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फेसबुक, व्हाट्स एप के बदले वेब पोर्न के चंगुल मेेें फंस रहे हैं बच्चे

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 07 जून, 2017 05:10 PM
  • 07 जून, 2017 05:10 PM
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सेक्सुअल कंटेट से बच्चों का पहला सामना 13 साल की उम्र में हो जाता है. उम्र का ये पड़ाव बच्चे के जीवन में सबसे नाजुक मोड़ पर होता है. ऐसे में कुछ बच्चे इस तरह की तस्वीर को देखकर उत्साहित हो सकते हैं.

इंटरनेट की पहुंच आज घर-घर तक है. लगभग हर घर में इंटरनेट की पहुंच ने जहां लोगों को दुनिया से जोड़ा है वहीं बच्चों के लिए ये एक खतरनाक जरिया बनकर उभरा है. एक ओर जहां भारत जैसे रूढ़िवादी देश में सेक्स के बारे में बात करना तो दूर की बात, इसके बारे में सोचना भी गुनाह माना जाता है. वहीं टेक्नोलॉजी के आने के बाद छोटे बच्चों तक ऐसे अश्लील कंटेंट की पहुंच आसान हो जाने की वजह से इस पर घर में खुलकर बात करने की जरुरत बढ़ गई है.

लेकिन एक्सपर्ट की राय मानें तो बच्चों से घर में इस बारे में बात जरुर होनी चाहिए. दिक्कत ये है कि चाहे हम फोन, लैपटॉप या किसी अन्य उपकरण कितने भी फिल्टर लगा लें, लेकिन फिर भी बच्चों को इससे दूर रखना अब नामुमकिन सा हो गया है. टीनएज बच्चे ही नहीं बल्कि अब उससे छोटे बच्चे भी कभी ना कभी इस तरह के ऑनलाइन कंटेट को देख ही लेते हैं या फिर किसी बच्चे ने उन्हें इस तरह की फोटो दिखाई हो. युवाओं में तो सेक्स और रिलेशनशिप के प्रति अपना ही नजरिया होता है, जिसे पोर्नोग्राफी की अबूझ दुनिया और भी जटिल बना देती है. कई बार तो पोर्नोग्राफी युवाओं के असल जीवन को भी बुरी तरह से प्रभावित करती है.

वेब पोर्न बच्चे के भविष्य के लिए नया खतरा

एक रिसर्च के मुताबिक सेक्सुअल कंटेट से बच्चों का पहला सामना 13 साल की उम्र में हो जाता है. उम्र का ये पड़ाव बच्चे के जीवन में सबसे नाजुक मोड़ पर होता है. ऐसे में कुछ बच्चे इस तरह की तस्वीर को देखकर उत्साहित हो सकते हैं. फिर इसके बारे में और ज्यादा जानने और इसे और एन्जॉय करने की ललक इन्हें हो सकती है, जिस कारण वो गलत संगत में भी फंस सकते हैं. लेकिन क्योंकि ये हमारी संस्कृति में एक क्राइम है तो बच्चे माता-पिता से इस बारे में बात करने से डरते हैं.

इसका एक आसान तरीका ये है कि माता-पिता बच्चों से सीधा बात न...

इंटरनेट की पहुंच आज घर-घर तक है. लगभग हर घर में इंटरनेट की पहुंच ने जहां लोगों को दुनिया से जोड़ा है वहीं बच्चों के लिए ये एक खतरनाक जरिया बनकर उभरा है. एक ओर जहां भारत जैसे रूढ़िवादी देश में सेक्स के बारे में बात करना तो दूर की बात, इसके बारे में सोचना भी गुनाह माना जाता है. वहीं टेक्नोलॉजी के आने के बाद छोटे बच्चों तक ऐसे अश्लील कंटेंट की पहुंच आसान हो जाने की वजह से इस पर घर में खुलकर बात करने की जरुरत बढ़ गई है.

लेकिन एक्सपर्ट की राय मानें तो बच्चों से घर में इस बारे में बात जरुर होनी चाहिए. दिक्कत ये है कि चाहे हम फोन, लैपटॉप या किसी अन्य उपकरण कितने भी फिल्टर लगा लें, लेकिन फिर भी बच्चों को इससे दूर रखना अब नामुमकिन सा हो गया है. टीनएज बच्चे ही नहीं बल्कि अब उससे छोटे बच्चे भी कभी ना कभी इस तरह के ऑनलाइन कंटेट को देख ही लेते हैं या फिर किसी बच्चे ने उन्हें इस तरह की फोटो दिखाई हो. युवाओं में तो सेक्स और रिलेशनशिप के प्रति अपना ही नजरिया होता है, जिसे पोर्नोग्राफी की अबूझ दुनिया और भी जटिल बना देती है. कई बार तो पोर्नोग्राफी युवाओं के असल जीवन को भी बुरी तरह से प्रभावित करती है.

वेब पोर्न बच्चे के भविष्य के लिए नया खतरा

एक रिसर्च के मुताबिक सेक्सुअल कंटेट से बच्चों का पहला सामना 13 साल की उम्र में हो जाता है. उम्र का ये पड़ाव बच्चे के जीवन में सबसे नाजुक मोड़ पर होता है. ऐसे में कुछ बच्चे इस तरह की तस्वीर को देखकर उत्साहित हो सकते हैं. फिर इसके बारे में और ज्यादा जानने और इसे और एन्जॉय करने की ललक इन्हें हो सकती है, जिस कारण वो गलत संगत में भी फंस सकते हैं. लेकिन क्योंकि ये हमारी संस्कृति में एक क्राइम है तो बच्चे माता-पिता से इस बारे में बात करने से डरते हैं.

इसका एक आसान तरीका ये है कि माता-पिता बच्चों से सीधा बात न करके सेक्स का मतलब रिलेशनशिप होता है, सेक्स के पहले लोगों को एक-दूसरे इज्जत करनी चाहिए, सेक्स एक अन्तरंग भावना है जिसे हर किसी को प्रसाद की तरह बांटना सही बात नहीं है, सेक्स वैसा बिल्कुल नहीं होता जैसा पोर्न साइट्स में दिखाते हैं आदि-आदि.

खासकर उग्र या हिंसक पोर्न वीडियो सबसे ज्यादा चिंता का विषय हैं. क्योंकि इनकी तस्वीरें और वीडियो विभत्स, परेशान करने वाले हो सकते हैं. ये भी मुमकिन है कि अक्सर पोर्न देखने वाले सेक्सुअल हिंसा जैसा घृणित काम भी कर सकते हैं. इन्ही में से कुछ रेपिस्ट भी निकल सकते हैं. दिमाग का कीड़ा कब और कैसे पोर्न देखने वाले को गलत रास्ते और संगत में डाल दे इसका कुछ पता नहीं.

दिक्कत ये है कि न तो इंटरनेट को अब जिंदगी से दूर किया जा सकता है न ही बच्चों पर ज्यादा सख्ती की जा सकती है. इसलिए इस मुद्दे को सावधानी और प्यार से हैंडिल करने की जरुरत होती है. साथ ही जितना ज्यादा हो सके बच्चों को वर्चुअल स्पेस की जगह निजी जिंदगी में बिजी रखा जाए. जितना ज्यादा बच्चे इंटरनेट के करीब होंगे, उतना ही ज्यादा वो असल जीवन में रिश्तों के महत्व को समझेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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