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समाज

'कब्रिस्तान और श्मशान' के बीच 2 जिंदा कहानियां !

    • मोहित चतुर्वेदी
    • Updated: 27 फरवरी, 2017 04:26 PM
  • 27 फरवरी, 2017 04:26 PM
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हिंदु-मुस्लिम दंगों से इतिहास भरा पड़ा है लेकिन देश में ऐसी भी कई घटनाएं होती हैं जो हिंदू-मुस्लिम एकता की नई मिसाल बनाए रखने का काम करती हैं. पढ़िए ऐसी ही दो स्टोरी जो कईयों की आंखें खोल देगी...

यूपी चुनाव में पार्टियां जमकर हिंदू और मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए क्या-क्या वादे और एलान कर रही हैं. जिनको सबको एक समान देखना चाहिए वही पार्टियां धर्म की राजनीति करने में जुटी हैं. दंगों और लड़ाई की पुरानी बातों को निकालकर वोट लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. देश के इतिहास को अगर पलटकर देखेंगे तो उसमें आपको कई दंगों के बारे में भी पता चल जाएगा. 1984, बाबरी विध्वंस, गुजरात 2002 से लेकर मुजफ्फरनगर 2013 तक हिंदु-मुस्लिम दंगों से इतिहास भरा पड़ा है लेकिन देश में ऐसी भी कई घटनाएं होती हैं जो हिंदू-मुस्लिम एकता की नई मिसाल बनाए रखने का काम करती हैं.

ऐसी ही एक मिसाल गुजरात के अहमदाबाद इलाके के कालुपुर में रहने वाले लोगों ने भी दी है. एक मस्जिद में लगभग 30 साल बाद अजान दी गई. 1984 में फैली साम्प्रदायिक हिंसा में कालुपुर में भी तनाव की स्थिति पैदा कर दी थी जो बाद में एक खूनी हिंसा में बदल गई थी. बढ़ते तनाव के चलते मुस्लिम समाज द्वारा मस्जिद में अजान देना बंद कर दी गई और न ही यहां नमाज होती थी.

अहमदाबाद की मस्जिद जिसे हिंदुओं ने वापस खुलवाया.

लेकिन तनाव लंबे समय तक नहीं टिक पाया. यहां के हिंदू लोगों ने फैसला लिया कि वह इलाके की एक लौती मस्जिद को बंद नहीं होने देंगे. हिंदू लोगों ने मस्जिद की साफ-सफाई और मरम्मत का काम करने में मुस्लिमों की मदद की. लोगों के एकजुट होने के बाद 100 साल पुरानी मस्जिद जो 30 सालों से बंद पड़ी थी उसमें पहली बार अजान दी गई. सिर्फ इतना ही नहीं मुस्लिम समाज के लोगों ने मस्जिद की देखरेख की जिम्मेदारी हिदुओं को दी है.

हर समय धर्म की आड़ में कई ऐसे काम...

यूपी चुनाव में पार्टियां जमकर हिंदू और मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए क्या-क्या वादे और एलान कर रही हैं. जिनको सबको एक समान देखना चाहिए वही पार्टियां धर्म की राजनीति करने में जुटी हैं. दंगों और लड़ाई की पुरानी बातों को निकालकर वोट लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. देश के इतिहास को अगर पलटकर देखेंगे तो उसमें आपको कई दंगों के बारे में भी पता चल जाएगा. 1984, बाबरी विध्वंस, गुजरात 2002 से लेकर मुजफ्फरनगर 2013 तक हिंदु-मुस्लिम दंगों से इतिहास भरा पड़ा है लेकिन देश में ऐसी भी कई घटनाएं होती हैं जो हिंदू-मुस्लिम एकता की नई मिसाल बनाए रखने का काम करती हैं.

ऐसी ही एक मिसाल गुजरात के अहमदाबाद इलाके के कालुपुर में रहने वाले लोगों ने भी दी है. एक मस्जिद में लगभग 30 साल बाद अजान दी गई. 1984 में फैली साम्प्रदायिक हिंसा में कालुपुर में भी तनाव की स्थिति पैदा कर दी थी जो बाद में एक खूनी हिंसा में बदल गई थी. बढ़ते तनाव के चलते मुस्लिम समाज द्वारा मस्जिद में अजान देना बंद कर दी गई और न ही यहां नमाज होती थी.

