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शशिकला ही नहीं पूछा तो पनीरसेल्वम से भी जाएगा - जनाब खामोश क्यों बैठे रहे?

    • आईचौक
    • Updated: 12 फरवरी, 2017 05:49 PM
  • 12 फरवरी, 2017 05:49 PM
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पनीरसेल्वम के नये अवतार और शशिकला की सदाबहार भूमिका में बहुत फर्क नहीं लगता - आखिर मकसद तो दोनों का एक ही है.

जयललिता के जमाने में पनीरसेल्वम सियासत में ऐसी मिसाल थे जैसा दूसरा कोई भी नहीं था. जयललिता के निधन के बाद जब शशिकला के हाथ में कमान आई तो मनमोहन सिंह की तरह उन्होंने खामोशी का रास्ता अख्तियार कर लिया और काम करते रहे. सिर्फ 7 फरवरी की रात को उनका नया रूप दिखा जो बिहार के जीतन राम मांझी जैसा था. अम्मा की आत्मा से साक्षात्कार के बाद पनीरसेल्वम ने आखिरकार बगावत का बिगुल फूंक ही दिया.

जयललिता की विरासत और तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज होने की लड़ाई में शशिकला और पनीरसेल्वम एक दूसरे को आरोपों के घेरे में घसीट रहे हैं, लेकिन पनीरसेल्वम के नये अवतार और शशिकला की सदाबहार भूमिका में बहुत फर्क नहीं लगता - आखिर मकसद तो दोनों का एक ही है.

खामोश क्यों रहे?

मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर पनीरसेल्वम ने ही नये नेता के रूप में शशिकला के नाम का प्रस्ताव रखा. इस्तीफा मंजूर भी हो गया फिर रात को मरीना बीच पहुंचे. करीब 40 मिनट ध्यान लगाने के बाद जब ज्ञान प्राप्त हुआ तो लगा गलती हो गयी. फिर अम्मा की आत्मा के आदेश पर पनीरसेल्वम ने सनसनीखेज खुलासे किये - 'इस्तीफा उनसे जबरन ले लिया गया'. इसके बाद सड़क पर उनकी लड़ाई शुरू हुई. इस्तीफे पर नये अपडेट के साथ वो राज्यपाल से भी मिले और अपना पक्ष रखा.

लोगों के सामने अपना पक्ष रखने के लिए वो मीडिया के सामने आये और खामोशी को लेकर सफाई दी. पनीरसेल्वम ने कहा कि वो पार्टी की लाज बचाये रखने के लिए सीएम बने लेकिन संकट के हर मौके पर वो लोगों के साथ रहे. पनीरसेल्वम ने इसमें वरदा तूफान के वक्त अपनी सक्रियता और जल्लीकट्टू विवाद सुलझाने का क्रेडिट भी लिया.

खामोशी तोड़ने में देर क्यों?

ये सब तो ठीक है लेकिन अपनी ओर से जो ब्रह्मास्त्र उन्होंने छोड़ा है उसमें भी कई सवाल हैं जिनके जवाब...

जयललिता के जमाने में पनीरसेल्वम सियासत में ऐसी मिसाल थे जैसा दूसरा कोई भी नहीं था. जयललिता के निधन के बाद जब शशिकला के हाथ में कमान आई तो मनमोहन सिंह की तरह उन्होंने खामोशी का रास्ता अख्तियार कर लिया और काम करते रहे. सिर्फ 7 फरवरी की रात को उनका नया रूप दिखा जो बिहार के जीतन राम मांझी जैसा था. अम्मा की आत्मा से साक्षात्कार के बाद पनीरसेल्वम ने आखिरकार बगावत का बिगुल फूंक ही दिया.

जयललिता की विरासत और तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज होने की लड़ाई में शशिकला और पनीरसेल्वम एक दूसरे को आरोपों के घेरे में घसीट रहे हैं, लेकिन पनीरसेल्वम के नये अवतार और शशिकला की सदाबहार भूमिका में बहुत फर्क नहीं लगता - आखिर मकसद तो दोनों का एक ही है.

खामोश क्यों रहे?

मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर पनीरसेल्वम ने ही नये नेता के रूप में शशिकला के नाम का प्रस्ताव रखा. इस्तीफा मंजूर भी हो गया फिर रात को मरीना बीच पहुंचे. करीब 40 मिनट ध्यान लगाने के बाद जब ज्ञान प्राप्त हुआ तो लगा गलती हो गयी. फिर अम्मा की आत्मा के आदेश पर पनीरसेल्वम ने सनसनीखेज खुलासे किये - 'इस्तीफा उनसे जबरन ले लिया गया'. इसके बाद सड़क पर उनकी लड़ाई शुरू हुई. इस्तीफे पर नये अपडेट के साथ वो राज्यपाल से भी मिले और अपना पक्ष रखा.

