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कोचिंग सिटी से 'सुसाइड सिटी' बन रहा है कोटा!

    • शरत कुमार
    • Updated: 07 जुलाई, 2016 09:00 PM
  • 07 जुलाई, 2016 09:00 PM
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राजस्‍थान के इस शहर में पांच महीनों में 9 छात्रों ने अपनी जान दी है. इन सभी की कहानी झकझोर देने वाली है. इनके सुसाइड नोट चेतावनी हैं एक बड़ी समस्‍या को लेकर.

लाखों छात्रों के सपनों का शहर कोटा, को औद्योगिक नगरी कहा जाता था अचानक 15-20 साल पहले एक-एक कर उधोग बंद होने शुरु हुए हुए तो यहां काम करनेवालों इंजीनियरों ने गुजारा करने के लिए छात्रों को ट्यूशन पढ़ाना शुरु किया और आज इस शहर की पहचान इंजीनियर-डाक्टर बनाने की गारंटी देनेवाले शहर की है. पर पिछले कुछ सालों में कोटा की सफलता अपने साथ समस्यआएं भी लेकर आई है, उनमें से सबसे बड़ी समस्या है पढाई के बोझ तले दबे छात्रों की आत्महत्या. इस साल पांच महीनों में 9 छात्रों की आत्महत्या ने सब को झकझोर कर रख दिया है. आज हम पड़ताल करेंगे क्या है कोटा की कहानी.

 सुसाइड सिटी बनने की राह पर कोटा

इस शहर के हर चौक-चौराहे पर छात्रों की सफलता से अटे पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि कोटा में कोचिंग हीं सबकुछ है. कोटा में इस साल एक लाख सात हजार बच्चे बाहर से इंजीनियर और डाक्टर बनने आए हैं. ये हकीकत है कि कोटा में सफलता का स्ट्राईक पचास परसेंट से उपर रहता है और देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओंमें टाप टेन में कम से पांच छात्र कोटा के ही रहते हैं. लेकिन कोटा का और सच भी है जो भयावह है. एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो असफल हो जाते हैं और उनमें से कुछ ऐसे होते हैं जो अपनी असफलता बर्दाश्त नहीं कर पाते.

इस शहर में अब तक पचास से ज्यादा छात्र सुसाइड कर चुके हैं. लेकिन इन आत्महत्याओं का सच अब तक सामने नही आया था. जांच के बावजूद राजस्थान पुलिस नहीं समझ पाई कि कोटा में आकर बच्चे क्यों जान देते हैं. लेकिन ये सच सामने लाया खुद सुसाइड करनेवाली एक लड़की ने. महज 17 साल की उम्र में दुनिया छोड़कर जानेवाली कृति त्रिपाठी ने मां-बाप, कोचिंग...

लाखों छात्रों के सपनों का शहर कोटा, को औद्योगिक नगरी कहा जाता था अचानक 15-20 साल पहले एक-एक कर उधोग बंद होने शुरु हुए हुए तो यहां काम करनेवालों इंजीनियरों ने गुजारा करने के लिए छात्रों को ट्यूशन पढ़ाना शुरु किया और आज इस शहर की पहचान इंजीनियर-डाक्टर बनाने की गारंटी देनेवाले शहर की है. पर पिछले कुछ सालों में कोटा की सफलता अपने साथ समस्यआएं भी लेकर आई है, उनमें से सबसे बड़ी समस्या है पढाई के बोझ तले दबे छात्रों की आत्महत्या. इस साल पांच महीनों में 9 छात्रों की आत्महत्या ने सब को झकझोर कर रख दिया है. आज हम पड़ताल करेंगे क्या है कोटा की कहानी.

