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जानवरों की तरह हो रहा है यहां इंसानों का शिकार !

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 25 अप्रिल, 2017 02:54 PM
  • 25 अप्रिल, 2017 02:54 PM
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गोरी चमड़ी वाला कोई भी व्यक्ति चाहे बड़ा हो या फिर छोटा सा बच्चा, हर कोई अब मौत के खौफ में जी रहा है. वजह हैरान करने वाली है.

दुनिया के इस दूर देश की खौफनाक दास्तान किसी को भी हैरान करने के लिए काफी है. दक्षिण अफ्रीका के मलावी में इंसान ही इंसानों का शिकार कर रहे हैं, बिल्कुल जानवरों की तरह.

दो साल की एक बच्ची को सोते हुए ही उसके घर से उठा लिया गया. कई दिनों बाद उसका कंकाल और कपड़े पड़ोस के गांव में मिले. इससे पहले 9 साल के हैरी को भी उसके घर से उठाया गया और बाद में उसकी भी सिरकटी लाश मिली. हाल ही में 17 साल का डेविड भी स्थानीय स्कूल में एक फुटबॉल मैच देखने गया था, लेकिन लौटकर वापस नहीं आया. एक सप्ताह बाद वहां से 80 किलोमीटर दूर उसके शरीर के टुकड़े बरामद किए गए.

अपने बच्चे की नृशंस हत्या पर उसकी मां अब पत्थर हो गई है. डेविड की मां का कहना है- 'उसे एक बकरे की तरह काट दिया गया था. उसके हाथ-पैर अलग कर दिए गए थे. उसकी कुछ हड्डियां भी तोड़ी गईं. उसकी खाल लटकी हुई थी. और उसे जमीन में गाड़ रखा था. हम हर रोज रोते हैं. हमें उसके भविष्य से बहुत उम्मीदें थीं क्योंकि वो पढ़ाई में बहुत अच्छा था. पर अब सब खत्म हो गया'.

30 साल की एक महिला जैनिफर देसी दवाई लेने पड़ोस के गांव गई, लेकिन वहां पहुंच ही नहीं पाई. कुछ घंटों के बाद उसका मृत शरीर गांव के रास्ते में पाया गया. उसपर कई वार किए गए थे. हमलावरों ने उसके ब्रेस्ट काट दिए थे और उसकी आंखे निकाल ली थीं.

हैवानियत का शिकार हो रहे ये लोग आखिर हैं कौन-

ये कहानी सिर्फ एक, दो या तीन लोगों की नहीं रही, अब ये बात आम हो चुकी है. या तो इनपर हमले किए जाते हैं और या फिर दिल दहला देने वाली हत्या. जो लोग हमले से बच गए उनके घावों...

दुनिया के इस दूर देश की खौफनाक दास्तान किसी को भी हैरान करने के लिए काफी है. दक्षिण अफ्रीका के मलावी में इंसान ही इंसानों का शिकार कर रहे हैं, बिल्कुल जानवरों की तरह.

दो साल की एक बच्ची को सोते हुए ही उसके घर से उठा लिया गया. कई दिनों बाद उसका कंकाल और कपड़े पड़ोस के गांव में मिले. इससे पहले 9 साल के हैरी को भी उसके घर से उठाया गया और बाद में उसकी भी सिरकटी लाश मिली. हाल ही में 17 साल का डेविड भी स्थानीय स्कूल में एक फुटबॉल मैच देखने गया था, लेकिन लौटकर वापस नहीं आया. एक सप्ताह बाद वहां से 80 किलोमीटर दूर उसके शरीर के टुकड़े बरामद किए गए.

अपने बच्चे की नृशंस हत्या पर उसकी मां अब पत्थर हो गई है. डेविड की मां का कहना है- 'उसे एक बकरे की तरह काट दिया गया था. उसके हाथ-पैर अलग कर दिए गए थे. उसकी कुछ हड्डियां भी तोड़ी गईं. उसकी खाल लटकी हुई थी. और उसे जमीन में गाड़ रखा था. हम हर रोज रोते हैं. हमें उसके भविष्य से बहुत उम्मीदें थीं क्योंकि वो पढ़ाई में बहुत अच्छा था. पर अब सब खत्म हो गया'.

30 साल की एक महिला जैनिफर देसी दवाई लेने पड़ोस के गांव गई, लेकिन वहां पहुंच ही नहीं पाई. कुछ घंटों के बाद उसका मृत शरीर गांव के रास्ते में पाया गया. उसपर कई वार किए गए थे. हमलावरों ने उसके ब्रेस्ट काट दिए थे और उसकी आंखे निकाल ली थीं.

हैवानियत का शिकार हो रहे ये लोग आखिर हैं कौन-

ये कहानी सिर्फ एक, दो या तीन लोगों की नहीं रही, अब ये बात आम हो चुकी है. या तो इनपर हमले किए जाते हैं और या फिर दिल दहला देने वाली हत्या. जो लोग हमले से बच गए उनके घावों के निशान उन्हें हर पल डराते हैं.

जिन लोगों की हत्या की जा रही है असल में वो लोग एल्बिनिज़्म का शिकार हैं. इस देश में करीब 10 हज़ार लोग एबनिज्म के साथ जी रहे हैं, और मलावी पुलिस का कहना है 2014 से अब तक अलबीनो लोगों के साथ हुए अपराध के 60 से ज्यादा मामले दर्ज हैं.

2016 में आई एमनेस्टी इंटरनेश्नल की रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर 2014 से रिपोर्ट जारी होने तक 18 लोगों की हत्या की जा चुकी थी. और ये संख्या दिन ब दिन बढ़ रही है.

