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रिजल्ट खराब आया तो बच्चे का ऐसे रखें ख्याल

    • गिरिजेश वशिष्ठ
    • Updated: 28 मई, 2017 01:01 PM
  • 28 मई, 2017 01:01 PM
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सीबीएसई ने 12वीं के रिजल्ट घोषित कर दिए हैं. कुछ छात्र पास हुए तो कुछ फेल. अगर फेल हुए तो पेरेंट्स को इन बातों का ख्याल रखना होगा.

राहुल गांधी मोदी से बहुत ज्यादा पढ़े लिखे हैं. आपके पिताजी मुकेश अंबानी से ज्यादा पढ़े हैं और आप जब सीबीएसई का इम्तिहान दे रहे हैं तो आप गौतम अडानी से ज्यादा पढ़े लिखे हैं. आइंस्टाइन के नंबर आपसे भी कम आते थे.

आज सीबीएसई के इम्तिहान हैं. बच्चों पर भारी दिन है. पेरेन्ट्स पर भी भारी दिन है. नतीजे आते ही कुछ बच्चे चहकेंगे तो कुछ उदास हो जाएंगे. कुछ पर उनके खुद के माता पिता ही अज्ञान में हमला बोल देंगे. कुछ बच्चे उन बातों को याद करके परेशान हो जाएंगे जो उन्हें हमेशा से कही गई है. जाहिर बात है इस सबके नतीजे कई बार खतरनाक भी होते हैं. ऐसे हालात से निपटने के लिए दिमाग से काम लेने की ज़रूरत होती है और टेंशन में दिमाग काम नहीं करता.

आपके दिमाग को सही रास्ते पर ले जाने के लिए सीबीएसई ने शुरू की है काउंसिलिंग सर्विस. यहां कॉल करके आप टेंशन से निपटने और बिना अच्छे रिजल्ट के अच्छे रिजल्ट वालों से भी अच्छा फ्यूचर बनाने में मदद ले सकते हैं. बोर्ड ने छात्रों को रिजल्ट के तनाव से मुक्त रखने के लिए हेल्पलाइन शुरू की है. चार जून तक रोजाना सुबह आठ से रात दस बजे तक काम करेगी.

विशेषज्ञों के अनुसार रिजल्ट के समय माता-पिता की ओर से बच्चे को प्रोत्साहित करने, उनका समर्थन व सराहना करने और समझदार बनने की आवश्यकता होती है. बजाय तनावपूर्ण स्थिति से गुजर रहे बच्चों पर और दबाव बनाने की. न्यूरो साइकोलॉजिस्ट एवं सीबीएसई काउंसलर डॉ. सोना कौशल गुप्ता कहती हैं कि माता-पिता और समाज की ओर से अनुचित रूप से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाना युवाओं में तनाव का कारण बनता है. जब परीक्षा के परिणाम आते हैं, तो माता-पिता को चाहिए कि बच्चे के कंधे पर हाथ रखें, उसके साथ खड़े हों और कहें कि किसी भी परीक्षा का परिणाम जिंदगी से बड़ा नहीं होता.

राहुल गांधी मोदी से बहुत ज्यादा पढ़े लिखे हैं. आपके पिताजी मुकेश अंबानी से ज्यादा पढ़े हैं और आप जब सीबीएसई का इम्तिहान दे रहे हैं तो आप गौतम अडानी से ज्यादा पढ़े लिखे हैं. आइंस्टाइन के नंबर आपसे भी कम आते थे.

आज सीबीएसई के इम्तिहान हैं. बच्चों पर भारी दिन है. पेरेन्ट्स पर भी भारी दिन है. नतीजे आते ही कुछ बच्चे चहकेंगे तो कुछ उदास हो जाएंगे. कुछ पर उनके खुद के माता पिता ही अज्ञान में हमला बोल देंगे. कुछ बच्चे उन बातों को याद करके परेशान हो जाएंगे जो उन्हें हमेशा से कही गई है. जाहिर बात है इस सबके नतीजे कई बार खतरनाक भी होते हैं. ऐसे हालात से निपटने के लिए दिमाग से काम लेने की ज़रूरत होती है और टेंशन में दिमाग काम नहीं करता.

आपके दिमाग को सही रास्ते पर ले जाने के लिए सीबीएसई ने शुरू की है काउंसिलिंग सर्विस. यहां कॉल करके आप टेंशन से निपटने और बिना अच्छे रिजल्ट के अच्छे रिजल्ट वालों से भी अच्छा फ्यूचर बनाने में मदद ले सकते हैं. बोर्ड ने छात्रों को रिजल्ट के तनाव से मुक्त रखने के लिए हेल्पलाइन शुरू की है. चार जून तक रोजाना सुबह आठ से रात दस बजे तक काम करेगी.