लोगों के सामने अपना पक्ष रखने के लिए वो मीडिया के सामने आये और खामोशी को लेकर सफाई दी. पनीरसेल्वम ने कहा कि वो पार्टी की लाज बचाये रखने के लिए सीएम बने लेकिन संकट के हर मौके पर वो लोगों के साथ रहे. पनीरसेल्वम ने इसमें वरदा तूफान के वक्त अपनी सक्रियता और जल्लीकट्टू विवाद सुलझाने का क्रेडिट भी लिया.

खामोशी तोड़ने में देर क्यों?

ये सब तो ठीक है लेकिन अपनी ओर से जो ब्रह्मास्त्र उन्होंने छोड़ा है उसमें भी कई सवाल हैं जिनके जवाब पनीरसेल्वम को देर सबेर देने ही होंगे. पनीरसेल्वम ने जयललिता की मौत की सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश से कराने की बात की है, लेकिन ये बात वो अब क्यों कर रहे हैं?

क्या मुख्यमंत्री रहते पनीरसेल्वम खुद ऐसा आदेश जारी नहीं कर सकते थे? अगर वो ऐसा करते तो क्या शशिकला उन्हें रोक देतीं? ज्यादा से ज्यादा यही होता कि शशिकला उन्हें तभी पार्टी से निकाल दी होतीं. अगर पनीरसेल्वम ऐसा किये होते तो लोगों को उन पर खासा यकीन होता क्योंकि शशिकला इस मामले को लेकर शुरू से सवालों के घेरे में थीं.

जवाब तो देने ही होंगे...

ताज्जुब की बात तो ये है कि पनीरसेल्वम अब बता रहे हैं कि उन्हें जयललिता से मिलने नहीं दिया जा रहा था. वो किस बात के मुख्यमंत्री रहे कि उन्हीं के नेता को एक महिला और उसके आदमी मिलने से रोक दे रहे थे. संभव है वो उस वक्त खुद भी सदमे में रहे होंगे लेकिन ये बात भी उन्हें तभी क्यों समझ आई जब उन्हें कुर्सी से हटा दिया गया. क्या दो महीने तक सूबे की सत्ता की कमान रहते एक बार भी उनके मन में ऐसे ख्याल नहीं आये? क्या ऐसा नहीं लगता कि ये सब सहानुभूति बटोरने की कोशिश भर है.

पनीरसेल्वम की इन भूलों को नजरअंदाज कर लोग अब तक इसीलिए साथ दे रहे हैं क्योंकि शशिकला का स्याह पक्ष ज्यादा गहरा नजर आता है.

शशिकला का रोल

शशिकला का रोल तो लंबे अरसे से संदेह और आरोपों के बीच झूलता रहा है. जयललिता भी पहले नजरअंदाज जरूर की होंगी. जब सिर से ऊपर पानी बहने लगा होगा तभी उन्हें शशिकला को घर से खदेड़ने जैसा सख्त फैसला लेना पड़ा होगा.

शशिकला ने बीतते वक्त के साथ जयललिता का विश्वास हासिल किया और आखिर तक साथ खड़ी रहीं, लेकिन अस्पताल में उनसे किसी को भी नहीं मिलने देना फिर से उन्हें संदेह के घेरे में खड़ा करता है. ऊपर से पनीरसेल्वम का ये आरोप कि उन्हें भी नहीं मिलने दिया गया, मामले को और गंभीर बना देता है.

हालत ये है कि विधायक दल का नेता चुने जाने के बावजूद राज्यपाल ने अब तक उन्हें सरकार बनाने को नहीं कहा. फैसले में देर के लिए शशिकला को भी सवाल उठाने का पूरा हक है लेकिन राज्यपाल को अपने विवेक से निर्णय लेने का अधिकार भी हासिल है.

"वो धोखेबाज है..."

विधायकों की मीटिंग के बाद जिस तरह धोखे से उन्हें रिजॉर्ट ले जाया गया उस तरीके को भी सही नहीं ठहराया जा सकता. सारे विधायक मीटिंग के लिए गये थे और उन्हें अचानक दिल्ली जाने के लिए बोल दिया गया. उनमें से कई ऐसे थे जिन्हें नियमित रूप से दवाइयां लेनी होती हैं. विधायकों को दवाएं तो मिल गयीं लेकिन बीच रास्ते में उन्हें पता चला कि वो दिल्ली नहीं बल्कि दूसरी जगह ले जाये जा रहे हैं. शशिकला के लोगों को ये हरकत बताने के लिए काफी है कि क्यों मन्नारगुड़ी माफिया शुरू से ही कुख्यात रहा है.

सरकार बनाने का न्योता न मिलने पर शशिकला उसी मरीना बीच पर जयललिता की समाधि के पास धरने पर बैठने की तैयारी कर रही हैं. खबर ये भी है कि पुलिस ने ऐसा करने से रोका तो शशिकला अपने समर्थकों के साथ पोएस गार्डन में भी धरना दे सकती हैं.

अगर हक की लड़ाई के लिए शशिकला लोकतांत्रिक तरीका अख्तियार करती हैं तो अच्छी बात है. देखना होगा कि उन्हें आम लोगों का कितना सपोर्ट मिलता है. फिर तो पनीरसेल्वम को सफाई देने की जरूरत ही नहीं रहेगी क्योंकि वैसे ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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