 सुसाइड सिटी बनने की राह पर कोटा

इस शहर के हर चौक-चौराहे पर छात्रों की सफलता से अटे पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि कोटा में कोचिंग हीं सबकुछ है. कोटा में इस साल एक लाख सात हजार बच्चे बाहर से इंजीनियर और डाक्टर बनने आए हैं. ये हकीकत है कि कोटा में सफलता का स्ट्राईक पचास परसेंट से उपर रहता है और देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओंमें टाप टेन में कम से पांच छात्र कोटा के ही रहते हैं. लेकिन कोटा का और सच भी है जो भयावह है. एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो असफल हो जाते हैं और उनमें से कुछ ऐसे होते हैं जो अपनी असफलता बर्दाश्त नहीं कर पाते.

इस शहर में अब तक पचास से ज्यादा छात्र सुसाइड कर चुके हैं. लेकिन इन आत्महत्याओं का सच अब तक सामने नही आया था. जांच के बावजूद राजस्थान पुलिस नहीं समझ पाई कि कोटा में आकर बच्चे क्यों जान देते हैं. लेकिन ये सच सामने लाया खुद सुसाइड करनेवाली एक लड़की ने. महज 17 साल की उम्र में दुनिया छोड़कर जानेवाली कृति त्रिपाठी ने मां-बाप, कोचिंग संस्थान से लेकर मानव संसाधन मंत्रालय और भारत सरकार तक को बताया है कि वो क्यों मर रही है और क्यों मर रहे हैं यहां के बच्चे. कृति ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है-

'मैं भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय से कहना चाहती हूं कि अगर वो चाहते हैं कि कोई बच्चा न मरे तो जितनी जल्दी हो सके इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें. ये कोचिंग छात्रों को खोखला कर देते हैं. पढ़ने का इतना दबाव होता है कि बच्चे बोझ तले दब जाते हैं.' कृति ने लिखा है कि वो कोटा में कई छात्रों को डिप्रेशन और स्ट्रेस से बाहर निकालकर सुसाईड करने से रोकने में सफल हुई लेकिन खुद को नहीं रोक सकी. 'बहुत लोगों को विश्वास नहीं होगा कि मेरे जैसी लड़की सुसाइड भी कर सकती है, लेकिन मैं आपलोगों को समझा नहीं सकती कि मेरे दिमाग और दिल में कितनी नफरत भरी है.'

अपनी मां के लिए उसने लिखा- 'आपने मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा उठाया और मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर करती रहीं. मैं भी विज्ञान पढ़ती रहीं ताकि आपको खुश रख सकूं. मैं क्वांटम फिजिक्स और एस्ट्रोफिजिक्स जैसे विषयों को पसंद करने लगी और उसमें ही बीएससी करना चाहती थी लेकिन मैं आपको बता दूं कि मुझे आज भी अंग्रेजी साहित्य और इतिहास बहुत अच्छा लगता है क्योंकि ये मुझे मेरे अंधकार के वक्त में मुझे बाहर निकालते हैं.' कृति अपनी मां को चेतावनी देती है कि- 'इस तरह की चालाकी और मजबूर करनेवाली हरकत 11 वीं क्लास में पढ़नेवाली छोटी बहन से मत करना. वो जो बनना चाहती है और जो पढ़ना चाहती है उसे वो करने देना क्योंकि वो उस काम में सबसे अच्छा कर सकती है जिससे वो प्यार करती है.'

मुरादाबाद की अंजली आनंद कोटा के राजीव गांधी नगर के एक अपार्टमेंट में रहकर मेडिकल की तैयारी कर रही थी. इस साल दूसरी बार कोशिश कर रही थी. अपने मां बाप के सपने पूरे नहीं कर पाने का गम और अपने दोस्तों के मेडिकल में सलेक्शन हो जाने से हीनता का भाव अंजली के मन में घर कर गया था और फिर  एक दिन अंजली ने अपने कमरे में हीं फांसी लगा ली थी.

