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राम नाथ कोविंद का राष्ट्रपति बनना तय, क्योंकि...

    • राहुल लाल
    • Updated: 20 जून, 2017 01:22 PM
  • 20 जून, 2017 01:22 PM
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बिहार के राज्यपाल एवं एनडीए के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद उदारवादी चेहरे के रुप में देखे जाते हैं. ऐसे में सरकार ने विपक्ष की उस विशेष मांग को भी स्वीकार किया कि राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी उदारवादी हो.

भाजपा के राष्ट्रपति प्रत्याशी के बारे में पूरे देश को इंतजार था. एनडीए के तरफ से बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा बिल्कुल चौंकाने वाली थी, क्योंकि अब तक जिन नामों के बारे में चर्चा की जा रही थी उसमें रामनाथ कोविंद शामिल नहीं थे. रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा मूलत: भारतीय जनता पार्टी के मास्टर स्ट्रोक के रुप में देखी जा सकती है. बिहार में वे अगस्त 2015 से राज्यपाल पद पर हैं, फिर भी वो कभी किसी विवाद में नहीं आए बल्कि राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के लोग उनका पूर्ण सम्मान करते हैं.

अगस्त 2015 से बिहार के राज्यपाल हैं राम नाथ कोविंद

रामनाथ कोविंद दलित वर्ग से आते हैं, ऐसे में चाहे भारत में दलित राजनीति करने वाले दल हों या सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष का दावा करने वाले दल हो, उन सभी का वर्तमान परिस्थिति में रामनाथ कोविंद का विरोध करना मुश्किल  ही होगा. उनके नाम की घोषणा के साथ ही तेलांगना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने भी एनडीए को समर्थन देने की घोषणा कर दी है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी से बातचीत की.

बिहार के राज्यपाल एवं एनडीए के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद उदारवादी चेहरे के रुप में देखे जाते हैं. ऐसे में सरकार ने विपक्ष की उस विशेष मांग को भी स्वीकार किया कि राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी उदारवादी हो. रामनाथ कोविंद 1994 एवं 2000 में राज्यसभा के सांसद रहे हैं. पेशे से वकील कोविंद भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रमुख भी रहे हैं. वे 1977 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विशेष कार्यकारी अधिकारी रह चुके हैं. रामनाथ कोविंद...

भाजपा के राष्ट्रपति प्रत्याशी के बारे में पूरे देश को इंतजार था. एनडीए के तरफ से बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा बिल्कुल चौंकाने वाली थी, क्योंकि अब तक जिन नामों के बारे में चर्चा की जा रही थी उसमें रामनाथ कोविंद शामिल नहीं थे. रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा मूलत: भारतीय जनता पार्टी के मास्टर स्ट्रोक के रुप में देखी जा सकती है. बिहार में वे अगस्त 2015 से राज्यपाल पद पर हैं, फिर भी वो कभी किसी विवाद में नहीं आए बल्कि राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के लोग उनका पूर्ण सम्मान करते हैं.

अगस्त 2015 से बिहार के राज्यपाल हैं राम नाथ कोविंद

रामनाथ कोविंद दलित वर्ग से आते हैं, ऐसे में चाहे भारत में दलित राजनीति करने वाले दल हों या सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष का दावा करने वाले दल हो, उन सभी का वर्तमान परिस्थिति में रामनाथ कोविंद का विरोध करना मुश्किल  ही होगा. उनके नाम की घोषणा के साथ ही तेलांगना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने भी एनडीए को समर्थन देने की घोषणा कर दी है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी से बातचीत की.

बिहार के राज्यपाल एवं एनडीए के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद उदारवादी चेहरे के रुप में देखे जाते हैं. ऐसे में सरकार ने विपक्ष की उस विशेष मांग को भी स्वीकार किया कि राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी उदारवादी हो. रामनाथ कोविंद 1994 एवं 2000 में राज्यसभा के सांसद रहे हैं. पेशे से वकील कोविंद भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रमुख भी रहे हैं. वे 1977 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विशेष कार्यकारी अधिकारी रह चुके हैं. रामनाथ कोविंद दिल्ली हाई कोर्ट में 1977 से 1979 तक केन्द्र सरकार के वकील रहे थे. 1980 से 1993 तक केन्द्र सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल में थे. दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने 16 वर्ष प्रैक्टिस की. 1971 में दिल्ली बार काउंसिल के लिए नामांकित हुए थे. साथ ही वे बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रह चुके हैं. कोविंद गवरनर्स ऑफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के भी सदस्य रहे हैं. 2002 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के महासभा को भी संबोधित किया था.

