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पेड़ के नीचे बच्चे का जन्म डिजिटल इंडिया का गर्भपात है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 मई, 2017 06:31 PM
  • 21 मई, 2017 06:31 PM
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डिजिटल इंडिया के इस दौर में एक गर्भवती महिला को अस्पताल परिसर में मौजूद पेड़ के नीचे प्रसव पीढ़ा से गुज़रते हुए बच्चे को जन्म देना पड़ा.क्योंकि अस्पताल के पास बेड नहीं थी.

विकासशील से विकसित की श्रेणी में आना सदैव ही एक देश के लिए गर्व का पर्याय रहा है. बात जब भारत जैसे बड़े देश की हो तो ये क्रम और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. आज हमारे प्रधानमंत्री भारत को डिजिटल कर कैशलेस करने की बात कर रहे हैं. सरकार द्वारा रोज़ ही हमें तकनीक के नए आयामों से अवगत कराया जा रहा है. लोग पूरी सुख सुविधा से रहें इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा तरह - तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं. तरह - तरह की समितियों और कमेटियों का गठन कर सरकार द्वारा ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि देश में रहने वाले लोगों को किसी भी तरह की कोई तकलीफ न हो.

भारत जैसे विशाल लोक तांत्रिक देश के एक आदर्श नागरिक और इंटरनेट के एक पाठक के तौर पर ऊपर इंगित बात मुझे खुश करने के लिए काफी है. मगर जैसे ही मैं जमीन पर आकर जमीनी हकीकत को देखता हूँ तो मेरा दुःख कई गुना बढ़ जाता है. मुझे लगता है एक आम आदमी के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही सभी योजनाएं बस एक छलावा हैं. जिनका उदय और अस्त केवल बंद फाइलों में होता है. मैं प्रायः यही अनुभव करता हूँ कि सुख सुविधांए लोगों को मिलती तो हैं लेकिन सिर्फ कागजों पर.

इस लेख को शुरू करने के लिए इतनी भूमिका ठीक है. मैं जानता हूँ कि इंटरनेट का पाठक नेट पर लेख पढ़ने के बारे में बड़ा सेलेक्टिव होता है. उसके पास समय भी कम ही रहता है. आज हम जिस मुद्दे पर बात कर रहे हैं वो एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है. जहाँ एक गर्भवती महिला को अस्पताल परिसर में मौजूद पेड़ के नीचे प्रसव पीढ़ा से गुज़रते हुए बच्चे को जन्म देना पड़ा.

गर्भवती महिला ने पेड़ के नीचे दिया बच्चे को जन्म

मामला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर का है. प्रसव पीड़ा से तड़पती एक विधवा महिला मुस्कान खान को पड़ोसियों द्वारा जिला अस्पताल लाया गया. मगर डॉक्टरों ने उसे बेड देने से मना कर दिया. मुस्कान की...

विकासशील से विकसित की श्रेणी में आना सदैव ही एक देश के लिए गर्व का पर्याय रहा है. बात जब भारत जैसे बड़े देश की हो तो ये क्रम और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. आज हमारे प्रधानमंत्री भारत को डिजिटल कर कैशलेस करने की बात कर रहे हैं. सरकार द्वारा रोज़ ही हमें तकनीक के नए आयामों से अवगत कराया जा रहा है. लोग पूरी सुख सुविधा से रहें इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा तरह - तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं. तरह - तरह की समितियों और कमेटियों का गठन कर सरकार द्वारा ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि देश में रहने वाले लोगों को किसी भी तरह की कोई तकलीफ न हो.

भारत जैसे विशाल लोक तांत्रिक देश के एक आदर्श नागरिक और इंटरनेट के एक पाठक के तौर पर ऊपर इंगित बात मुझे खुश करने के लिए काफी है. मगर जैसे ही मैं जमीन पर आकर जमीनी हकीकत को देखता हूँ तो मेरा दुःख कई गुना बढ़ जाता है. मुझे लगता है एक आम आदमी के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही सभी योजनाएं बस एक छलावा हैं. जिनका उदय और अस्त केवल बंद फाइलों में होता है. मैं प्रायः यही अनुभव करता हूँ कि सुख सुविधांए लोगों को मिलती तो हैं लेकिन सिर्फ कागजों पर.

इस लेख को शुरू करने के लिए इतनी भूमिका ठीक है. मैं जानता हूँ कि इंटरनेट का पाठक नेट पर लेख पढ़ने के बारे में बड़ा सेलेक्टिव होता है. उसके पास समय भी कम ही रहता है. आज हम जिस मुद्दे पर बात कर रहे हैं वो एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है. जहाँ एक गर्भवती महिला को अस्पताल परिसर में मौजूद पेड़ के नीचे प्रसव पीढ़ा से गुज़रते हुए बच्चे को जन्म देना पड़ा.

गर्भवती महिला ने पेड़ के नीचे दिया बच्चे को जन्म

मामला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर का है. प्रसव पीड़ा से तड़पती एक विधवा महिला मुस्कान खान को पड़ोसियों द्वारा जिला अस्पताल लाया गया. मगर डॉक्टरों ने उसे बेड देने से मना कर दिया. मुस्कान की हालत नाजुक देख पड़ोसियों द्वारा उसे अस्पताल परिसर में मौजूद पेड़ के नीचे लिटाया गया जहाँ दर्द से तड़पती महिला ने बच्चे को जन्म दिया. बताया जा रहा है कि महिला और नवजात बच्चा पूरी रात उसी पेड़ के नीचे रहे और अस्पताल में मौजूद किसी भी डॉक्टर या अधिकारी ने उनकी कोई सुध नहीं ली. स्थानीय लोगों के आक्रोश और मामले को मीडिया में स्थान मिलने के बाद अस्पताल प्रशासन की नींद खुली और उन्होंने आनन फानन में महिला और बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराया तथा नर्स एवं महिला रोग विभाग की मुखिया डॉक्टर रमा घोष को निलंबित कर दिया.

उपरोक्त खबर के बाद एक बात तो शीशे की तरह साफ है कि सरकार कोई भी हो मगर उसे इस लचर को चुस्त दुरुस्त करने में एक लम्बा वक्त लगेगा. सरकार इस बात का जितनी जल्दी संज्ञान ले ले उतना अच्छा है कि बड़ी - बड़ी बातें और कागजों पर कार्यवाही करने से कोई फायदा नहीं. बात तब है जब सरकार जमीन पर आकर जमीन से जुड़े लोगों के लिए वास्तव में कुछ करे. ऐसा न हुआ तो फिर होगा यही कि सरकार इसी तरह बड़ी बड़ी बातें करती रहेगी मगर हकीकत से कोसों दूर रहेगी. केंद्र के अलावा राज्य सरकारों को ये बात सोचनी चाहिए कि पूर्ण और विकसित भारत की कल्पना तब चरितार्थ होगी जब भारत के प्रत्येक नागरिक को वो सभी अधिकार मिल सकें. वो अधिकार जिसका वर्णन उसके लिए संविधान में इंगित है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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