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कश्मीरियत में जोडि़ए जम्मूइयत और लद्दाखियत भी

    • सुशोभित सक्तावत
    • Updated: 11 अगस्त, 2016 11:43 PM
  • 11 अगस्त, 2016 11:43 PM
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यह एक भ्रम है कि कश्मीर केवल कश्मीर घाटी है. कश्मीर जम्मू और कश्मीर एक साथ है. उसमें जम्मू शामिल है, जहां से पंडितों को खदेड़ दिया गया. उसमें लद्दाख भी शामिल है, जो कि बौद्ध बहुल प्रांत है.

राज्यसभा में कश्मीर मसले पर बहस के दौरान डॉ. कर्ण सिंह ने एक बहुत ही उम्दा बात कही. उन्होंने कहा, "इंसानियत-जम्हूरियत-कश्मीरियत" का नारा तो हमने बहुत सुना, ज़रूरत है कि इसमें "जम्मूइयत" और "लद्दाखियत" को भी जोड़ा जाए.

कश्मीर रियासत के अंतिम नरेश हरि सिंह के सुपुत्र और राज्य के पूर्व सद्रे-रियासत डॉ. कर्ण सिंह का यह कथन कश्मीर की "सिंह-शेख़ डायलेक्टिरक" में राजा हरि सिंह के "प्रो-डोंगरी" रुख़ को आगे बढ़ाने वाला ही है.

 सांसद कर्ण सिंह का राज्यसभा में कश्मीर मुद्दे को लेकर वाजिब सलाह

कश्मीर के भारत में विलय के बाद शेख़ अब्दुल्ला वहां के वज़ीरे-आज़म बनाए गए, जिनके पास तमाम प्रशासनिक शक्तियां थी. कर्ण सिंह सद्रे-रियासत बने, जो कि राज्यपाल की तरह संवैधानिक प्रमुख होने के बावजूद सत्ताहीन थे. इसका उल्टा क्यों नहीं हुआ? क्या इसलिए कि पंडित नेहरू की अच्छी दोस्ती शेख़ अब्दुल्ला से थी? या इसलिए कि वे श्यामाप्रसाद मुखर्जी को कमज़ोर करना चाहते थे?

ये भी पढ़े: घाटी में क्यों नहीं लौट रहे विस्थापित कश्मीरी पंडित

मैं देख रहा हूं, अख़बारों ने डॉ. कर्ण सिंह की बात को बड़ी चतुराई से गोल कर दिया है. उसे आगे क्यों नहीं बढ़ाया जाता? यह एक भ्रम है कि कश्मीर केवल कश्मीर घाटी है. कश्मीर "जम्मू और कश्मीर" एक साथ है. उसमें जम्मू शामिल है, जहां से पंडितों को खदेड़ दिया गया. उसमें...

राज्यसभा में कश्मीर मसले पर बहस के दौरान डॉ. कर्ण सिंह ने एक बहुत ही उम्दा बात कही. उन्होंने कहा, "इंसानियत-जम्हूरियत-कश्मीरियत" का नारा तो हमने बहुत सुना, ज़रूरत है कि इसमें "जम्मूइयत" और "लद्दाखियत" को भी जोड़ा जाए.

कश्मीर रियासत के अंतिम नरेश हरि सिंह के सुपुत्र और राज्य के पूर्व सद्रे-रियासत डॉ. कर्ण सिंह का यह कथन कश्मीर की "सिंह-शेख़ डायलेक्टिरक" में राजा हरि सिंह के "प्रो-डोंगरी" रुख़ को आगे बढ़ाने वाला ही है.

 सांसद कर्ण सिंह का राज्यसभा में कश्मीर मुद्दे को लेकर वाजिब सलाह

कश्मीर के भारत में विलय के बाद शेख़ अब्दुल्ला वहां के वज़ीरे-आज़म बनाए गए, जिनके पास तमाम प्रशासनिक शक्तियां थी. कर्ण सिंह सद्रे-रियासत बने, जो कि राज्यपाल की तरह संवैधानिक प्रमुख होने के बावजूद सत्ताहीन थे. इसका उल्टा क्यों नहीं हुआ? क्या इसलिए कि पंडित नेहरू की अच्छी दोस्ती शेख़ अब्दुल्ला से थी? या इसलिए कि वे श्यामाप्रसाद मुखर्जी को कमज़ोर करना चाहते थे?

ये भी पढ़े: घाटी में क्यों नहीं लौट रहे विस्थापित कश्मीरी पंडित

मैं देख रहा हूं, अख़बारों ने डॉ. कर्ण सिंह की बात को बड़ी चतुराई से गोल कर दिया है. उसे आगे क्यों नहीं बढ़ाया जाता? यह एक भ्रम है कि कश्मीर केवल कश्मीर घाटी है. कश्मीर "जम्मू और कश्मीर" एक साथ है. उसमें जम्मू शामिल है, जहां से पंडितों को खदेड़ दिया गया. उसमें लद्दाख भी शामिल है, जो कि बौद्ध बहुल प्रांत है. उसमें गिलगित, बाल्टि स्तान, स्कार्दू भी शामिल हैं, जिस पर पाकिस्तान का ग़ैरजायज़ कब्ज़ा है और जहां चीन सड़कें बनवा रहा है. कश्मीर केवल आतंकवादियों और अलगाववादियों से भरी कश्मीर घाटी नहीं है. 

ये भी पढ़े: डिप्लोमेसी और हकीकत में पिसता कश्मीर मुद्दा

इसे ऐसे समझें. जम्मू और कश्मीर में तीन डिवीज़न हैं : घाटी, जम्मू और लद्दाख. घाटी 15,948 वर्ग किमी के दायरे में फैली है और उसकी आबादी 68 लाख है. जम्मू उससे लगभग 10 हज़ार वर्ग किमी अधिक बड़ा (26293 वर्गकिमी) है. लेकिन उसकी आबादी लगभग 10 लाख कम (कोई 53 लाख) है. 59146 वर्ग किमी वाला लद्दाख जम्मू-कश्मीर का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन वहां कोई ढ़ाई लाख लोग ही रहते हैं.

 आखिर क्यों जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाले इलाके लद्दाख की आबादी इतनी कम है.

घाटी के पास 46 विधानसभा सीटें हैं, जम्मू के पास 37 और लद्दाख के पास केवल चार. अगर जम्मू के पास भी 46 सीटें होतीं और लद्दाख के पास 10 सीटें होतीं तो आज श्रीनगर में पूर्ण बहुमत की सरकार किसकी होती? 

ये भी पढ़े: क्या कश्मीर पंडितों को वापस ले आएंगी महबूबा?

जम्मू-कश्मीर राज्य से जुड़ा कोई भी फ़ैसला जम्मू और लद्दाख को राज्य की विधानसभा में उनको समुचित अधिकार दिए बिना और राज्य से जुड़े मामलों में उन्हें एक पुख़्ता आवाज़ बनाए बिना नहीं हो सकता. कश्मीर मसला सुलझाने का जिम्मा केवल हुर्रियत वालों का नहीं है, कश्मीरी पंडित भी वहां के उतने ही "स्टेकहोल्डर्स" हैं. उन्हें वहां पुन: बहाल किया जाए. जनसांख्यिेकी में आई विसंगतियों को दूर किया जाए. विधानसभा सीटों का उचित पुनर्सीमन किया जाए. उसके बाद आगे की बात की जाएगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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