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आख़िर तय कौन करेगा कि महिला कैसे कपड़े पहने?

    • प्रियंका ओम
    • Updated: 09 जनवरी, 2017 02:11 PM
  • 09 जनवरी, 2017 02:11 PM
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अगर वाक़ई कपड़े बलात्कार की वजह हैं तो दो माह की बच्ची और साथ ही साठ साल की बुजुर्ग महिला को देखकर उत्तेजित होने का क्‍या कारण है?

देश ये किस काल से गुज़र रहा है. एक ओर जहाँ हम नारी सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर पुरुष अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर नारी की अस्मिता तार-तार कर रहा है. जब भी कहीं ऐसी घटना होती है सोशल मीडिया पर एक जंग छिड़ जाता है. एक बड़ा तबक़ा समानता के अधिकार के नाम पर शराब सिगरेट और कम कपड़ों की हिमायत करता है तो दूसरा तबक़ा इसे पतन का रास्ता मानता है. सवाल तो ये है कि आख़िर तय कौन करेगा कि महिला कैसे कपड़े पहने? या कैसा आचरण करे?

क्या वो जो शाम होते ही शराब और शबाब में डूब जाते हैं या वो जो सोशल मीडिया पर नारी सशक्तिकरण को समर्थन देकर महिलाओं का साथ पाना चाहते हैं. लेकिन अगर वाक़ई कपड़े बलात्कार की वजह हैं तो दो माह की बच्ची निश्चित ही दोषी है. क्योंकि उसे निर्वस्त्र देखकर ही अपनी जेब में उत्तेजना का समान लेकर घूमने वाले ख़ुद को रोक नहीं पाते हैं. और साठ साल की बुज़ुर्ग महिला के ढीले अंगो को देखकर भी वो उत्तेजित हो जाते हैं.

 एक देश जहां लड़की ना तो गर्भ में सुरक्षित है और ना ही गर्भ के बाहर

पुरुष महिला के स्तन देखकर क्यों उत्तेजित होता है? स्तन तो उनके पास भी है और उसमें भी उत्तेजना होती है. फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है की महिला के स्तन ज़रा उभरे हुए हैं क्यूँकि ईश्वर ने बच्चे को दूध पिलाने के लिए महिला को चुना है.

ये भी पढ़ें- कैशलेस सोसाइटी के साथ 'शेमलेस' समाज भी

रोज़ रोज़ बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से समाज में डर की स्थिति बनती...

देश ये किस काल से गुज़र रहा है. एक ओर जहाँ हम नारी सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर पुरुष अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर नारी की अस्मिता तार-तार कर रहा है. जब भी कहीं ऐसी घटना होती है सोशल मीडिया पर एक जंग छिड़ जाता है. एक बड़ा तबक़ा समानता के अधिकार के नाम पर शराब सिगरेट और कम कपड़ों की हिमायत करता है तो दूसरा तबक़ा इसे पतन का रास्ता मानता है. सवाल तो ये है कि आख़िर तय कौन करेगा कि महिला कैसे कपड़े पहने? या कैसा आचरण करे?

क्या वो जो शाम होते ही शराब और शबाब में डूब जाते हैं या वो जो सोशल मीडिया पर नारी सशक्तिकरण को समर्थन देकर महिलाओं का साथ पाना चाहते हैं. लेकिन अगर वाक़ई कपड़े बलात्कार की वजह हैं तो दो माह की बच्ची निश्चित ही दोषी है. क्योंकि उसे निर्वस्त्र देखकर ही अपनी जेब में उत्तेजना का समान लेकर घूमने वाले ख़ुद को रोक नहीं पाते हैं. और साठ साल की बुज़ुर्ग महिला के ढीले अंगो को देखकर भी वो उत्तेजित हो जाते हैं.

 एक देश जहां लड़की ना तो गर्भ में सुरक्षित है और ना ही गर्भ के बाहर

पुरुष महिला के स्तन देखकर क्यों उत्तेजित होता है? स्तन तो उनके पास भी है और उसमें भी उत्तेजना होती है. फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है की महिला के स्तन ज़रा उभरे हुए हैं क्यूँकि ईश्वर ने बच्चे को दूध पिलाने के लिए महिला को चुना है.

ये भी पढ़ें- कैशलेस सोसाइटी के साथ 'शेमलेस' समाज भी

रोज़ रोज़ बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से समाज में डर की स्थिति बनती जा रही है. माएँ बेटी को जन्म देने से डर रही हैं और महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलना चाहती हैं. भारत में हर पंद्रह मिनट में बलात्कार हो रहा है. ध्यान रहे ज़्यादातर की शिकायत दर्ज भी नहीं की जाती. आख़िर बलात्कार के कारण क्या है? अगर हाल के कुछ वर्षों के आँकड़ों को देखें तो बलात्कार की घटनाएँ कम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं.

