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डॉन की छवि को तोड़ने की जद्दोजहद में 'कुंडा का गुंडा

    • शरत प्रधान
    • Updated: 21 फरवरी, 2017 02:32 PM
  • 21 फरवरी, 2017 02:32 PM
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जैसे ही राजा भैया की लैंड क्रूजर आगे बढ़ने लगती है गांव के छोटे बच्चे उनकी तरफ दौड़कर आते हैं गाड़ी की खिड़कियों में हाथ डालकर उनसे हाथ मिलाते हैं. कुछ साल पहले ये सारा नजारा सोचा भी नहीं जा सकता था.

किसी ज़माने में बंदूकों की धांय-धांय से कुंडा के राजा का स्वागत किया जाता था. राजा जी यहां से छठवीं बार इस निर्वाचन-क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. इस इलाके में गोलियों के आवाज की जगह अब दीवाली के कानफाडू पटाखों ने ले ली है. पिछले पांचों चुनावों में अपने विरोधी की जमानत तक जब्त करा देने का रिकॉर्ड बनाने वाले 47 वर्षीय रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अब अपने डॉन की छवि से छुटकारा पाने की कोशिश में हैं. इतना ही नहीं अब लगता है वो अपनी एक दूसरी ही छवि बनाना चाहते हैं. राजा भैया को एक खूंखार जमींदार की छवि के कारण नहीं बल्कि एक विनम्र राजा के रुप में सम्मान दिया जाता है.

एक समय राजा भैया का अभिवादन करने के लिए लोग बेंटी कोठी में लाइन लगाकर खड़े होते थे. लेकिन अब राजा भैया ने खुद को इस बेंटी कोठी से बाहर निकाला है. वो गांव-गांव घूम रहे हैं, लोगों का अभिवादन कर रहे हैं और लोग उन्हें वोट देने का वादा भी कर रहे हैं. जैसे ही राजा भैया की लैंड क्रूजर आगे बढ़ने लगती है गांव के छोटे बच्चे उनकी तरफ दौड़कर आते हैं गाड़ी की खिड़कियों में हाथ डालकर उनसे हाथ मिलाते हैं. कुछ साल पहले ये सारा नजारा सोचा भी नहीं जा सकता था. तब हालात ये थे कि यही जनता दूर से राजा भैया को हाथ जोड़कर प्रणाम किए खड़े रहती थी और सिर्फ उनके पैर छू कर उनका अभिवादन कर सकती थी.

कई लोग लकड़ी के आरी हाथों में लिए नारे लगा रहे हैं. जब-जब राजा भैया जिंदाबाद का नारा हवा में गूंजता लोग इस लकड़ी के आरी को तलवार की तरह भांजते. 'आरी' राजा भैया का चुनाव चिन्ह है. राजा भैया ने हमेशा ही निर्दलीय चुनाव लड़ा है और इसलिए उनके पास कोई एक चुनाव चिन्ह भी नहीं होता. हालांकि कोई निश्चित चुनाव चिन्ह के ना होने से राजा भैया को कोई दिक्कत नहीं होती.

राजा भैया को पता है सत्ता का...

किसी ज़माने में बंदूकों की धांय-धांय से कुंडा के राजा का स्वागत किया जाता था. राजा जी यहां से छठवीं बार इस निर्वाचन-क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. इस इलाके में गोलियों के आवाज की जगह अब दीवाली के कानफाडू पटाखों ने ले ली है. पिछले पांचों चुनावों में अपने विरोधी की जमानत तक जब्त करा देने का रिकॉर्ड बनाने वाले 47 वर्षीय रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अब अपने डॉन की छवि से छुटकारा पाने की कोशिश में हैं. इतना ही नहीं अब लगता है वो अपनी एक दूसरी ही छवि बनाना चाहते हैं. राजा भैया को एक खूंखार जमींदार की छवि के कारण नहीं बल्कि एक विनम्र राजा के रुप में सम्मान दिया जाता है.

एक समय राजा भैया का अभिवादन करने के लिए लोग बेंटी कोठी में लाइन लगाकर खड़े होते थे. लेकिन अब राजा भैया ने खुद को इस बेंटी कोठी से बाहर निकाला है. वो गांव-गांव घूम रहे हैं, लोगों का अभिवादन कर रहे हैं और लोग उन्हें वोट देने का वादा भी कर रहे हैं. जैसे ही राजा भैया की लैंड क्रूजर आगे बढ़ने लगती है गांव के छोटे बच्चे उनकी तरफ दौड़कर आते हैं गाड़ी की खिड़कियों में हाथ डालकर उनसे हाथ मिलाते हैं. कुछ साल पहले ये सारा नजारा सोचा भी नहीं जा सकता था. तब हालात ये थे कि यही जनता दूर से राजा भैया को हाथ जोड़कर प्रणाम किए खड़े रहती थी और सिर्फ उनके पैर छू कर उनका अभिवादन कर सकती थी.

कई लोग लकड़ी के आरी हाथों में लिए नारे लगा रहे हैं. जब-जब राजा भैया जिंदाबाद का नारा हवा में गूंजता लोग इस लकड़ी के आरी को तलवार की तरह भांजते. 'आरी' राजा भैया का चुनाव चिन्ह है. राजा भैया ने हमेशा ही निर्दलीय चुनाव लड़ा है और इसलिए उनके पास कोई एक चुनाव चिन्ह भी नहीं होता. हालांकि कोई निश्चित चुनाव चिन्ह के ना होने से राजा भैया को कोई दिक्कत नहीं होती.

