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राजधानी की सड़कों के नाम में पूरा मुल्क क्यों नहीं दिख रहा?

    • सुशांत झा
    • Updated: 19 मई, 2016 11:38 AM
  • 19 मई, 2016 11:38 AM
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हमारी राजधानी की सड़कों के नामों में देश के इतिहास का एक बड़ा हिस्सा नदारद दिखता है. कला, साहित्य, विज्ञान आदि क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व को भूल ही जाइये. संभवत: हमारे नेताओं ने प्रेमचंद, शरतचंद्र या निराला के लिए भी कोई जगह नहीं छोड़ी है.

अकबर रोड का नाम बदल कर राणा प्रताप के नाम पर करने से नया विवाद उठ खड़ा हुआ है. मैं अकबर रोड का नाम बदलने के पक्ष में तो नहीं हूं लेकिन राजधानी की सड़कों के नाम में जो विसंगतियां हैं, उसपर जरूर विचार करना चाहिए. सड़कों और इमारतों के नाम से देश का इतिहास, वर्तमान और उसके भविष्य की आकांक्षाएं झलकती हैं. और उसमें समय-समय पर कुछ नाम जोड़े-घटाए जाते रहते हैं. 

लेकिन एक बात विचार करने लायक है. राजधानी दिल्ली में, खासकर लुटियंस जोन में या तो मध्यकालीन मुस्लिम शासकों के नाम हैं या आजादी की लड़ाई या आजादी के बाद के नेताओं के नाम हैं. कहना न होगा कि इसमें स्वभाविक रूप से ज्यादातर नाम मध्यकालीन मुस्लिम शासकों के हैं या फिर कांग्रेस या उनकी विचारधारा से सहानुभूति रखनेवाले नेताओं के नाम. हिंदू शासकों में अशोक और पृथ्वीराज चौहान को जगह दी गई है. लेकिन मुस्लिम शासकों में बहादुरशाह जफर जैसे कमजोर शासक से लेकर मुगल सल्तनत के आखिरी दौर के वजीर सफदरजंग तक के नाम पर सड़क है. कांग्रेसी शासन के ज्यादातर सालों में ऐसा हुआ जिसे स्वभाविक मान लिया गया. इस पर जरूर पुनर्विचार होना चाहिए.

अपने नामों को लेकर विवादों में हैं दिल्ली की सड़कें

हालत तो ये है कि कांग्रेस के स्वर्गीय नेता माधवराव सिंधिया तक के नाम पर सड़क हैं लेकिन आप गूगल करेंगे तो आपको डॉ आम्बेडकर के नाम पर शायद सड़क नहीं मिलेगी. न ही आपको भारत के ज्ञात इतिहास में प्रथम सम्राट का दर्जा हासिल करने वाले चंद्रगुप्त मौर्य के नाम पर कोई बड़ी सड़क मिलेगी. हां, शायद एक छोटी सड़क दिल्ली के चाणक्यपुरी में उनके नाम पर जरूर है. अगर हम सिर्फ राजनीतिक इतिहास की ही बात करें तो इस कड़ी में कई जरूरी नाम छूट गए हैं. सड़कों के नाम में हमें सम्राट हर्षवर्धन नहीं दिखते, न ही दक्षिण के महान चोल सम्राट राजेंद्र प्रथम या पुलकेशिन द्वितीय का कहीं जिक्र है. भारत का नेपोलियन कहे जाने वाले समुद्रगुप्त का नाम भी नहीं...

अकबर रोड का नाम बदल कर राणा प्रताप के नाम पर करने से नया विवाद उठ खड़ा हुआ है. मैं अकबर रोड का नाम बदलने के पक्ष में तो नहीं हूं लेकिन राजधानी की सड़कों के नाम में जो विसंगतियां हैं, उसपर जरूर विचार करना चाहिए. सड़कों और इमारतों के नाम से देश का इतिहास, वर्तमान और उसके भविष्य की आकांक्षाएं झलकती हैं. और उसमें समय-समय पर कुछ नाम जोड़े-घटाए जाते रहते हैं. 

