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जंगलराज के मंडराते खतरे से कब तक जूझ पाएंगे नीतीश कुमार?

    • आईचौक
    • Updated: 18 मई, 2016 06:20 PM
  • 18 मई, 2016 06:20 PM
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क्या कानून के राज की परिभाषा सिर्फ यही है कि अपराध हो और उस पर पुलिस एक्शन की रस्मअदायगी निभा दी जाए. अपराधी या तो सरेंडर कर दे या उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाए.

जो कहा सो किया. शराबबंदी की बात कही, उसे लागू कर दिया. जंगलराज नहीं आने देने का भरोसा दिलाया, गया के आदित्य मर्डर केस में कहा - कहां तक भागेगा? पकड़ कर जेल भेज दिया - अब पूरा परिवार अंदर है. सिवान के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या का मामला सीबीआई को सौंपने का भी एलान कर दिया.

ये सब करके नीतीश कुमार चुनावी वादों पर लगातार खरे उतरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रहीं. आखिर क्यों?

बिहार में किसका राज?

बिहार में जो कुछ हो रहा है वो नीतीश कुमार के सुशासन के दावे पर सवाल खड़े कर रहा है. बात जब जंगलराज की आती है तो सिरे से खारिज कर नीतीश कुमार कहते हैं - नहीं, बिहार में कानून का राज है जंगलराज नहीं.

क्या कानून के राज की परिभाषा सिर्फ यही है कि अपराध हो और उस पर पुलिस एक्शन की रस्मअदायगी निभा दी जाए. अपराधी या तो सरेंडर कर दे या उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाए. उसे रिमांड पर लेकर पूछताछ की जरूरत भी महसूस न की जाए.

क्या कानून के राज का मतलब ये नहीं होता कि अपराधी खौफजदा रहे. उसे कानून का इतना डर हो कि वो अपराध को अंजाम देने से पहले सोचे और आखिरकार हिम्मत न जुटा पाए.

इसे भी पढ़ें: किसकी संगत का किस पर हुआ असर!

ये तो कोई भी नहीं कह सकता कि अपराध सिर्फ बिहार में हो रहे हैं. तेजस्वी यादव ने भी नीतीश सरकार का बचाव किया है. तेजस्वी ने कहा था कि जंगलराज वो नहीं जो बिहार में हो रहा है, जंगलराज वो है जो व्यापम में हो रहा है. जंगलराज वो है जो पठानकोट में हुआ.

एक हिस्ट्रीशीटर का बेटा, मां के गनर के साथ लाखों की गाड़ी में सड़क पर तफरीह करने निकलता है - और रास्ते में कोई उसकी गाड़ी को ओवरटेक कर देता है तो सीधे गोली मार देता है.

एक सजायाफ्ता अपराधी एक...

जो कहा सो किया. शराबबंदी की बात कही, उसे लागू कर दिया. जंगलराज नहीं आने देने का भरोसा दिलाया, गया के आदित्य मर्डर केस में कहा - कहां तक भागेगा? पकड़ कर जेल भेज दिया - अब पूरा परिवार अंदर है. सिवान के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या का मामला सीबीआई को सौंपने का भी एलान कर दिया.

ये सब करके नीतीश कुमार चुनावी वादों पर लगातार खरे उतरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रहीं. आखिर क्यों?

बिहार में किसका राज?

बिहार में जो कुछ हो रहा है वो नीतीश कुमार के सुशासन के दावे पर सवाल खड़े कर रहा है. बात जब जंगलराज की आती है तो सिरे से खारिज कर नीतीश कुमार कहते हैं - नहीं, बिहार में कानून का राज है जंगलराज नहीं.

क्या कानून के राज की परिभाषा सिर्फ यही है कि अपराध हो और उस पर पुलिस एक्शन की रस्मअदायगी निभा दी जाए. अपराधी या तो सरेंडर कर दे या उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाए. उसे रिमांड पर लेकर पूछताछ की जरूरत भी महसूस न की जाए.

क्या कानून के राज का मतलब ये नहीं होता कि अपराधी खौफजदा रहे. उसे कानून का इतना डर हो कि वो अपराध को अंजाम देने से पहले सोचे और आखिरकार हिम्मत न जुटा पाए.

इसे भी पढ़ें: किसकी संगत का किस पर हुआ असर!

ये तो कोई भी नहीं कह सकता कि अपराध सिर्फ बिहार में हो रहे हैं. तेजस्वी यादव ने भी नीतीश सरकार का बचाव किया है. तेजस्वी ने कहा था कि जंगलराज वो नहीं जो बिहार में हो रहा है, जंगलराज वो है जो व्यापम में हो रहा है. जंगलराज वो है जो पठानकोट में हुआ.

एक हिस्ट्रीशीटर का बेटा, मां के गनर के साथ लाखों की गाड़ी में सड़क पर तफरीह करने निकलता है - और रास्ते में कोई उसकी गाड़ी को ओवरटेक कर देता है तो सीधे गोली मार देता है.

