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रामनाथ कोविंद के नाम पर आम राय क्यों नहीं !

    • आदर्श तिवारी
    • Updated: 20 जून, 2017 07:19 PM
  • 20 जून, 2017 07:19 PM
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विपक्ष दलितों के नाम पर राजनीतिक रोंटी सेकते आए हैं, किन्तु जब एनडीए ने एक दलित तबके से आने वाले व्यक्ति को देश का सर्वोच्च पद का उम्मीदवार बनाया तो इनके दलित प्रेम के दोहरे मापदंडों की पोल खुल गई.

सभी प्रकार की अटकलों पर विराम लगाते हुए एनडीए ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाएं जाने की घोषणा की है. इससे पहले कई नाम चर्चा में रहे किन्तु एक गहन मंथन के बाद बीजेपी नेतृत्व ने रामनाथ कोविंद के नाम पर सहमती जताई तथा इसकी सूचना अन्य दलों को भी दी. रामनाथ कोविंद एक ऐसा नाम सामने आया जिसका अंदाजा किसी को नहीं था.

रामनाथ कोविंद का नाम चर्चाओं में भी नहीं था

एक बात तो तय है अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी जबसे भारतीय राजनीति के क्षितिज पर पहुंची हैं, सभी कयास विफल साबित हो रहे हैं. राजनीतिक पंडितों के अनुमान धरे के धरे रह जा रहे हैं. इनकी राजनीति की कार्यशैली न केवल चौंकाने वाली है बल्कि इस बात की तरफ इशारा भी करती है कि यह जोड़ी किसी भी फैसले को लेने से पहले उस फैसले के सभी पहलुओं पर भारी विमर्श और उसके दीर्घकालिक परिणामों को जेहन में रखकर निर्णय लेने में विश्वास रखती है. इसमें कोई दोराय नहीं कि आज समूची भारतीय राजनीति की सबसे सफलतम जोड़ियों में से यह जोड़ी वर्तमान राजनीति की दिशा व दशा तय कर रही है.

राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा होते ही पूरा विपक्ष काफी देर तक यह समझने में असमर्थ रहा की इस फैसला का विरोध कैसे करें. क्योंकि एनडीए ने देश के सबसे सर्वोच्च पद के लिए दलित जाति से आने वाले रामनाथ कोविंद के नाम का चयन किया. रामनाथ कोविंद का जीवन सहज व सरल रहा है. दलगत राजनीति में सक्रिय रहने के बावजूद रामनाथ गोविन्द सबके प्रिय रहे तथा कभी विवादों में नही आए. उनका सार्वजनिक जीवन सहजता और अंतिम पंक्ति के खड़े व्यक्ति के लिए समर्पित रहा है. उनको जानने वाले यह तक बताते हैं कि सांसद होने के बावजूद वह वर्षों तक किराए के मकान में रहे. चूंकि रामनाथ कोविंद का पूरा जीवन दलित, शोषित, पीड़ितों की आवाज उठाने...

सभी प्रकार की अटकलों पर विराम लगाते हुए एनडीए ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाएं जाने की घोषणा की है. इससे पहले कई नाम चर्चा में रहे किन्तु एक गहन मंथन के बाद बीजेपी नेतृत्व ने रामनाथ कोविंद के नाम पर सहमती जताई तथा इसकी सूचना अन्य दलों को भी दी. रामनाथ कोविंद एक ऐसा नाम सामने आया जिसका अंदाजा किसी को नहीं था.

रामनाथ कोविंद का नाम चर्चाओं में भी नहीं था

एक बात तो तय है अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी जबसे भारतीय राजनीति के क्षितिज पर पहुंची हैं, सभी कयास विफल साबित हो रहे हैं. राजनीतिक पंडितों के अनुमान धरे के धरे रह जा रहे हैं. इनकी राजनीति की कार्यशैली न केवल चौंकाने वाली है बल्कि इस बात की तरफ इशारा भी करती है कि यह जोड़ी किसी भी फैसले को लेने से पहले उस फैसले के सभी पहलुओं पर भारी विमर्श और उसके दीर्घकालिक परिणामों को जेहन में रखकर निर्णय लेने में विश्वास रखती है. इसमें कोई दोराय नहीं कि आज समूची भारतीय राजनीति की सबसे सफलतम जोड़ियों में से यह जोड़ी वर्तमान राजनीति की दिशा व दशा तय कर रही है.

राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा होते ही पूरा विपक्ष काफी देर तक यह समझने में असमर्थ रहा की इस फैसला का विरोध कैसे करें. क्योंकि एनडीए ने देश के सबसे सर्वोच्च पद के लिए दलित जाति से आने वाले रामनाथ कोविंद के नाम का चयन किया. रामनाथ कोविंद का जीवन सहज व सरल रहा है. दलगत राजनीति में सक्रिय रहने के बावजूद रामनाथ गोविन्द सबके प्रिय रहे तथा कभी विवादों में नही आए. उनका सार्वजनिक जीवन सहजता और अंतिम पंक्ति के खड़े व्यक्ति के लिए समर्पित रहा है. उनको जानने वाले यह तक बताते हैं कि सांसद होने के बावजूद वह वर्षों तक किराए के मकान में रहे. चूंकि रामनाथ कोविंद का पूरा जीवन दलित, शोषित, पीड़ितों की आवाज उठाने तथा उनके हितों की पूर्ति के लिए संघर्ष करते हुए बीता है. इसके अतिरिक्त पेशे से वकील रह चुके रामनाथ कोविंद को कानून तथा संविधान के साथ राजनीति का भी लम्बा अनुभव रहा है. उनकी यह सब विशेषताएं उनको राष्ट्रपति पद के मानकों के लिए उपयुक्त बनाती हैं.

एनडीए के साथ बाहरी दलों ने भी इस फैसले का समर्थन किया है. मोदी के धुर विरोधी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो नाम की घोषणा होते ही राज भवन पहुंचकर उन्हें बधाई दी. मायावती भी इस बात को जानती हैं कि कोविंद उत्तर प्रदेश के निवासी हैं और दलित समुदाय से आते हैं. ऐसे में मायावती इस फैसले का विरोध करने की जहमत नहीं उठाएंगी. मुलायम भी इस बात को कह चुके हैं कि वह एनडीए का साथ दे सकते हैं. टीआरएस, अन्नाद्रमुक और बीजद ने पहले ही समर्थन देने की घोषणा कर दी है.

इन सबके बावजूद यह कहना मुश्किल है कि रामनाथ कोविंद के नाम पर आम राय बनेगी? कांग्रेस और वामपंथीयों ने इस फैसले को एकतरफा बताते हुए  विरोध किया है और 22 जून को होने वाले विपक्षी दलों की बैठक में फैसला लेने की बात कही है. गौरतलब है कि कांग्रेस और वामदल वर्षो से दलितों के नाम पर राजनीतिक रोंटी सेकते आए हैं, किन्तु जब एनडीए ने एक दलित तबके से आने वाले व्यक्ति को देश का सर्वोच्च पद का उम्मीदवार बनाया तो इनके दलित प्रेम के दोहरे मापदंडों की पोल खुल गई. बिहार से सटे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह कहना कि वह कोविंद को नहीं जानतीं, विपक्ष द्वारा नकारात्मक विरोध की मानसिकता को दर्शाता है.

देश यह देख रहा है कि किस तरह राष्ट्रपति चुनाव में यह दल छिछली राजनीति करने पर आमादा हैं. दलित राग अलापने तथा आरएसएस और बीजेपी को दलित विरोधी बताने वाले विपक्षी दलों पर मोदी व अमित शाह का यह फैसला करारा तमाचा है. 22 जून को होने वाली विपक्ष की बैठक के बाद यह स्पष्ट हो जायेगा कि उनका उम्मीदवार कौन होगा किन्तु सभी प्रकार के राजनीतिक पैतरें चलने के बावजूद भी विपक्षी इस बात को जानते हैं कि उनके खेमे के व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाना टेढ़ी खीर है.

बीजेपी ने इस निर्णय के साथ देश को यह संदेश देने का काम किया है कि उसके एजेंडे में वर्षों से उपेक्षित दलित समाज का विशेष महत्व है. यह भी लगभग तय हो चुका है कि कोविंद ही भारत के अगले राष्ट्रपति होंगें. विपक्ष इस बात को जानता है कि सभी दावों के बाद भी वह अपनी पसंद का राष्ट्रपति नहीं बना सकता, लेकिन इसी बहाने वह अपनी राजनीतिक शक्ति दिखाने की रस्मअदायगी भर कर सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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