राजा भैया को पता है सत्ता का रास्ता

राजा भैया जानते हैं कि वोट कैसे बटोरे जाते हैं और जो भी पार्टी सत्ता में आए उसके साथ कैसे सेटिंग करनी है. सिर्फ बसपा प्रमुख बहन मायावती से ही राजा भैया के रिश्ते ठीक नहीं रहे. मायावती ने ना सिर्फ राजा भैया से दूरी बनाए रखी बल्कि 2002 में पोटा के तहत् उसे गिरफ्तार भी करा दिया. इस समय मायावती को शक था कि राजा भैया उनकी सरकार गिरवा देगा.

2007 में सत्ता में वापस आने के बाद फिर से मायावती ने राजा भैया को परेशान किया. राजा भैया पर डीएसपी की हत्या का आरोप लगा, लेकिन कोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दिया. लेकिन राजा भैया के पीठ पर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का हाथ हमेशा रहा. यही नहीं बीजेपी के कदावर नेता और उत्तर-प्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने तो राजा भैया को 'कुंडा का गुंडा' तक कहा था पर अपनी सरकार बचाने के लिए उन्होंने भी राजा भैया को अपने मंत्रीमंडल में जगह दी.

जब लोगों से सवाल किया गया कि- 'क्या चुनाव की वजह से राजा भैया जनता से मिलने जुलने लगे हैं?' तो समर्थकों ने इस बात को सिरे से नकारते हुए कहा कि- 'राजा भैया हमेशा से ही जनता से मिलते थे. और हमें कभी उनसे मिलने में कोई परेशानी नहीं हुई. पूरे चुनाव-क्षेत्र के कई भागों में तो लोगों से किसी और उम्मीदवार का नाम तक सुनने के लिए नहीं मिलता.'

राजा भैया का इमेज परिवर्तन

यहां के लोगों का कहना है- 'हम सिर्फ राजा भैया को जानते हैं. ना तो हमने उनके किसी विरोधी का नाम सुना है और ना ही इस इलाके में किसी को कैंपेन करते ही देखा है.' अपने खिलाफ लड़ने वाले बसपा और बीजेपी के उम्मीदवारों के नाम खुद राजा भैया ने बताए. उन्होंने बताया कि- 'बसपा ने परवेज़ अख्तर को खड़ा किया था जबकि भाजपा ने जानकी शरण पांडे को टिकट दिया था. ये दोनों ही बाहरी उम्मीदवार थे और बगल के ज़िले से आए थे.' राजा भैया ने इशारों में ये बात बता दी थी कि अभी भी कोई स्थानीय आदमी उनके खिलाफ चुनाव में खड़े होने की हिम्मत नहीं करता.

राजा भैया के नाम से कई कहांनियां प्रचलित हैं. ऐसा माना जाता है कि राजा भैया अपने विरोधियों को अपने तालाब में फेंक देते हैं. इस तालाब में उन्होंने मगरमच्छ पाल रखे हैं. इस कारण से ही लोग राजा भैया के खिलाफ चुनाव में खड़े होने की हिम्मत नहीं कर पाते. अपने उपर लगे इन आरोपों के लिए राजा भैया कहते हैं- 'मुझे आज तक ये बात समझ नहीं आई कि मेरे खिलाफ कब, कैसे और क्यों इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं.' इसके साथ ही राजा भैया ने कहा कि- 'अगर उस तालाब में मगरमच्छ होते तो मेरी मछलियों को खा गए होते. और मछली पालन से हुई मेरी कमाई तो खत्म हो जाती.'

राजा भैया जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से पहली बार मिले थे तो उन्होंने भी राजा भैया से उनके तालाब और मगरमच्छों के बारे में ही सवाल किया था. राजा भैया कहते हैं- 'ये पूरी कहानी मेरे लिए शर्मिन्दगी का विषय बन गई है. ये सारा फितूर मुझे किसी फिल्मी डॉन की तरह प्रोजेक्ट करने के लिए पैदा किया गया है.'

6ठी बार चुनाव मैदान में

राजा भैया अपने निर्वाचन क्षेत्र के जिस भी गांव या इलाके में रैली करने और भाषण देने जाते हैं वहां लोगों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है. राजा भैया अपने छोटे से भाषण में लोगों को ये बताना नहीं भूलते कि सारी जनता उनके परिवार का हिस्सा है. साथ ही वो प्राइवेट कोर्ट की बात भी करते हैं. राजा भैया हर हफ्ते अपने महल में लोगों की परेशानियां और उनके झगड़े सुलझाने लिए प्राइवेट कोर्ट लगाते हैं.

राजा भैया के प्राइवेट कोर्ट में लोगों की हर मुश्किल की सुनवाई करते हैं. चाहे ज़मीन का झगड़ा हो, जायदाद का, आपसी रंजिश का मामला हो या फिर सास-बहु से लेकर पति-पत्नी तक के झगड़े की सुनवाई इस अदालत में होती है. अवधि भाषा में जनता को संबोधित करते हुए राजा भैया लोगों से कहते हैं- 'आप मेरे पास अपनी परेशानी, अपना दुख लेकर आते हैं क्योंकि आपको पता है कि मैं भी आपलोगों में से ही एक हूं. ये आपका और मेरा रिश्ता ही है जो आप अपनी निजी परेशानियां लेकर मेरे पास आते हैं. ऐसा रिश्ता हम किसी बाहरी इंसान के साथ नहीं बना सकते.'

जाते-जाते राजा भैया लोगों से ये आश्वासन लेना नहीं भूलते की इस बार भी चुनाव वो ही जीतेंगे. जीतना तो है ही लेकिन पिछले साल के 88,000 वोट के मार्जिन को और ज्यादा करके जीतना है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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