• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

'पाकिस्तान' की नींव बंगाल में ही पड़ी थी

    • सुशोभित सक्तावत
    • Updated: 10 जुलाई, 2017 05:06 PM
  • 10 जुलाई, 2017 05:06 PM
offline
16 अगस्त, 1946 यानी भारत की स्वतंत्रता से ठीक एक साल पहले कलकत्ते में पहला दंगा भड़का और बंगाल के गांवों तक फैल गया. दंगों को मुस्लिम लीग द्वारा जानबूझकर भड़काया गया था.

भारत के मजहबी बंटवारे की चर्चा के बीच मैं आपको बंगाल की ‘कलंक-कथा’ सुनाता हूं.

वर्ष 1927 में मुस्लिम लीग के पास केवल 1300 सदस्यक थे. एक गांव के चुनाव का परिणाम प्रभावित कर सकें, इतनी भी इनकी हैसियत नहीं थी. 1944 में यह हालत थी कि अकेले बंगाल में पांच लाख से भी अधिक मुसलमान मुस्लिम लीग के सदस्य बन चुके थे और भारत विभाजन की थ्योरी दिन-ब-दिन बल पकड़ती जा रही थी. यह सब गांधी और नेहरू की नाक के नीचे हुआ और वे खुशफहमी में इसकी गंभीरता भांप नहीं सके. 1930 के दशक में जब नेहरू को मुसलमानों की बढ़ती महत्वाहकांक्षा के प्रति आगाह किया गया तो उन्हों ने किंचित भलमनसाहत से कहा कि यह हो ही नहीं सकता कि मेरे मुसलमान भाई देश को पीछे करके मजहब को आगे करेंगे और अपने लिए एक अलग मुल्क मांगेंगे. 1905 में जो खतरे का संकेत इतिहास ने कांग्रेस को दिया था, उसकी उपेक्षा करने की क्षमता पंडित नेहरू में ही थी.

1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ तो पूरा देश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा था. इन दंगों की शुरुआत कहां से हुई थी? जवाब सरल है- आपके प्रिय बंगाल से!

1947 के सांप्रदायिक दंगों की शुरुआत भी बंगाल से ही हुई थी

16 अगस्त, 1946 यानी भारत की स्वतंत्रता से ठीक एक साल पहले कलकत्ते में पहला दंगा भड़का और बंगाल के गांवों तक फैल गया. दंगों को मुस्लिम लीग द्वारा जानबूझकर भड़काया गया था. वह पाकिस्तान के निर्माण के लिए अंतिम रूप से आम सहमति का निर्माण करने के लिए एक ‘ट्रिगर मूवमेंट’ था. अंग्रेज भारत से बोरिया बिस्तर समेटने लगे थे और मुसलमानों को महसूस हुआ, अभी नहीं तो कभी नहीं. लोहा गर्म है, हथौड़ा मारो. और उन्होंने हथौड़ा मारा.

बंगाल से यह आग बिहार पहुंची, बिहार से यूनाइटेड प्रोविंस और वहां से पंजाब. ‘कलकत्ते का...

भारत के मजहबी बंटवारे की चर्चा के बीच मैं आपको बंगाल की ‘कलंक-कथा’ सुनाता हूं.

वर्ष 1927 में मुस्लिम लीग के पास केवल 1300 सदस्यक थे. एक गांव के चुनाव का परिणाम प्रभावित कर सकें, इतनी भी इनकी हैसियत नहीं थी. 1944 में यह हालत थी कि अकेले बंगाल में पांच लाख से भी अधिक मुसलमान मुस्लिम लीग के सदस्य बन चुके थे और भारत विभाजन की थ्योरी दिन-ब-दिन बल पकड़ती जा रही थी. यह सब गांधी और नेहरू की नाक के नीचे हुआ और वे खुशफहमी में इसकी गंभीरता भांप नहीं सके. 1930 के दशक में जब नेहरू को मुसलमानों की बढ़ती महत्वाहकांक्षा के प्रति आगाह किया गया तो उन्हों ने किंचित भलमनसाहत से कहा कि यह हो ही नहीं सकता कि मेरे मुसलमान भाई देश को पीछे करके मजहब को आगे करेंगे और अपने लिए एक अलग मुल्क मांगेंगे. 1905 में जो खतरे का संकेत इतिहास ने कांग्रेस को दिया था, उसकी उपेक्षा करने की क्षमता पंडित नेहरू में ही थी.

1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ तो पूरा देश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा था. इन दंगों की शुरुआत कहां से हुई थी? जवाब सरल है- आपके प्रिय बंगाल से!

1947 के सांप्रदायिक दंगों की शुरुआत भी बंगाल से ही हुई थी

16 अगस्त, 1946 यानी भारत की स्वतंत्रता से ठीक एक साल पहले कलकत्ते में पहला दंगा भड़का और बंगाल के गांवों तक फैल गया. दंगों को मुस्लिम लीग द्वारा जानबूझकर भड़काया गया था. वह पाकिस्तान के निर्माण के लिए अंतिम रूप से आम सहमति का निर्माण करने के लिए एक ‘ट्रिगर मूवमेंट’ था. अंग्रेज भारत से बोरिया बिस्तर समेटने लगे थे और मुसलमानों को महसूस हुआ, अभी नहीं तो कभी नहीं. लोहा गर्म है, हथौड़ा मारो. और उन्होंने हथौड़ा मारा.

बंगाल से यह आग बिहार पहुंची, बिहार से यूनाइटेड प्रोविंस और वहां से पंजाब. ‘कलकत्ते का इंतक़ाम नौआखाली में लिया गया, नौआखाली का इंतक़ाम बिहार में, बिहार का गढ़मुक्तेश्वर में, गढ़मुक्तेश्वर के बाद अब क्या ?’ ये उस वक़्त की एक सुर्ख़ी है.