विशेषज्ञों के अनुसार रिजल्ट के समय माता-पिता की ओर से बच्चे को प्रोत्साहित करने, उनका समर्थन व सराहना करने और समझदार बनने की आवश्यकता होती है. बजाय तनावपूर्ण स्थिति से गुजर रहे बच्चों पर और दबाव बनाने की. न्यूरो साइकोलॉजिस्ट एवं सीबीएसई काउंसलर डॉ. सोना कौशल गुप्ता कहती हैं कि माता-पिता और समाज की ओर से अनुचित रूप से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाना युवाओं में तनाव का कारण बनता है. जब परीक्षा के परिणाम आते हैं, तो माता-पिता को चाहिए कि बच्चे के कंधे पर हाथ रखें, उसके साथ खड़े हों और कहें कि किसी भी परीक्षा का परिणाम जिंदगी से बड़ा नहीं होता.

इन बातों का रखें ख्याल

- हर बच्चे में अलग-अलग काबिलियत होती है. ऐसे में अभिभावक उनकी क्षमता को समझें एवं बच्चों को प्रोत्साहित करें. सचिन पढ़ाई में फिसड्डी थे. आपके बच्चे जितना भी नहीं पढ़ सके थे. दसवीं में उनका विकेट गिरा. आपके बच्चे में भी कुछ खूबियां जरूर होंगी उन्हें ध्यान से देखें.

-बच्चों एवं उनके रिजल्ट की तुलना औरों से न करें. तुलना करने पर बच्चों का मनोबल टूट जाता है और वह निराश हो जाते हैं. सबके 100 फीसदी नंबर नहीं आ सकते. जिस बच्चे से आप तुलना कर रहे हैं उससे ज्यादा नंबर लाने वाले भी लाखों छात्र होंगे.

-बच्चों को समझाएं कि उनका भविष्य उज्जवल और जीवन अनमोल है. भविष्य में मेहनत कर वह और अधिक सफलता हासिल कर सकते हैं. अगर पढ़ाई में दिमाग नहीं भी चलता तो क्या हुआ. वो नौकरी करने की जगह दूसरों को नौकरी देने पर दिमाग लगाएं.

-बच्चों की आलोचना न करें एवं उन्हें ताने न मारें. इससे उनका मनोबल टूटता है और बच्चे अवसाद में चले जाते हैं. आप तो अपनी भड़ास निकाल लेंगे लेकिन बच्चे के कोमल मन पर क्या बीतेगी ये सोचा.

-माता-पिता को इस समय बच्चों पर अपनी अपेक्षाएं और तनाव नहीं थोपना चाहिए. माता-पिता तनावमुक्त रहेंगे, तभी बच्चे भी तनावमुक्त रहेंगे. टैंशन लेने का समय नहीं है ये. ये जश्न मनाने का समय है. जब आप सबसे उदास होते हैं तो ही सबसे ज्यादा सेलेब्रेट करने का मौका होता है. उदासी को हराने के लिए उत्सव की जरूरत होती है. बच्चे को डिनर पर ले जाएं फिल्म दिखाएं.

-बच्चों को डाटने की बजाय प्रोत्साहित करें, ताकि उन्हें अहसास हो जाए कि माता-पिता उनके साथ हैं. जब आप उनके साथ होंगे तो बच्चे ज्यादा मजबूती से आगे के बारे में सोच सकेंगे. बुढ़ापे में बच्चे इस तरह के दिए साथ के कारण ही आपके साथ खड़े होते हैं.

-बच्चा जो भी कॅरियर चुनना चाहता है, उसमें सहयोग देना चाहिए और इस संबंध में हर प्रकार की जानकारी हासिल करने में उनकी मदद करनी चाहिए.

-अभिभावक बच्चे को किसी ऐसे कॅरियर में न धकेलें, जिसमें उनकी रुचि न हो. उसे पूरी ज़िंदगी वो काम करना पड़ेगा जो उसे पसंद नहीं इससे बुरी सज़ा और क्या हो सकती है.

-हर हाल में बच्चों की सराहना करें एवं जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दें. जब आप बच्चों का मजबूत पक्ष देखेंगे तो जाहिर बात है वो और मजबूत होगा. बच्चे अपने आप आगे बढ़ते चले जाएंगे.

-बच्चों एवं अभिभावकों को यह समझना बहुत जरूरी है कि बोर्ड का रिजल्ट जीवन की आखिरी परीक्षा या परिणाम नहीं है. परीक्षाएं आती जाती रहती हैं. ज़िंदगी जलती रहती है. परीक्षा के नंबर ज्यादा मायने नहीं रखते. ज्यादातर नौकरियों के इंटरव्यू में कोई किसी के नंबर नहीं पूछता.

- बच्चे अंकों से या फेल होने से इतना नहीं घबराते, जितना कि वह अपने माता-पिता की अपेक्षाओं, डाट, आलोचना आदि से घबराते हैं. इसलिए वह हर परिस्थिति में बच्चों साथ मानसिक तौर पर जुड़े रहें.

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