एक सजायाफ्ता अपराधी एक हिट लिस्ट तैयार करता है. उसकी लिस्ट में दो दर्जन लोग शुमार हैं जिन्हें वो बारी बारी शिकार बनाने की फिराक में है. सिवान के पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी ने उनकी हत्या में बाहुबली नेता शहाबुद्दीन के हाथ होने का शक जताया है. उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा है कि राजदेव ने खुद भी ऐसी आशंका जताई थी.

ये है जेल में शहाबुद्दीन का जलवा

पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया है वे शहाबुद्दीन के करीबी बताए जाते हैं. विपक्ष के आरोपों में भी शक की सूई शहाबुद्दीन की ओर ही घूम रही है.

पिछले ही महीने लालू प्रसाद की ओर से आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों की सूची जारी हुई तो पता चला उसमें शहाबुद्दीन को भी शामिल किया गया है. विपक्ष ने तब भी सवाल खड़े किये. तब राबड़ी देवी ने भी पार्टी का बचाव किया था - और बीजेपी आलाकमान की ओर उंगली उठाई थी. अब तेजस्वी यादव ने सुशील मोदी को चुनौती दी है कि अगर इस केस में शहाबुद्दीन का नाम नहीं आया तो क्या वो माफी मांगेंगे?

जंगलराज का साइड इफेक्ट

बनारस में जब नीतीश कुमार गंगा में डुबकी लगा रहे थे तो बिहार में उन पर सियासी हमले हो रहे थे. विपक्ष के हमले तो स्वाभाविक हैं, लेकिन उनके महागठबंधन के साथी भी हमले कर रहे थे. साथियों का हमला तो विपक्ष से भी कहीं ज्यादा तीखा रहा. इस मामले में लालू के करीबी रघुवंश प्रसाद और आरजेडी सांसद तसलीमुद्दीन में एक तरीके से होड़ देखने को मिली. "प्रधान बनने चले हैं..." हमले का यही लहजा रहा.

इसे भी पढ़ें: बिहार में जंगलराज-2 की वापसी से दहशत का माहौल!

चुनावों के दौरान तो नीतीश कुमार लोगों को समझाने में कामयाब रहे कि उनके रहते बिहार में दोबारा जंगलराज नहीं आएगा. लोगों ने उनकी बात मानी भी. नतीजे गवाह हैं.

नीतीश के कुर्सी संभालने के कुछ ही दिन बाद जब दरभंगा में दो इंजीनियरों की सरेआम हत्या कर दी गई तो लोग फिर से सशंकित हो उठे. कुछ और भी आपराधिक घटनाएं हुईं लेकिन लोगों ने उम्मीद कायम रखी. लेकिन गया और सिवान की घटनाओं के बाद फिर से शक होने लगा है. क्या वाकई ये जंगलराज की दस्तक है? या, ये सिर्फ जंगलराज के साइड इफेक्ट हैं?

सिवान की घटना पर बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी का आरोप है कि राजदेव रंजन ने ही आरजेडी विधायक और मंत्री अब्दुल गफूर और शहाबुद्दीन की मुलाकात की तस्वीर लीक कर दी थी. सुशील मोदी कहते हैं मंत्री की मुलाकात के बाद विवाद हुआ तो जेल अधीक्षक को बर्खास्त कर दिया गया, पर नेताओं के बारे में किसी ने कुछ भी नहीं कहा.

प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश का नाम उछलता है तो लालू प्रसाद हंसते हंसते सपोर्ट करते हैं. तेजस्वी भी खुशी खुशी समर्थन का इजहार करते हैं. जैसे ही नीतीश बिहार से बाहर निकलते हैं, लालू के लोगों को बात पचती नहीं. खुलेआम खिंचाई करने लगते हैं. लेकिन ये कौन लोग हैं? नीतीश को निशाना बनानेवाले नीतीश के करीबी ही तो हैं. आखिर उनकी बातों को कैसे न लालू के मन की बात समझी जाए? असली राजनीति तो इसे ही कहते हैं.

गया के बिंदी यादव और सिवान के शहाबुद्दीन - ये दोनों बाहुबली भी तो 90 के दशक की ही देन हैं. बिहार के शासन का वो दौर जब लालू-राबड़ी कुर्सी संभालते रहे - और उसी का भय दिखाकर नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बन पाए.

मान लेते हैं कि नीतीश कुमार पूरी कोशिश करेंगे कि बिहार में उनकी सत्ता रहते जंगलराज फिर न आए, लेकिन उसके साइड इफेक्ट से वो कैसे बचा पाएंगे - यही फिलहाल उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

बिहार में भी बहार वैसे ही आ रही है जैसे देश में अच्छे दिन आए. बस स्लोगन और जुमले अलग अलग हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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