अहमदाबाद की मस्जिद जिसे हिंदुओं ने वापस खुलवाया.

लेकिन तनाव लंबे समय तक नहीं टिक पाया. यहां के हिंदू लोगों ने फैसला लिया कि वह इलाके की एक लौती मस्जिद को बंद नहीं होने देंगे. हिंदू लोगों ने मस्जिद की साफ-सफाई और मरम्मत का काम करने में मुस्लिमों की मदद की. लोगों के एकजुट होने के बाद 100 साल पुरानी मस्जिद जो 30 सालों से बंद पड़ी थी उसमें पहली बार अजान दी गई. सिर्फ इतना ही नहीं मुस्लिम समाज के लोगों ने मस्जिद की देखरेख की जिम्मेदारी हिदुओं को दी है.

हर समय धर्म की आड़ में कई ऐसे काम किए गए हैं, जो पूरी तरह से मानवता के खिलाफ हैं और कोई भी धर्म ऐसे कामों की कतई इजाजत नहीं देता. लेकिन एक बात पूरी तरह से सच है कि दुनिया का कोई भी धर्म हो, उसमें लगभग एक ही बातें हैं. वैसे तो दुनिया के सभी धर्मों में काफ़ी समानताएं देखने को मिल जाएंगी, लेकिन हिन्दू और मुस्लिम संप्रदाय में बहुत ज़्यादा ही समानताएं हैं.

ओम और 786 में समानताएं

'ऊं' शब्द हिंदूओं के सबसे पावन शब्दों में से एक है. कहते हैं कि इसको एक बार मन से कहने मात्र से ही सारे दुखों का विनाश हो जाता है, मन पवित्र और शांत हो जाता है और वहीं 786 अंक को हर मुसलमान ऊपर वाले का वरदान मानता है. इसलिए धर्म को मानने वाले लोग अपने हर कार्य में 786 अंक के शामिल होने को शुभ मानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं 'ऊं' और '786' का अनोखा संबंध है. जी हां, प्रसिद्ध शोधकर्ता राफेल पताई ने अपनी पुस्तक 'द जीविस माइंड' में लिखा है कि अगर आप 786 नंबर की आकृति पर गौर करेंगे तो यह बिल्कुल संस्कृत में लिखा हुआ 'ऊं' दिखायी देगा. जिसको परखने के लिए आप 786 को हिंदी की गिनती में यानी कि ७८६ लिखिये, उत्तर खुद ब खुद मिल जायेगा.

1. दोनों धर्म ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास रखते हैं.

2. दोनों धर्मों में कहा गया है कि इंसान अपने कर्म करने के लिए स्वतंत्र है. उसकी अच्छाई और बुराई पर ही उसकी पहचान होगी.

3. दोनों धर्मों में कहा गया है कि ईश्वर अपने चाहने वालों को बेहद प्यार करते हैं.

4. दोनों धर्मों में भाईचारा, सौहार्द्र, क्षमा, विश्वास और प्रेम करना सिखाया गया है.

5. दोनों धर्मों में अहिंसा को प्रमुखता दी गई है.

6. दोनों धर्मों में दूसरों के धर्म के प्रति प्रेम रखना सिखाया गया है.

7. दोनों धर्मों में प्रकृति के प्रति वफादार रहना सिखाया गया है.

कुरान और गीता की इन बातों को पढ़कर लगता है कि हिंदुत्व और इस्लाम धर्म की शिक्षाएं एक जैसी ही हैं. हम लोग ही है जो धर्म और मजहब के नाम पर आपस में लड़ते रहते हैं. लेकिन, जिसने गीता पढ़ी है और जिसे कुरान के बारे में भी मालूम है उसे Diw'ali' में भी 'अली' और 'Ram'zan में भी 'राम' नजर आता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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