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अनिवार्य कर दिया जाय रेल यात्रियों का बीमा

    • राकेश चंद्र
    • Updated: 21 नवम्बर, 2016 05:55 PM
  • 21 नवम्बर, 2016 05:55 PM
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जब आप प्लेटफॉर्म के लिए 10 रुपए खर्च कर सकते हैं तो 92 पैसे का बीमा क्यूँ नहीं. इससे दुर्धटनाग्रस्त यात्रियों को 10 लाख तक की मदद हो सकती है. क्या इसमें भी पैसे बचाने चाहिए ?

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अपने बजट भाषण में रेल यात्रियों की सुरक्षा के लिए 2016-2017 के बजट में कई घोषणाएं की थीं जिसमें यात्री बीमा एक अहम योजना थी. निःसंदेह यह योजना जनता के लिए एक अहम कदम थी. सरकार ने सितंबर के पहले हफ्ते से इसे लागू भी कर दिया. स्कीम के लागू होने के बाद रविवार की इंदौर-पटना एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना पहली घटना है. जिसके बाद बीमा योजना क़ी अहमियत व यात्रियों क़ी सुरक्षा अब कसौटी पर है.

सवाल उठता है कि आखिर यात्री छोटी-छोटी बातों को क्यूँ भूल जाते हैं. जब आप प्लेटफॉर्म के लिए 10 रुपए खर्च कर सकते हैं तो 92 पैसे का बीमा क्यूँ नहीं. क्यूँ नहीं सरकार इसे  अनिवार्य बना देती, क्या हमारा प्रचार तंत्र इसके लिए जिम्मेदार है. चुनावों पर तो हम करोड़ो रुपए खर्च कर सकते हैं, लेकिन इन जरुरी चीजों पर खर्च करने के लिए हमारे पास 92 पैसे नहीं होते हैं. लिहाजा सरकार को चाहिए कि इसे अनिवार्य बनाया जाए, और फिलहाल के लिए व्यापक स्तर पर जागरुकता अभियान शुरू किया जाए. रविवार की रेल दुर्घटना इस योजना में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है. अब लोगों को इसके लिए जागरुक हो जाना चाहिए. अगर सभी यात्रियों का बीमा होता तो इंदौर-पटना एक्सप्रेस के घायल यात्रियों को और मदद हो जाती.

 सांकेतिक फोटो

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इंदौर-पटना एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना के बाद जो आंकड़े सामने आए हैं वो...

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अपने बजट भाषण में रेल यात्रियों की सुरक्षा के लिए 2016-2017 के बजट में कई घोषणाएं की थीं जिसमें यात्री बीमा एक अहम योजना थी. निःसंदेह यह योजना जनता के लिए एक अहम कदम थी. सरकार ने सितंबर के पहले हफ्ते से इसे लागू भी कर दिया. स्कीम के लागू होने के बाद रविवार की इंदौर-पटना एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना पहली घटना है. जिसके बाद बीमा योजना क़ी अहमियत व यात्रियों क़ी सुरक्षा अब कसौटी पर है.

सवाल उठता है कि आखिर यात्री छोटी-छोटी बातों को क्यूँ भूल जाते हैं. जब आप प्लेटफॉर्म के लिए 10 रुपए खर्च कर सकते हैं तो 92 पैसे का बीमा क्यूँ नहीं. क्यूँ नहीं सरकार इसे  अनिवार्य बना देती, क्या हमारा प्रचार तंत्र इसके लिए जिम्मेदार है. चुनावों पर तो हम करोड़ो रुपए खर्च कर सकते हैं, लेकिन इन जरुरी चीजों पर खर्च करने के लिए हमारे पास 92 पैसे नहीं होते हैं. लिहाजा सरकार को चाहिए कि इसे अनिवार्य बनाया जाए, और फिलहाल के लिए व्यापक स्तर पर जागरुकता अभियान शुरू किया जाए. रविवार की रेल दुर्घटना इस योजना में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है. अब लोगों को इसके लिए जागरुक हो जाना चाहिए. अगर सभी यात्रियों का बीमा होता तो इंदौर-पटना एक्सप्रेस के घायल यात्रियों को और मदद हो जाती.

 सांकेतिक फोटो

ये भी पढ़ें- तो इस तकनीक से रोका जा सकता है रेल हादसों को...

इंदौर-पटना एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना के बाद जो आंकड़े सामने आए हैं वो चौंकाने वाले हैं. इसमें 410 टिकट बुक किए गए थे. जिसमे से  सिर्फ 126 यात्रियों के पास 92 पैसे वाला बीमा था. बीमा के सुविधा लेने वाले इन 126 में से भी 78 वो यात्री थे जिनकी यात्रा कानपुर के बाद शुरू होनी थी.

आखिर यह योजना हमारे लिए व हमारे फायदे के ही लिए है तो क्यूँ न इसका जनता लाभ ले. इस हादसे के बाद शायद जनता इसे अपने आप स्वीकार कर लेगी क्योंकि भय सुरक्षा की जननी है. हमे यह भी मनाने में कोई ग्लानी नहीं होनी चाहिए कि पढ़े लिखे होने के बाद भी हम मानसिक रूप से अनपढ़ हैं. इंदौर-पटना एक्सप्रेस से जुड़े तथ्य तो यही इशारा करते हैं.

क्या  है योजना और कैसे लागू होती है?

आइआरसीटीसी के जरिए टिकट खरीदने वाले यात्रियों को यह बीमा दिया जाता है. यह सुविधा इंटरनेट से टिकट खरीदने वाले भारतीय यात्रियों को ही मिलती है. टिकट बुक  करते समय ग्राहक से पूछा जाता है कि यात्री यह सुविधा लेना चाहता है या नहीं. अगर यात्री इंश्योरेंस का विकल्प चुनते हैं, तो उन्हें टिकट के साथ यह पैसा देना पड़ता हैं. योजना के तहत यात्री की मृत्यु  या स्थायी विकलांगता की स्थिति में 10 लाख रुपए, घायल या आंशिक विकलांगता की स्थिति में 7.5 लाख रुपए, अस्पताल में भर्ती होने पर 5 लाख रुपए तथा मृत्यु के बाद लाश को पहुंचाने के लिए 10,000 रुपए के बीमे का प्रावधान किया जाएगा.

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दावों की सूचना तत्काल देनी होगी और घटना के चार महीने बाद सूचना देने पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. बीमा कंपनी का 15 दिनों के भीतर ग्राहक या कानूनी वारिस को चेक भेजना आवश्यक है. किसी भी दावे को खारिज करने से पहले आईआरसीटीसी के नोडल अधिकारी के साथ मामले पर विचार-विमर्श करना बीमा कंपनी के लिए आवश्यक है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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