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समाज

क्या इन किसानों की भी कोई सुन रहा है

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 26 मार्च, 2017 01:21 PM
  • 26 मार्च, 2017 01:21 PM
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आधे तन पर नीली रंग की लुंगी लपेटे और नरकंकालों के साथ तमिलनाडु के करीब 100 किसान कौतुहल का विषय बने हुए हैं. तमिलनाडु में किसानों की लगातार हो रही मौतों से त्रस्त इन किसान अपनी मांग लेकर दिल्ली आये हैं

पिछले कई दिनों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर आधे तन पर नीली रंग की लुंगी लपेटे और नरकंकालों के साथ तमिलनाडु के करीब 100 किसान कौतुहल का विषय बने हुए हैं. तमिलनाडु में किसानों की लगातार हो रही मौतों से त्रस्त इन किसान अपनी मांग लेकर दिल्ली आये हैं, साथ ही किसान अपने साथ उन किसानों के नरमुंड को भी ले आएं हैं जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में कर्ज तले दबे होने के कारण आत्महत्या कर ली है.

जहाँ एक तरफ तमिलनाडु के किसान अपने अस्तित्व बचाने की जद्दोजेहद में हैं तो वहीं तमिलनाडु की सत्ताधारी सरकार अपने ही झगड़ों से परेशान है. ऐसे में अपनी मांगों को लेकर किसानों ने दिल्ली की रह पकड़नी ही बेहतर समझी. हालाँकि, हाल ही में तमिलानाडु के नए सीएम ई पलानीसामी ने किसानों के लिए 2 हजार 247 करोड़ रुपए का सूखा राहत पैकेज देने की घोषणा की है, मगर किसान इसे नाकाफी ही मान रहे हैं.

क्यों बदहाल है तमिलनाडु के किसान..

नार्थ ईस्ट मानसून जिसका भारत के अन्य भाग में उतना महत्व नहीं माना जाता मगर तमिलनाडु में इसका खासा महत्व है. तमिलनाडु में इस बार अक्टूबर से दिसम्बर तक हुई बारिश 140 वर्षों के बाद सबसे कम रिकॉर्ड की गयी, पिछली बार इतनी कम वर्षा 1876 में रिकॉर्ड की गयी थी. तमिलनाडु के सभी 32 जिलों को आधिकारिक रूप से सूखा ग्रस्त घोषित कर दिया गया है. किसानों के एक संगठन के अनुसार अक्टूबर 2016 से अब तक 250 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है यानि औसतन रोजाना दो किसान मौत को गले लगा रहे हैं. केवल कावेरी डेल्टा क्षेत्र में ही 80000 एकड़ में लगी फसलें बर्बाद हो गयी है.

ऐसा नहीं है कि तमिलनाडु में किसानों के ऐसे हालात इसी साल हुए हों, 2015 में भी तमिलनाडु में 600 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की थी. NCRB के आकड़ें बताते हैं कि 2011 से 2015 तक 5 वर्षों में तमिलनाडु में 2...

पिछले कई दिनों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर आधे तन पर नीली रंग की लुंगी लपेटे और नरकंकालों के साथ तमिलनाडु के करीब 100 किसान कौतुहल का विषय बने हुए हैं. तमिलनाडु में किसानों की लगातार हो रही मौतों से त्रस्त इन किसान अपनी मांग लेकर दिल्ली आये हैं, साथ ही किसान अपने साथ उन किसानों के नरमुंड को भी ले आएं हैं जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में कर्ज तले दबे होने के कारण आत्महत्या कर ली है.

जहाँ एक तरफ तमिलनाडु के किसान अपने अस्तित्व बचाने की जद्दोजेहद में हैं तो वहीं तमिलनाडु की सत्ताधारी सरकार अपने ही झगड़ों से परेशान है. ऐसे में अपनी मांगों को लेकर किसानों ने दिल्ली की रह पकड़नी ही बेहतर समझी. हालाँकि, हाल ही में तमिलानाडु के नए सीएम ई पलानीसामी ने किसानों के लिए 2 हजार 247 करोड़ रुपए का सूखा राहत पैकेज देने की घोषणा की है, मगर किसान इसे नाकाफी ही मान रहे हैं.

क्यों बदहाल है तमिलनाडु के किसान..

नार्थ ईस्ट मानसून जिसका भारत के अन्य भाग में उतना महत्व नहीं माना जाता मगर तमिलनाडु में इसका खासा महत्व है. तमिलनाडु में इस बार अक्टूबर से दिसम्बर तक हुई बारिश 140 वर्षों के बाद सबसे कम रिकॉर्ड की गयी, पिछली बार इतनी कम वर्षा 1876 में रिकॉर्ड की गयी थी. तमिलनाडु के सभी 32 जिलों को आधिकारिक रूप से सूखा ग्रस्त घोषित कर दिया गया है. किसानों के एक संगठन के अनुसार अक्टूबर 2016 से अब तक 250 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है यानि औसतन रोजाना दो किसान मौत को गले लगा रहे हैं. केवल कावेरी डेल्टा क्षेत्र में ही 80000 एकड़ में लगी फसलें बर्बाद हो गयी है.

ऐसा नहीं है कि तमिलनाडु में किसानों के ऐसे हालात इसी साल हुए हों, 2015 में भी तमिलनाडु में 600 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की थी. NCRB के आकड़ें बताते हैं कि 2011 से 2015 तक 5 वर्षों में तमिलनाडु में 2 हज़ार 728 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. हालाँकि, देश के बाकि राज्यों के तुलना में तमिलनाडु के किसानों में आत्महत्या के कम मामले देखें गए हैं.

देश में केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारें किसानों के हित की तमाम बातें करती नजर आती है, मगर आकड़ें बताते हैं कि देश में किसानों की स्थिति दिनों-दिन ख़राब ही होती जा रही है. देश के कई हिस्से किसानों के लिए कब्रगाह साबित हो रहे हैं. जहाँ एक ओर देश में फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी हो रही है तो वहीं इसका दुखद पहलु देश में किसानों की संख्या में कमी के रूप में भी देखा जा रहा है. सरकारें देश भर में किसानों को देने के लिए भारी भरकम राशि की भी घोषणा करती रहती और चुनावों का उचित मौका देख कर इनकी माफ़ी भी कर देती हैं. मगर बड़ा सवाल है कि क्या इन किसानों की मूल समस्या के निवारण की तरफ कोई ठोस कदम उठाये गए हैं? क्या केवल लोन के रूप में राशि उपलब्ध कराना ही काफी है? लगता नहीं है, आज जरुरत है तो उन कारणों की तलाश की जो इन किसानों को कर्ज लेने को मजबूर कर रहे हैं और बाद में इसी कर्ज के तले दब कर अपनी जान दे रहे हैं. जब तक उन कारणों को दूर करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाएंगे तब तक हमारा अन्नदाता इसी तरह निराश हताश होता रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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