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500 और 1000 की नोट के बाद 2000 रुपये की नोट में आएगा कालाधन?

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 14 नवम्बर, 2016 01:38 PM
  • 14 नवम्बर, 2016 01:38 PM
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भारत में इसके पहले तीन बार डिमॉनेटाइजेशन किया जा चुका है. प्रतिबंधित करेंसी में रखा कालाधन खत्म होता है और नई करेंसी में फिर से कालेधन का चक्र शुरू हो जाता है....आखिर कब तक...

जब से मोदी सरकार ने काले धन के खात्मे के लिए पांच सौ और हजार रुपये के वर्तमान नोटों को बदलने का एलान किया है, तब से विपक्षी पार्टियां कांग्रेस, माकपा, सपा, तृणमूल, आप  आदि दलों ने इसका विरोध शुरू कर दिया. ये ऐसे विपक्षी दल हैं जो स्वीकार नहीं सकते कि सत्तारूढ़ दल कुछ अच्छा कर सकता है. दलगत राजनीति में यही होता है क्योंकि अगर बीजेपी  भी विपक्ष में बैठी होती तो इसका विरोध करना उसकी मजबूरी होती.

सवाल उठता है कि आखिर समय- समय अर्थव्यवस्था में सरकार को डिमॉनेटाइजेशन अथवा विमुद्रीकरण का सहारा लेना क्यों जरूरी हो जाता है?

भारत में इसके पहले तीन बार विमुद्रीकरण किया जा चुका है. इससे पता चलता है कि काला धन पहले जमा होता है, और विमुद्रीकरण उसका पीछा करता है. लेकिन ये चक्र चलता रहता है. फिर नया कालाधन अर्थव्यवस्था में जड़ें जमा लेता है. ऐसी स्थिति में आखिर कब तक समय-समय पर डिमॉनेटाइजेशन का सहारा लिया जाता रहेगा?

इसे भी पढ़ें: कैश की अफरातफरी और 70 के दशक वाली नसबंदी !

क्यों किया जाता है विमुद्रीकरण

जब काला धन अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने केलिए यह कदम यानि विमुद्रीकरण अपनाया जाता है. जिसके पास काला धन होता है, वह उसके बदले नई मुद्रा लेने का साहस जुटा नही पाता और काला धन स्वयम ही नष्ट हो जाता है.  इसके तहत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और उसके जगह पर नयी मुद्रा चलाती है. यानी पुरानी मुद्रा की वैधता खत्म हो जाती है, वो अवैध हो जाती है. 

जब से मोदी सरकार ने काले धन के खात्मे के लिए पांच सौ और हजार रुपये के वर्तमान नोटों को बदलने का एलान किया है, तब से विपक्षी पार्टियां कांग्रेस, माकपा, सपा, तृणमूल, आप  आदि दलों ने इसका विरोध शुरू कर दिया. ये ऐसे विपक्षी दल हैं जो स्वीकार नहीं सकते कि सत्तारूढ़ दल कुछ अच्छा कर सकता है. दलगत राजनीति में यही होता है क्योंकि अगर बीजेपी  भी विपक्ष में बैठी होती तो इसका विरोध करना उसकी मजबूरी होती.

सवाल उठता है कि आखिर समय- समय अर्थव्यवस्था में सरकार को डिमॉनेटाइजेशन अथवा विमुद्रीकरण का सहारा लेना क्यों जरूरी हो जाता है?

भारत में इसके पहले तीन बार विमुद्रीकरण किया जा चुका है. इससे पता चलता है कि काला धन पहले जमा होता है, और विमुद्रीकरण उसका पीछा करता है. लेकिन ये चक्र चलता रहता है. फिर नया कालाधन अर्थव्यवस्था में जड़ें जमा लेता है. ऐसी स्थिति में आखिर कब तक समय-समय पर डिमॉनेटाइजेशन का सहारा लिया जाता रहेगा?

