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कुछ फैसले ऐसे भी होते हैं... शताब्दी ट्रेन का मालिक बना किसान!

    • मोहित चतुर्वेदी
    • Updated: 16 मार्च, 2017 10:00 PM
  • 16 मार्च, 2017 10:00 PM
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कई बार ऐसे चौंकाने वाले फैसले सामने आते हैं जिस पर विश्वास करने में कुछ वक्त लगता है. ऐसा ही एक मामला आया कि शताब्दी ट्रेन एक किसान को दे दी गई.

कई बार ऐसे चौंकाने वाले फैसले सामने आते हैं जिस पर विश्वास करने में कुछ वक्त लगता है. ऐसा ही एक मामला आया कि एक घंटे में करीब 80 किलोमीटर दौड़ने वाली स्वर्ण शताब्दी ट्रेन एक किसान को दे दी गई. सुनने में आपको भी हैरानी होगी. लेकिन सच्चाई यही है. किसान समपूरण सिंह रेलवे से जुड़े एक मामले को कोर्ट ले गए, और कोर्ट ने यह ट्रेन ही उनके नाम कर दी.

लुधियाना में रेलवे द्वारा जमीन अधिग्रहण का मुआवजा मांगने के लिए एक किसान को अदालत जाने के लिए मज़बूर होना पड़ा. लेकिन जब भारतीय रेलवे ने अदालत के आदेश को भी नहीं माना तो दूसरी सुनवाई में अदालत ने अमृतसर से नई दिल्ली के बीच चलने वाली स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस को ही किसान के नाम कर दिया और उसे ट्रेन को घर ले जाने की इजाजत दे दी. अदालत ने स्टेशन मास्टर के दफ़्तर को भी जब्त करने के आदेश दिए.

पूरा मामला

लुधियाना-चंडीगढ़ रेलवे ट्रेक के लिए समराला के पास गांव कटाणा में किसान संपूर्ण सिंह की जमीन भी रेलवे ने ले ली थी. किसान समपूरण सिंह का मुआवजा 1.47 करोड़ रुपए बनता था, लेकिन रेलवे ने उसे सिर्फ 42 लाख रु. ही दिए. आखिर संपूर्ण सिंह ने लुधियाना जिला कोर्ट में एडीशनल जिला एवं सेशन जज की अदालत में गुहार (एक्जिक्युशन) लगाई.

अदालत के इस फैसले की वजह से ये ट्रेन लुधियाना जिले के कटाना गांव के रहने वाले किसान समपूरण सिंह की हो गई. लेकिन, जैसा कि होना था किसान इस ट्रेन को अपने घर नहीं ले जा सका. ट्रेन पर अपना कब्जा लेने के लिए किसान अपने वकील के साथ रेलवे स्टेशन भी पहुंचा. कोर्ट का आदेश पत्र रेल ड्राइवर को भी सौंपा. रेलवे के सेक्शन इंजीनियर ने ट्रेन को किसान के कब्जे में जाने से रोक दिया. बताया गया कि ये ट्रेन कोर्ट की संपति है.

कई बार ऐसे चौंकाने वाले फैसले सामने आते हैं जिस पर विश्वास करने में कुछ वक्त लगता है. ऐसा ही एक मामला आया कि एक घंटे में करीब 80 किलोमीटर दौड़ने वाली स्वर्ण शताब्दी ट्रेन एक किसान को दे दी गई. सुनने में आपको भी हैरानी होगी. लेकिन सच्चाई यही है. किसान समपूरण सिंह रेलवे से जुड़े एक मामले को कोर्ट ले गए, और कोर्ट ने यह ट्रेन ही उनके नाम कर दी.

लुधियाना में रेलवे द्वारा जमीन अधिग्रहण का मुआवजा मांगने के लिए एक किसान को अदालत जाने के लिए मज़बूर होना पड़ा. लेकिन जब भारतीय रेलवे ने अदालत के आदेश को भी नहीं माना तो दूसरी सुनवाई में अदालत ने अमृतसर से नई दिल्ली के बीच चलने वाली स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस को ही किसान के नाम कर दिया और उसे ट्रेन को घर ले जाने की इजाजत दे दी. अदालत ने स्टेशन मास्टर के दफ़्तर को भी जब्त करने के आदेश दिए.

पूरा मामला

लुधियाना-चंडीगढ़ रेलवे ट्रेक के लिए समराला के पास गांव कटाणा में किसान संपूर्ण सिंह की जमीन भी रेलवे ने ले ली थी. किसान समपूरण सिंह का मुआवजा 1.47 करोड़ रुपए बनता था, लेकिन रेलवे ने उसे सिर्फ 42 लाख रु. ही दिए. आखिर संपूर्ण सिंह ने लुधियाना जिला कोर्ट में एडीशनल जिला एवं सेशन जज की अदालत में गुहार (एक्जिक्युशन) लगाई.

अदालत के इस फैसले की वजह से ये ट्रेन लुधियाना जिले के कटाना गांव के रहने वाले किसान समपूरण सिंह की हो गई. लेकिन, जैसा कि होना था किसान इस ट्रेन को अपने घर नहीं ले जा सका. ट्रेन पर अपना कब्जा लेने के लिए किसान अपने वकील के साथ रेलवे स्टेशन भी पहुंचा. कोर्ट का आदेश पत्र रेल ड्राइवर को भी सौंपा. रेलवे के सेक्शन इंजीनियर ने ट्रेन को किसान के कब्जे में जाने से रोक दिया. बताया गया कि ये ट्रेन कोर्ट की संपति है.

डिवीजनल रेलवे मैनेजर ने लॉ मिनिस्ट्री को इस मामले को देखने को कहा है. इस फैसले के बाद एक सवाल सबके मन में उठ रहा होगा, कि अगर किसान को 300 मीटर ट्रेन मिल जाती तो उसको वो घर कैसे ले जाता... ले भी जाता तो करता क्या?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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