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बीजेपी को काउंटर करने के लिए मायावती ने बदला पैंतरा

    • आईचौक
    • Updated: 22 फरवरी, 2017 07:48 PM
  • 22 फरवरी, 2017 07:48 PM
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यूपी में चुनाव का मैदान जैसे जैसे पूरब की ओर बढ़ रहा है मायावती अपनी रणनीति बदलती जा रही हैं. पश्चिम यूपी में उनका मेन फोकस मुस्लिम वोट बैंक पर रहा जो धीरे धीरे दलितों की ओर शिफ्ट होने लगा है.

यूपी में चुनाव का मैदान जैसे जैसे पूरब की ओर बढ़ रहा है मायावती अपनी रणनीति बदलती जा रही हैं. पश्चिम यूपी में उनका मेन फोकस मुस्लिम वोट बैंक पर रहा जो धीरे धीरे दलितों की ओर शिफ्ट होने लगा है.

मायावती अब दलितों को भी वैसे ही डराने लगी हैं जैसे पिछले तीन चरण के चुनावों तक वो मुस्लिम समुदाय के बीच बीजेपी का भय दिखाती रहीं.

रोहित के बहाने

साल भर बाद रोहित वेमुला को एक बार फिर राजनीति में घसीट लिया गया है. पहले वरुण गांधी ने रोहित के नाम पर अपना एजेंडा आगे बढ़ाया और अब मायावती हैदराबाद के शोध छात्र की खुदकुशी को उछाल रही हैं. दोनों ही बीजेपी नेतृत्व को टारगेट करने के लिए अपने अपने हिसाब से रोहित वेमुला के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं. हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला ने 2016 की शुरुआत में हॉस्टल के एक कमरे में फांसी लगा ली थी.

मायावती को मालूम है कि बीजेपी पूर्वी उत्तर प्रदेश में गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों का वोट बटोरने की कोशिश कर रही है. मायावती की चिंता गैर-जाटव वोटों को लेकर है. माना गया कि 2014 के लोक सभा चुनाव में ये वोट बीएसपी से फिसल कर बीजेपी के खाते में चला गया था.

रोहित के नाम पर फिर सियासत

मायावती ने एक रैली में कहा, "भाजपा के यहां सत्ता में आने पर कितने रोहित वेमुला या दलित ऊना केस होंगे, इसका आप अंदाजा लगा सकते हैं?" ऊना में गौरक्षा दल द्वारा दलित युवकों की पिटाई का मामला सामने आने पर खासा बवाल हुआ था. बाद में दलितों ने अहमदाबाद से ऊना मार्च भी निकाला था जिसे काफी जन समर्थन मिला.

ऊना की घटना से बीजेपी की खूब फजीहत हुई थी - और स्थिति बेकाबू होने पर संघ प्रमुख मोहन भागवत को यूपी में मोर्चा संभालना पड़ा था.

'समझो आरक्षण...

यूपी में चुनाव का मैदान जैसे जैसे पूरब की ओर बढ़ रहा है मायावती अपनी रणनीति बदलती जा रही हैं. पश्चिम यूपी में उनका मेन फोकस मुस्लिम वोट बैंक पर रहा जो धीरे धीरे दलितों की ओर शिफ्ट होने लगा है.

मायावती अब दलितों को भी वैसे ही डराने लगी हैं जैसे पिछले तीन चरण के चुनावों तक वो मुस्लिम समुदाय के बीच बीजेपी का भय दिखाती रहीं.

रोहित के बहाने

साल भर बाद रोहित वेमुला को एक बार फिर राजनीति में घसीट लिया गया है. पहले वरुण गांधी ने रोहित के नाम पर अपना एजेंडा आगे बढ़ाया और अब मायावती हैदराबाद के शोध छात्र की खुदकुशी को उछाल रही हैं. दोनों ही बीजेपी नेतृत्व को टारगेट करने के लिए अपने अपने हिसाब से रोहित वेमुला के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं. हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला ने 2016 की शुरुआत में हॉस्टल के एक कमरे में फांसी लगा ली थी.

मायावती को मालूम है कि बीजेपी पूर्वी उत्तर प्रदेश में गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों का वोट बटोरने की कोशिश कर रही है. मायावती की चिंता गैर-जाटव वोटों को लेकर है. माना गया कि 2014 के लोक सभा चुनाव में ये वोट बीएसपी से फिसल कर बीजेपी के खाते में चला गया था.

रोहित के नाम पर फिर सियासत

मायावती ने एक रैली में कहा, "भाजपा के यहां सत्ता में आने पर कितने रोहित वेमुला या दलित ऊना केस होंगे, इसका आप अंदाजा लगा सकते हैं?" ऊना में गौरक्षा दल द्वारा दलित युवकों की पिटाई का मामला सामने आने पर खासा बवाल हुआ था. बाद में दलितों ने अहमदाबाद से ऊना मार्च भी निकाला था जिसे काफी जन समर्थन मिला.

ऊना की घटना से बीजेपी की खूब फजीहत हुई थी - और स्थिति बेकाबू होने पर संघ प्रमुख मोहन भागवत को यूपी में मोर्चा संभालना पड़ा था.

'समझो आरक्षण खत्म'

भागवत की कोशिश से बीजेपी को कोई फायदा मिला या नहीं कि संघ के ही मनमोहन वैद्य ने आरक्षण खत्म करने की वकालत कर डाली. तकरीबन वैसे ही जैसे भागवत ने बिहार चुनाव के वक्त बयान दे डाला था - और बीजेपी नेताओं रक्षात्मक हो जाना पड़ा था.

पहले मुस्लिम, अब दलित...

इससे पहले मायावती मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी इसी तरह समझाती रहीं. कहतीं - वो अपना वोट बर्बाद न होने दें. मायावती लोगों को समझातीं अगर उन्होंने समाजवादी पार्टी को वोट दिया तो बेकार हो जाएगा. बीच बीच में मायावती अयोध्या के राम मंदिर और मुजफ्फरनगर के दंगों का जितना ज्यादा हो सकता जिक्र करती रहीं. इनके जरिये मायावती बीजेपी के हिंदूवादी एजेंडे और समाजवादी पार्टी के ऊपर अपनी गुंडाराज की तोहमत को सही साबित करने की कोशिश करतीं.

अब दलितों को मायावती समझा रही हैं कि अगर यूपी में बीजेपी सत्ता में आई तो वो आरक्षण खत्म कर देगी. फैजाबाद की रैली में मायावती ने तरह तरह से अपनी बात लोगों को समझाने की कोशिश की. जाहिर है ये सिलसिला आगे के चुनाव में भी जारी रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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