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कश्मीर पर महबूबा मुफ्ती का बयान अलगाववादियों की हार है...  

    • शिवानन्द द्विवेदी
    • Updated: 27 अगस्त, 2016 06:16 PM
  • 27 अगस्त, 2016 06:16 PM
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महबूबा मुफ्ती का भाजपा के स्टैंड पर अपना स्टैंड रखना सिर्फ उस न्यूनतम साझा कार्यक्रम तक सीमित बात नहीं रही जो गठबंधन के समय तय हुई थी. अब यह बात उससे आगे निकल चुकी है.

तीन-चार महीने पहले एक टीवी न्यूज़ कार्यक्रम में एंकर ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से पीडीपी से गठबंधन को लेकर सवाल किया था. उस सवाल का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा था कि भाजपा-पीडीपी गठबंधन के मसौदे की पहली पंक्ति उन्होंने खुद तैयार की है. उनके अनुसार जम्मू-काश्मीर के जनादेश को मानते हुए वहां की जनता के हित में सहमति के मुद्दों पर न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत यह सरकार काम करेगी.

आज जब उस गठबंधन का मूल्यांकन करते हैं तो गठबंधन होने के दौरान राष्ट्रवादी खेमे के बीच से उठे सारे सवाल और सारी शंकाएं मिथ्या साबित होती दिख रही हैं. ऐसा लग रहा है कि उस दौरान इस गठबंधन को लेकर राष्ट्रवादियों के बीच की शंका और विरोधी खेमे की उलाहना, निरर्थक थीं. हालांकि उस दौरान भी मैंने इस गठबंधन को बेहद जरुरी और जम्मू-कश्मीर के हित में माना था, जिसकी वजह से सोशल मीडिया पर मुझे विरोधी तो विरोधी, राष्ट्रवादी भी अपने कोप का शिकार बनाए हुए थे.

एक बहस के क्रम में किसी पत्रकार मित्र ने फेसबुक पर लिखा था कि भाजपा-पीडीपी गठबंधन के बाद जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आत्मा रो रही होगी. मैंने इसका विरोध यह कहते हुए किया था कि यह गठबंधन ही डॉ मुखर्जी के सपनों को सच के करीब ले जाएगा, मगर थोडा संयम रखा जाना चाहिए। इस गठबंधन के प्रति मेरा वो विश्वास आज और पुख्ता हुआ है.

यह भी पढ़ें- मोदी सरकार के कठोर रुख के आगे लाचार पाक

अभी चंद दिन पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने प्रेस-कॉफ्रेंस में अलगाववाद एवं कश्मीर में हुई हिंसा को लेकर बेहद बेबाक बयान दिया था. उन्होंने मीडिया से दो टूक कह दिया कि जब सेना और पुलिस पर कोई पत्थर फेंकेगा तो उसे मासूम नहीं कहेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि सेना के कैम्प पर पत्थर फेंकने वाले बच्चे दूध...

तीन-चार महीने पहले एक टीवी न्यूज़ कार्यक्रम में एंकर ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से पीडीपी से गठबंधन को लेकर सवाल किया था. उस सवाल का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा था कि भाजपा-पीडीपी गठबंधन के मसौदे की पहली पंक्ति उन्होंने खुद तैयार की है. उनके अनुसार जम्मू-काश्मीर के जनादेश को मानते हुए वहां की जनता के हित में सहमति के मुद्दों पर न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत यह सरकार काम करेगी.

आज जब उस गठबंधन का मूल्यांकन करते हैं तो गठबंधन होने के दौरान राष्ट्रवादी खेमे के बीच से उठे सारे सवाल और सारी शंकाएं मिथ्या साबित होती दिख रही हैं. ऐसा लग रहा है कि उस दौरान इस गठबंधन को लेकर राष्ट्रवादियों के बीच की शंका और विरोधी खेमे की उलाहना, निरर्थक थीं. हालांकि उस दौरान भी मैंने इस गठबंधन को बेहद जरुरी और जम्मू-कश्मीर के हित में माना था, जिसकी वजह से सोशल मीडिया पर मुझे विरोधी तो विरोधी, राष्ट्रवादी भी अपने कोप का शिकार बनाए हुए थे.

एक बहस के क्रम में किसी पत्रकार मित्र ने फेसबुक पर लिखा था कि भाजपा-पीडीपी गठबंधन के बाद जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आत्मा रो रही होगी. मैंने इसका विरोध यह कहते हुए किया था कि यह गठबंधन ही डॉ मुखर्जी के सपनों को सच के करीब ले जाएगा, मगर थोडा संयम रखा जाना चाहिए। इस गठबंधन के प्रति मेरा वो विश्वास आज और पुख्ता हुआ है.