 पांच महीनों में 9 छात्रों ने की आत्महत्या

अंजली अकले नहीं है. मध्यप्रदेश के सतवाड़ा के योगेश कुमार की मौत ने सब को हिला कर रख दिया था. इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा योगेश, अपने हॉस्टल के कमरे में खुद को आग लगाकर बालकनी से कूद गया जिससे उसकी मौत हो गई. कोटा के जवाहर नगर  के पीजी रेजीडेन्सी में रहनेवाला  बिहार का छात्र सिद्धार्थ रंजन इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था लेकिन उसने अपने कमरे में फांसी लगा ली. पुलिस की जांच में सामने आया है कि सिद्धार्थ और उसके घरवालों के बीच व्हाट्स ऐप पर झगड़े हुए थे. सिद्धार्थ ने लिखा कि घरवाले हमेशा यही पूछते थे कि पढ़ाई कैसी चल रही है, ये कभी नही पूछा कि तू कैसा है.

पिछले साल जून में हुई घटना ने तो पूरी कोचिंग व्यवस्था पर ही सवाल खड़े कर दिए थे. उत्तर प्रदेश के बदायूं से पिता कुलदीप रस्तोगी अपनी 18 साल की बेटी दीपांशी को लेकर कोटा में मेडिकल की कोचिंग में एडमिशन करवाने लाए थे. लेकिन जिस होटल में बाप-बेटी रुके थे वहां सुबह दोनों की लाश मिली. पिता ने आर्थिक तंगी से तंग आकर बेटी को मार डाला और खुद भी खुदकुशी कर ली. पिता ने सुसाइड नोट में लिखा कि बेटी कोचिंग के लिए जिद पर अड़ी थी और मेरे पास पैसे नहीं हैं, क्या करें.

दरअसल कोटा में पिछले एक साल में 40 छात्रों ने आत्महत्या की है. हो सकता है कि इनमें से कुछ मौतों की वजह निजी हो लेकिन पुलिस की मानें तो ज्यादातर बच्चे पढ़ाई के बेहद दबाव में रहते हैं. इन मामलों में भी प्राथमिक जांच में मौत की वजह यही आई है. लेकिन एलन कोचिंग के संचालक नवीन महेश्वरी कहते हैं कि अकेले कोचिंग संस्थानों को दोष नहीं दिया जा सकता है. छात्र महज चार-पांच घंटे कोचिंग में रहते हैं और उसके बाद होस्टल में या फिर घरवालों के साथ रहते हैं. घरवालों का भी दबाव रहता है.

इन मौतों के बाद कोटा के कोचिंग मॉडल पर भले ही सवाल उठने लगे हैं लेकिन कोचिंग प्रतियोगी परीक्षाओं की एक ऐसी जरुरत है जिसे बंद नही किया जा सकता. ऐसा भी नहीं हुआ है कि इन मौतों से घबराकर कोई अभिभावक अपने बच्चे को कोटा से लेकर वापस गया हो या फिर कोचिंग में आनेवाले छात्रों की संख्या कम हुई हो. ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा क्या किया जाए कि कोटा में पढ़नेवाले छात्रों की खुदकुशी पर रोक लगे.

क्यों छात्र करने लगे हैं आत्महत्यआएं

शिक्षा नगरी कोटा में छोटे-बड़े मिलाकर पचास से ज्यादा कोचिंग हैं. यहां तक कि दिल्ली मुंबई और दक्षिण कोरिया की कोचिंग संस्थाएं भी कोटा में अपना सेंटर खोल रही हैं. सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं. आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में पढ़नेवाले छात्र बड़ी-बड़ी कंपनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोड़कर यहां कोचिंग संस्थाओं में पढ़ाने आ रहे हैं क्योंकि यहां तनख्वाह कहीं ज्यादा है. अकेले कोटा शहर में 70 से ज्यादा आईआईटी स्टूडेंट छात्रों को पढ़ा रहे हैं. समस्या भी यहीं शुरु हो जाती है. हर बच्चा ये मानने लगा है कि कोटा जाने मात्र से ही इंजीनियर और डाक्टर बना जा सकता है. मां-बाप भी यही समझते हैं कि बेटा कोटा गया है यानि इंजीनियर या डाक्टर तो बनेगा ही. बच्चे लगातार इस दबाव में रहते हैं कि उन्हें हर हाल में क्वालीफाई करना है. बिहार के कटिहार की निशा और पश्चिम बंगाल की पुरुलिया की दीपानिता का कहना है कि कोटा शहर को उन्होंने इसीलिए चुना है क्योंकि यहां कि सफलता की कहानियां उन्होंने सुनी हैं. हालांकि पढ़ाई के प्रेशर की सच्चाई को ये मानते हैं पर इनका कहना है कि इसके लिए बच्चे और पेरेंट्स ज्यादा दोषी हैं.