उनके नाम के घोषणा के बाद कांग्रेस ने कहा कि वे अभी रामनाथ कोविंद के मेरिट-डिमेरिट पर नहीं बोलेंगे, लेकिन कांग्रेस ने कहा कि बीजेपी ने एकतरफा फैसला किया तथा हमें पहले से नहीं बताया गया. कांग्रेस के अनुसार निर्णय की केवल जानकारी देना सर्वसहमति बनाने का प्रयास नहीं है अपितु पूर्णत: एकपक्षीय निर्णय है. कांग्रेस के अनुसार वह विपक्ष से वार्ता के बाद ही राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी पर कोई टिप्पणी करेंगे. विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव पर 22 जून को बैठक कर रहा है. अभी तक शिवसेना ने भी अपना पक्ष स्पष्ट नहीं किया है. प्रारंभ राष्ट्रपति चयन का अधिकार प्रधानमंत्री को दिए जाने पर शिवसेना ने अपना विरोध प्रकट किया था.

रामनाथ कोविंद देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति बन सकते हैं. इससे पहले के आर नारायण देश के पहले दलित राष्ट्रपति थे. उन्हें 1997 में राष्ट्रपति बनाया गया था, इसके पूर्व वे 1992 में उपराष्ट्रपति बने थे. देश के राष्ट्रपति के रुप में इतिहास में के आर नारायण का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. उन्होंने राष्ट्रपति पद को रबर स्टांप की तुलना में संविधान के संरक्षक की भूमिका प्रदान की थी. राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुसार कार्य करते हैं, परंतु 44 वें संविधान संशोधन के अनुसार उन्हें मंत्रिमंडल के निर्णय को एक बार पुनर्विचार के लिए लौटाने की शक्ति है. प्रथम दृष्टया यह शक्ति गैर महत्वपूर्ण लगती है, लेकिन जब महामहिम ऐसे मामलों में जब उन्हें लगता हो कि सरकार का कोई निर्णय विधिसम्मत नहीं है तो ऐसे में पुनर्विचार के लिए लौटाए जाने पर सरकार  को एक कठोर संकेत दे सकते हैं. इसी प्रकार अल्पमत सरकार के स्थिति में भी सरकार निर्माण में राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियां महत्वपूर्ण होती हैं.

ऐसे में रामनाथ कोविंद जो संविधान के जानकार भी हैं तथा वर्तमान में बिहार के राज्यपाल हैं, से राष्ट्र को यह विश्वास है कि वे सफलतापूर्वक अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी पूरी करेंगे.

एनडीए के इस मास्टर स्ट्रोक ने विपक्ष के समक्ष भी धर्मसंकट उत्पन्न कर दिया है. कांग्रेस मीरा कुमार जैसे प्रभावशाली दलित उम्मीदवार को खड़ा करके मुकाबला को दिलचस्प तो बना सकती है, परंतु जीत नहीं सकती है. प्रधानमंत्री मोदी ने विभिन्न ट्वीट्स के द्वारा रामनाथ कोविंद को किसान पुत्र और संविधान का जानकार बताया है. प्रधानमंत्री ने कहा है कि मुझे भरोसा है कि रामनाथ कोविंद बेहतर राष्ट्रपति होंगे. उनके सादगीपूर्ण व्यवहार एवं विवाद रहित छवि ने उन्हें आगामी राष्ट्रपति पद के चुनाव में अत्यंत गंभीर प्रत्याशी तो बना ही दिया है. संख्या वर्तमान में एनडीए के साथ है, ऐसे में विपक्ष के उम्मीदवार खड़ा करने पर भी रामनाथ कोविंद का अगला राष्ट्रपति बनना लगभग तय है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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