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क्यों किया जाता है विमुद्रीकरण

जब काला धन अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने केलिए यह कदम यानि विमुद्रीकरण अपनाया जाता है. जिसके पास काला धन होता है, वह उसके बदले नई मुद्रा लेने का साहस जुटा नही पाता और काला धन स्वयम ही नष्ट हो जाता है.  इसके तहत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और उसके जगह पर नयी मुद्रा चलाती है. यानी पुरानी मुद्रा की वैधता खत्म हो जाती है, वो अवैध हो जाती है. 

 कतारों में है नई ब्लैकमनी का स्रोत

कब-कब हुआ विमुद्रीकरण

आठ नवम्बर कि आधी रात से देश में चलने वाले पांच सौ और एक हज़ार के नोटों को बंद कर दिया गया. इससे पहले देश की आजादी के तुरंत बाद डिमॉनेटाइजेशन को लागू किया गया था. जनवरी 1946 में, 1000 और 10,000 रुपए के नोटों को वापस ले लिया गया था. 1000, 5000 और 10,000 रुपए के नए नोट 1954 में पुनः शुरू किया गए. 16 जनवरी 1978 को जनता पार्टी की गठबंधन सरकार ने फिर से 1000, 5000 और 10,000 रुपए के नोटों का डिमॉनेटाइजेशन किया. यह कदम उस वक्त भी जालसाजी और काले धन पर लगाम लगाने के लिए उठाया गया था.

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सरकार को इससे कितना फायदा होने वाला है?

यह तो फिलहाल कहना बड़ा मुश्किल है कि काला धन काफी हद तक खत्म होने से सरकार को कितना फायदा होगा. अपने काले धन की उद्घोषणा करने वालों के लिए शर्तें  इतनी कड़ी रखी गई हैं कि मुश्किल से ही कोई इस विकल्प का चुनाव करेगा. इसलिए सरकार को इस योजना के तहत कुछ मिलने वाला नहीं है. लेकिन विमुद्रीकरण का सिर्फ यह उद्देश्य नहीं होता.

जो बात ज्यादा महत्त्वपूर्ण है वह है कि इससे नकली नोटों के कारोबार को धक्का पहुंचेगा. वैसे तो सौ रुपये के नकली नोट भी देखे गए हैं, पर इस तरह  के नोट पांच सौ और हजार की राशि के ही ज्यादा हैं. शक है कि पाकिस्तान ऐसे नोट छाप रहा है. इनके जरिए आतंकवादियों को आर्थिक समर्थन दे रहा है.  नकली नोटों का दबाव अर्थव्यस्था को प्रभावित करता है. मुफ्त में मिली अमीरी गरीब जनता की जेब में डाका डालती है. मुद्रा प्रसार से महंगाई बढ़ती है.

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संभावित फायदा यह है कि महंगाई कुछ कम हो सकती है. जाली नोट और काला धन बाजार में मुद्रास्फीति पैदा करते हैं. जितना उत्पादन होता है, उससे कहीं बहुत अधिक मुद्रा उसे खरीदने के लिए बाजार में आ जाती है. इससे चीजों के दाम बढ़ जाते हैं. काले धन की मात्रा कम हो जाने से मांग में भी कमी आएगी, जिससे चीजों के दाम गिरेंगे. इसकी पूरी संभावना है.

लेकिन अब लोगों के मन में यह सवाल भी मंडरा रहा है कि सरकार के इस कदम से गरीब आदमी या समाज के आखिरी आदमी को क्या लाभ होगा. ऐसा प्रतीत होता है कि इससे  काला धन निकलेगा नहीं बल्कि अपने बिल में ही मर जायेगा.

इतिहास को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इससे काले धन पर भले ही रोक लगे, पर काले धन के स्रोत  बंद नहीं होंगे. पुराना कालाधन हटेगा और उसकी जगह नया काला धन अस्तित्व में एक बार फिर आ जाएगा. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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