल गई तो उसकी मर्दानगी पर बट्टा लग जाएगा. 

 हर रोज गाड़ी से ऑफिस आते समय आसुरक्षित महसूस होता है

क्‍या हो यदि किसी समय किसी दिन कोई अनहोनी हकीकत बन ही जाए... हादसे के बाद मैं भी महिला उत्‍पीड़न या यौन हमले के खिलाफ कोई पोस्‍टर गर्ल बन जाऊंगी. निर्भया की तरह. सोचिए, निर्भया-2. जबकि सच्‍चाई यह है कि मैं निडर बिलकुल नहीं हूं. जहां तक मेरा अंदाज है, निर्भया भी नहीं थी. वह अपनी जिंदगी को लेकर वैसे ही डरी होगी, जैसे कि कल रात मैं. शायद मेरे लिए भी जंतर-मंतर पर कोई बड़ा कैंडल मार्च निकाला जाता, चूंकि मैं एक नामी मीडिया कंपनी में काम करती हूं. यदि मेरे साथ अनहोनी होती तो मेरा संस्‍थान भी चुप नहीं बैठता. अद्वैता काला, इरा त्रिवेदी वाली फेमिनिस्‍ट ब्रिगेड टीवी डिबेट में जांच और महिलाओं की सेफ्टी की मांग कर रही होतीं. अबू आज़मी जैसे मुझ पर सवाल खड़े कर रहे होते कि मैं उस रास्‍ते पर क्‍या करने गई थी. ट्विटर थोड़ा और बिजी हो जाता. #Not‍AllMen और #YesAllwomen से कुछ और बेहतर हैशटैग ट्रेंड कर रहे होते. कुछ सेलिब्रिटी भारत में बेटियों के भविष्‍य को लेकर ट्वीट कर रहे होते. लेकिन मेरी आत्‍मा इनमें से किसी को माफ नहीं करती. किसी को भी नहीं. छेड़छाड़ करने वालों को सबक सिखाने वाला अक्षय कुमार का वीडियो भी मेरी अशांत आत्‍मा पर मरहम नहीं लगा पाता.

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तो, सही समय यही है कि हम बात, बहस, चर्चाएं या निंदा करना छोड़ दें. ये मजाक बहुत हो चुका. गोवा हुआ. दिल्‍ली हुआ. बेंगलुरु हुआ. कई और शहरों में हुआ. हर नए साल पर हुआ. लेकिन फिर कुछ भी नहीं हुआ.

1. सड़कों पर रोशनी करें. देश का कोना-कोना रोशन रहना चाहिए. हर कोना सीसीटीवी कैमरे की जद में होना चाहिए. अब जबकि सरकार ने संभवत: सारा कालाधन पकड़ लिया है, तो उसका यहां इस्‍तेमाल करें. न कि शिवाजी की किसी फैंसी मूर्ति लगाने पर. शायद शिवाजी भी आपकी पीठ थपथपाएंगे यदि आप महिलाओं की सुरक्षित करेंगे.

2. हर कोने पर पुलिस वैन हो. महिला स्‍टाफ रखें. या और बढ़ाएं. शहरों में पुलिस की कोई कमी न हो.

3. सभी टैक्‍सी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में ट्रैकिंग डिवाइस और सेफ्टीगार्ड जरूरी हों. यह ठीक से काम करे, इसकी निगरानी महिला स्‍टाफ से कराई जाए.

4. यदि मैं दिल्‍ली की शूटिंग रेंज के पास हूं और बॉर्डर क्रॉस करने वाली हूं और मैंने 100 नंबर डायल कर दिया, तो दिल्‍ली पुलिस को मुझे मदद से इनकार नहीं करना चाहिए. NCR पुलिस को मुझसे सवाल-जवाब करने के बजाए पहले मौके पर पहुंचना चाहिए. NCR बॉर्डर के मसले को बाद में भी सुलझाया जा सकता है.

5. टेक्‍नोलॉजी का इस्‍तेमाल करें. हर गाड़ी में एक बजर लगवाएं. जिससे इमरजेंसी होने पर पुलिस से संपर्क किया जा सके. ये आम हॉर्न की तरह न हो, प्‍लीज.

6. महिलाओं को हथियार रखने की आजादी दो. यदि मेट्रो में चाकू को इजाजत मिल सकती है, तो उन्‍हें लाइसेंसी पिस्‍तौल रखने की छूट भी मिलनी चाहिए. इसका दुरुपयोग रोकने के लिए हम गाइडलाइन बना सकते हैं. यदि पुरुष अपने अस्तित्‍व का दुरुपयोग कर सकते हैं तो महिला-सुरक्षा से जुड़े मामलों पर बहस हम कभी और कर लेंगे.

7. सभी स्‍कूल, कॉलेज, ट्रेनिंग सेंटर, कॉर्पोरेट्स में आवश्‍यक रूप से पुलिस/आर्मी अफसर आत्‍मरक्षा का कोर्स कराएं. इसे ग्रेडिंग सिस्‍टम का हिस्‍सा बना दें. ताकि कोई विकल्‍प ही न बचें. लोग इसमें भी अव्‍वल आने के लिए स्‍पर्धा करें.

8. भीड़ में दिख रहे पुरुषों की पहचान की जांच करना शुरू करें. भले वह वोटर आईडी या किसी और तरह के कार्ड से हो. वैसे ही जैसे कि किसी वीआईपी के आने पर शहरों में की जाती है. यह सिखाया जाना चाहिए कि पुरुषों के समूह को निरंतर जांचते हुए कैसे नियंत्रित रखा जा सकता है. किसी भी सार्वजनिक जगह पर, या पब्लिक ट्रांसपोर्ट के एंट्री पाइंट पर. आईडी कार्ड रखना आवश्‍यक कर देना चाहिए.

9. जैसे कि कोर्ट या सरकारी इमारतों में होता है, आने-जाने वालों के आईडी कार्ड स्‍कैन होने चाहिए. और इसकी एक प्रतिलिपि रखनी चाहिए.

10. छेड़छाड़ को गैर-जमानती अपराध बनाना चाहिए. यदि जुर्म साबित हो जाए तो कठोर सजा और जुर्माना दोनों होना चाहिए. यह शायद रेप को भी रोकेगा. रेप के मामलों की सुनवाई फास्‍ट-ट्रैक कोर्ट में होनी चाहिए. और शायद मृत्‍युदंड ही पुरुषों को महिलाओं पर हाथ डालने से रोकेगा.

इस बहस में जाए बिना कि अपने बेटों को कैसी परवरिश दें, मैं कहना चाहती हूं कि इस देश में पैदा होने वाला कोई लड़का किसी लड़की पर हाथ डालने की जुर्रत न करे.

मैं एक और निर्भया नहीं बनना चाहती. और न ही मैं अपनी बाकी जिंदगी डर में गुजारना चाहती हूं. कोई शब्‍द मुझे राहत नहीं दे सकता. महिला-सुरक्षा की दिशा में किए गए काम के अलावा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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