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नोटबंदी: नीतीश का समर्थन एक खतरनाक सियासी दांव है

    • सुजीत कुमार झा
    • Updated: 27 नवम्बर, 2016 07:00 PM
  • 27 नवम्बर, 2016 07:00 PM
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17 सालों तक बीजेपी के साथ रहे नीतीश कुमार पर से बीजेपी का ठप्पा उतरा था. अब प्रधानमंत्री के कदमों को लेकर उनके समर्थन से पार्टी की भवें तन गई हैं. क्या चल रहा है नीतीश के मन में...

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नोटबंदी को समर्थन करने से महागठबंधन की अन्य पार्टियां आरजेडी और कांग्रेस की जान अधर में है.  उनकी पार्टी के नेताओं की समझ में नही आ रहा है कि आखिर वो क्या स्टैण्ड लें. इससे पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक पर नीतीश कुमार प्रधानमंत्री मोदी को अपना समर्थन जता चुके हैं. इन दोनों मामलों में नीतीश कुमार पूरी तरह इमानदारी से नरेंद्र मोदी के साथ खड़े हैं. जिससे उनके सहयोगी दलों को काफी दिक्कत हो रही है, चाहें वो आरजेडी हो या फिर कांग्रेस. लेकिन इन दोनों मामलों में केन्द्र के समर्थन में खडे़ होने से क्या यह सोच लेना चाहिए कि नीतीश कुमार एक बार फिर बीजेपी की तरफ जा रहे हैं? यह सवाल हर आदमी के जेहन में है राजनीति के जानकार नीतीश कुमार के इन स्टैण्डों को लेकर अपनी राय बनाने में लग गए हैं.

 नीतीश कुमार- फाइल फोटो

पर इन सवालों के उत्तर जानने के लिए नीतीश कुमार के व्यक्तित्व को समझना होगा, नीतीश कुमार राजनीति में नफा-नुकसान से ज्यादा अपनी छवि के लिए चिंतित रहते हैं. अगर देश में कालेधन को लेकर अभियान चल रहा है तो नीतीश कुमार निश्चित रूप से उसका समर्थन करेंगें ही. चाहें पार्टी विचारधारा के तौर पर बीजेपी के विरोध में क्यों न खड़ी हो और यही आजकल हो भी रहा है. नीतीश कुमार शुरू से ही भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, जमाखोरी के खिलाफ रहें है, हांलाकि उन्हें भ्रष्टतंत्र की वजह से ज्यादा सफलता नहीं मिली, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों की सम्पत्ति को जब्त कर स्कूल खोलने का कानून भी उन्ही की सरकार ने बनाया. यह अलग बात है कि इस अभियान तहत बहुत थोड़े अधिकारियों पर कार्रवाई हो पाई. यही बात सर्जिकल स्ट्राइक पर भी लागू होती है, नीतीश कुमार ने उसका भी समर्थन किया था.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नोटबंदी को समर्थन करने से महागठबंधन की अन्य पार्टियां आरजेडी और कांग्रेस की जान अधर में है.  उनकी पार्टी के नेताओं की समझ में नही आ रहा है कि आखिर वो क्या स्टैण्ड लें. इससे पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक पर नीतीश कुमार प्रधानमंत्री मोदी को अपना समर्थन जता चुके हैं. इन दोनों मामलों में नीतीश कुमार पूरी तरह इमानदारी से नरेंद्र मोदी के साथ खड़े हैं. जिससे उनके सहयोगी दलों को काफी दिक्कत हो रही है, चाहें वो आरजेडी हो या फिर कांग्रेस. लेकिन इन दोनों मामलों में केन्द्र के समर्थन में खडे़ होने से क्या यह सोच लेना चाहिए कि नीतीश कुमार एक बार फिर बीजेपी की तरफ जा रहे हैं? यह सवाल हर आदमी के जेहन में है राजनीति के जानकार नीतीश कुमार के इन स्टैण्डों को लेकर अपनी राय बनाने में लग गए हैं.

 नीतीश कुमार- फाइल फोटो

पर इन सवालों के उत्तर जानने के लिए नीतीश कुमार के व्यक्तित्व को समझना होगा, नीतीश कुमार राजनीति में नफा-नुकसान से ज्यादा अपनी छवि के लिए चिंतित रहते हैं. अगर देश में कालेधन को लेकर अभियान चल रहा है तो नीतीश कुमार निश्चित रूप से उसका समर्थन करेंगें ही. चाहें पार्टी विचारधारा के तौर पर बीजेपी के विरोध में क्यों न खड़ी हो और यही आजकल हो भी रहा है. नीतीश कुमार शुरू से ही भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, जमाखोरी के खिलाफ रहें है, हांलाकि उन्हें भ्रष्टतंत्र की वजह से ज्यादा सफलता नहीं मिली, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों की सम्पत्ति को जब्त कर स्कूल खोलने का कानून भी उन्ही की सरकार ने बनाया. यह अलग बात है कि इस अभियान तहत बहुत थोड़े अधिकारियों पर कार्रवाई हो पाई. यही बात सर्जिकल स्ट्राइक पर भी लागू होती है, नीतीश कुमार ने उसका भी समर्थन किया था.