15 अगस्त को जब दिल्ली में आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा था, तब राष्ट्रपिता महात्माम गांधी कहां पर थे? वे बंगाल में बेलियाघाट में थे. और वे वहां पर क्या कर रहे थे? वे उपवास पर थे और सांप्रदायिक दंगों को शांत करने की अपील कर रहे थे. भलमनसाहत से विषबेल को पनपने से रोका जा सकता है और भलमनसाहत से विषबेल को समाप्त भी किया जा सकता है, यह गांधी-चिंतन था. और अपने जीवनकाल में गांधी ने अपने इन दोनों बालकोचित पूर्वग्रहों को ध्वस्त होते हुए अपनी आंखों से देखा.

 बंगाल में बेलियाघाट में महात्मा गांधी

मुस्लिम लीग ने जब पाकिस्तागन की मांग की थी, तो उसका तर्क क्या था?

मुस्लिम लीग का तर्क था कि कांग्रेस ‘बनियों’ और ‘ब्राह्मणों’ की पार्टी है और लोकतांत्रिक संरचनाओं में मुसलमानों को पर्याप्तम प्रतिनिधित्वा नहीं दिया जा रहा है. तब जो सांप्रदायिक दंगे हुआ करते थे, उनमें कांग्रेसी हिंदुओं का साथ देते थे और मुस्लिम लीग वाले मुसलमानों का. लेकिन जब पाकिस्तान बना तो क्या वहां पर वे लोकतांत्रिक संरचनाएं निर्मित हुईं, जिनकी मोहम्मद अली जिन्ना इतनी शिद्दत से बात कर रहे थे? जी नहीं.

भारत में पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1952 में हुआ था, जिसमें कांग्रेस को जीत मिली थी. पाकिस्तान में पहला लोकतांत्रिक चुनाव इसके 18 साल बाद 1970 में हुआ. और जब उसमें पूर्वी पाकिस्तान के शेख़ मुजीबुर्रहमान को भारी जीत मिली तो पाकिस्तान में गृहयुद्ध छिड़ गया और ढाका में भीषण नरसंहार की शुरुआत हुई, जिसके गुनहगारों का फैसला आज तलक बांग्लादेश में किया जाता है.

ये उन मुसलमानों की तथाकथित लोकतांत्रिक संरचनाएं थीं, जिन्होंने देश को तोड़ा!

1946 में उन्हें यह साफ साफ बोलने में शर्म आ रही थी कि हमें अपने लिए एक इस्लामिक कट्टरपंथी सैन्यवादी आतंकवादी मुल्क चाहिए, जहां हम अपना मज़हबी नंगा नाच कर सकें!

अभी मैं यहां पर 1971 के बाद निर्मित हुई परिस्थितियों में पश्चिम बंगाल और असम में बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ की विस्तार से बात ही नहीं कर रहा हूं, जिसका मकसद आबादी के गणित से चुनावों में जीत हासिल करना है. बंगाल में लंबे समय तक कम्युनिस्टों की सरकार रही, जिनकी निष्ठा चीन के प्रति अधिक थी और भारतीय राष्ट्री को दिन-ब-दिन कमज़ोर करते जाना जिनका घोषित मक़सद है. उसके बाद यहां पर ममता बनर्जी की हुक़ूमत आई, जो इस्लामिक तुष्टीकरण की बेशर्मी में कम्युनिस्टों से भी आगे निकल गई हैं.

2007 में कलकत्ता, 2013 में कैनिंग और 2016 में धुलागढ़ में पहले ही ‘ट्रेलर’ दिखाए जा चुके थे. और तथाकथित बंगाली भद्रलोक अपनी-अपनी बाड़ियों में दोपहर की नींद ले रहा था.

आज जो कश्मीर की हालत है, वह 1946 में बंगाल की हालत थी और 1905 में आने वाले वक्त का एक मुज़ाहिरा हो चुका था. 1947 में आख़िरकार बंगाल का एक बड़ा हिस्सा भारत से टूटकर अलग हो गया, तीस-चालीस साल बाद अगर कश्मीर आपके हाथ से चला जाए तो आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

और नहीं, यह इसलिए नहीं हो रहा है, क्योंकि मुसलमानों को ‘सिविल राइट्स’ चाहिए या उन्हें अपनी ‘रीजनल आइडेंडिटी’ की रक्षा करनी है, जैसा कि हमारे सेकुलरान हमें बताते रहते हैं. यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि मुसलमानों को अपना एक ‘इस्लामिक स्टेट’ चाहिए. इसीलिए पाकिस्तान बना, इसीलिए बांग्लादेश बना, इसीलिए कश्मीर सुलग रहा है, इसीलिए बंगाल जल रहा है. और यह पिछले चौदह सौ सालों से हो रहा है!

आंखें हों तो देख लीजिए, कान हों तो सुन लीजिए. इतिहास गवाह है और वर्तमान आपके सामने है. किसी शायर ने कहा था कि आग का पेट बहुत बड़ा होता है. जब आप आग की उदरपूर्ति करते हैं तो वह और भड़कती है ठंडी नहीं होती. आप और कितना दोगे? आप पहले ही बहुत दे चुके हैं और आग की भूख शांत होने का नाम नहीं ले रही है! आप अपने आपको और कब तक भुलावे में रखोगे!

ये भी पढ़ें-

ममता के लिए ये वक्त बीजेपी नहीं - मां, माटी और मानुष के बारे में सोचने का है

ममता की तुष्टिकरण की राजनीति में जलता बंगाल

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