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असहिष्णुता पर बहस के बीच एक रेप सरवाइवर की दास्तां

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 26 नवम्बर, 2015 05:11 PM
  • 26 नवम्बर, 2015 05:11 PM
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वह हिंदू परिवार में जन्मी. मुस्लिम परिवार में जन्मे किसी दरिंदे ने उसके साथ ज्यादती की. न चाहते हुए भी बच्चे को जन्म देना पडा. पीडि़ता और उसका बच्चा अब न हिंदू और न मुस्लिम. रोज रोज नई ज्यादती झेलने वाले सिर्फ दो पीड़ित.

असहिष्णुता पर बहस क्या होती है, ये उसे नहीं मालूम. मगर, असहिष्णुता होती कैसी है, इसे उससे बेहतर कोई और जान भी नहीं सकता. उसका क्रूरतम रूप कैसा हो सकता है, उसकी जिंदगी इसकी प्रयोगशाला बन कर रह गई है.

समाज के एक तबके ने उसे बेदखल कर दिया है. दूसरा उस पर अपने रीति रिवाज थोपना चाहता है. बेदखली के बाद घरवापसी में भी कई पेंच फंसे हुए हैं.

वो दर्द भरी दास्तां

कहानी गुजरात के बोटाड जिले की है. कभी उसका भी खुशहाल परिवार था. पति और दो बच्चों के साथ हंसती खेलती जिंदगी बखूबी बीत रही थी. फिर एक दिन उसे अगवा कर लिया गया.

आज तक संवाददाता गोपी मनियार से बातचीत में उसने बताया कि अगवा करने वाले उसके साथ किस तरह लगातार बलात्कार करते रहे, "उन्होंने करीब आठ महीने तक रोज़ मेरा बलात्कार किया. चार लोग तो नियमित थे, बाकी आते-जाते रहते थे. अगर मैं कुछ ऐसा करती जो उन्हें पसंद न आता तो वह मुझे पीटते. रोने में भी डर लगता था."

पढ़ें: 8 माह दुष्कर्म, 7 माह का गर्भ और जीवनभर का दर्द

बलात्कार के बाद गर्भ ठहर गया और जब उसे गुजरात हाई कोर्ट से गर्भपात की इजाजत नहीं मिली तो उसने बच्चे को जन्म दिया. ससुराल में जगह नहीं मिली तो वो मायके चली गई. लेकिन उसकी मुश्किलें कम होने की जगह बढ़ती ही गईं.

शुद्धिकरण के लिए 50 हजार

गैंगरेप के बाद उसके देवीपूजक समाज ने उसे बहिष्कृत कर दिया. समाज के लिए बलात्कार से भी बड़ा अपराध था अछूत माने जाने वालों का छू देना. समाज ने फरमान जारी किया कि दफर समुदाय के छूने के बाद देवी की मौजूदगी में पंडित द्वारा बेटी का शुद्धीकरण होना जरूरी है.

मायके में रह रही पीड़ित के शुद्धिकरण पर 50 हजार का खर्च है. ये रकम भी मायकेवालों को ही जुटानी है. उसकी दो छोटी बहनें...

असहिष्णुता पर बहस क्या होती है, ये उसे नहीं मालूम. मगर, असहिष्णुता होती कैसी है, इसे उससे बेहतर कोई और जान भी नहीं सकता. उसका क्रूरतम रूप कैसा हो सकता है, उसकी जिंदगी इसकी प्रयोगशाला बन कर रह गई है.

समाज के एक तबके ने उसे बेदखल कर दिया है. दूसरा उस पर अपने रीति रिवाज थोपना चाहता है. बेदखली के बाद घरवापसी में भी कई पेंच फंसे हुए हैं.

वो दर्द भरी दास्तां

कहानी गुजरात के बोटाड जिले की है. कभी उसका भी खुशहाल परिवार था. पति और दो बच्चों के साथ हंसती खेलती जिंदगी बखूबी बीत रही थी. फिर एक दिन उसे अगवा कर लिया गया.

आज तक संवाददाता गोपी मनियार से बातचीत में उसने बताया कि अगवा करने वाले उसके साथ किस तरह लगातार बलात्कार करते रहे, "उन्होंने करीब आठ महीने तक रोज़ मेरा बलात्कार किया. चार लोग तो नियमित थे, बाकी आते-जाते रहते थे. अगर मैं कुछ ऐसा करती जो उन्हें पसंद न आता तो वह मुझे पीटते. रोने में भी डर लगता था."

पढ़ें: 8 माह दुष्कर्म, 7 माह का गर्भ और जीवनभर का दर्द

बलात्कार के बाद गर्भ ठहर गया और जब उसे गुजरात हाई कोर्ट से गर्भपात की इजाजत नहीं मिली तो उसने बच्चे को जन्म दिया. ससुराल में जगह नहीं मिली तो वो मायके चली गई. लेकिन उसकी मुश्किलें कम होने की जगह बढ़ती ही गईं.

शुद्धिकरण के लिए 50 हजार

गैंगरेप के बाद उसके देवीपूजक समाज ने उसे बहिष्कृत कर दिया. समाज के लिए बलात्कार से भी बड़ा अपराध था अछूत माने जाने वालों का छू देना. समाज ने फरमान जारी किया कि दफर समुदाय के छूने के बाद देवी की मौजूदगी में पंडित द्वारा बेटी का शुद्धीकरण होना जरूरी है.

मायके में रह रही पीड़ित के शुद्धिकरण पर 50 हजार का खर्च है. ये रकम भी मायकेवालों को ही जुटानी है. उसकी दो छोटी बहनें भी हैं - एक 17 की और दूसरी 15 साल की.

फिलहाल मां के सामने सबसे भारी मुश्किल यही है, "अगर हमने ये रस्मअदायगी नहीं की तो हमारी बेटियों से कौन शादी करेगा?" लेकिन बड़ी बेटी की मुश्किलें और ही हैं. ये मुश्किलें रोज नई नई शक्ल अख्तियार करती जा रही हैं.

लहंगा-चोली क्यों क्यों?

जिस गांव में वो रहती है, उसी गांव में उससे ज्या्दती करने वाले भी रहते हैं. वे उसे परेशान करने और उस पर दबाव बनाने के लिए रोज नया नया तरीका अपनाते हैं.

टाइम्स ऑफ इंडिया से अपनी पीड़ा साझा करते हुए पीड़ित की मां बताती है कि किस तरह लहंगा-चोली पहनने पर दो आरोपियों की पत्नियों ने बेटी की पिटाई की. मां बताती है, "उन्होंने मेरी बेटी को मुस्लिम पोशाक नहीं पहनने को लेकर बुरी तरह पीटा. मेरी बेटी से उन्होंने यहां तक कहा कि वो इस्लाम के हिसाब से रहे क्योंकि उसने उसी समुदाय के एक शख्स की औलाद को जन्म दिया है."

असहिष्णुता पर क्या बहस चल रही है उसे नहीं पता. वो तो अपनों के बीच ही घर में ही रहकर घरवापसी के लिए संघर्ष कर रही है. उसके दर्द सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. जब वो समाज से सवाल पूछती है तो उसके जवाब नहीं सूझते.

पहले आठ माह तक लगातार बलात्कार, फिर नौ महीने तक अनचाहे गर्भ का बोझ और अब रोज रोज बलात्कार जैसा ही सलूक.

आखिर कब थमेगा उसके साथ रोजाना बलात्कार का ये सिलसिला?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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