लेकिन एक बात विचार करने लायक है. राजधानी दिल्ली में, खासकर लुटियंस जोन में या तो मध्यकालीन मुस्लिम शासकों के नाम हैं या आजादी की लड़ाई या आजादी के बाद के नेताओं के नाम हैं. कहना न होगा कि इसमें स्वभाविक रूप से ज्यादातर नाम मध्यकालीन मुस्लिम शासकों के हैं या फिर कांग्रेस या उनकी विचारधारा से सहानुभूति रखनेवाले नेताओं के नाम. हिंदू शासकों में अशोक और पृथ्वीराज चौहान को जगह दी गई है. लेकिन मुस्लिम शासकों में बहादुरशाह जफर जैसे कमजोर शासक से लेकर मुगल सल्तनत के आखिरी दौर के वजीर सफदरजंग तक के नाम पर सड़क है. कांग्रेसी शासन के ज्यादातर सालों में ऐसा हुआ जिसे स्वभाविक मान लिया गया. इस पर जरूर पुनर्विचार होना चाहिए.

अपने नामों को लेकर विवादों में हैं दिल्ली की सड़कें

हालत तो ये है कि कांग्रेस के स्वर्गीय नेता माधवराव सिंधिया तक के नाम पर सड़क हैं लेकिन आप गूगल करेंगे तो आपको डॉ आम्बेडकर के नाम पर शायद सड़क नहीं मिलेगी. न ही आपको भारत के ज्ञात इतिहास में प्रथम सम्राट का दर्जा हासिल करने वाले चंद्रगुप्त मौर्य के नाम पर कोई बड़ी सड़क मिलेगी. हां, शायद एक छोटी सड़क दिल्ली के चाणक्यपुरी में उनके नाम पर जरूर है. अगर हम सिर्फ राजनीतिक इतिहास की ही बात करें तो इस कड़ी में कई जरूरी नाम छूट गए हैं. सड़कों के नाम में हमें सम्राट हर्षवर्धन नहीं दिखते, न ही दक्षिण के महान चोल सम्राट राजेंद्र प्रथम या पुलकेशिन द्वितीय का कहीं जिक्र है. भारत का नेपोलियन कहे जाने वाले समुद्रगुप्त का नाम भी नहीं है.

हमारी राजधानी की सड़कों को देखकर देश के इतिहास का एक बड़ा हिस्सा नदारद दिखता है. कला, साहित्य, विज्ञान आदि क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व को भूल ही जाइये. संभवत: हमारे नेताओं ने प्रेमचंद, शरतचंद्र या निराला के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी है. कबीर, विद्यापति या संत तुकाराम हमारी सड़कों या किसी अन्य इमारतों के नामकरण के लायक नहीं समझे जाते.

ये भी पढ़ें- क्‍या होगा यदि किताबों से मुगलों को निकाला तो...

मजे की बात ये है कि कई विदेशी नेताओं तक के नाम पर हमारी राजधानी में सड़क है. ये अच्छी बात है. लेकिन हमारे अपने ही देश में हमारे गौरव के प्रतीकों में बहुत सारे नामों को सायास या अनायास छोड़ दिया गया है.

सड़कों, इमारतों, विश्वविद्यालयों, पुलों इत्यादि का नाम हमारे देश की सतरंगी संस्कृति, उसके इतिहास और उसकी आकांक्षा को प्रदर्शित करते हैं. खासकर देश की राजधानी में इसका मणि-कांचन योग दिखना चाहिए. लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि भारत की राजधानी अपने सड़कों और इमारतों के नामकरण में सम्पूर्ण भारत को प्रतिबिंबित नहीं करती. इस पर जरूर विचार होना चाहिए.  

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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