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...तो इसलिए पोर्न को ना माने सेक्स एजुकेशन का हिस्सा

    • ऑनलाइन एडिक्ट
    • Updated: 13 जुलाई, 2017 06:57 PM
  • 13 जुलाई, 2017 06:57 PM
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एक खतरनाक ट्रेंड अब लगातार लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है. पोर्न को सेक्स एजुकेशन मान लेने का ट्रेंड.. ये क्यों इतना खतरनाक है चलिए बात करते हैं इसके बारे में..

सेक्स एजुकेशन... ये वो शब्द है जिसे भारत में इतनी अहमियत नहीं मिलती. पोर्न... ये वो शब्द है जिसे भारत में इतनी तवज्जो दी जाती है कि इसके बारे में बात करने से भी लोग कतराते हैं और अगर खुदा ना खास्ता कहीं STD की बात हो जाए तब तो लोगों की नाक-भौं सब चढ़ जाती है. STD जानते हैं ना आप? सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिसीज.

अगर आप पोर्नहब जैसी किसी वेबसाइट के आंकड़ों को और सर्वे के नतीजों को देखेंगे तो पाएंगे कि अधिकतर टीनएजर पोर्न देखते हैं. ये सिर्फ भारत नहीं बल्कि अमेरिका, हॉन्ग कॉन्ग आदि सभी देशों के नतीजे हैं. अब आप कहेंगे कि वो उम्र ही ऐसी है, लेकिन यही वो उम्र भी है जिसमें सबसे ज्यादा STD होने का खतरा भी होता है. सेक्श एजुकेशन की कमी हमारे देश में ऐसी है कि लोग पोर्न को इसका एक अच्छा माध्यम समझने लगे हैं.

सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि ये हालत भी हर देश में है. आज एक 21 साल का लड़का या लड़की सेक्स के बारे में जानकारी पाने के लिए या तो गूगल करता है या फिर पोर्न देखता है. हो सकता है ये पूरा तरह से गलत हो, लेकिन कम से कम आंकड़े तो यही कह रहे हैं. 2015 के टाइम्स ऑफ इंडिया के एक सर्वे के अनुसार 400 स्टूडेंट से पूछा गया पोर्न के बारे में तो उनमें से 70% लड़कों ने कहा कि 10 साल की उम्र तक उन्होंने पोर्न देख लिया था. और 93% का ये मानना था कि पोर्न एडिक्टिव है. 86% का कहना था कि पोर्न देखने के बाद असल में सेक्शुअल एक्टिविटी होने की गुंजाइश बढ़ जाती है.

तो क्यों देख रहे हैं ये लोग पोर्न, कुछ का उत्तर ये भी था कि पोर्न देखने से उन्हें कई चीजों की जानकारी मिलती है. अगर देखा जाए तो ये एकदम गलत है. इसे सेक्स एजुकेशन की कमी बोला जा सकता है. लेकिन क्या पोर्न को सेक्स एजुकेशन मानना सही है? इसका जवाब है नहीं.. पोर्न कई कारणों से सेक्स एजुकेशन नहीं माना जा सकता...

सेक्स एजुकेशन... ये वो शब्द है जिसे भारत में इतनी अहमियत नहीं मिलती. पोर्न... ये वो शब्द है जिसे भारत में इतनी तवज्जो दी जाती है कि इसके बारे में बात करने से भी लोग कतराते हैं और अगर खुदा ना खास्ता कहीं STD की बात हो जाए तब तो लोगों की नाक-भौं सब चढ़ जाती है. STD जानते हैं ना आप? सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिसीज.

अगर आप पोर्नहब जैसी किसी वेबसाइट के आंकड़ों को और सर्वे के नतीजों को देखेंगे तो पाएंगे कि अधिकतर टीनएजर पोर्न देखते हैं. ये सिर्फ भारत नहीं बल्कि अमेरिका, हॉन्ग कॉन्ग आदि सभी देशों के नतीजे हैं. अब आप कहेंगे कि वो उम्र ही ऐसी है, लेकिन यही वो उम्र भी है जिसमें सबसे ज्यादा STD होने का खतरा भी होता है. सेक्श एजुकेशन की कमी हमारे देश में ऐसी है कि लोग पोर्न को इसका एक अच्छा माध्यम समझने लगे हैं.

सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि ये हालत भी हर देश में है. आज एक 21 साल का लड़का या लड़की सेक्स के बारे में जानकारी पाने के लिए या तो गूगल करता है या फिर पोर्न देखता है. हो सकता है ये पूरा तरह से गलत हो, लेकिन कम से कम आंकड़े तो यही कह रहे हैं. 2015 के टाइम्स ऑफ इंडिया के एक सर्वे के अनुसार 400 स्टूडेंट से पूछा गया पोर्न के बारे में तो उनमें से 70% लड़कों ने कहा कि 10 साल की उम्र तक उन्होंने पोर्न देख लिया था. और 93% का ये मानना था कि पोर्न एडिक्टिव है. 86% का कहना था कि पोर्न देखने के बाद असल में सेक्शुअल एक्टिविटी होने की गुंजाइश बढ़ जाती है.

तो क्यों देख रहे हैं ये लोग पोर्न, कुछ का उत्तर ये भी था कि पोर्न देखने से उन्हें कई चीजों की जानकारी मिलती है. अगर देखा जाए तो ये एकदम गलत है. इसे सेक्स एजुकेशन की कमी बोला जा सकता है. लेकिन क्या पोर्न को सेक्स एजुकेशन मानना सही है? इसका जवाब है नहीं.. पोर्न कई कारणों से सेक्स एजुकेशन नहीं माना जा सकता है.

1. ये सब सच नहीं होता...

पोर्न को सेक्स एजुकेशन के लिए सही ना मानने का पहला कारण होता है कि इसमें सब कुछ असली नहीं होता. फिल्मी होता है और कई इफेक्ट भी डाले जाते हैं. ऐसे में कोई फिक्शन चीज किसी भी तरह की एजुकेशन का हिस्सा कैसे हो सकती है?

2. इससे बढ़ सकती है हिंसा...

सेक्शुअल एब्यूज का एक कारण पोर्न भी हो सकता है. ऐसे कई वीडियोज मौजूद हैं इंटरनेट पर जिन्हें देखकर हिंसक प्रवृति बढ़ सकती है. पोर्न वीडियोज में कई बार ऐसी चीजें दिखाई जाती हैं जिसे असलियत में करना लोगों के लिए सही ना होगा.

3. बॉडी शेमिंग...

पोर्न वीडियो में जो दिखाया जाता है वो कस्टमाइज्ड होता है. चाहें वो कोई सीन हो या फिर किसी एक्टर की बॉडी. यूके में 200 से ज्यादा लड़कियों ने लीबियाप्लास्टी (वैजाइना की प्लास्टिक सर्जरी) को चुना. इनकी उम्र 18 साल से कम थी. ये आंकड़ा 2015-16 के बीच का है. पोर्न को अगर सेक्स एजुकेशन की तरह देखा जाएगा तो बॉडी शेमिंग और इस तरह की घटनाएं ज्यादा बढ़ेंगी.

4. एक्ट...

पोर्न सिर्फ एक एक्ट होता है और उसे अगर असलियत में लागू करने की कोशिश की जाए तो ये सही नहीं होगा. चाहें वो कोई पोजीशन हो या फिर किसी तरह की आवाज उसे किसी भी हालत में सेक्स एजुकेशन तो नहीं कहा जा सकता.

ये सभी आंकड़े ये बताने के लिए काफी हैं कि पोर्न को किसी भी हालत में सेक्स एजुकेशन के लिए तो नहीं गिना जा सकता है. एक और अहम कारण ये भी है कि पोर्न में STD के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती. ये नहीं दिखाया जाता कि सफाई और प्रोटेक्शन कितना जरूरी है. अगर इतनी अहम बातों को नहीं बताया जाता जो लोगों की जिंदगी खतरे में डाल सकती हैं तो भी आखिर कैसे पोर्न को सेक्स एजुकेशन के लिए सही माना जा सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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