• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

गुड़गांव में जो हुआ, अच्छा हुआ, अगर...

    • प्रबुद्ध जैन
    • Updated: 01 अगस्त, 2016 11:24 PM
  • 01 अगस्त, 2016 11:24 PM
offline
होड़ में गोड़ तोड़ने से बेहतर है कि अपने शहरों का यही सूरते हाल दुरुस्त किया जाए. इसी हाल की बेहतरी में निवेश हो. कहीं ऐसा न हो कि हम अपने लिए 100-150 और 'गुरुग्राम' बना लें

ओलंपिक को लेकर गहमागहमी तेज़ है. हर बार जब भी कोई बड़ी खेल प्रतियोगिता सिर पर होती है तो किसी और खेल में तो नहीं लेकिन लंबी कूद यानी लॉन्ग जंप में हमेशा पदक की उम्मीद सी रहती है. दरअसल, अपना देश ये सुनिश्चित करता है कि हम सबको इसकी ट्रेनिंग बचपन से मिले. हममें से कौन होगा जो बीसियों बार, ईंट, गिट्टी, पत्थर पर कमाल का संतुलन बनाते हुए 'भवसागर' पार न कर गया हो. जो दूसरा आदमी उस पार सकुशल पहुंच जाता है वो हौसला बंधाने में कसर नहीं छोड़ता--नहीं, नहीं तुम कर सकते हो, तुम इस खेल के सुल्तान हो. और फिर एक, दो तीन....हो गया बेड़ा पार. कभी इंचीटेप लेकर नापते तो मोहल्ले के कई रिकॉर्ड तो हमने तोड़े ही होंगे. 3-4 मीटर लंबी जंप तो बाएं हाथ का खेल है अपने देश में.

इसे भी पढ़ें: गुड़गांव के महाजाम का मतलब स्‍मार्ट नहीं हैं हमारे इं‍तजाम

इस खेल की तैयारी अमूमन बारिश के मौसम में होती है लेकिन वैसे पूरे साल इधर-उधर छोटे-मोटे ट्रेनिंग कैंप जारी रहते हैं.

गुड़गांव में...ओह ओ...माफ़ कीजिएगा, गुरुग्राम में इन दिनों इसी खेल का महाकुंभ लगा हुआ है. वैसे भी नंबर 1 हरियाणा खिलाड़ियों के लिए जाना जाता है. बस, इस बार चुनौती थोड़ी कड़ी है. आपको ईंट, गिट्टी, पत्थर की जगह गाड़ियों की छत इस्तेमाल करते हुए 'भवसागर' पार करना है. हज़ारों गाड़ियां, एक-दूसरे से बतियाती हुई, हेडलाइटें आपस में आंख मारती हुई आपकी बाट जोह रही हैं. आइए, एक वाहन की छत से दूसरी पर कूदते हुए पहुंच जाइए साइबर सिटी, पहुंच जाइए एमजी रोड, पहुंच जाइए इफ़्को चौक.

ओलंपिक को लेकर गहमागहमी तेज़ है. हर बार जब भी कोई बड़ी खेल प्रतियोगिता सिर पर होती है तो किसी और खेल में तो नहीं लेकिन लंबी कूद यानी लॉन्ग जंप में हमेशा पदक की उम्मीद सी रहती है. दरअसल, अपना देश ये सुनिश्चित करता है कि हम सबको इसकी ट्रेनिंग बचपन से मिले. हममें से कौन होगा जो बीसियों बार, ईंट, गिट्टी, पत्थर पर कमाल का संतुलन बनाते हुए 'भवसागर' पार न कर गया हो. जो दूसरा आदमी उस पार सकुशल पहुंच जाता है वो हौसला बंधाने में कसर नहीं छोड़ता--नहीं, नहीं तुम कर सकते हो, तुम इस खेल के सुल्तान हो. और फिर एक, दो तीन....हो गया बेड़ा पार. कभी इंचीटेप लेकर नापते तो मोहल्ले के कई रिकॉर्ड तो हमने तोड़े ही होंगे. 3-4 मीटर लंबी जंप तो बाएं हाथ का खेल है अपने देश में.

इसे भी पढ़ें: गुड़गांव के महाजाम का मतलब स्‍मार्ट नहीं हैं हमारे इं‍तजाम

इस खेल की तैयारी अमूमन बारिश के मौसम में होती है लेकिन वैसे पूरे साल इधर-उधर छोटे-मोटे ट्रेनिंग कैंप जारी रहते हैं.

गुड़गांव में...ओह ओ...माफ़ कीजिएगा, गुरुग्राम में इन दिनों इसी खेल का महाकुंभ लगा हुआ है. वैसे भी नंबर 1 हरियाणा खिलाड़ियों के लिए जाना जाता है. बस, इस बार चुनौती थोड़ी कड़ी है. आपको ईंट, गिट्टी, पत्थर की जगह गाड़ियों की छत इस्तेमाल करते हुए 'भवसागर' पार करना है. हज़ारों गाड़ियां, एक-दूसरे से बतियाती हुई, हेडलाइटें आपस में आंख मारती हुई आपकी बाट जोह रही हैं. आइए, एक वाहन की छत से दूसरी पर कूदते हुए पहुंच जाइए साइबर सिटी, पहुंच जाइए एमजी रोड, पहुंच जाइए इफ़्को चौक.

