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फिदेल कास्त्रो: एक क्रांति का चले जाना

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 26 नवम्बर, 2016 07:41 PM
  • 26 नवम्बर, 2016 07:41 PM
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क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्ट्रो नहीं रहे. उन चुनिन्दा राजनीतिज्ञों में से थे जिन्होंने विश्व मंच पर अपनी अमिट छाप छोड़ी थी.

13 अगस्त 1926 को जन्मे फिदेल अलेजैंड्रो कास्त्रो रूज उन चुनिन्दा राजनीतिज्ञों में से थे जिन्होंने विश्व मंच पर अपनी अमिट छाप छोड़ी थी. क्रांति के प्रतीक माने जाने वाले फिदेल कास्त्रो की पहचान एक ऐसे नेता के रूप में थी जिन्होंने तानाशाही के खिलाफ अमेरिका जैसे महाशक्ति से टकराने में भी गुरेज नहीं किया. कास्त्रो क्यूबा की क्रांति के जरिये अमेरिका समर्थित फुल्गेंकियो बतिस्ता की तानाशाही को उखाड़ फेंक सत्ता में आये थे.

 क्रांति के प्रतीक माने जाते हैं फिदेल कास्त्रो

कास्त्रो के संघर्ष ने न केवल क्यूबा के आम नागरिक बल्कि पूरे विश्व के लोगों को अन्याय और अपने हक़ की लड़ाई लड़ने की प्रेरणा दी. जब पूरे विश्व पटल पर वामपंथ ढलान की तरफ है वैसे में कास्त्रो ने क्यूबा पर करीब 5 दशकों तक शासन किया. 2006 में खराब सेहत का हवाला देकर कास्त्रो ने सत्ता अपने भाई को सौंप दी थी, हालांकि कास्त्रो ने अपने पद से 2008 में आधिकारिक रूप से इस्तीफा दिया था. अमेरिका के प्रति कास्त्रो का रुख किस प्रकार का था इसकी एक झलक इसी साल मिली जब 1959 की क्रांति के बाद बराक ओबामा पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने क्यूबा का दौरा किया, लेकिन इस दौरान भी उन्होंने ओबामा से मिलने से इनकार कर दिया था.

क्या थी क्यूबा क्रांति

क्यूबा के राष्ट्रपति फुल्गेन्सियो बतिस्ता को अमेरिकी एजेंट के रूप में देखा जाता था, उसने अपने शासनकाल में (1951-1959) तक अमेरिकी हितों को सर्वोपरी रख आम जनता को नजरअंदाज करता रहा. लोग भ्रष्टाचार, असमानता और अन्य तरह की परेशानियों से जूझ रहे थे. लगातार बढ़ते रोष के वजह से क्यूबा में क्रांति ने जन्म लिया. इसकी अगुआई फिदेल...

13 अगस्त 1926 को जन्मे फिदेल अलेजैंड्रो कास्त्रो रूज उन चुनिन्दा राजनीतिज्ञों में से थे जिन्होंने विश्व मंच पर अपनी अमिट छाप छोड़ी थी. क्रांति के प्रतीक माने जाने वाले फिदेल कास्त्रो की पहचान एक ऐसे नेता के रूप में थी जिन्होंने तानाशाही के खिलाफ अमेरिका जैसे महाशक्ति से टकराने में भी गुरेज नहीं किया. कास्त्रो क्यूबा की क्रांति के जरिये अमेरिका समर्थित फुल्गेंकियो बतिस्ता की तानाशाही को उखाड़ फेंक सत्ता में आये थे.

 क्रांति के प्रतीक माने जाते हैं फिदेल कास्त्रो

कास्त्रो के संघर्ष ने न केवल क्यूबा के आम नागरिक बल्कि पूरे विश्व के लोगों को अन्याय और अपने हक़ की लड़ाई लड़ने की प्रेरणा दी. जब पूरे विश्व पटल पर वामपंथ ढलान की तरफ है वैसे में कास्त्रो ने क्यूबा पर करीब 5 दशकों तक शासन किया. 2006 में खराब सेहत का हवाला देकर कास्त्रो ने सत्ता अपने भाई को सौंप दी थी, हालांकि कास्त्रो ने अपने पद से 2008 में आधिकारिक रूप से इस्तीफा दिया था. अमेरिका के प्रति कास्त्रो का रुख किस प्रकार का था इसकी एक झलक इसी साल मिली जब 1959 की क्रांति के बाद बराक ओबामा पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने क्यूबा का दौरा किया, लेकिन इस दौरान भी उन्होंने ओबामा से मिलने से इनकार कर दिया था.