 बच्चों पर रहता है माता-पिता का दबाव

कोटा के एलन कोचिंग का नाम तो लिमका बुक आफ रिकार्ड में है कि इसमें अकेले एक लाख छात्र पढ़ते हैं इतने छात्र तो किसी यूनिवर्सिटी में नहीं पढ़ते. अकेले कोटा में करीब 70 हजार छात्र हैं इनमें से बिहार जैसे राज्यों से आनेवाले छात्रों की संख्या 20 हजार के आसपास है. लेकिन समस्या है कि दक्षिण भारत के राज्यों की तरह इन्हें सीनियर स्कूल चलाने की इजाजत नहीं है, लिहाजा कोचिंग के अलावा ये कुछ नहीं कर पाते. पढ़ाई तो स्कूलिंग से ज्यादा मेहनत वाला हो जाता है मगर खेल और मनोरंजन जैसे स्कूलों के साधन यहां उपलब्ध नहीं हैं. इन कोचिंग संस्थानों के पास इतनी जगह भी नहीं है कि ये खुद का हॉस्टल चला सकें. ऐसे में छात्र-छात्राएं खुद कमरे किराए पर लेकर रहते हैं.

कुछ छात्र जो पैसे वाले हैं वो अकेले कमरा लेकर रहना चाहते हैं जिसकी वजह से छात्रों का जीवन और अकेला हो जाता है. साथ ही कुछ ऐसे भी छात्र हैं जिनके मां-बाप बेहद गरीब हैं और उन्होंने कर्ज लेकर बच्चे को पढ़ने के लिए भेजा है. लेकिन जब बच्चे को अपेक्षा के अनुरुप सफलता नहीं मिलती तो घबराकर वो ऐसे कदम उठा लेता है कि मां-बाप का क्या होगा, मैं उनका सपना नहीं पूरा कर पाया. कई बार बच्चा अपने स्कूल-कॉलेज या इलाके का टॉपर होता है, मगर यहां उसको अच्छी रैंक नहीं मिलती तो वो टूट जाता है. ऐसे में कोचिंग की रैंकिंग बंद करने को लेकर भी लोग अवाज उठने लगी हैं. कोचिंग संचालक भी मानते हैं कि छात्रों की आत्महत्या जैसी घटनाएं उनके लिए चुनौती है.

कोचिंग संस्थाओं में भी एक तरह का कंपटीशन है कि किसके बच्चे कितने सफल होते हैं. ऐसे में ये भी बच्चों को अंधाधुंध पढ़ाई में झोके रखते हैं. साथ ही ज्यादा से ज्यादा बच्चों का एडमिशन अपने यहां करवाना चाहते हैं या फिर बच्चे बच्चों की ज्यादा सफलता दिलानेवाले कोचिंग में एडमिशन लेने की होड़ की वजह से एक क्लास में जरुरत से ज्यादा बच्चे हो जाते हैं. ऐसे में टीचर ठीक ढंग से हर बच्चे पर ध्यान नहीं दे पाता. लेकिन अब इन घटनाओं के बढ़ने की वजह से कोचिंग संस्थानों में भी खलबली मची है कि अगर ये नहीं रुका तो कोटा बदनाम हो जाएगा लिहाजा इसके लिए हर स्तर पर प्रयास भी शुरु हुए हैं.