 बारिश और जाम के कहर से परेशान गुरुग्राम

मुख्यमंत्री मनोहर हैं, जनता ग़ुस्से से लाल है और योजनाओं के अंगूर खट्टे हैं. पानी ने हवा टाइट कर दी है. गुरुग्राम के इस 'पाषाण' युग की शुरुआत 1996 में हुई थी जब डीएलएफ़ वाले केपी सिंह, जीई वाले जैक वेल्च के जेनपैक्ट को गुरुग्राम में लाने में कामयाब हो गए. बाद में केपी सिंह ने डीएलएफ़ की टैगलाइन 'बिल्डिंग इंडिया' कर दिया लेकिन काम 'बिल्डिंग गुड़गांव' वाला ही करते रहे. वो भी ठीक से नहीं किया.

इसे भी पढ़ें: लगी सावन की ये कैसी झड़ी है, दिल्ली जहां की तहां ही खड़ी है!

और सच पूछिए तो किसने किया अपना काम ठीक से. अब टीवी से लेकर अख़बार तक टाउन प्लानिंग-टाउन प्लानिंग खेला जा रहा है. अरे काहे का टाउन और कौन सी प्लैनिंग. कुछ साल पहले एनसीआर प्लानिंग बोर्ड ने पर्चा निकाला कि 2021 तक गुड़गांव की आबादी 16.5 लाख हो जाएगी. मज़ाक ये कि 2012 में ही ये आंकड़ा पार हो गया.

गरियाने के लिए सामने गुरुग्राम ज़रूर है लेकिन ये कहानी हिंदुस्तान के लगभग हर शहर की है. याद कीजिए--अपने अपने शहर, जहां से उठकर हम दिल्ली-एनसीआर चले आए रोज़ी-रोटी कमाने (दिल्ली के कमेंटबाज़ नीचे लिख सकते हैं--हमने बुलाया था क्या, आए ही क्यों!) हमारे अपने शहरों में बचपन और जवानी कैसे गुज़री. मैं आगरा से हूं. हमेशा ऐसा महसूस होता रहा जैसे नगर निगम हड़ताल पर हो. कहने को ताज नगरी, टूरिस्ट सिटी का तमगा पर गंदगी इतनी कि आगरा का कहलाने में शर्म आने लगे. 15 मिनट की बारिश में सड़कें पोखर बन जाती हैं. दुनिया में कोई और देश अपनी धरोहर नगरी का ऐसा हाल रखता होगा, मुझे शक है.

होते रहें आप-हम शर्मिंदा, मरते रहें सड़कों पर. हक़ीक़त ये है कि सिस्टम को फ़र्क़ पड़ना बंद हो गया है. यक़ीन मानिए, जिस दिन सिस्टम को आपकी तकलीफ़ से फ़र्क़ पड़ना बंद हो जाए, समझिए उस दिन से कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ी की शुरुआत हो चुकी है. जिसके नतीजे में ये 24-44 घंटे का ट्रैफ़िक जाम और जलभराव तो कुछ भी नहीं. सिस्टम की इस निर्लिप्तता के नतीजे इतने भयावह हो सकते हैं कि आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते. ये डरने और डराने की बात नहीं. सोचने की है. सिस्टम बड़े आराम से कह रहा है--साहब, वो बारिश ज़्यादा हो गई, हम क्या करें. मानो मौसम विभाग ने तो इस बार सूखे की भविष्यवाणी कर रखी थी. हम अकेले मुल्क होंगे जो अपनी नेमतों को भी बर्बादी के चोगे में लपेट कर समंदर में बहा देने की क़ाबिलियत रखते हैं.

इसे भी पढ़ें: इसे मजाक मत समझिए, पहले जैसा नहीं रहा हमारा मौसम विभाग

जवाबदेही का दौर ख़त्म होने की कगार पर है. इसीलिए, किसी आफ़त पर कमिश्नर तो ट्रांसफ़र हो जाते हैं, राजनैतिक इस्तीफ़े नहीं आते. ये चेतने का समय है. हालांकि, ये भी अब बहुत थकी हुई, रूटीन लाइन ही लगती है.

देश का एक तबका सरकार के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को इन समस्याओं का निदान बता रहा है. स्मार्ट सिटी की परिकल्पना वैसे ही लगती है जैसे बचपन में हम जब पुराने टाइम टेबल पर अमल नहीं कर पाते थे तो कुछ दिन बाद उससे भी तगड़ा एक और टाइम-टेबल बना लेते थे कि देखना इस बार फोड़ देंगे. क्या होता था-आपको भी पता है. काश कि हम वो कम कठिन टाइम-टेबल पर ही चल पाते.

होड़ में गोड़ तोड़ने से बेहतर है कि अपने शहरों का यही सूरते हाल दुरुस्त किया जाए. इसी हाल की बेहतरी में निवेश हो. कहीं ऐसा न हो कि हम अपने लिए 100-150 और 'गुरुग्राम' बना लें. इसीलिए लगता है, गुरुग्राम में जो हुआ अच्छा हुआ, अगर इससे सबक सीख कर भविष्य के शहर संवर सकें.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