क्या थी क्यूबा क्रांति

क्यूबा के राष्ट्रपति फुल्गेन्सियो बतिस्ता को अमेरिकी एजेंट के रूप में देखा जाता था, उसने अपने शासनकाल में (1951-1959) तक अमेरिकी हितों को सर्वोपरी रख आम जनता को नजरअंदाज करता रहा. लोग भ्रष्टाचार, असमानता और अन्य तरह की परेशानियों से जूझ रहे थे. लगातार बढ़ते रोष के वजह से क्यूबा में क्रांति ने जन्म लिया. इसकी अगुआई फिदेल कास्त्रो और चे ग्वारा कर रहे थे. 26 जुलाई, 1953 को कास्त्रो ने में भ्रष्ट तानाशाह बतिस्ता के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया. क्रांति असफल रही और उन्हें 15 साल की सजा देकर जेल में डाल दिया गया. लेकिन दो साल बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया. छूटने के बाद वे अपने भाई राउल के साथ निर्वासन में मैक्सिको चले गए. यहीं से रहकर उन्होंने चे ग्वेवारा के साथ मिलकर बतिस्ता के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाई छेड़ दी. 1959 में उन्होंने बतिस्ता को खदेड़ दिया. इसी साल वे प्रधानमंत्री बन गए. बाद में 1976 में वे राष्ट्रपति बन गए. 2008 में वे इस पद से हट गए और राउल को सत्ता सौंप दी. कास्त्रो के क्यूबा का राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका ने विरोधी रुख अपनाते हुए क्यूबा पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए.

ये भी पढ़ें- क्यूबा से हमें सीखने की जरूरत

1976 में बने थे क्यूबा के राष्ट्रपति

फिदेल कास्त्रो ने जिस हिम्मत के साथ अमेरिका के 'नाक के नीचे' (क्यूबा, अमेरिका के दक्षिण में स्थित है) अमेरिका से पंगा लेने का माद्दा दिखाया वो उनकी जबरदस्त कूटनीति का ही परिणाम था. कास्त्रो ने अमेरिकी प्रभाव कम करने के लिए सोवियत यूनियन से दोस्ती बढ़ाई. कास्त्रो ने 1960 में क्यूबा में स्थित अमेरिकी फैक्ट्रियों पर कब्ज़ा जमा कर अमेरिकी सत्ता को खुली चुनती भी दी थी.

क्यूबा में सत्ता में आने के बाद कास्त्रो ने क्यूबा में कई विकास के कार्य किये जिसमें कृषि और शिक्षा क्षेत्र में सुधार प्रमुख रहे. कास्त्रो के समर्थक उन्हें एक ऐसा शख्स बताते हैं, जिन्होंने क्यूबा को वापस यहां के लोगों के हाथों में सौंप दिया. हालांकि कास्त्रो के आलोचकों की भी कमी नहीं थी, कास्त्रो के आलोचक उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखते थे जिसने लगातार विपक्ष को बर्बरतापूर्वक कुचल रखा हो. इसके अलावा कास्त्रो की निजी जिंदगी ने भी काफी चर्चा बटोरी, उनके बारे में यह बात मशहूर थी की कास्त्रो ने अपने जीवन के 82 सालों में तकरीबन 35 हजार महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे. फिदेल कास्त्रो का भारत के प्रति भी दोस्ताना नजरिया रखा था, भारत उन देशों में था जिसने प्रतिबन्ध के बाद भी क्यूबा का समर्थन किया था. कास्त्रो के बारे में ये भी मशहूर था की वो इंदिरा गांधी को अपनी बहन मानते थे.

फिदेल कास्त्रो के प्रशंसक और आलोचक अलग अलग नजिरिये से कास्त्रो को देख सकते हैं, हालांकि विश्व पटल पर फिदेल कास्त्रो की पहचान हमेशा उस क्रान्तिकारी नेता के रूप में होगी जिसने पूरे विश्व को अत्याचार और अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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