क्या है एल्‍बिनिज्म-

एल्‍बिनिज्म शब्द 'एल्बस' से बना है जिसका लैटिन में अर्थ है सफेद. एल्‍बिनिज्म एक जन्मजात विकार है. इससे पीड़ित व्यक्ति का रंग एकदम सफेद होता है. इन लोगों का शरीर मैलेनिन का सही से उत्पादन नहीं कर पाता (जिससे रंग गहरा होता है) जिससे उनकी त्वचाऔर बालों का रंग सफेद पड़ जाता है. सिर्फ रंग ही नहीं इससे आंखों की रौशनी भी कमजोर होती है और कई लोगों को तो दिखाई भी नहीं देता. एल्‍बिनिज्म से पीड़ित लोगों को एल्बीनो कहा जाता है.

पूरी दुनिया में हर 20 हजार लोगों में से एक को ये विकार होता है. लेकिन ये लोग अफ्रीका में ज्यादा पाए जाते हैं, जहां हर 5000 लोगों में से एक को एल्‍बिनिज्म है.

एल्बीनो पर ही क्यों टूटी है आफत ?

एल्बीनो लोगों की जान का दुश्मन सिर्फ उनका एल्बीनो होना ही है, यानी उनकी गोरी चमड़ी ही उनके अस्तित्व के लिए खतरा बनी हुई है. हालात ये हैं कि गोरी चमड़ी वाला कोई भी व्यक्ति चाहे बड़ा हो या फिर छोटा सा बच्चा, हर कोई अब मौत के खौफ में जी रहा है. इनका शिकार सिर्फ इसलिए किया जा रहा है जिससे उनकी हड्डियों, अंगों और शरीर के दूसरे हिस्सों को बेचा जा सके.

असल में इस इलाके में अंधविश्वास ने अपनी जड़ें जमा रखी हैं. स्‍थानीय लोगों का मानना है कि एल्‍बिनिज्म से ग्रसित व्‍यक्ति की हड्डियां 'गोल्ड डस्ट' यानी सोने की धूल से बनी होती हैं जिसमें चमत्‍कारिक शक्तियां होती हैं, जिसका इस्तेमाल टोने-टोटके में किया जाता है. कहा जाता है कि अगर इनसे कोई चमत्कारिक औषधि बनाई जाए तो कई लाइलाज बीमारियां दूर हो जाती हैं.

एल्बीनो लोगों को मारकर उनके शरीर के अंगों को काला बाजार में बेच दिया जाता है. रिपोर्ट की मानें तो एक इंसान के शरीर के सभी अंगो के सेट की कीमत करीब 75,000 डॉलर तक जा पहुंची है (यानी करीब 50 लाख रुपए के आसपास). जब कोई एल्बीनो व्यक्ति सड़क से गुजरता है तो लोग उसे 'मिलियन..मिलियन' कहते हैं. यानी एक इंसान की कीमत मिलियन यानी लाखों में है. हालांकि अभी इनकी खरीद-फरोख्त से जुड़े कोई पुख्ता दस्तावेज नहीं मिले हैं तो मानव अंगों की तस्करी से जुड़े बाजार का होना अब भी एक सवाल बना हुआ है.

मौत के बाद भी चैन नहीं

अपनी जान से जा चुके एल्बीनो लोगों को मरने के बाद भी चैन से नहीं रहने दिया जाता. पुलिस के मुताबिक करीब 40 लोगों को उनकी कब्र से भी निकाल लिया गया और कुछ के शरीर के अंग निकाल लिए गए. एक और मिथक यहां मौजूद है, लोगों का मानना है कि एल्‍बिनिज्म से पीड़ित व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाने से एड्स दूर हो जाता है. मलावी की जनसंख्या का 10 प्रतिशत हिस्सा एड्स से पीड़ित है. जाहिर है इससे बचने के लिए लोग टोने टोटके और इस तरह के चमत्कारिक उपाए ढ़ूंढने में यकीन करते हैं. एड्स से पीड़ित लोग बहुत से एल्बीनो लोगों को संबंध बनाने के लिए भारी रकम का ऑफर भी देते हैं.

अंधविश्वास के साथ-साथ लोगों का लाालच भी बढ़ रहा है, अल्बीनो लोगों के एक एक अंग की कीमत लाखों में है इसलिए अपहरण और हत्या की सजा से भी लोगों को डर लगना बंद हो गया है. बताया जा रहा है कि एल्बीनो लोगों के दोस्त और रिश्तेदार ही ज्यादातर इस तरह की अपराधों में शामिल हैं. तो कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि सिर्फ लोगों में फैला अंधविश्वास ही है जो इन लोगों को इस तरह की हत्याएं करने के लिए प्रेरित कर रहा है. 

दक्षिण अफ्रीका की सरकार इस तरह के बढ़ते अंधविश्‍वास और अपराधों को रोकने में फिलहाल असफल दिखाई दे रही है. कुछ लोगों की गिरफ्तारियां हुई हैं, लेकिन अपराधों पर लगाम नहीं लग रही. जाहिर है जड़ों में बस चुके अंधविश्वास को जड़ से मिटाना किसी के लिए भी टेड़ी खीर होता है. लेकिन सरकार द्वारा किया गया एक भी सार्तक कदम लोगों की दशा और दिशा दोनों को बदलने के लिए काफी होता है. तो अब दक्षिण अफ्रीका की सरकार से केवल उम्मीद ही की जा सकती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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