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कटऑफ, ग्रेड्स के आगे जहां और भी है

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 28 मई, 2017 06:30 PM
  • 28 मई, 2017 06:30 PM
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90 फीसदी से कम अंक पाने वाले बच्चों को तो कई अच्छे कॉलेजों के फॉर्म तक नसीब नहीं होते. तो क्या वर्तमान दौर में ये मान लिया जाय कि 90 फीसदी से कम अंक लाने वालों का भविष्य अंधकार में है ? बिलकुल नहीं.

12वीं की परीक्षा में 500 में से 498 अंक, वाकई काबिलेतारीफ, मगर एक दौर था जब इतने नंबर लाना तो दूर बल्कि सोचना भी असंभव था. और उस दौर में सफलता मापने के लिए आज के तरह परसेंटेज और ग्रेड्स के बजाय फर्स्ट या सेकेंड डिवीज़न हुआ करते थे.

मगर वर्तमान दौर के पढाई में फर्स्ट डिवीज़न (60 प्रतिशत) लाना परीक्षा फेल होने के सामान ही हो गया है, क्योंकि आज 90 फीसदी लाने वालों की संख्या इतनी हो गयी है की इससे कम में अब बात ही नहीं बनती. स्थिति तो ऐसी हो गयी है 90 फीसदी से कम अंक पाने वाले बच्चों को तो कई अच्छे कॉलेजों के फॉर्म तक नसीब नहीं होते. तो क्या वर्तमान दौर में ये मान लिया जाय कि 90 फीसदी से कम अंक लाने वालों का भविष्य अंधकार में है ? बिलकुल नहीं.

बेशक ये एक सच्चाई है कि कम अंक पाने के बाद छात्रों के लिए आगे की राह उतनी आसान नहीं होती जितना एक अच्छे अंक वाले छात्र के लिए होती है और इसकी शुरुआत कॉलेज के एडमिशन से ही दिखने लगती है. कम अंक पाने के बाद अच्छे कॉलेजों में दाखिला लेने में खासी मस्सकत करनी होती है, कभी-कभी तो छात्रों को मन मुताबिक विषय में पढाई करने का भी अवसर नहीं मिल पाता, मगर ये सब चीजें मिल कर भी किसी की सफलता में शायद ही आड़े आ सकता है.

वर्तमान दौर में जहां छात्रों के अंकों में उछाल आया है तो इसी दौर ने सम्भावनों के अपार द्वार भी खोल दिए हैं. अब करियर बनाने के लिए कुछ एक फील्ड ही नहीं रहे, बल्कि आज आप चाहें तो जो चीज आपको पसंद है उसी में आप अपनी अलग पहचान बना सकते हैं और इसके लिए आपको किसी तरह के टॉपर होने की भी जरुरत नहीं. भारत की सबसे बड़ी नौकरी आईएएस (इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस) में बैठने की लिए आपको किसी अंक की बाधा नहीं होती, बस इसके लिए आपको ग्रेजुएट होना होता हैं.

12वीं की परीक्षा में 500 में से 498 अंक, वाकई काबिलेतारीफ, मगर एक दौर था जब इतने नंबर लाना तो दूर बल्कि सोचना भी असंभव था. और उस दौर में सफलता मापने के लिए आज के तरह परसेंटेज और ग्रेड्स के बजाय फर्स्ट या सेकेंड डिवीज़न हुआ करते थे.

मगर वर्तमान दौर के पढाई में फर्स्ट डिवीज़न (60 प्रतिशत) लाना परीक्षा फेल होने के सामान ही हो गया है, क्योंकि आज 90 फीसदी लाने वालों की संख्या इतनी हो गयी है की इससे कम में अब बात ही नहीं बनती. स्थिति तो ऐसी हो गयी है 90 फीसदी से कम अंक पाने वाले बच्चों को तो कई अच्छे कॉलेजों के फॉर्म तक नसीब नहीं होते. तो क्या वर्तमान दौर में ये मान लिया जाय कि 90 फीसदी से कम अंक लाने वालों का भविष्य अंधकार में है ? बिलकुल नहीं.

बेशक ये एक सच्चाई है कि कम अंक पाने के बाद छात्रों के लिए आगे की राह उतनी आसान नहीं होती जितना एक अच्छे अंक वाले छात्र के लिए होती है और इसकी शुरुआत कॉलेज के एडमिशन से ही दिखने लगती है. कम अंक पाने के बाद अच्छे कॉलेजों में दाखिला लेने में खासी मस्सकत करनी होती है, कभी-कभी तो छात्रों को मन मुताबिक विषय में पढाई करने का भी अवसर नहीं मिल पाता, मगर ये सब चीजें मिल कर भी किसी की सफलता में शायद ही आड़े आ सकता है.

वर्तमान दौर में जहां छात्रों के अंकों में उछाल आया है तो इसी दौर ने सम्भावनों के अपार द्वार भी खोल दिए हैं. अब करियर बनाने के लिए कुछ एक फील्ड ही नहीं रहे, बल्कि आज आप चाहें तो जो चीज आपको पसंद है उसी में आप अपनी अलग पहचान बना सकते हैं और इसके लिए आपको किसी तरह के टॉपर होने की भी जरुरत नहीं. भारत की सबसे बड़ी नौकरी आईएएस (इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस) में बैठने की लिए आपको किसी अंक की बाधा नहीं होती, बस इसके लिए आपको ग्रेजुएट होना होता हैं.

इसके अलावा आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले की लिए भी आपके 10वीं और 12वीं के अंक को खास तरजीह नहीं दी जाती बल्कि इसके बजाय चीजों के प्रति आपकी समझ को दी जाती है और अगर हम अपने आस पास नजर दौड़ाएं तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जहां लोगों ने कम अंक लाने के बाद भी सफलता के बुलंदियों को छुआ.

तो बेशक हो सकता है कि 10वीं और 12वीं की परीक्षा में आपको मनमाफिक अंक ना मिलें हो, मगर ये तय है कि ये अंक कहीं से भी आपके और आपके सपनो के बिच बाधक नहीं हो सकते हैं, हां इतना जरूर है कि इन सपनों को साकार करने कि लिए आपको ईमानदार मेहनत के साथ सकारात्मक नजरिया भी रखना होगा. तो अगर आपके भी परीक्षाओं में कम अंक आएं हैं तो परेशान होने की जरुरत नहीं है क्योंकि कटऑफ और ग्रेड्स के आगे जहां और भी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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