यह भी पढ़ें- मोदी सरकार के कठोर रुख के आगे लाचार पाक

अभी चंद दिन पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने प्रेस-कॉफ्रेंस में अलगाववाद एवं कश्मीर में हुई हिंसा को लेकर बेहद बेबाक बयान दिया था. उन्होंने मीडिया से दो टूक कह दिया कि जब सेना और पुलिस पर कोई पत्थर फेंकेगा तो उसे मासूम नहीं कहेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि सेना के कैम्प पर पत्थर फेंकने वाले बच्चे दूध और टॉफी लेने तो नहीं निकलते हैं!

 राजनाथ सिंह और महबूबा मुफ्ती

अब जो भी व्यक्ति पीडीपी की राजनीति को ठीक से जानता है वो यह आसानी से समझ पायेगा कि पीडीपी नेता के मुह से इस बयान के मायने क्या हैं ?

इस बयान के महज दो-तीन बाद जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती दिल्ली आकर प्रधानमंत्री मोदी से मिलती हैं और फिर एक बयान देती हैं. इस बयान में आतंकवाद और पाकिस्तान के साथ-साथ मीडिया के उन तत्वों को भी खरी-खरी सुनाती हैं जो अलगावादियों के प्रति सहानुभूति दिखाकर वहां के मासूम लोगों को उकसाने का काम कर रहे हैं. अपने बयान में उन्होंने अलगाववादियों से भी मुख्यधारा में आकर सरकार के साथ काम करने की अपील की है.

चुनाव के बाद जिस दिन गठबंधन हुआ था उस दिन भाजपा का रुख अपनी विचारधारा को लेकर वही था, जो आज है. आतंकवाद के मसले पर, अलगाववाद के मसले पर अथवा पाकिस्तान को लेकर. हाल में ही प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान से यह स्पष्ट कर दिया है कि अब बात कश्मीर पर नहीं बल्कि पाक अधिकृत कश्मीर पर होगी. अब बात पाकिस्तानी सेना द्वारा बलूचिस्तान में किये जा रहे अत्याचारों पर होगी. मोदी के इस बयान के बाद पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है. ऐसे में महबूबा मुफ्ती का भी भाजपा के स्टैंड पर अपना स्टैंड रखना सिर्फ उस न्यूनतम साझा कार्यक्रम तक सीमित बात नहीं रही जो गठबंधन के समय तय हुई थी.

अब यह बात उससे आगे निकल चुकी है. अब डॉ मुखर्जी की कश्मीर को लेकर जो सोच थी अथवा भाजपा की कश्मीर को लेकर जो विचारधारा है, कमोबेस पीडीपी भी उसी के साथ आगे बढ़ती दिख रही है. इसे तमाम लोग पीडीपी में हुए एक परिवर्तन के तौर पर देख सकते हैं. लेकिन यह परिवर्तन कोई अचानक नहीं हो गया है, बल्कि इसके पीछे इस गठबंधन की बड़ी इच्छाशक्ति काम कर रही है. इस गठबंधन का सबसे बड़ा लाभ यह रहा कि राष्ट्रवादी विचारधारा का सत्ताधारी दल के रूप में पहली बार घाटी में इस जनादेश के साथ प्रवेश हुआ है.

 दिल्ली में जब पीएम मोदी से मिलीं महबूबा

अगर भाजपा और सत्ता की भागीदार नहीं होती तो यह सब कतई संभव नहीं होता. लेकिन आज ये सब संभव हो रहा है. कश्मीर की जनता के बुनियादी विकास का एजेंडा तो इस गठबंधन का प्रमुख लक्ष्य है ही, साथ में विचारधारा को वहां तक पहुंचाने के लिए भी इस गठबंधन को होना जरुरी था. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती के बयान से यह अब साबित हो रहा है कि राष्ट्रवादी सोच को कश्मीर में स्वीकार्यता तेजी से मिलती दिख रही है.

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आज जब पाकिस्तान और आतंकवाद को लेकर भाजपा-नीत केंद्र सरकार ने अपना स्पष्ट रुख मजबूती के साथ रख दिया है और जम्मू-कश्मीर की पीडीपी-भाजपा सरकार भी उस मत को बिना किसी विवाद और असहमति के स्पष्ट तौर पर अपना मत मान चुकी है, तो इस परिवर्तन को भाजपा-पीडीपी गठबंधन के संदर्भ में जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रवादी विचारधारा की जीत के रूप में देखे जाने की जरूरत है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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