 आत्महत्याएं रोकने के लिए प्रयार जारी

प्रशासन और कोचिंग संचालक तलाश रहे हैं आत्महत्याएं रोकने के रास्ते

कोटा की पूरी अर्थव्यवस्था कोचिंग पर ही टिकी है. ऐसे में कोचिंग सिटी के सुसाइड सिटी में बदलने से लोगों में घबराहट है, कि कहीं छात्र कोटा से मुंह न मोड़ लें. इसे देखते हुए प्रशासन, कोचिंग संस्थाएं और आम शहरी इस कोशिश में लग गए हैं कि आखिर छात्रों की आत्महत्याओं को कैसे रोका जाए. इसके लिए जहां प्रशासन ने नियम कायदे कानून बनाना शुरु किया है वहीं कोचिंग संस्थाएं भी अपने यहां छात्रों के लिए मनोरंजन के साधन की व्यवस्था के अलावा हेल्प लाइन भी शुरु कर रहे हैं.

कोटा में सन 2000 से लेकर अब तक 283 कोचिंग छात्रों ने आत्महत्या जैसे कदम उठाए हैं, लेकिन एक साल अकेले 24 छात्रों की आत्महत्या ने सबको झकझोर कर रख दिया. इसके लिए जिला प्रशासन ने कोटा के कोचिंग संचालकों, पुलिस, अभिभावकों और मनोविज्ञान के डाक्टरों की बैठक बुलाई जिसमें इसबात पर मंथन किया गया कि आखिर कम उम्र में खत्म हो रही नौनिहालों की जिंदगी को खत्म होने से कैसे बचाया जाए. इसके लिए तय किया गया कि अब-

  1. सप्ताह में एक दिन की छुट्टी सभी छात्रों को देने होगी जो अबतक नहीं मिलती थी.
  2. हर छात्र का एडमिशन के समय स्क्रीन टेस्ट होगा जिसमें तय हो सके कि ये इंजीनियर या डाक्टर बनने के क्षमता रखता है कि नहीं. हर छात्र की प्रतिभा एक जैसी नहीं होती, ऐसे में मां- बाप जबरन कोटा लेकर चले आते हैं कि बेटा इंजीनियर-डाक्टर बनेगा. इसे लेकर कोचिंग संस्थान बच्चे और मां बाप को काउंसलर के जरीए काउंसलिंग करवाएंगे.
  3. हर कोचिंग संस्थान को काउंसलर रखना जरुरी होगा जो बच्चों को समय-समय पर काउंसलिंग करता रहेगा. साथ ही कोचिंग संस्थाएं मनोचिकित्सक की भी सुविधा रखेंगे.
  4. बच्चों के मनोरंजन के साधन रखने होंगे और पढ़ाई के अलावा दूसरी एक्टिविटी भी करानी होगी.
  5. पुलिस सभी कोचिंग संस्थाओं के रिकार्ड रखेगी और इलाके में रहनेवाले बच्चों पर नजर रखी जाएगी.
  6. कोचिंग क्लास में ग्रेड नहीं दिया जाएगा और ग्रेड के आधार पर बैच बटवारा नहीं होगा.
  7. होस्टल संचालकों को अपने यहां रहनेवाले छात्रों की देखभाल की पूरी जिम्म्दारी होगी.
  8. कोचिंग में छात्र और टीचर के अनुपात तय किए जाएंगे.
  9. गरीब छात्रों को आर्थिक सहायता भी दी जाएगी.

आत्महत्या की घटनाओं के बाद कोचिंग में भी छात्रों को रेगुलर क्लासेस में ब्रेक दिया जा रहा है और उस दौरान कोशिश की जा रही है कि कार्टून जैसे हास्य सीरियल टीवी पर दिखाए जाएं ताकि तनाव कम हो. इसके अलावा हर जगह स्टूडेंट हेल्प लाईन भी शुरु किया गया है जो जगह-जगह दिवारों पर लगाया गया है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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