लेकिन सरकार चुप है. चुप क्यों है? क्योंकि सरकार चलाने वाले युगपुरुष जात-पात और धर्म की राजनीति में व्यस्त है. विदेश भ्रमण में व्यस्त है. सेल्फ़ी बाज़ी और जुमले बाज़ी में व्यस्त है. कपड़े बदल-बदल कर भाषण देने में व्यस्त है. सरकार रातों रात नोट बंद करवा सकती है लेकिन क़ानून में संशोधन नहीं कर सकती क्योंकि इससे सरकार का कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं. सरकार विदेशी पहनावा पहन विदेश भ्रमण करती है विदेशी क़ानून से क्यों नहीं कुछ सीखती है. हर दूसरे देश में बलात्कार की सज़ा है सिर्फ़ भारत में बलात्कारी नाबालिग़ है.

इस वक़्त देश को एक ऐसे युग पुरुष की ज़रूरत है जो वाक़ई में राम राज्य की स्थापना कर सके. जहाँ देश की बहु-बेटियाँ स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकें.

ऐसा नहीं है है इस देश का क़ानून कमज़ोर है. बल्कि इस देश कि क़ानून में वेश्या के साथ भी ज़बरदस्ती करने पर सज़ा पर प्रावधान है, लेकिन हद तो ये है कि ये बलात्कारी नाबालिग़ है इसलिए सज़ा का हक़दार नहीं. यक़ीन मानिए यह बात मुझे बहुत हास्यपद लगती है कि जो बलात्कार कर सकता है वो नाबालिग़ कैसे ???

शुरू से ही बेटी को घर की नौकरानी और बेटे को राजा माना गया है.

भारतीय समाज में शुरू से ही स्त्री को नीची जाति का माना गया है. शुरू से ही बेटी को घर की नौकरानी और बेटे को राजा माना गया है. बलात्कार एक तरह से स्त्री को नीचा दिखाने और कमज़ोर कहने का तरीक़ा है. प्रकृतिक रूप से औरत को कमज़ोर और पुरुष को बलिष्ठ कहा गया है. अब यह एक मानसिकता बन गई है जिसके कारण स्त्री पुरुष की ज़ोर ज़बरदस्ती का विरोध शारीरिक रूप से नहीं कर पाती है और हार मान लेती है.

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इस देश की स्वर्णिम सभ्यता और संस्कृति का ही असर है जो कला के क्षेत्र में औरत को शरीर के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. जिस देश में एक भड़काऊ गीत के बल पर फ़िल्म हिट होती हो, जिस देश में चिकनी-चमेली और लैला तेरी ले लेगी जैसे गीत पर लगातार तालियां पीटी जाती हों वहाँ कसी हुई ब्लाउस से उभरा हुआ स्तन और झाँकती हुई कमर पेट देखकर पुरुष क्यों ना उत्तेजित हो.

लेकिन आख़िर कब तक चलेगा ये? कब तक हिंदी सिनेमा में स्त्री को शरीर को आइटम बनाकर प्रस्तुत किया जाएगा. कब तक हिंदी सिनेमा में बलात्कार कर बदला लेने के सीन फ़िल्माकर भड़काया जाएगा? कब तक इस देश में बलात्कारी नाबालिग़ रहेंगे ? कब तक सभ्यता और संस्कृति के नाम पर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलकर चलने वाली स्त्री की अस्मिता तारतार होती रहेगी. कब तक आगे बढ़ने वाली स्त्री के पैरों में डर की बेड़ियाँ जकड़ी जाएंगी.

देश की समूची स्त्री जाति को एक जुट होकर देश में क़ानून के बदलाव की माँग करनी चाहिए. हिंदी फ़िल्म में स्त्री द्वारा भड़काऊ गीत और नृत्य बंद करवाने की माँग करनी चाहिए. बलात्कारी की सज़ा सिर्फ़ फांसी होनी चाहिए.

अंत में एक संदेश देश की समूची स्त्री जाति के लिए. अपनी इज़्ज़त अपने हाथ होती है. जिस तरह चोरी हो जाने के डर से सोना बैंक के लॉकर में संभाल रखा जाता है ठीक उसी तरह अपनी इज़्ज़त संभाल कर रखें. कम कपड़े पहनने से और आधी रात तक लड़कों के साथ बैठ कर शराब पीने से कोई मॉडर्न नहीं कहलाता.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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