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भले ही उनके गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस और आरजेडी ने सर्जिकल स्ट्राइक पर भी सवाल उठाएं हो, लेकिन नीतीश कुमार ने स्पष्ट कहा कि आतंकवादियों के खिलाफ प्रधानमंत्री जो कार्रवाई करें वो उनके फैसले के साथ हैं, लेकिन नोटबंदी को लेकर जो राजनैतिक गोलबंदी हो रही है उसमें नीतीश कुमार एक कोने में दिखाई दे रहें हैं. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव नोटबंदी पर सवाल उठा रहें हैं, लेकिन नीतीश कुमार न सिर्फ नोटबंदी के समर्थन में हैं बल्कि वो बेनामी सम्पत्ति पर कार्यवाही करने के लिए केन्द्र को सहयोग करने की बात कर रहे हैं. हां, इतना जरूर वो कहते हैं कि आमजनता को नोटबंदी से जो कठिनाई हो रही है केन्द्र उस पर भी ध्यान दे.

फायदा नहीं हुआ है नुकसान...

सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के इन दो मुद्दों पर नरेंद्र मोदी का समर्थन करने के कारण नीतीश कुमार उतना फायदा नहीं मिला है जितना कि राजनीतिक रूप से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. नीतीश कुमार जो नरेंद्र मोदी के खिलाफ देश में एकलौते चेहरे के रूप में उभर रहें थे उसमें कहीं न कहीं कमी जरूर आई है. आखिर नीतीश कुमार ने ऐसा कदम क्यों उठाया यह एक सवाल हो सकता है, लेकिन जो नीतीश कुमार को जानते है वो इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि नीतीश कुमार अपनी छवि को लेकर बहुत सजग रहते हैं और यही कारण है कि कालेधन के खिलाफ केन्द्र ने जब 500 और 1000 के नोट बंद किए तो नीतीश कुमार ने समर्थन किया. ये जाने बगैर कि बीजेपी इसको लागू करने के प्रति इतनी इमानदार है. देश के विपक्ष को हांलाकि बीजेपी पर हमला बोलने में कुछ समय लगा.

आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने चार दिन बाद ट्वीट कर नरेंद्र मोदी पर आम आदमियों की दिक्कतों को ढाल बनाकर हमला बोला. मुख्य विपक्षी दल होने के कारण कांग्रेस ने शुरू से ही विरोध शुरू कर दिया था, लेकिन नीतीश कुमार ने शुरू में ही इस कदम का समर्थन कर जता दिया कि वो भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं और रहेंगे चाहे उसकी अगुवाई बीजेपी जैसी उनकी विरोधी पार्टियां क्यों न कर रही हों. नीतीश कुमार ने भले ही ये समर्थन देश की अच्छाई के लिए किया हो, लेकिन इसे अच्छी राजनीति नहीं माना जाता है. खासकर अपने देश में.

 नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार- फाइल फोटो

नीतीश पर बीजेपी का ठप्पा...

इससे दो बातें हुईं एक तो नरेंद्र मोदी के खिलाफ नीतीश कुमार का जो चेहरा देश में उभर रहा था उसमें कमी आई दूसरी बात नीतीश कुमार 17 वर्षों तक बीजेपी के साथ रहे हैं, पिछले लगभग चार वर्षों से वो बीजेपी से अलग हुए हैं बड़ी मुश्किल से उन पर लगे बीजेपी के ठप्पे से पीछा छूट रहा था, लेकिन इस समर्थन से बीजेपी का विरोध करने वाली पार्टियां उन पर कितना विश्वास करेंगी ये देखने वाली बात होगी. दूसरी तरफ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बीजेपी के साथ रही हैं, लेकिन नोटबंदी की राजनीति में वो एक नेता के तौर पर उभर रही हैं. देश के हर राज्य में वो इसके खिलाफ धरना दे रही हैं. पटना में 30 नवंबर को उनका धरना है.

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हांलाकि, नीतीश कुमार की छवि इन सभी नेताओं से अच्छी है जो नोटबंदी पर भारत बंद का समर्थन कर रहें हैं. देश का एक बड़ा वर्ग नीतीश कुमार के इस कदम की सराहना कर रहा है, लेकिन जो पार्टियां नीतीश कुमार के साथ खड़ी हैं उनकी भवें तनी हुई हैं. जाहिर है कि वो भी मौके के इंतजार में होंगे. चाहे आरजेडी हो या फिर कांग्रेस जिनकी बदौलत नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हुए हैं. ऐसे में नीतीश कुमार के पास क्या विकल्प बचता है.

हांलाकि, बिहार की जनता ने 2015 में जिस तरीके का मेंडेंट दिया है उससे नीतीश कुमार की महागठबंधन के साथ सरकार चल रही है तो बीजेपी के साथ उनके नेतृत्व में जेडीयू बीजेपी की सरकार भी बन सकती है. लेकिन बीजेपी अब पहले वाली बीजेपी नही है जो नीतीश कुमार के हर फैसले को मान लेगी ये भी नीतीश कुमार को देखना होगा. कुल मिलाकर आने वाला समय बिहार की राजनीति में उथल पुथल वाला हो सकता है, खासकर उतरप्रदेश का चुनाव भी इसमें अहम रोल अदा करेगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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